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रतिप्रिया यक्षिणी और बगलामुखी मठ कथा भाग 4

जब रामदास से रतिप्रिया की मुलाकात हुई तब उसने रामदास को भी गोपनीय तंत्र के माध्यम से उसे हिरण बना दिया और यक्षिणी ने कहा इस रूप को केवल तुम तभी तक धारण कर सकोगे जब तक इस गुफा में तुम हो और जैसे ही गुफा के बाहर जाओगे तब तुम पुरुष बन जाओगे इसलिए तुरंत यहां से निकल जाओ, जैसे ही वो निकालने के लिए जाता है तो उसका पैर राक्षसी के पैर से टकरा जाता है और वह नीचे गिर जाता है और उस हिरण को राक्षसी पकड़ लेती है क्योंकि राक्षसी नींद में थी इसलिए कुछ जल्दी जान नहीं पाती है लेकिन उस हिरण को अपनी बगल में दबाए रखती है काफी देर दबाए रखने के बाद उसकी चंगुल से वो निकल नहीं पाता है और समय बीतता चला जाता है क्योंकि जादू का असर कुछ ही देर रहना था इसलिए वह अपने मनुष्य रूप में आ जाता है और जैसे ही वह भागने की कोशिश कर रहा होता है तो राक्षसी उसे देख लेती है और वह उठ जाती है और उसे अपने हाथ में पकड़ कर बोलती है आज तो मुझे हिरणी को कहीं भेजने की भी आवश्यकता नहीं पडेगी, एक बार फिर से मुझे एक और नर मिल गया है जिसको मैं खा जाऊंगी जैसे ही उसे खाने की कोशिश करती है तब रतिप्रिया यक्षिणी जो हिरणी के रूप में थी अपनी पूरी कोशिश करते हुए तीव्रता से दौड़ते हुए उस राक्षसी से जा टकराती है, वह महान शक्तिशाली राक्षसी के जब पैरों से टकराती है तो उसे घायल कर देती हैं राक्षसी जोर से कराह उठती है इसी बीच उसके हाथ से छूट करके रामदास नीचे गिर जाता है और वहां से तुरंत भागने की कोशिश करता है तभी यक्षिणी उसे इशारे में कहती है की जितनी जल्दी हो सके यहा से भाग जाओ क्योंकि अगर तुम गुफा से बाहर निकल गए तो फिर तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी इसलिए शीघ्रता करो रामदास उसके इशारो को समझकर के जल्दी से गुफा के दरवाजे की ओर भागता है और वहां से वह बाहर निकल जाता है अब तिलमिलाई हुई सी क्रोधित राक्षसी बहुत ही गुस्से में आ जाती है और रतिप्रिया को पकड़कर के कहती है की तूने मेरा भोजन खराब किया है वैसे भी तेरा कार्य समाप्त हो गया है अब मैं तेरा वध करके तुझे इस दुनिया से ही मुक्त कर देती हूं और ऐसा कह करके उसे अपने मुंह में रखकर खा जाती है यक्षिणी उसके उदर में चली जाती है क्योंकि यक्षी आत्मा होने की वजह से उसकी मुक्ति हो जाती है क्योंकि शरीर धारी होने की प्रक्रिया उसकी समाप्त हो चुकी थी अब यक्षिणी वापस अपने लोक में चली जाती है, नियमानुसार जिनका शरीर नहीं होता है वह फिर से पृथ्वी पर नहीं आ सकती है इसी कारण से हुए दुखी हो कर रोने लगती है किस प्रकार से मुझे मेरे पति के रूप में एक मानव की प्राप्ति तो हुई थी लेकिन मैं उसे प्राप्त नहीं कर पाई उसके साथ सुख भी उपभोग नहीं कर पाई और ना ही मैं अपने लोक से उच्च लोको में जा पाई  इस प्रकार से वहां रहकर बहुत ज्यादा दुखी हो रोने लगती है इधर रामदास को कुछ समझ में नहीं आता है रामदास सोचता है कई अब वह क्या करें किधर जाए और क्या करें उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा होता है,   कुछ देर बैठकर सोच और विचार करता है उसके बाद फिर उसके दिमाग में एक शब्द आता है की क्यों ना जो पहले किया था वही मैं दोबारा से करूं तो शायद सब कुछ ठीक हो जाए ऐसा सोच कर के वह फिर से उसी मठ की तरफ बढ़ता है जहा खंडहर स्थित था और जहां पर माता बगलामुखी की साधना उसने की थी अब उसी रतिप्रिया  के कहे हुए शब्द उसे याद आते हैं वह सोचता है की अगर माता बगलामुखी को प्रसन्न किया जाए तो शायद फिर से रतिप्रिया यक्षिणी को मैं प्राप्त कर सकूं तभी वो वहां पर माता की पूजा की व्यवस्था करने लगता है और संकल्प लेता है कि वह एक माह के भीतर ही माता के कई लाख मंत्रों का जाप करके और हवन करके मां को प्रसन्न करेगा इस प्रकार संकल्प  ले करके वहीं पर एक छोटी सी कुटिया  बना लेता है और साधना की शुरुआत कर देता है l उसके पास कोई और चारा भी नहीं था कारण की अब उसके पास न राज्य था और ना ही धन और ना ही यक्षिणी  की शक्तियां जिसकी वजह से वह अपनी जनता या प्रजा को संभाल पाता इसलिए वो  वहां रहकर के तन मन धन से माता बगलामुखी की साधना करने लगा, माता बगलामुखी की साधना करते हुए काफी दिन बीते इधर राक्षसी भूख से व्याकुल हो रही थी क्योंकि अब उसकी शिकार में सहायता करने वाली उसके पास नहीं थी और अब वह शिकार करने के लिए किसी और को भेज नहीं सकती थी तो फिर वह सोचने लगी ऐसा कुछ मार्ग निकाला जाए जिससे एक बार फिर से वो अपने लिए भोजन की व्यवस्था  कर सके ऐसा सोच कर के कुछ देर विचार करने के बाद वह कहती है  क्योंकि हमारे भी कुछ नियम होते हैं  मैं अपने रूप में जाकर के मनुष्य का शिकार नहीं कर सकती कोई मनुष्य मेरे पास आए तभी  मैं उसका शिकार कर सकती हूं इसलिए मुझे कोई रूप धारण करना होगा वह अपनी शक्ति के द्वारा बहुत ही शक्तिशाली एक शेर का स्वरूप बना लेती है और सोचती है की अब गांव वालों को भी पता नहीं चलेगा और मैं स्वयं ही अपना भोजन का प्रबंध कर लूंगी इस प्रकार वह  गांव की तरफ निकल जाती है और फिर यह सोचती है की अब मुझे किस प्रकार से छुप कर के शिकार करने होंगे इसलिए वह अपने आप को तैयार करती है कि मैं अपनी शक्तियों का प्रयोग करूंगी, गांव के बाहर एक किनारे पर छोटी जगह पर जमीन में गड्ढा खोदती  है अपने पंजों से और वहां गड्ढे बना करके अंदर घुस जाती है और सोचती  है की रात्रि के समय जाकर के शिकार करूंगी l रामदास अपनी पूजा उपासना कर रहा था उसे इस बात का कुछ भी पता नहीं चला की उसके गांव पर एक भयानक संकट आ चुका है रात्रि के समय चुपचाप एक गांव में प्रवेश करती है जिससे जानवरों में खलबली मच जाती है जो गाय बकरियां वगैरह सब चिल्लाने लगती हैं क्योंकि सिंह को उन्होंने पहली बार देखा था और वो सिंह भी 10 फुट की ऊंचाई का था इसलिए सामान्य सिंह से कम से कम 4 या 5 गुना अधिक बड़ा था इतने में एक गौशाला में गाय और अन्य जानवर बंधे हुए चिल्लाने लगते हैं उनकी आवाज सुनकर एक किसान तुरंत उनको देखने के लिए अपने घर से बाहर निकलता है और देख करके आश्चर्य चकित रह जाता है की एक विशालकाय सिंह सामने खड़ा है  सिंह भी  बिना देर किए तुरंत ही उसको अपने मुंह में दबोच लेता है और तीव्रता से पहाड़ों की ओर दौड़ कर चला जाता है और भयंकर जंगल में जाकर के छुप जाता है वही जाकर के वह शरीर को खाने लगता है और इस प्रकार से अपनी भूख मिटाता है, कुछ ही दिनों में यह बात गांव में फैल जाती है की एक सिंह आता है रात्रि के समय और मनुष्यों का शिकार करता है इस प्रकार से आदमखोर शेर रोज रात्रि में आता है और सबका भोजन करता है इस प्रकार से बड़ी स्थिति खराब हो चुकी थी और जनता इस बात से बहुत ही ज्यादा भयभीत  हो गई थी, घर से बाहर निकलना शाम के बाद लोगों का बंद हो गया  और सब को यह बात बता दी गयी कि घर से किसी भी प्रकार से कोई भी बाहर नही निकलेगा, इसी प्रकार एक रात्रि में जब वह  राक्षसी अपनी शक्ति का प्रदर्शन करती हुई सिंह के रूप में गांव में चल रही थी तो उसने देखा की कोई भी पुरुष या स्त्री  नहीं दिखाई दे रहा है गुस्से से पागल हो करके वह एक गौशाला पर हमला कर देती है और वहां से गाय को उठाकर ले जाती है और गाय को ही खा जाती है पर मन में बड़ा क्रोध था क्योंकि आज उसे एक अच्छा मांस नहीं मिला था वह मनुष्य के मांस की आदी हो चुकी थी वह सोचती है की किसी भी तरह से मुझे मनुष्य ही चाहिए अबकी बार वो अलग विधि अपना लेती है वह एक सुंदर स्त्री का रूप धारण करके गांव के बाहर रोने लगती है और चिल्लाती है कि बचाओ बचाओ बचाओ उसकी बात सुनकर के तीन चार लोग गांव में से बाहर निकल के उसको बचाने के लिए आते हैं वह इशारा करती है की उस झाड़ी के पीछे उसके पति हैं उनकी रक्षा करे तो गांव के तीन चार लोग मिलकर उस झाड़ी के पीछे चले जाते है  इधर वह फिर से शेर का रूप धारण करके इन  तीनो मनुष्यों को पकड़ लेती है और उनको अपने साथ ले जाती है और उनका भोजन करती है उसके पास 3 दिन का पर्याप्त भोजन था और वह एक एक रात में तीनों का शिकार करके खा जाती है इधर बड़ी समस्या के साथ में पूरी जनता अपने राजा और रानी को याद करने लगते हैं और बड़ी ही समस्या के साथ एक बार उन्हें फिर ढूंढने के लिए गांव के कुछ लोग निकलते हैं । तब रामदास उन्हें मठ में पूजा और तपस्या करते हुए मिलते हैं और उनको गांव वाली सारी बात बताते हैं की किस प्रकार से एक आदमखोर शेर जो है उनकी जीवन बर्बाद किए हुए हैं और गांव के हर व्यक्ति को एक-एक करके वह मार रहा है रामदास कहते हैं आप लोग यहां से चले जाइए जब तक मेरी साधना पूर्ण नहीं होगी तब तक मैं आपके पास नहीं आ सकता लेकिन जल्दी ही जैसे ही मेरी साधना पूर्ण होती है मैं वचन देता हूं मैं आपके पास आऊंगा क्योंकि आपको मेरी वजह से बहुत ही ज्यादा कष्ट उठाना पड़ रहा है यह मेरी जिम्मेदारी थी की मैं आप लोगों की रक्षा करूं और आज मैं अपनी ही कार्यों में व्यस्त हो गया हूं इसलिए जैसे ही मेरी माता की पूजा उपासना संपन्न होती है मैं तुरंत ही आ जाऊंगा, रामदास गांव वालों  को विदा कर देता गांव वाले दुखी मन से फिर से वापस लौट आते हैं और यह बात गांव में फैल जाती है की राजा सुरक्षित है लेकिन वह अपनी पूजा तपस्या में लगे हुए हैं और रानी का कुछ भी पता नहीं है इस प्रकार माता की पूजा करते हुए रामदास ने अपने संकल्प को पूरा कर लिया उनके पूर्ण मंत्रों का जाप कर लिया था,  उनको सिद्ध करने के बाद में दशांश हवन रामदास ने कर लिया और उसे विचित्र अनुभूतियां हुई उसे महसूस हुआ की उसे पश्चिम दिशा की ओर जंगल में आगे बढ़ना चाहिए अपनी पूजा समाप्त करके माता से आज्ञा लेकर उनकी मूर्ति को प्रणाम करके वह पश्चिम दिशा की ओर आगे बढ़ गया पश्चिम दिशा की ओर आगे बढ़ते ही कुछ दूरी पर उसे शेर की आवाज  सुनाई दे रही थी लेकिन वो कुछ समझ नहीं पा रहा था इसलिए उसने अपनी एक पुरानी तलवार निकाली और उस ओर बढ़ने लगा और आगे बढ़ते हुए कुछ ही दूर पर उसे एक शेर दिखाई दिया जो बैठा था उसे देख कर वो पेड़ की आड़ में हो गया तभी उसे कुछ ही दूरी पर एक कन्या पीले वस्त्रों में पेड़ के नीचे बैठी हुई दिखाई दे रही थी रामदास बहुत ही जोर घबरा रहा था क्योंकि वह जानता था अगर कन्या ने कोई शोर किया तो शायद शेर की नजर उस पर पड़ जाएगी और शेर शायद उस कन्या को मार डालेगा मन ही मन में बहुत ही ज्यादा घबराया हुआ वह माता बगलामुखी से प्रार्थना करने लगा और उनके मंत्रों का जाप करने लगा उसने कहा माता मैं आपकी एक माला का जाप करता हूं और किसी भी प्रकार से इस कन्या को बचा लीजिए उसने मंत्र शुरू किया, वहीं पर चुपचाप बैठ कर जप करने लगा तभी कन्या उठी और मुस्कुराते हुए धीरे-धीरे उस शेर की तरह बढ़ने लगी अब स्थिति और अधिक खराब हो चुकी थी l

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