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शमशान डाकिनी साधना अनुभव भाग 3

नमस्कार गुरु जी एक बार फिर से मैं आपके पास उपस्थित हूं। कुछ समय के विराम के बाद आज एक बार फिर से मैं आपको अपने गुरु के जीवन में घटित हुए उनकी डाकिनी साधना की विषय में जानकारी देना चाहता हूं। पिछली बार तो आप जान ही चुके हैं कि साधना के आखिरी दिनों में उनके साथ डाकिनी किस तरह से अपनी एक सहायिका शक्ति के माध्यम से खेल रही थी उसकी साधना के प्रभाव के वशीभूत होकर वह एक ऐसी किताब को पढ़ रहे थे जिस किताब में अजीब अजीब तरह के रहस्य भरे हुए थे। इस प्रकार उन्होंने अपनी साधना को उस दिन संपन्न किया और उनका वीर्य क्षरण भी नहीं हुआ। यह एक अद्भुत बात थी जो उनके साथ घटित हुई थी। डाकिनी सामने साक्षात प्रकट हो गई और खुश होकर कहने लगी कि बता पुत्र तेरी क्या इच्छा है मुझसे क्या चाहता है? मेरी गुरु ने उनसे कहा हे देवी आप शमशान की शक्तियों को मेरे आधीन करने की विधि बताइए। और मुझे ऐसी सिद्धि प्रदान कीजिए कि कोई भी आत्मा मेरे कहे अनुसार कार्य कर सकें। डाकिनी ने कहा ठीक है लेकिन सभी आत्माएं एक जैसी नहीं होती हैं। मैं तुझे सावधान कर देती हूं। यद्यपि मैं तेरी मदद करती रहूंगी और हर प्रकार से तुझे राह बताती रहूंगी लेकिन कभी-कभी कोई शक्तियां या सिद्धियां वैसी नहीं होती जैसी हम लोग समझते हैं। उनकी बात में शायद कोई विशेष संदेश था जिसको मेरे गुरुजी को समझना चाहिए था। मेरे गुरु ने कहा आपकी सहायक शक्ति अब यहां पर क्यों उपस्थित है इसे भी अपने साथ ले जाइए। इस पर हंसते हुए डाकिनी कहने लगी आज से यह तेरी प्रेयसी यानी पत्नी है। जब भी तुझे भोग की इच्छा हो यह तेरे पास तुझसे भोग करने के लिए आ जाएगी। तेरी मन की इच्छा अनुसार सुंदर रूप धारण कर सकेगी। मेरे गुरु कहने लगे मुझे इस सब की कोई आवश्यकता नहीं है। पर डाकिनी ने कहा यह तो तेरा वरदान है क्योंकि इसके बिना तुझे कोई सिद्धि प्राप्त ही नहीं होगी इसलिए तुझे तो इसे रखना होगा। अब अगर तू चाहे तो इसे भोग सकता है बिना इसकी सहायता के तुझे कोई सिद्धि प्राप्ति नहीं हो सकती। क्योंकि यही तेरी सहायिका शक्ति थी इस साधना के दौरान। मेरे गुरु एक बार फिर से आश्चर्य में आ गए थे। उनको समझ में नहीं आ रहा था कि अब यह सहायिका शक्ति से पीछा छुड़ाने वाली कोई बात ही नहीं है। अब यह उनके साथ जीवन भर साथ लगी रहेगी और अब वह उससे पीछा नहीं छुड़ा सकते मेरे गुरु के पास कोई और रास्ता नहीं था इसलिए उन्होंने प्रणाम किया और वचनों के माध्यम से देवी को बांध लिया। इधर डाकिनी देवी ने भी कहा कि तेरे सारे कार्य यह शक्ति करती रहेगी जब तुझे कोई विशेष कार्य की आवश्यकता हो तभी मुझे बुलाना मैं तुझे संसार की हर एक आत्मा को वश में करने की सिद्धि प्रदान करती हूं। तेरी कही हुई बात को मानने के लिए हर शक्ति विवश होगी पर इनके मायाजाल वगैरह में कभी मत आना क्योंकि जैसी शक्ति होती है। वह अपने स्वभाव को कभी नहीं छोड़ती है। इसमें तेरी सहायता यह शक्ति, जो मैंने तुझे सहायिका शक्ति प्रदान की है। वह सदैव करती रहेगी मेरे गुरु जी अब प्रसन्न थे उन्होंने सहर्ष रूप से शक्ति को स्वीकार कर लिया था। सहायक शक्ति ने तुरंत ही इनके गले में वरमाला डाल दी। यानी कि उसने सहज रूप में अब मेरे गुरु को अपना पति स्वीकार कर लिया था। डाकिनी हंसते हुए वहां गायब हो गई। शक्ति ने कहा अब मैं आपके साथ सदैव रहूंगी पर किसी को दिखाई नहीं दूंगी। मानव जीवन में इस तरह से प्रदर्शन नहीं होते हैं। पर सदैव मैं आपको दिखाई देती रहूंगी आप जो भी मुझे आदेश दोगे मैं वह तुरंत ही करूंगी क्योंकि देवी की आज्ञा से मुझे आपकी इच्छा पूरी करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इस प्रकार सहायता शक्ति के कहने पर मेरे गुरु प्रसन्न थे गुरु घर को वापस लौट आए और सभी के साथ भोजन करने अभी बैठे ही थे कि सहायता शक्ति ने उन्हें बहुत ही तीव्र स्वर में कुछ कहा। उसने क्या कहा था इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है। लेकिन गुरु उनकी बात को समझ गए थे। उन्होंने तुरंत ही भोजन को छोड़ दिया और पास के ही एक श्मशान में जा करके बैठ गए। सभी लोग जो उनके साथ ही थे उन्होंने पूछा आपने। हम लोगों का साथ क्यों छोड़ दिया है? उस पर उस सहायिका शक्ति के माध्यम से गुरु ने कहा कि मैं आपको एक बात बताना चाहता हूं। जब हमारा संपर्क किसी दूसरी दुनिया से प्रत्यक्ष हो जाता है। उस अवस्था में हमें इस दुनिया को पूरी तरह से त्यागना आवश्यक होता है। क्योंकि दूसरी दुनिया के आने-जाने में विघ्न ना उत्पन्न हो इसीलिए ऐसा करना आवश्यक होता है। तुम्हारे द्वारा दिया गये भोजन के माध्यम से इन शक्तियों को इस दुनिया में आने में संकट महसूस हो रहा था। मेरी शक्ति ने मुझे यह कहा कि तुम्हें यह स्थान छोड़ देना है। क्योंकि तुम्हारे शिष्यों की ऊर्जा हमको प्राप्त हो रही है। जिसकी वजह से सारा वातावरण डगमग सा हो रहा है। वातावरण का डगमग सा होने का तात्पर्य यहां पर यह था कि वह समझाना चाह रहे थे कि तुम्हारे शिष्यों में वही ऊर्जा नहीं है जो ऊर्जा तुम में और उन शक्तियों में मौजूद है। इसलिए अगर उन शक्तियों से संपर्क बनाए रखना है तो अपने सामान्य जीवन से आपको अलग होना होगा इसी कारण से इन लोगों के बनाए गए भोजन और भोग पदार्थों को आप नहीं ले सकते हो। गुरुजी समझ चुके थे कि शक्तियों की दुनिया रहस्यमई है और यह तभी प्राप्त होती है और जीवन में तभी कार्यरत रहती है। जब आप इनसे संपर्क में रहते हैं। तो दो दुनिया का एक साथ सामंजस्य बिठाकर नहीं रह सकते। गुरु ने इसीलिए अपने शिष्यों को छोड़ने की बात कही थी। इसके बाद वह जाकर श्मशान में बैठ गए और वहां जाकर केअपने नित्य प्रति की संध्या उपासना करने लगे। पूजा पाठ खत्म होने के बाद में रात्रि के समय उनकी शक्ति उनके लिए भोजन बनाती थी। वायु तत्व की अधिकता के कारण जब भोजन करते थे तो सिर्फ और सिर्फ उसे सूंघ भर लेते थे और भोजन की पूरी ऊर्जा उन्हें मिल जाती थी। सुनने में बड़ा ही अजीब सा लगता है कि कोई किसी चीज को सूंघ भर ले और उसका पेट भर जाए। लोग इस बात को हंसी में उड़ाते हैं कि फलां व्यक्ति ने उस सूंघ भर लिया और उसका पेट भर गया पर वायु तत्व की ऊर्जा प्राप्त हो जाने पर ऐसी शक्तियां प्राप्त हो जाती है। देवी का कमाल था जिसकी वजह से सहायक शक्ति के माध्यम से अब मेरे गुरु के पास में ऐसी शक्ति थी कि वह किसी भी भोजन को सूंघकर उसकी पूरी उर्जा को प्राप्त कर सकते थे। इसीलिए उन्हें भोजन करने की आवश्यकता नहीं हो रही थी। यह अद्भुत चमत्कार है। इसीलिए कहते हैं सिद्धि की दुनिया अचरज भरी होती है जिसको प्राप्त हो जाए सिर्फ उसे ही पता होता है बाकी दुनिया वाले उसे मूर्ख समझते हैं। रात्रि के समय वहां सदैव उनके साथ संभोग करती थी क्योंकि उसका कहना था आपकी उर्जा मुझे तभी प्राप्त होगी जब आप मेरे साथ संभोग करेंगे इसी उर्जा के माध्यम से आपने डाकिनी को भी प्राप्त किया था और वह आपकी माता बन गई थी। आपके मंत्रों और पूजा की शक्ति मुझे प्राप्त हो और उस पूजा की शक्ति से मैं आपके कार्य सिद्ध करूं इसलिए जबतक मैं हूं तब तक आपको मुझसे भोग करना होगा। मैं आपके लिए इस कार्य को सरल बना देती हूं। आप का वीर्य क्षरण नहीं होगा लेकिन संभोग करना आवश्यक है ताकि आपकी ऊर्जा मेरे शरीर को मिल सके और मेरा यह सूक्ष्म शरीर वास्तविक शरीर में बदला महसूस कर सकें। अजीब अजीब सी बातें सुनने को मिलती है इन रहस्यों के संसार में। लेकिन मेरे गुरु के साथ ऐसा ही हो रहा था। तभी एक दिन उस रहस्यमय शक्ति से वार्तालाप करते हुए मेरे गुरु ने पूछा क्या कोई ऐसी शक्ति है जिसके माध्यम से किसी भी चीज को उठाकर कहीं और रखा जा सके। तो शक्ति ने बताया हां कुछ ऐसे शक्तिशाली पिशाच होते हैं जिनकी सिद्धि अगर आप कर डालें तो फिर आपको वह कोई भी वस्तु उठा कर ला कर दे सकेंगे और कहीं किसी वस्तु को पहुंचा भी सकेंगे। इस पर मेरे गुरु ने कहा क्या यह शक्ति आपको नहीं है? तो वह हंसने लगी और कहने लगी हर शक्ति हर एक के पास नहीं होती है। लेकिन क्योंकि आपकी मूल तत्व शक्ति डाकिनी शक्ति है और उसका स्वरूप में हूं। इसलिए आप जो भी करेंगे वह मैं आपको उसकी विधि विधान और पूरी तैयारी के साथ उस कार्य को संपन्न भी कर वाऊंगी क्योंकि मैं तो आपकी पत्नी हूं। जिस प्रकार मैं आपके लिए भोजन बनाती हूं उसी प्रकार आपको सिद्धि दिलवाने का कार्य भी मेरा ही है। और ऐसा कह करके उसने कोई गोपनीय विधि और विधान उस महापिशाच को सिद्ध करने के बताए । मंत्रों को जानने के बाद मेरे गुरु ने केवल एक रात्रि की जो गोपनीय विद्या उसने बताई थी उसमें महाशक्तिशाली प्रेत को प्रकट करने के लिए रात्रि में ही साधना शुरू कर दी। महापिशाच जब उनके सामने प्रकट हुआ उसके हाथ में एक बड़ी सी तलवार थी उसे बहुत ही ज्यादा क्रोध आ रहा था उसने कहा मुझे सिद्ध करने के लिए 40 दिन लगते हैं। तू कैसे मुझे एक ही दिन में सिद्ध करने लग गया और उसने वह तलवार उठा कर मेरे गुरु के सिर पर मारनी चाही। आगे क्या हुआ गुरुजी मैं आपको अगले भाग में बताऊंगा। तब तक के लिए धन्यवाद।

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