शक्तिशाली प्रेतनी साधना
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम बात करेंगे। एक विशेष तरह की शक्तिशाली प्रेतनी की साधना के विषय में इन शक्तियों को जो एक बार सिद्ध कर लेता है, फिर यह उसके साथ सदैव के लिए विराजमान हो जाती हैं और। प्रेमिका के रूप में प्रेतनी सदैव साधक के साथ वास करती है। उसकी समस्त इच्छाओं को पूरा करती है और विभिन्न प्रकार के तांत्रिक रहस्यों के राज भी खोजती रहती है। यह साधना एक शक्तिशाली प्रेतनी शक्ति की साधना मानी जाती है। हम जानते हैं कि प्रेतनी भूतनी डाकिनी पिशाचिनी विभिन्न प्रकार की मृत आत्मा है। सभी अलग-अलग तरीके से साधक से सिद्ध होती है। ऐसे में हम इन चीजों से बचने के लिए और उनसे विभिन्न प्रकार के कार्यो को कराने के लिए भी अलग अलग तरीके के कार्यों को करते हैं। ऐसे में हम लोग इन शक्तियों को सिद्ध करके विभिन्न प्रकार की दुर्लभ सिद्धियां प्राप्त कर सकते हैं। यह साधना सरल भी है और जल्दी सिद्ध हो जाने वाली भी हैं। विशेष तरह के प्रपंच की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। पूजा के विभिन्न प्रकार के जो विधान है, उनकी भी आवश्यकता नहीं होती है। केवल मंत्र जाप और उस रहने के विशेष स्थान से सभी प्रकार के लाभ प्राप्त हो जाते हैं। इसलिए यह साधना जल्दी सिद्ध हो जाने वाले तांत्रिक साधना है, मानी जाती है। प्रेतनी को जो भी व्यक्ति सिद्ध करना चाहता है उसे कुछ बातें सदैव धारण कर लेनी चाहिए। पहली बार ऐसा व्यक्ति प्रेमिका के रूप में ही प्रेतनी को प्राप्त करता है। क्योंकि प्रेतनी सदैव प्रेमी के रूप में ही पुरुष साधक को चाहती है और यह स्त्री साधिकाओं से सिद्ध नहीं होती है? इसलिए इस बात को सदैव ध्यान रखना चाहिए। दूसरा महत्वपूर्ण विषय यह है कि अगर कोई प्रेतनी मंत्र की साधना करना चाहता है तो उसे निर्भीक होना सबसे ज्यादा आवश्यक है। क्योंकि जिसका भी हृदय कमजोर है, वह इस तरह की साधना नहीं कर सकता है।
अगर ऐसा वह करता है तो उसे दिल का दौरा। भय पड़ने के कारण पड़ सकता है और उसकी मृत्यु तक हो सकती है। इसलिए यह साधना करने की इच्छा रखने वाला साधक आत्म बलि होना बहुत ही आवश्यक होता है। इसीलिए? सबसे पहले गुरु से गुरु मंत्र प्राप्त करके उसका संपूर्ण अनुष्ठान व्यक्ति को करना चाहिए। उसके बाद भगवान शिव अथवा माता काली की साधना करके उन्हें भी प्रसन्न कर लेना चाहिए क्योंकि यह सारी शक्तियां इन्हीं महा शक्तियों के अधीन रहती हैं। इसी कारण से इनकी सिद्धि में ज्यादा समस्या नहीं आती है। अब तीसरा चरण होता है। साधक का विशेष स्थान का चयन करना यह सारी साधनाएं निर्जन स्थानों पर की जाती है।
इन सभी साधनों के संदर्भ में यह कहा जाता है कि जो भी मनुष्य इस साधना को करता है। साधना करते वक्त कोई भी व्यक्ति उसे ना देखें क्योंकि देखने मात्र से उस स्थान पर कभी भी ऐसी तांत्रिक शक्तियां नहीं आना चाहती हैं।
और यह बहुत छोटी सी गलती भी साधक के लिए भारी पड़ सकती है और उसे सिद्धि से दूर लेकर जा सकती है।
आपने निर्जन स्थान का चयन कर लिया। दूसरा महत्वपूर्ण बात होती है रात्रि काल, यह जितनी भी साधनाएं होती है, इनके लिए रात का समय सबसे ज्यादा उपयुक्त माना जाता है। रात्रि में यह साधनाएं अधिक प्रभावशाली होती हैं जब सूर्य का प्रकाश पूर्ण तहा उपस्थित ना हो।
चंद्रमा के प्रकाश में यह शक्तियां अधिक बलशाली हो जाती है। इसके अलावा घोर अंधेरी रात में भी ऐसी शक्तियों की साधना अधिक तीव्र हो जाती है। इसीलिए अमावस्या चतुर्दशी जो की कृष्ण पक्ष की हो सबसे ज्यादा उपयुक्त मानी जाती हैं। किस तरह की तांत्रिक साधनाओं के लिए?
उसके अलावा अब आपने यह दोनों चीजों का चुनाव कर लिया। माला के रूप में आप रुद्राक्ष की माला का इस्तेमाल कीजिए क्योंकि रुद्राक्ष की माला सभी प्रकार के कर्मों में उपयुक्त होती है और सभी शक्तियों को वश में करने की क्षमता रखती है। इसके अलावा चाहे प्रेतनी हो, पिशाचिनी हो। यह इसी तरह की अन्य शक्तियां अगर आपके पास माला की उपलब्धता नहीं है तो भी आप ऐसी साधना उपयोग कर सकते हैं।
बात करते हैं आसन के संदर्भ में।
आसन एक महत्वपूर्ण। वस्तु है जिसके ऊपर बैठकर साधना की जाती है। अगर आप साधना करने जा रहे हैं। ऐसे में आपके पास एक उपयुक्त आसन होना बहुत ही अनिवार्य होता है। लाल रंग का ऊनी कंबल का आसन सर्वथा तांत्रिक साधनाओं के लिए उपयुक्त है।
लेकिन आपको अगर 100% साधना में सफलता चाहिए तो शेर की खाल यानी जिसे हम व्याघ्र खाल कहते हैं। वह बहुत महत्वपूर्ण होती है जिस पर आपने भगवान शिव को बैठे हुए देखा है।
तांत्रिक साधना के लिए बहुत उपयुक्त खाल मानी जाती है। इसलिए अगर आपको यह प्राप्त हो तो फिर आप के तांत्रिक जीवन में 100 गुना वृद्धि हो जाती है।
इसके अलावा साधना में आपके आगे दीपक, धूप, गूगल इत्यादि चीजें वहां पर होना भी आवश्यक है। क्योंकि इनसे आप उस शक्ति को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न प्रकार की सुगंध और आकर्षण वाली स्थिति को पैदा करते हैं।
अब इस साधना के विषय में। आगे की बात जानते हैं।
इस साधना के लिए प्रेतनी के मंत्र – ॐ हौं क्रौं क्रौ क्रौं क्रू फट फट् त्रुट त्रुट ह्रीं ह्रीं प्रेतिनी आगच्छ आगच्छ ह्रीं ह्रीं ठः ठः।
की विधि करते हुए रात्रि काल में किसी निर्जन स्थान वाली जगह पर वट वृक्ष की जड़ में बैठकर मंत्र का 8 सहस्त्र अर्थात 8000 की संख्या में मंत्र जाप करना चाहिए। रोज दीपक जलाकर, धूप, गूगल और पूजा इत्यादि संपन्न करनी चाहिए। रोजाना रात्रि में इसी प्रकार करते हुए 8000 मंत्रों का जाप करना चाहिए। 21 दिनों तक इस प्रयोग को लगातार जारी रखना चाहिए। इस दौरान साधक पूर्ण, ब्रह्मचर्य और मन की शुद्धता रखें। तब किसी भी रात्रि में अर्धरात्रि के व्यतीत हो जाने पर प्रेतनी साधक के समक्ष प्रकट हो जाती है। उस वक्त साधक को चाहिए कि वह धूप, दीप, गंध, अर्ध इत्यादि देकर प्रेतनी का पूजन करें। ऐसा करने से प्रेतनी प्रसन्न होकर साधक को वरदान देती है और उसके सदैव वशीभूत रहकर कि प्रत्येक इच्छा को पूरी करती है। जिस समय प्रेतनी प्रकट हो उस समय साधक के लिए आवश्यक है कि वह उसके स्वरूप को देखकर भयभीत ना हो और दृढ़ निश्चय और भक्ति के साथ प्रेतनी का पूजन और सत्कार करें। ऐसा करने पर प्रेतनी अति सुंदर नवविवाहिता वधू की तरह बनकर साधक के साथ समागम करती है और उसे प्रसन्न रखती है। अगर साधक भयभीत हो जाता है तो फिर साधक का अनिष्ट अवश्य होता है।
प्रेतनी को आप तीनों वचनों में अवश्य बांध लीजिए और उससे उसकी कोई निशानी भी अवश्य ही मांग देनी चाहिए ताकि वह आपके सदैव नियंत्रण में रहे और बिना आपकी इच्छा के कुछ भी और ना कर सके। यह एक शक्तिशाली प्रेत नी होती है जो प्रेमिका के रूप में साधक के पास सदैव विराजमान रहती है। साधक जब भी इसे कोई कार्य होता है उसे यह तुरंत ही कर डालती है। तो यह था
शक्तिशाली प्रेतनी साधना । अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो।