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शमशान डाकिनी साधना अनुभव भाग 1

शमशान डाकिनी सिद्धि विधि पीडीएफ़ लिंक – https://imojo.in/108p31k

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम लोग बात करेंगे एक विशेष तरह की साधना और अनुभव के बारे में जो कि भेजने वाले साधक महोदय हैं। जिन्होंने अपना ही अनुभव भेजा है। उन्होंने कहा है कि मैं इसके बारे में आपको बताना चाहता हूं कि उनके गुरु ने यह साधना की थी। और उनके गुरु के माध्यम से उनके सारे शिष्यों को यह कथा पता है। हालांकि उन्होंने कहा है क्योंकि वह लोग अघोरी हैं तो इस वजह से इन साधना ओं को जगजाहिर नहीं कर सकते और ना ही अपने बारे में किसी को बताना चाहते हैं तो चलिए पढ़ते इनके पत्र को और जानते हैं कि क्या अनुभव उनके गुरु के साथ हुआ था साथ ही उन्होंने जो साधना पीडीएफ भी भेजा है वह मैं आपको अपनी वेबसाइट पर भी उपलब्ध करा दूंगा।

नमस्कार गुरु जी। हम लोग अघोरी हैं। अघोर तंत्र में विभिन्न प्रकार की क्रिया की जाती हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी यह बुरे से बुरा और अच्छे से अच्छा तंत्र सीखा जाता है। लेकिन इसके लिए आपको अपना पिंड दान करना होता है। मैंने भी जब अपने गुरु के पास जाकर उनसे दीक्षा ग्रहण की तो मैं दुनिया से अलग हो चुका था। मैं आज उनकी कहानी आपको बताना चाहता हूं। क्योंकि वह इस वक्त दुनिया में नहीं है। मेरी उम्र भी आज 60 बरस के करीब हो चुकी है। लेकिन उनके जीवन में जो घटनाएं घटी उन्होंने किस प्रकार से देवी श्मशान डाकिनी को सिद्ध किया था? यही कथा मैं आज आपको सुना रहा हूं साधना रहस्य दबे ना रह जाए इसलिए आपको साधना भी भेज रहा हूं। आप चाहे तो लोगों को इसके बारे में बता और सिखा सकते हैं। तो चलिए मैं आपको बताता हूं अपने गुरु के बारे में। मेरे गुरु श्मशान में रहने वाले एक प्रसिद्ध तांत्रिक गुरु कहलाते थे। मैं उनके पास जब दीक्षा लेने गया तो उन्होंने विभिन्न प्रकार से मेरी परीक्षा ली थी। मैं कई दिनों तक उनकी सेवा करता रहा तब कहीं जाकर के उन्होंने मुझे अपनी साधना के लिए स्वीकार किया था । आपको यकीन नहीं होगा इससे पहले उन्होंने पता नहीं कितनी गालियां मुझे दी थी। साधना इतनी आसानी से गुरु लोग नहीं सिखाते हैं। इसलिए यह सब बातें किसी साधारण व्यक्ति को समझने मे नहीं आने वाली हैं।

मैं अपने गुरु के बारे में बताता हूं। क्योंकि मेरे कई गुरु भाई तांत्रिक है और उन्होंने सिद्धियां प्राप्त की हैं। उन्हीं लोगों के मुंह से अपने गुरु का यह सुंदर और अद्भुत वर्णन आज मैं आपको बता रहा हूं। मेरे गुरु जी जब नए-नए अपने गुरु से, सिद्धि प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रकार की साधनाओं को सीखने के लिए उनके पास गए तो उनके गुरु ने उनसे कहा ठीक है तुम धीरे-धीरे करके साधना सीखो सबसे पहले उन्होंने उन्हें गुरु मंत्र का बड़ी भारी मात्रा में मंत्र जाप और सिद्धि करवाई। इसके बाद उन्होंने कहा अब तुम जाकर के श्मशान में विशेष तरह की साधनाएं कर सकते हो। उस पर उन्होंने उनसे पूछा कि मुझे सबसे शक्तिशाली साधना बताइए जो आप अपने जीवन में कर चुके हों। और आपने उसमें सिद्धि भी प्राप्त की हो, उनके गुरु ने कहा। हां अवश्य ही मैंने उसकी सिद्धि प्राप्त की थी और अगर साधना करना चाहो तो मैं यह विधान तुम्हें बताता हूं। उन्होंने उन्हें शमशान डाकिनी विद्या के बारे में बताया। शमशान डाकिनी बहुत ही शक्तिशाली सिद्धि होती है जो कोई भी असंभव कार्य करने में सक्षम होती है। उनसे साधना सीखने के बाद में वह एक श्मशान में चले गए। और वहां पर जाकर कि उन्होंने साधना शुरू की। उन्होंने अपने गुरु से ज्ञान प्राप्त किया था। वह बताते थे और कहते थे कि डाकिनी के कई रूप होते हैं। यह सारे के सारे रूप देवी काली से संबंधित माने जाते हैं। इनका एक स्वरूप छिन्नमस्ता डाकिनी भी होता है। यह विध्वंस कारी क्रियाओं को संपन्न करने वाली शक्ति मानी जाती है। इन्होंने साधना शुरू करने के लिए। गुरु के कथन अनुसार एक विशेष दिन का चयन किया था। डाकिनी की साधना चतुर्दशी कृष्ण पक्ष की अर्धरात्रि से प्रारंभ करनी चाहिए। इसी कारण से उन्होंने इसे चतुर्दशी की कृष्ण पक्ष में। जब आधी रात हो गई तब इस को सिद्ध करने के लिए प्रयास करना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने श्मशान का चयन किया हालांकि इस साधना को आप किसी निर्जन वन में भी कर सकते हैं। समय इसका होता है कृष्ण चतुर्दशी। अर्ध रात्रि। गुरुदेव को जो सामग्री लगती थी वह वाममार्गी साधना में लगने वाली सामग्रियां ही हैं। मांस. मदिरा, रक्तचंदन, खोपड़ी, रक्तिम पुष्प यानी कि लाल रंग का जिसे फूल कहते हैं। कुमकुम सरसों का तेल नारियल का गोला किशमिश सूखे मेवे और लाल चंदन की माला। गुरु ने सबसे पहले लाल चंदन की माला को। सिद्ध किया क्योंकि माला को सिद्ध करना साधना में आवश्यक होता है। इसके बाद उन्होंने खोपड़ी की व्यवस्था करने की सोची। किंतु मानव खोपड़ी आसानी से नहीं मिलती है। पहले उन्होंने तेली की खोपड़ी को खोजना चाहा। पर समय के साथ-साथ अब साधना में खूब बढ़िया खोपड़ी मिलना आसान नहीं हो रहा था। इसके कारण से उन्होंने बहुत कोशिश की फिर भी उन्हें किसी विशेष तेली की खोपड़ी साधना के लिए नहीं मिल पाई। इस समस्या के कारण उनकी साधना बहुत दिनों तक रुकी रही थी। फिर उन्होंने अपने गुरु के पास जाकर के उनसे इसके लिए मार्ग पूछा। तो उन्होंने कहा कि अगर मनुष्य की खोपड़ी नहीं मिलती है तो आप किसी बंदर की खोपड़ी से भी काम चला सकते हैं। बस उसको विशेष प्रकार से सिद्ध कर लेना आवश्यक होता है। अपने गुरु से आज्ञा लेकर उन्होंने कुछ तांत्रिक प्रयोगों के माध्यम से उस खोपड़ी को सिद्ध किया था। सिद्ध होने पर जब खोपड़ी स्वतः ही हिलने लगी तो उन्हें लगा कि अब इस पर डाकिनी साधना सफलतापूर्वक की जा सकती है। वह खुश हो गए थे अब उनके पास सभी तरह की सामग्रियां उपलब्ध थी। उन्होंने जगह का चयन करना शुरू कर दिया। क्योंकि वह शमशान में तो घूमे थे लेकिन उसके लिए विशेष स्थान ढूंढना आवश्यक होता है। उन्होंने शमशान का दक्षिणी भाग चुना। उस स्थान पर आसपास कोई आता जाता नहीं था। हमारे गुरुदेव कहा करते थे? इस तरह की साधना में एकांत की विशेष आवश्यकता होती है। शक्तियाँ सबके सामने आना पसंद नहीं करती। जो भी सिद्धियों का प्रदर्शन करता है उसकी सिद्धियां नष्ट हो जाती हैं। इसी कारण से उन्होंने कहा था कि तुम सदैव जब भी साधना करना एकांत में करना ताकि सिद्धियां शक्ति को आने का मार्ग मिल सके। तुम जिस शक्ति को बुलाना चाहते हो वह ऊर्जा तभी आती है जब वह हर प्रकार से अपने अनुकूल वातावरण प्राप्त कर लेती है। अगर उसे अपने अनुकूल वातावरण नहीं दिखाई देता तो बरसों तपस्या करने के बाद भी वह सिद्धि आपके आसपास नहीं आती। इसी कारण से लोगों को सिद्धि नहीं मिल पाती है। फिर गुरु ने सोचा कि अब उनके लिए साधना करना आवश्यक है। उन्होंने वहीं पर एक छोटी सी कुटिया बना ली ताकि साधना को वह सहजता से कर सकें। उन्होंने स्थान ढूंढ लिया था। अब आगे की प्रक्रिया करना आवश्यक था। उन्होंने उस जगह पर। सिंदूर और सरसों के तेल को मिलाकर साधना स्थल को मूल मंत्र को पढ़ते हुए घेरा लगाया था। सामने उन्होंने डाकिनी देवी की एक स्थापित मूर्ति बनाई और उसके आगे तेल के दीपक को जलाकर देवी की विधिवत पूजा की। सबसे पहले उन्होंने खोपड़ी को स्थापित किया उसे सिंदूर लगाकर उसकी भी उन्होंने पूजा की। वह उनके आगे रखी थी जो मूर्ति देवी की होती थी। पूजा के बाद नारियल की जटा को जलाकर के हवन किया जाता है। उन्होंने उसके लिए रोज हवन करने की बात सोच ली थी। क्योंकि मंत्र को जपना और उसके बाद उसी दिन उसका दशांश हवन कर लेना आवश्यक होता है। इससे बड़े बड़े हवनों को करा जा सकता है। यह सब बातें आपको तो पता ही है। फिर उन्होंने उनके मूल मंत्र का विधान पीडीएफ में भेज दिया है। उसी मंत्र का उन्होंने जाप किया। पूजा में प्रत्येक मंत्र के बाद खोपड़ी पर तेल और सिंदूर लगाया जाता है उन्होंने वह किया।

इस साधना के बाद साधक उस क्षेत्र के या किसी भी क्षेत्र में जहां पर वह साधना करता है। भूत प्रेत पिशाच आदि को अपने नियंत्रण में कर लेता है। वह सारे के सारे भूत प्रेत को अपने अधीन ले आता है। उसकी एक हुंकार मात्र से सारी शक्तियां उसके अधीन आ जाती हैं। गुरुदेव साधना करते जा रहे थे और उनके साथ में एक विशेष तरह की सिद्धियां। प्रकट होती जा रही थी वह सब उन्हें रोकने का प्रयास करती थी। डाकिनी मंत्र की साधना उन्होंने शुरू कर दी थी और प्रतिदिन एक निश्चित संख्या में उन्होंने मंत्र का जाप शुरू कर दिया था। आगे क्या हुआ मैं आपको इसके अगले भाग में बताऊंगा।

इस प्रकार आपने देखा कि इन्होंने साधना का पहला भाग भेजा है और यह अनुभव है डाकिनी साधना का, अगर आपको यह पसंद आया है तो शेयर करें सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद।

https://youtu.be/gb6KDZ0GwbE



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