गुरूजी को और धर्म रहस्य देखने वाले सभी दर्शको को मेरा प्रणाम | मै अभिषेक कुमार आप लोगो के सामने एक अद्धभुत जानकारी ले कर उपस्थित हूँ, जो अपने आप गोपनीय है और आपके लिए अत्यंत लाभकारी है सिद्ध होगी |
ये संसार विचित्र एवं रहस्य से परिपूर्ण है, परमात्मा ने इसके कण कण में रहस्यों को पिरोया है प्रकृति का प्रत्येक पत्ता आपने आप में दुर्लभता समेटे हुए है, आवश्यकता है तो उसे समझने की, परखने की, और उससे परिचित होने की | प्रस्तुत लेख इन्ही विषय पर इन्ही रहस्य पर है|
कहते है बार ब्रह्माजी ने ऋषि को आदेश दिया की जाओ, पृथ्वी पर जो भी पैदा, जड़ या पत्ता व्यर्थ का हो तो उसे तोड़ लाओ | ऋषिवर भकटते भटकते ११ वर्ष बाद ब्रम्हाजी के सामने नतमस्तक होकर बोले – “प्रभु ! इन ११ वर्ष में पूरी पृथ्वी पर भटका हूँ और मुझे कोई भी ऐसा जड़ या पैदा नहीं मिला वो व्यर्थ है सब किसी न किसी रोग के लिए आवश्यक है|
इस वाक्य से पता चलता है की जड़ी बूटी, पौदो का अपने आप में बहुत बढ़ा महत्त्व है जो मानवता के लिए कल्याणकारी है, लेकिन कुछ कुछ जुडी बुटिया गोपनीय रही है श्रृंखला में आज उसका करने का एक प्रयाश है |
१. कायकल्पी जड़
हिमालय की तराई में यह दुर्लभ पौधा प्राप्त होता है | यह मुश्किल से ४ फुट ऊंचा तथा इसके पत्ते चौड़े होते है | यह पौधा बहुत कम देखने को मिलता है, पचास – साठ मील के घेरे में एक – आध ही पौधा देखने को मिलता है | इस पौधे की जड़ अंगूठे जितनी मोटी पिले रंग की होती है, जमीन के अंदर जाकर कुछ दुरी पर पुनः बाहर निकल आती है | अगर पक्की हुई मूंगे की दाल में इसकी जड़ को घिसा जाए और किसी रोगी, वृद्ध व्यक्ति को खिलाई जाये तो उसका कायाकल्प हो जाता है |
२. सियार सिंगी
जंगल में विचरण करने वाले अधिकतर सियारो के सींग नहीं होते, पर प्रकृति की लीला विचित्र है, किसी किसी सियार के सर पर एक छोटा सा सींग उग आता है, जो की चार पांच सेंटीमीटर के लगभग होता है|
इस सींग की असली पहिचान ये है की इस सींग को जब सिंदूर में रख दिया जाता है, तो सिंदूर पाकर इसके चारो और के बाल बढ़ने लगते है यही इसका असली होने का प्रमाण है | तांत्रिक ग्रंथो में में कहा गया है की इन बालो को नहीं काटना चाहिए, क्युकी इससेइंका तांत्रिक प्रभाव ख़तम हो जाता है, यह रक्षा कार्यो में अद्धभूत सफलता दायक बताया गया है | कई साधक इस प्रकार की मंत्र सिद्ध सियार सिंगी को अपनी जांग को चीर, उसमे रख कर ऊपर से पुनः टांके लगा देते है|
३. कुमारिका
यह पैदा भी दुर्लभ है, तथा हिमालय ऊपरी भाग में मिलता है | इस प्रकार का पैदा बद्रीनाथ मंदिर से आगे ऊपरी भाग में देखा गया है जिसे वहाँ ‘कुमारिका’ कहते है |
यदि इस पैदा के पत्तो नित्य सात किया जाए तो कैंसर जैसे भयानक रोग जड़मूल से समाप्त हो जाते है | इस पौधे की पत्तिया नुकीली तथा लम्बी होती है| ब्लड कैंसर , बोन कैंसर या किसी प्रकार का कैंसर मात्रा से ही समाप्त हो जाता है |
४. काली तूंबी
साधुओं के पास जो जलपात्र होता है, वह एक विशेष फल का खोकला भाग होता है, इसे तुम्बी या तुम्बा कहा जाता है, इसका रंग पीला या मटमैला होता है |
राजस्थान में कई बार काली तुम्बी पैदा हो जाता है ऐसा बहुत कम होता है इसलिए इसको दुर्लभ भी कहा गया है |
अगर काली तुम्बी को दश वर्ष पुराने गुड़ में घिसा जाए, जिससे वह एकाकार हो जाता है और लेप सा बन जाता है | अगर व्यक्ति इस लेप को शरीर का कोई हिस्सा किसी तेज़ धार से कट गई हो तो उस स्थान पर यदि यह लेप लगाया जाए तो ५ मिनट के अंदर ही वो स्थान भर जाता है |
६. अमरकंटकी
यह हिमालय के ऊपरी भाग पाए जाते है, और इसका जड़ दुनिया का सबसे दुर्लभ और कीमिति जड़ मानी जाती है| इसका पौधा मात्र ५०-५५ से.मी. ऊंचा एवं पत्ते रहित होता है | इसकी डालिये कंटीली होती है, और विशेष रूप से इसकी जड़ को ही उपयोगी मानी गई है | इसकी जड़ हाथ के अंगूठे जितनी मोटी होती है |
अगर पक्के हुए मूंगे की दाल में इसकी जड़ को घिसा जाए तो और किसी वृद व्यक्ति को खिला दी जाये तो उसका निश्चित रूप से कायाकल्प होता है|
७. कनाता
टिहरी गढ़वाल की तरह एक पेड़ होता है जिसे वहाँ ‘कनाता’ कहते है | यह पेड़ किसी किसी खेत देखने मिलता है, यहाँ इसे शिव प्रतिक मानते है |
कहा जाता है कि इस पेड़ की लकड़ी से बानी चारपाई पर सोने से होने वाली घटनाओ का पूर्वाभास स्वप्न के माध्यम से हो जाता है |
८. पारद शिवलिंग
संसार में सबसे दुर्लभ पारद शवलिंग कहा जाता है, विज्ञान के अनुसार पारद में कोई चीज़ नहीं घुलती और पारा अपने आप में निर्मल रहता है, साथ ही पारा ठोस होते हुए भी द्रव है |
सबसे दुर्लभ इसे इसलिए माना गया है की पारे को गर्म नहीं किया जा सकता, क्युकी गर्म करते ही वह उड़ जाता है, साथ ही उसमे चांदी जैसे कठोर धातु का मिश्रण संभव नहीं होता, ऐसी स्थिति में अत्यंत उच्चस्तरीय योगी ही अपनी “प्राण ऊष्मा” से परे को गर्म कर उसमे रजत का मिश्रण कर सकते है |
९. चितावर की लकड़ी
तांत्रिक ग्रंथो में इसके बारे में बहुत कुछ लिखा है, परंति यह लकड़ी अत्यंत कठिनाई से प्राप्त होती है|
मध्यप्रदेश के घने जंगलो में यह लकड़ी प्राप्त होती है| जिस वृक्ष की यह टहनी होती है, उसकी पहचान यह है की इस टहनी में नाख़ून गढ़ने से पर लाल रंग जैसा द्रव बाहर आता है| यह टहनी ३० सेंटीमीटर से लम्बा नहीं होता | साथ ही साथ यह टहनी पतली, कोमल होती है और दूर से देखने पे ये लिपटी हुई-सी दिखाई देती है| पुरे पेड़ पर इस प्रकार की यह एक ही टहनी होती है और कुछ समय बाद यह पेड़ पर ही सुख कर निचे गिर जाती है|