यातुधान आसुरी साधना और शक्ति पीठ कथा 5 अंतिम भाग
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । जैसा की अभी तक हमारी कहानी यातुधान आसुरी साधना और शक्ति पीठ भाग 4 में आपने जान लिया है । कि किस प्रकार से यातुधान नामक राक्षस की माया से पराजित होकर के रेवती नाम की महायोगिनी अब भागने को मजबूर हो गई । क्योंकि अब वह जान चुकी थी कि उसके होने वाले पति के शरीर पर यातुधान नाम के असुर का कब्जा हो चुका है । जो उसके साथ शारीरिक संबंध बना करके उसका विनाश कर देना चाहता है । और उसकी सारी शक्तियां ले लेना चाहता है । इसलिए यह अब आवश्यक हो गया है कि वह यहां से अब भाग ले और अब अपनी योजना को तैयार करें । और उसने वही किया वह वहां से निकल गई और भागते हुए शक्ति पीठ जालंधर में माता त्रिपुरमालिनी के मंदिर में प्रवेश कर गई । वहां पर मां की वह भक्ति करने लगी । मंदिर के नजदीक आने पर यातुधान नाम के राक्षस चारों तरफ परिक्रमा की और कोशिश की । कि कहीं से कोई मार्ग हो जिसकी वजह से वह मंदिर में प्रवेश कर सकें । लेकिन तेजस्वी शक्तिपीठ होने के कारण वह अंदर प्रवेश नहीं कर पा रहा था । उसने बहुत कोशिश की और इस प्रकार से वहां से लौट गया । और अपनी योजना बनाने के लिए एक नई विचारधारा को अपने मन में सोचने लगा कि उसे क्या करना है । ऐसी कौन सी योजना बनानी है जिसके माध्यम से वह उस रेवती नाम की महा योगिनी को अपने कब्जे में लेकर के अपना दास बना सके । और उसकी संपूर्ण शक्तियों अपने अधीन कर सके । यही प्रशन रेवती के सामने भी था कि आखिर वह किस प्रकार से बचे । अब सबसे बड़ी समस्या यही थी रेवती ने थोड़ी देर प्रार्थना करने के बाद में अचानक से वहां पर एक गुप्त योगिनी प्रकट हुई ।
गुप्त योगिनी पुत्री कह कर के उन्होंने रेवती को पुकारा और कहा कि पूर्व जन्म में तुम योगिनी थी । जल में निवास करती थी मैं तुम्हारी माता तुल्य हूं । तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न होकर के मां से पहले मैं स्वयं आ गई हूं । मैं तुम्हें अवश्य मार्ग दिखाऊंगी । फिर रेवती ने पूछा है देवी मां आप मुझे कोई ऐसा मार्ग बताएं । जिसकी वजह से मैं अपनी रक्षा कर सकूं । क्योंकि मैं यह बात समझ चुकी हूं कि यातुधान मेरे शरीर को प्राप्त करके मेरी ऊर्जा को भी प्राप्त करना चाहता है । और मैं उस पर पूरी शक्ति का प्रयोग कर रही हूं पर उस पर असर ही नहीं पढ़ रहा । इस पर उन गुप्त योगिनी ने कहा सबसे पहले तो मां भगवती की आराधना करो । उनके मंत्रों का जाप करो और मैं तुम्हें निर्वाण मंत्र जाप करने का रास्ता बताती हूं । इसकी गोपनीय पूजा तुम करो इस मंत्र का विशेष अनुष्ठान मैं तुम्हें बताती हूं । इस अनुष्ठान से तुम्हारा शरीर पवित्र होकर के अजय हो जाएगा । मां को पुष्पो का हार अर्पित करो मंत्र का जाप करो और उस हवन कुंड में आहुतियां डालो । एक ही रात्रि में तुम माता को प्रसन्न कर पाओगी । क्योंकि तुम साक्षात योगिनी हो ऐसा करो अवश्य ही मां तुमको दर्शन देगी । और तुम्हें मार्ग बताएंगी इस प्रकार वह वहां से अदृश्य हो गई । योगिनी मां की आज्ञा को पाकर के रेवती ने सोचा अवश्य ही अब मैं इस संकट से मुक्त हो सकती हूं । निर्वाण मंत्र का वह जाप करने लगी निर्वाण मंत्र का जाप पूरी रात करने के पश्चात गुप्त तरीके से विशेष प्रकार का यज्ञ उन्होंने संपन्न किया । जिसके लिए विशेष प्रकार की लकड़ी का हवन करना होता है उस लकड़ी का हवन कर घी मिला करके उन्होंने किया । और साथ ही साथ अंत में उन्होंने गोपनीय अनुष्ठान किया । जिसमें उन्होंने माला मां को अर्पित की लाल फूलों की माला अर्पित करने के बाद कुछ ही समय बाद साक्षात देवी मां प्रकट हो गई । मां त्रिपुरमालिनी वहां पर प्रकट हुई । क्योंकि वह शक्ति पीठ माता का धाम इसीलिए उन्होंने उसी रूप में उन्हें दर्शन दिए ।
साथ में भीषण नाम के भैरव भी प्रकट हुए बहुत ही ज्यादा खुश होती हुए रेवती ने अपनी मां के चरण पकड़ लिए और मां से पूछा की मां मेरे साथ ऐसा ऐसा हो चुका है । मैं जब भी उस राक्षस पर अपनी शक्तियों का प्रयोग कर रही थी तो उस पर कोई असर नहीं हो रहा था । इसका कारण क्या है । तब माता त्रिपुरमालिनी ने कहा की पुत्री तुम्हारी शादी पिंडा नाम के व्यक्ति से हो चुकी है । जिसके शरीर पर यातुधान नाम के राक्षस का कब्जा है । तुम जब भी वार पिंडा पर करती थी तुम सुहागन होने के कारण उस पर कोई असर नहीं होता था । और उसी वजह से कुछ भी असर यातुधान को नहीं होता था । जब तक यातुधान पिंडा का शरीर नहीं छोड़ेगा तब तक तुम्हारा किया हुआ कोई भी वार कोई भी शक्ति उस यातुधान का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा । क्योंकि वह तुम्हारे पति के शरीर में वास कर रहा है । तुम एक सुहागिन स्त्री हो भला अपनी ही शक्ति अपना सुहाग कैसे मिटा सकती है । इसीलिए तुम्हारे सारे वार विफल जा रहे हैं । यातुधान तुम्हें दूषित करके तुम्हारी ऊर्जा शक्ति को प्राप्त कर और भी सिद्धवान हो जाना चाहता है । अगर ऐसा वह कर पाया तो निश्चित रूप से वह अजय हो जाएगा । इसलिए मैं तुम्हें एक मार्ग बताती हूं तुम मेरे कवच का पाठ करके मेरे गले में पहने गए इस माला को स्वयं पहन लेना । और उसके बाद गोपनीय पूजा घनघोर जंगल में जाकर करना । इसके लिए तुम्हें मैं इस माला को दे रही इस माला को तोड़कर के इसके जो जितने भी पुष्प है उनसे चारों ओर अपने एक सुरक्षा घेरा बना लेना । और कवच का पाठ करते हुए उसे अभिमंत्रित कर लेना जल को जमीन में छोड़ देना । और उन फूलों से होते हुए एक चारों तरफ सुरक्षा घेरा बना लेना । इसके बाद तुम्हें साधना करनी होगी अब सूअर के मांस को सामने रखकर के पूजा करनी होगी । और यातुधान के मंत्रों का उच्चारण करते हुए उसको बुलाना होगा । याद रखना यह प्रक्रिया में तुम्हें पूर्ण नग्न होकर के करना है । रात्रि के मध्य पहर में तुम्हें यह साधना करनी है इससे मजबूर होकर के यातुधान तुम्हारे सामने अवश्य प्रकट होगा । माता के द्वारा दी गई प्रेरणा शक्ति के माध्यम से रेवती ने उस प्रयोग को करने की सोची । रेवती ने तुरंत ही वह माला जो माता को उसने पहनाया था मां के गायब होते ही वह मूर्ति के गले में पहना हुआ सा था उसे स्वयं पहन लिया । अब वह सुरक्षित थी वह मंदिर से बाहर निकल आई
। जैसे ही वह मंदिर से बाहर निकली यातुधान उसकी तरफ बढ़ने लगा । लेकिन उसके तेज प्रकाश गले में पहनी माला के कारण यातुधान उसके सामने जाने में असामर्थ्य था । अब वह कुछ भी ऐसा नहीं कर सकता था जिसके माध्यम से वह उस पर कब्जा कर पाता । उसके तेज माला के और उस प्रभाव को देख कर के वह दूर से ही खड़ा हुआ उसकी सारी हरकतों को देख रहा था । धीरे-धीरे करके रेवती जंगल की ओर बढ़ने लगी । जंगल में उसने एक स्थान का चुनाव किया जहां पर उसको साधना करनी थी । मां की आज्ञा उसे मिल ही चुकी थी वह जानती थी कि निश्चित रूप से मां जो जो कहा है वैसे ही मुझे करना है । सबसे पहले वह नजदीक के सरोवर में गई वहां पर उसने स्नान किया स्नान में भी उसने यह ध्यान रखा कि उसके शरीर से माला हटने ना पाए यद्यपि उसके चारों तरफ बहुत सारी मछलियां आ गई थी । उन मछलियों ने उसके शरीर पर काटना भी शुरू कर दिया यद्यपि वह शक्ति प्रभावित करने के लिए यातुधान ने ही भेजी थी । यानी कि जितनी भी वहां पर मछलियां थी वह सब असुरों की शक्तियों से भरी हुई थी । लेकिन फिर भी रेवती ने अपने गले में पड़ी हुई उस लाल फूलों वाली माला को सुरक्षित रखा । क्योंकि उसके टूटते ही यातुधान उस पर हमला कर सकता था । और उसका किया गया कोई भी वार यातुधान पर कोई भी प्रभाव नहीं डालता । क्योंकि यातुधान स्वयं उसके शरीर यानी कि उसके पति पिंडा में निवास कर रहा था । तभी इसी प्रकार करते करते जंगल में आगे बढ़ने लगी । जल्दी ही उसने एक असुर को देख लिया जो सूअर बना बैठा था । अपनी शक्ति से उसने उसका मानविय रूप समाप्त कर दिया । अब वह पूरी तरह से एक सूअर के रूप में था । हालांकि उसमें शक्तियां बहुत सारी थी क्रोध से भरे हुए सूअर ने तीव्र रूप से रेवती के ऊपर हमला किया । क्योंकि रेवती मां का कवच पढ़ चुकी थी इसके कारण से जैसे ही रेवती के शरीर से टकराया टकराकर दूसरी तरफ उछलकर गिर पड़ा ।
और स्वयं को घायल हुआ पाया । रेवती ने उसके शरीर को उठाया और लेकर के जंगल की ओर जाने लगी । घनघोर जंगल में पहुंचकर के जब मध्यकालीन रात्रि का समय नजदीक आया तब उसने वहां पर अपने सारे वस्त्रों का त्याग कर दिया । और चारों तरफ एक सुरक्षा घेरा अपने उसी माला को तोड़ करके बनाया । और उस पर जल छिड़ककर के अभिमंत्रित मंत्रों का प्रयोग किया निर्वाण मंत्र का प्रयोग करके उसने चारों तरफ अपने एक सुरक्षा घेरा अदृश्य बना लिया । जिसकी वजह से कोई आसुरी शक्ति उसके नजदीक उस दौरान ना आ सके । इस प्रकार साधना करने पर यातुधान नाम के राक्षस की साधना उसने शुरू कर दी । और साथ ही साथ वहां जो असुर सूअर के रूप में मौजूद था उसका सिर काट कर के उसके मांस को अपने आगे अपनी सुरक्षा घेरे के बाहर रख दिया । उसके मांस की दुर्गंध और नग्न शरीर की सुंदरता के कारण वहां पर चारों तरफ आसुरी शक्तियां इकट्ठा होने लगी । पाताल तक से शक्तियां आ आकर के उस सुंदरी को देखने की कोशिश करने लगी । क्योंकि ऐसी कामुकता भरा नजारा और ऐसे अद्भुत दृश्य अभी तक किसी पेशाचिक शक्तियों ने नहीं देखे थे । यातुधान अपने आप पर काबू नहीं रख सका क्योंकि उसके मन की भावना उसे उसकी ओर आकर्षित कर रही थी । यातुधान ने तुरंत ही पिंडा का शरीर छोड़ा और पिंडा के गले को काट दिया ताकि पिंडा के शरीर में कोई दूसरी आत्मा प्रवेश ना कर सके । अगर उसे जीवित करूं तो मैं करूं अन्यथा पिंडा कि मृत्यु हो जाए । पिंडा के गले से रक्त बहने लगा और वह तड़पने लगा यातुधान दौड़ता हुआ अपने मंत्रों को सुनकर के रेवती के सामने जाकर खड़ा हो गया । और उससे कहने लगा बता मुझे क्यों बुलाया है तेरी जो भी इच्छा होगी मैं पूरा करूंगा ।
मैं तुझे अपनी पत्नी बनाना चाहता हूं तू अगर मेरा साथ दे तो हम दोनों इस लोक पर राज करेंगे । इस पर रेवती ने कहा ठीक है अगर आपकी ऐसी ही इच्छा है तो सबसे पहले इस मांस का भक्षण कीजिए । यातुधान ने मांस खा लिया और वह तृप्त हो गया । यातुधान ने कहा अब बता कि मुझे क्या करना है । उसने कहा अगर आपको मेरे साथ भोग करना है तो आपको इस सुरक्षा घेरे के अंदर आना होगा । अपनी सारी शक्ति लगा दीजिए मैं आपके लिए एक छोटा सा मार्ग देती हूं । और उसने सुरक्षा घेरे में एक छोटी सी नाली बना दी । यातुधान उसकी बातों में आ गया और जैसे ही यातुधान ने उसे सुरक्षा घेरे के अंदर उस मार्ग से प्रवेश किया । तुरंत ही रेवती ने निर्वाण मंत्र के मारण तंत्र का प्रयोग करते हुए वहां पर रक्त सिंदूर और जल से मिश्रित एक बात जो उसने अपने बगल में ही तलवार हुई थी उसको यातुधान राक्षस के ऊपर फेक दिया । जैसे ही यातुधान के ऊपर जल उसके शरीर से टकराया यातुधान पूरी तरह से जलने लगा । वह चिल्ला कर के इधर-उधर भागने लगा लेकिन वह सुरक्षा घेरे के बाहर वह निकल नहीं सकता था । तब तक वह मार्ग जिस छोटी सी लाइन बनाया था । उसे भी बंद कर दिया गया अब उसका शरीर धीरे-धीरे जलने लगा । अब धीरे-धीरे चलते चलते वह स्वाहा हो गया । इसके बाद वहां जितनी भी उपस्थित आत्माएं थी इस भयानक दृश्य को देखकर वहां से भयभीत होकर भाग खड़ी हुई । रेवती ने लाल रंग के चोले को धारण किया और हाथ में तलवार लिए हुए पिंडा की और दौड़ी । कि कहां उसका पति होगा सामने उसने देखा तो पिंडा मर चुका था । इसी दौरान उसकी की गई सारी मेहनत विफल हो चुकी थी । रेवती रोने लगी अभी वह रो ही रही थी कि अचानक से महायोगिनी एक बार फिर से प्रकट होकर उसके सिर के ऊपर हाथ रखा । और कहने लगी हे पुत्री जीवन के संबंध शरीरों से जुड़े होते हैं । पिंडा को देख कर तुम इस बात को सोच रही होगी कि आखिर तुम्हारे पति का नाश हो गया ।
ऐसा क्यों हुआ क्योंकि उसने ऐसे ही कर्म किए थे । उसने यातुधान असुर की साधना की थी । जिसका फल उसको मिलना ही था । उसने कभी मां भगवती की आराधना नहीं की थी । इसलिए उसके साथ ऐसा होना ही था । और शारीरिक संबंधों और जीवन के इन संबंधों का कोई उद्देश्य नहीं होता है । तुम इन सब से ऊपर हो तुम स्वयं एक योगिनी हो अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानो । मां की भक्ति करो और मुक्ति की ओर बढ़ो एक बार फिर से तुम मोक्ष की राह की ओर चल पड़ोगी । वास्तविकता को जानो और इस प्रकार से उन्होंने उसकी आज्ञा चक्र पर अपनी उंगली रख दी । उंगली रखते ही आज्ञा चक्र पूरी तरह से जागृत हो गया । और उसे अपने पूर्व जन्म की सारी बातें याद आ गई । अपनी बातों को याद करते हुए वह तुरंत ही वहां से अपनी शक्तियों को प्राप्त कर ली । और एक बार फिर से सीधे वह स्थान पहुंची जहां उसके पिता रिजु साधु अपनी कुटी में परेशान होकर बैठे हुए थे । वहां पर साक्षात उसने अपने पिता को दर्शन दिए और उनसे कहा कि आपको भी मोक्ष की राह पकड़नी चाहिए । जीवन नश्वर है यह एक दिन खत्म हो जाने वाला है इसका कोई आधार नहीं है । इस जीवन की इच्छाएं केवल इसी जीवन तक सीमित रहती है । इसलिए अलौकिक अनंत जीवन प्राप्त करना चाहते है तो साधना कीजिए और मुक्ति की ओर बढ़िए । इस प्रकार से अपनी पुत्री की सारी बातें सुनकर उन्होंने यह तय किया कि अपनी पत्नी के साथ हिमालय में चले जाएंगे । और साधनाएं करेंगे इस प्रकार वह वहां से निकल गए । और इसके बाद रेवती ने वहां पर एक सरोवर में अंदर प्रवेश कर लिया । और वही जाकर के वह अंदर बैठकर साधना करने लगी । देवी के रूप में उन्होंने अपने आप को प्रतिस्थापित कर लिया । और उनसे एकाकार हो गई इस प्रकार से देवी रेवती महायोगिनी के नाम से प्रतिस्थापित हुई । और उनकी साधना और आराधना करने से आज भी लोगों को मुक्ति की प्राप्ति होती है । तो इस प्रकार से शक्ति पीठ जालंधर में यातुधान राक्षस और रेवती नाम की महायोगिनी की कथा समाप्त होती है । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।