रामदास ने कहा देवी आप बताइए आप कौन हैं आप के संबंध में मैं सारी बातें जानना चाहता हूं आप जैसी सुंदर स्त्री शायद ही पूरी पृथ्वी पर कहीं होगी इतनी अधिक सुंदरता होने के बावजूद भी आप यहां अकेले रह रही हैं क्या आपको डर नहीं लगता है आप कौन हैं इस संबंध में सारी बातें मुझे समझाइए और मैं आपको वचन देता हूं की जो भी आपका गोपनीय राज होगा मैं उसे किसी को भी नहीं कहूंगा और हर प्रकार से मैं आपकी सहायता करूंगा मेरे मन में जो भी भावनाएं चल रही हैं मैं उन सब पर नियंत्रण भी रखूंगा आपके रहस्यों का भी उद्घाटन किसी के सामने नहीं करूंगा इसलिए कृपया करके जल्दी से जल्दी मुझे अपनी राज बताइए, रतिप्रिया ने अत्यंत ही मुस्कुराते हुए उससे कहा एक रहस्य है जो अब से 400 वर्ष पहले घटित हुआ था यहां पर एक बड़ा ही तांत्रिक मठ हुआ करता था यहा पर कई सिद्ध साधक अपनी-अपनी साधनाएं किया करते थे उन्हीं में से एक व्यक्ति ने अपने एक शिष्य को गोपनीय यक्षिणी साधना के विषय में बताया था और कहा इस विधि को संपन्न करके एक फल के अंदर यक्षिणी को उतार देना बस इस बात का ध्यान रखना जब वह आए तो उसके साथ मे अपनी शर्तें रख लीजिएगा लेकिन ध्यान रखिएगा कि आपकी साधना और जो भी विधि मैंने बताई है गोपनीय ही बनी रहे और किसी को भी इसके बारे में ना बताया जाए, ऐसा कह कर के एक साधक ने मेरी साधना करनी शुरू कर दी उसे बताया गया की यक्षिणो में एक रतिप्रिया नाम की यक्षिणी भी होती है उसकी साधना करने से वह वैभव प्रदान करती है । तो उसने फिर मेरा मंत्र का जप करना शुरू किया और विधि विधान से साधना करने बैठा हुआ था आखरी दिन उसने एक फल लिया और अभिमंत्रित शक्तियों का प्रयोग किया ताकी मैं उस फल में प्रवेश कर जाऊं और उसके साथ में हमेशा मैं यहां पर रहूं अगर वह फल कोई खा ले तो उसको मैं पत्नी के रूप में प्राप्त हो जाऊंगी ऐसी विधि विधान से तांत्रिक पद्धति से उसने साधना की थी उसने एक गोपनीय द्वार बनाया जो हमारे लोक यानी यक्षलोक से जुड़ता था l साधना के आखिरी दिन उसने वह मार्ग बना करके उस को खोल दिया यह ऐसा मार्ग होता है जैसे कोई त्रिआयामी द्वार सा हो, ये वहां खुलता है जहां दूसरी दुनिया होती है और यह कहीं भी खोला जा सकता है उसको गोपनीय विधि के द्वारा जो उसके गुरु ने उसे बताई थी l मठ में वह गोपनीय त्रिआयामी द्वार खोल दिया, मेरा मंत्र आवाहन हो रहा था तो उस मार्ग से मंत्र मुझे सुनाई दे रहे थे मैं बड़ी खुश होते हुए इधर की तरफ आने लगी क्योंकि मंत्रों के द्वारा हम लोगों को शक्तियां प्राप्त होती हैं और क्योंकि हम यक्ष लोक में अकेली रहती हैं केवल कुछ ही यक्षिणी होती हैं जिनके स्वयं के पति होते हैं l हमे भी बड़ी तीव्र इच्छा होती है की कोई तीव्र साधक जो शुद्ध साधक हो हमको साधना के द्वारा अपना बना ले और हम उसे अपना जीवन समर्पित कर सके उसके मंत्रो के शक्ति से हम में बहुत ही तीव्र शक्तियां आ जाती हैं और हम किसी भी लोक में जाने की क्षमता रखते हैं इससे हमारे लोको का उच्चीकरण हो जाता है और धीरे-धीरे करके हम और बड़े लोको में पहुंच जाते हैं यही मूल उद्देश्य होता है इसलिए हम इनकी साधना को स्वीकार कर लेते है लेकिन अगर साधक योग्य नहीं हुआ तो हम उसकी बुरी गति भी कर देते हैं और उसकी भयंकर परीक्षा भी लेते हैं कभी-कभी हम उससे सिद्ध होने के बावजूद भी उसकी मन की पवित्रता और त्याग की भावना को समझते हुए अगर वह बुरा हुआ तो उसका सर्वनाश भी कर डालते हैं यद्यपि हम उससे सिद्ध भी हो चुके होते हैं तो भी यह कार्य हम संपन्न करते हैं l जब उस साधक ने वहां मार्ग बना दिया और जब त्रिआयामी द्वार बन गया साधना सफल होने ही वाली थी मैं द्वार से अंदर जैसे आने ही वाली थी यानि तुम्हारी पृथ्वी में तुम्हारी दुनिया में आने वाली थी यहां पर डाकुओं का हमला हो गया डाकुओ के हमले से सभी लोग तितर-बितर होने लगे सब लोग इधर-उधर भागने लगे अपनी साधना बीच में छोड़ करके अपना बोरिया बिस्तर समेट कर के यहां से भागने लगे गांव की तरफ लोग भागते हुए चले गए पता नही कि सारे लोग कहां गए और फिर इस क्षेत्र पर डाकुओं का कब्जा बना रहा इन सब साधकों के पास से काफी सोना चांदी एकत्रित कर लिया गया था इसीलिए इन्होंने अपने अड्डा इसी क्षेत्र में बना लिया l त्रिआयामी द्वार साधारण जन को दिखाई नहीं पड़ता है इसलिए उन्हें पता ही नहीं चला कि मैं इस द्वार से कब इधर आ गई लेकिन इसी के साथ एक बहुत बड़ी समस्या आ गई तब रामदास ने पूछा आप बताइए की कौन सी समस्या थी। जिस समय द्वार खुला था उसी समय द्वार से भयंकर टंगड़ी नाम की राक्षसी जिसका विकराल स्वरूप है वह भी इस मार्ग से इधर आ गई क्योंकि यह द्वार खुला रह गया था और आज भी वह खुला हुआ है वह इधर आ चुकी है आती रहती है बस दिखाई नहीं पड़ती है मैं तुम्हें उस से सावधान करना चाहती हूं याद रखो जैसी हमारी भावनाएं है उसकी भी भावनाएं भी वैसी ही है लेकिन मेरी भावनाओं में पत्नी के रूप में सुख प्रदान करना है और उसकी भावना साधना के माध्यम से अपनी शक्तियां बढ़ाना है l यह क्षेत्र बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध रहा है इसीलिए मैंने माता बगलामुखी की साधना तुमसे करवाई क्योंकि मैं चाहती हूं की मां बगलामुखी के आदेश से ही यह कार्य संपन्न हो और मैं तुम्हें अपने पति के रूप में प्राप्त कर सकूं तुम माता बगलामुखी की साधना करो और मेरी गोपनीय विधि से तुम मुझे सिद्ध करो मैंने तुम्हारे दिल दिमाग को परखा है मैं जान गई हूं की तुम दिल से मुझे पसंद करते हो मैं भी पति चाह रही हूं लेकिन हमें पतियों के लिए चार सौ पांच सौ वर्षों तक इंतजार करना पड़ता है, तब कही जा करके मेरा यक्ष लोक छूटेगा और मैं ऊंचे वाले लोको में प्रवेश कर पाऊंगी और उसके बाद मैं तुम्हें अपने साथ अपनी दुनिया में ले जाऊंगी इस बात से तुम घबराना नहीं ये मत सोचना की मृत्यु के बाद तुम यही रह जाओगे तुम नीचे के लोकों में नहीं जाओगे क्योंकी तुम्हारा दिल और दिमाग पवित्र है मैं तुम्हारी आत्मा को अपने साथ अपने पति के रूप में स्वर्ग जैसे उच्च लोगों में ले जाऊंगी मेरी पूजा और उपासना करो और मुझे सिद्ध करो बस तुम्हारे दिल की पवित्रता संयम देवताओं जैसा स्वभाव बने रहना चाहिए लोगों की भलाई करो और सब का कल्याण करो बस यही मेरी भी इच्छा है lयह बातें सुनकर के रामदास को बड़ा ही अजीब लगा रामदास ने सोचा की इसने इतनी गोपनीय बात मुझे बता दी है और यह कोई हमारी दुनिया की नहीं है यह पृथ्वीलोक की रहने वाली नहीं है कुछ भी हो लेकिन इसकी सुंदरता से मैं प्रभावित हूं सुंदर पत्नी कौन नहीं प्राप्त करना चाहेगा और वह उसके बताएं नियम के अनुसार वह धीरे-धीरे करके वहीं बैठ कर के साधना और उपासना करने लगा बगलामुखी तंत्र का प्रयोग करके मंत्रों का और अपनी साधना जो उसने बताई थी उस पर वह अमल करने लगा यक्षिणी ने एक भोजपत्र पर अपने चित्र को बनाने को कहा और अपना गोपनीय मंत्र दिया l इसी प्रकार से तुम इस साधना को करो ताकि मैं तुम्हें प्राप्त कर सकूं अभी मेरा शरीर पूरी तरह से नहीं बना है मैं सिर्फ तुम्हें कुछ ही देर के लिए ही अपना शरीर प्रदान कर सकती हूं लेकिन आगे आने वाले समय में जब तुम मुझे पूर्ण सिद्ध कर लोगे तो मैं साक्षात तुम्हारे साथ रहूंगी मैं यही चाहती हूं की तुम मुझसे प्रसन्न रहो तुम्हे हर प्रकार के सुख प्रदान करूंगी अगर मेरे दिए सुख के समक्ष संसार की कोई स्त्री मेरे सामने नहीं टिक सकती है उसकी बातों से रामदास शरमा गया और उनकी साधना करने लगा रोज माता बगलामुखी की साधना होती थी इसके बाद यक्षिणी की साधना किया करता था यक्षिणी रात्रि को स्वयं आकर के उसके लिए भोजन का प्रबंध करती थी और उससे प्रेम भी करती लेकिन यहां प्रेम दूरी बनाए हुए था यक्षिणी ने कहा था की हमारे बीच शारीरिक संबंध नहीं बनने चाहिए जब तक तुम मुझे को पूर्ण सिद्ध नहीं कर लेते आखिरी दिन उसने हवन करके यक्षिणी को प्रसन्न कर लिया वह यज्ञ कुंड से प्रकट हुई और अब की बार उसका रूप स्वरूप अलग ही बदला हुआ था अलग की सुंदरता लिए हुए थी उसको देख कर के पहले वाली रतिप्रिया से भी अधिक तेजस्वी और प्रकाश से युक्त यक्षिणी नजर आ रही थी उसने कहा तुमने माता बगलामुखी की सही साधना और मेरे मंत्रों की तीव्र साधना के द्वारा मुझे प्राप्त कर लिया है अब मुझसे विवाह करो उसने दो हार एकदूसरे को प्रदान किये, एक हार रामदास के हाथ में दिया और एक स्वयं लिया और दोनों ने एक दूसरे के गले में हार डाल दी इस प्रकार गंधर्व विवाह सम्पन हुआ रात्रि के समय उसके लिए उसने अत्यंत ही उत्तम मिष्ठान और पकवानों का आयोजन किया, अद्भुत केवल 1 हाथ घुमाने बरसे उसके सामने पकवान आ गए और भोजन करने के बाद दोनो शयन कक्ष में गए शयनकक्ष में आने पर यक्षिणी और रामदास ने दोनों ने प्रेम पूर्वक रतिक्रिया की रतिक्रिया सुबह तक चलती है, इस बात से अचंभित होकर जब सूर्य का प्रकाश रामदास ने देखा तो रामदास अद्भुत नजारा देखकर चकित हो गया और बोला देवी संभोग के दौरान जितनी भी क्षमता होती है चाहे पुरुष हो या स्त्री अधिक से अधिक आधा घंटा या 1 घंटे की होती है तुम पूरी रात्रि मेरे साथ इस क्रिया में संलग्न रही और सुबह हो गई और मैं बिना थके हुए तुमसे अभी भी बात कर रहा हूं यह कैसा राज है यक्षिणी ने कहा तुम्हारी दुनिया में हर चीज सीमित होती है हमारी दुनिया में कोई चीज सीमित नहीं होती है भोजन पदार्थों में ऐसी अद्भुत शक्ति वाले भोज पदार्थ को तुम्हें खिला दिया था जिसकी वजह से तुम्हारे शरीर में शक्ति हजार गुना बढ़ गई है पूरी रात्रि भर तुम मेरे साथ सुख पूर्ण बिताए पाए हो और इसीलिए मेरा नाम रतिप्रिया है क्योंकि मुझे रती पसंद है आगे भी हर रात तुम्हारे साथ इसी प्रकार पूरा जीवन व्यतीत करूंगी यहां से मैं तुम्हें जीवन का दूसरा द्वार दिखाना चाहती हूं मैं नहीं चाहती की तुम सिर्फ इस प्रकार से साधारण व्यक्ति बन के रह जाओ इसलिए आओ चलो मैं तुम्हें एक गुफा की तरफ ले चलती हूं, रतिप्रिया ने उसका हाथ पकड़ा और उसे लेकर के गुफा की तरफ जाने लगी गुफा के द्वार पर पहुंचकर के एक नरमुंड उसके सामने प्रकट हुआ वह कुछ गोपनीय प्रश्नों को यक्षिणी से पूछने लगा उसके साथ वार्तालाप करके यक्षिणी ने उससे आज्ञा मांगी की आप हमें आज्ञा प्रदान कीजिए और जहां जो भी धन है वह प्राप्त कर सके नरमुंड ने हंसते हुए उनसे कहा ठीक है जितना चाहे उतना ले लो स्वर्ण आभूषण से भरा एक बड़ा सा कलश अंदर जाने पर उनको मिला और उस कलश को रतिप्रिया ने रामदास को दे दिया और कहा की आप जैसे चाहो इसका उपयोग करो अब हमको एक राज महल बनवाना है साथ ही साथ एक राजा की तरह जीवन व्यतीत करना है l इस से आगे की क्रिया को आपको ही संपन्न करना होगा, ऐसा सुनकर करके रामदास अपने गांव की ओर निकल गया वहां के गांव वालों को बुला करके उस खंडहर से कुछ ही दूरी पर एक गांव स्थापित किया और वहां पर अपना राज्य और शासन चलाना शुरु किया, क्योंकि धन की कोई कमी नहीं थी तो वहां पर उसने अपने लिए एक राज महल सा घर बनवाया और अपने नौकर की सहायता से अपने कार्य को संपादित करने लगा एक समय में अचानक उसे एक दिन छम छम की आवाज सुनाई दी घुंघरू की तीव्र ध्वनि सुनाई दी और उसे सुनते सुनते अचानक की वह बेहोश होकर गिर पड़ा अगली सुबह जब उसे होश आया तो पता चला की राजकोष का सारा धन कहीं गायब हो चुका ऐसा क्या हुआ उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था वो तीव्रता से भागता हुआ अंदर गया और रतिप्रिया को ढूंढने लगा रतिप्रिया वहां पर मौजूद नहीं थी उसने अपने लोग नौकरों को सारी जगह भेज दिया लेकिन रति प्रिया कहीं नहीं मिली l
रतिप्रिया यक्षिणी और बगलामुखी मठ कथा भाग 2
April 8, 2020