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श्यामा माई और चमत्कारिक मुंड भाग 4

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य पर आपका एक बार फिर से स्वागत है श्यामा माई और चमत्कारिक मुंड भाग 3 अभी तक आपने जाना यह भाग 4 है। आगे जानते हैं कि इस कहानी में क्या घटित हुआ था? राजवीर जब उस चमत्कारिक मुंड के पास पहुंचता है। तब वह उस मुंड को प्रणाम करके जैसे ही जल डालने की कोशिश करता है। मुंड जोर जोर से हंसने लगता है।

राजवीर उस मुंड से पूछता है। हे तांत्रिक मुंड। आप क्यों हंस रहे हो? इस पर तांत्रिक मुंड कहता है। के तू पहला इंसान है जो मुझे जगाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन मैं तुझे बता दूं मैं किसी भी प्रकार से ही तेरे वश में नहीं आने वाला। हां अगर तुझ पर माँ श्मशान काली की कृपा रहेगी तो शायद मैं तेरे वश में हो जाऊं।

राजवीर कहता है यह सब दूसरी बातें हैं। मेरा उद्देश्य आप को वश में करने का बिल्कुल नहीं। मैं तो सिर्फ यहां पर अपनी मां को दिये गए श्राप को हटाने के लिए आपकी सहायता चाहता हूं। इस पर वह मुंड कहता है। लोग मुंडो को सिद्ध करके अपनी बहुत सारी इच्छाएं पूरी करते हैं। पर मैं इतना अधिक शक्तिशाली हूं कि कोई भी इच्छा पूरी कर सकता हूं। मुझ पर कोई भी बंधन नहीं है।

राजवीर कहता है यह सब बातें मेरे लिए कोई महत्व नहीं रखती। मैं अपनी माता से प्रेम करता हूं और उनके प्राणों की रक्षा के लिए ही यहां पर आया हूं। मुंड कहता है जरूर तुझे तांत्रिकों ने भेजा होगा। मूर्ख है तू। जल्दी ही सब गलत हो जाएगा तेरे साथ। राजवीर ने पूछा कि ऐसा क्यों ? मुंड कहता है तुझ से मुझे छीन लिया जाएगा। तू एक अच्छा इंसान है इसलिए मैं अपनी दो शक्तियां भी तुझे अपने साथ ही प्रकट करके दिखाता हूं।

इतना कहते ही वहां पर दो सुंदर युवतियां प्रकट हो गई। एक ने अपना परिचय दिया मैं आसुरी अप्सरा हूं। दूसरी ने अपना परिचय दिया मैं देव अप्सरा हूं।

राजवीर ने कहा इन दोनों का क्या महत्व है? हे मुंड कृपया मुझे बताइए। मुंड कहता है निश्चित रूप से तुम इस बारे में नहीं जानते हो। पर यह दोनों मेरे जीवन में मेरी सेविका रही थी। मेरे सारे मुंड कट गए केवल एक मुंड को अभय दान मिला था। उसी मुंड को तुमने आज बाहर निकाल लिया है। मैं मायावी असुर हूं। मेरी शक्तियां अद्भुत थी। पर यह सब बातें अब महत्वशाली नहीं है। तू यहां जिस कार्य के लिए आया है वह कर देख जिससे मैं शांत हो पाता हूं अथवा नहीं।

इसके बाद राजवीर। तांत्रिक गुरु के बताए गए मां श्यामा माई के मंत्रों का इस्तेमाल करता है और मंत्र जपते हुए मुंड के ऊपर जल को डाल देता है। तांबे के लोटे से डाले गए जल के कारण धीरे-धीरे मुंड चमत्कारिक होने लगता है उसके अंदर तेज आ जाता है और वह कहता है मैं संतुष्ट हो गया। ठीक है अब मैं तेरे साथ हमेशा रहूंगा और तेरी आज्ञा का पालन करूंगा। किंतु मुझे कुछ चाहिए। इस पर राजवीर कहता है तुझे क्या चाहिए? मुंड कहता है मुझे हर दिन रक्त अभिषेक जरूर करना।

राजवीर कहता है यह रक्त अभिषेक क्या होता है? इस पर वह मुंड कहता है कि। रक्त अभिषेक का अर्थ होता है मुझे खून से नहलाना। खून से नहलाना आवश्यक है, तभी मेरी शक्तियां जागृत होंगी क्योंकि मैं वास्तव में तो एक असुर ही हूं। साथ ही साथ तुझे कैसे और क्या करना है? इसके संबंध में मेरी यह दोनों अप्सराएं मदद किया करेंगे। तुझे जिसकी बात सुननी हो उसकी सुना करना लेकिन कार्यों को अवश्य ही करना। राजवीर कहता है ठीक है मुंड अब मैं तुम्हें अपने साथ ले चलने के लिए, क्या तुम्हारी मर्जी से? ले चल सकता हूं।

इस पर मुंड कहता है अवश्य ही तुम मुझे ले जा सकते हो। और मैं तुम्हारी माता के सारे जितने भी। बुरे कर्म है। उनके फल स्वरूप जो श्राप बने हैं उनको खा जाऊंगा। तुम्हारी माता को श्राप बंधन से मुक्त कर दूंगा। राजवीर कहता है धन्यवाद मुंड अब मेरे हाथ पर आ जाओ। जैसे ही वह मुंड को अपने हाथ में लेने वाला होता है। सुंदर सी दोनों अप्सराएँ बोल पड़ती है।

आसुरी अप्सरा बोलती है मुझे यानी कि इस मुंड को बाएं हाथ में रखो। तभी देव अप्सरा बोल उठती है मुंड को दाहिने हाथ में रखो। राजवीर को कुछ समझ में नहीं आता और वह दोनों हाथों में मुंड को रखकर आगे बढ़ने लगता है। क्योंकि राजवीर यह नहीं चाहता था कि कोई भी अप्सरा उससे नाराज हो, इसी वजह से उसने मुंड को दोनों हाथों से पकड़ लिया किसी एक हाथ में नहीं। आगे बढ़ते हुए राजवीर घने जंगल से होकर गुजर रहा था। तभी आसुरी अप्सरा ने कहा कुछ छण विश्राम करो।

मैं तुम्हारे लिए भोजन का प्रबंध करती हूं। देव अप्सरा बोली यहां नहीं रुको, तुरंत ही अपने गुरु के पास पहुंचो। राजवीर ने सोचा किसकी बात मानू। उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। उसने सोचा चलो अच्छा है। मैं यहां पर रुक लेता हूं। जैसे ही वह आराम करने के लिए बैठा आसुरी अप्सरा उसके पास आ गई और कहने लगी क्या मैं आपकी कुछ सेवा कर सकती हूं? क्या मैं आपको कुछ शारीरिक सुख प्रदान कर सकती हूं आप बहुत थक गए होंगे?

राजवीर आश्चर्य में पड़ गया राजवीर ने सोचा कि आखिर यह इस प्रकार से क्यों कर रही हैं? तभी देवअप्सरा ने कहा मैंने कहा था यहां ना रुको। तुम अगर इसके साथ संबंध बनाओगे तो इसके ही जाल में फंसते चले जाओगे। यह तुम्हें बहका देगी और जिस कार्य के लिए तुम आए हो वह कार्य भूल जाओगे। राजवीर ने कहा यह मेरी मर्जी है कि मैं किसकी बात सुनू। अगर मेरी इच्छा होगी तो मैं इस आसुरी अप्सरा की बात सुन लूंगा और अगर मेरी इच्छा होगी तो मैं तुम्हारी बात सुन लूंगा।

राजवीर ने सोचा कुछ भी हो लेकिन मेरा कार्य सिद्ध करना अति आवश्यक है इसलिए मुझे यहां से तुरंत ही चल देना चाहिए। इसके बाद राजवीर फिर उठा और एक बार फिर से अपने तांत्रिक गुरु की ओर चलने लगा। कुछ देर चलने के बाद में अचानक से आसुरी अप्सरा बोली। सुनो राजवीर अपने गुरु के पास जाकर के यह कहना कि यह मुंड तुम नहीं ले सकते। यह मुंड केवल और केवल मेरा है।

देवअप्सरा बोली आपको जो करना हो वह करना लेकिन अपने गुरु का अपमान मत करना। राजवीर दोनों की बातें सुन कर बार-बार बौखला जाता था। उसे समझ में नहीं आता था कि आखिर यह दोनों ऐसा क्यों करती हैं? एक कुछ राय देती है दूसरी कुछ राय देती है। और मेरे मन में शंका भी पैदा हो रही है। तभी असुर अप्सरा ने कहा ज्यादा मत सोचो तांत्रिक गुरु के पास जाने की आवश्यकता नहीं सीधे अपनी मां के पास चलो वहां जाकर तुम्हारी मां को स्वस्थ कर देते हैं।

देवअप्सरा बोली सुनो पहले गुरु के दर्शन करो गुरु को प्रणाम करो, गुरु से आज्ञा लो, उसके बाद तुम्हारे घर चलते हैं। राजवीर ने सोचा कि क्या करूं तभी फिर से आसुरी अप्सरा बोल उठी। अगर तांत्रिक गुरु ने तुम से मुंड छीन लिया तो क्या करोगे? अब तक की भी सारी प्रक्रिया यही नष्ट हो जाएगी। देवअप्सरा बोली- गुरु अगर सारे चीजें तुमसे छीन भी ले तो फिर भी वह गुरु ही है। आखिर उसी ने तो मार्ग दिखाया है। अब अगर वह लेना चाहे तो उसे दे देना चाहिए।

राजवीर को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। किसकी बात सुने और किसकी बात ना सुने? क्योंकि उसके सामने और कोई विकल्प नहीं था और माता की रक्षा सबसे बड़ा दायित्व था। इसी कारण उसने देव अप्सरा की बात सुनी और तांत्रिक गुरु के पास पहुंच गया। जैसे ही तांत्रिक गुरु के पास पहुंचता है। तांत्रिक गुरु खुश हो जाता है। तांत्रिक गुरु कहता है तुमने यह बहुत ही अच्छा कर्म किया है, जो कार्य कोई साधारण तांत्रिक या कोई सिद्ध गुरु भी नहीं कर सकता था। वह कार्य बड़ी ही आसानी के साथ तुमने कर दिया है।

मैं इस बात से बहुत ही प्रसन्न हूं कि जो कार्य मैंने तुम्हें सौंपा तुमने बड़ी आसानी से उसको कर लिया। राजवीर अपने गुरु के चरण स्पर्श करता है मुंड को एक ओर रख देता है और कहता है गुरुवार यही तांत्रिक मुंड है। यह मुंड बात भी करता है। इस पर तांत्रिक गुरु ने कहा ठीक है। तुम अपनी मां के लिए इसे लेकर जाओ। लेकिन अपना कार्य समाप्त हो जाने पर यह मुंड मुझे दे देना। मुझे इस पर कुछ क्रियाएं करनी है।

राजवीर के मन में संदेह पैदा हो गया। क्या गुरु मुझसे इस मुंड को छीन लेना चाहते हैं? तभी। आसुरी अप्सरा ने कान में आकर राजवीर से कहा कि तुम्हारा गुरु हम दोनों को नहीं देख सकता है। इसी कारण मैं तुम्हें पहले ही बता रही थी कि इस मुंड को किसी को नहीं देना अपने गुरु को स्पष्ट रूप से मना कर दो। राजवीर को कुछ समझ में नहीं आया इससे पहले ही देव अप्सरा उसके दाहिने कान में आकर बैठ गई। उसने कहा गुरु जो कह रहा है वह मान लो। क्योंकि गुरु ने कहा तभी तो तुम्हें पता चला कि मुंड कहां पर है। अब। अपनी मां को स्वस्थ करने के बाद यह मुंड अगर गुरु मांगे तो उन्हें दे देना।

यह सुनकर राजवीर आश्चर्य में पड़ गया। उसने सोचा इसके बारे में मैं बाद में विचार करूंगा। सबसे पहले मुझे वापस जाना चाहिए और अपनी मां को स्वस्थ कर लेना चाहिए। राजवीर ने तांत्रिक गुरु से आज्ञा ली, तांत्रिक गुरु ने कहा जाओ और अपनी मां को श्राप मुक्त करो। इस प्रकार से राजवीर एक बार फिर मुंड उठाकर अपने गांव की ओर चलने लगा। कुछ देर चलने के बाद। एक बार फिर से आसुरी अप्सरा उसके पास आई और कहने लगी मैं काफी देर से आपकी सेवा करने की कोशिश कर रही हूं। किंतु आप मेरी सेवा लेते ही नहीं। क्या आप मुझ पर तनिक भी प्रसन्न नहीं है? क्या मैं सुंदर नहीं हूं क्या मैं आपको संतुष्ट नहीं कर सकती हूं?

इस पर राजवीर ने कहा ऐसा कुछ भी नहीं है। मैं जानता हूं कि तुम सेवा कर्म करना चाहती हो। किंतु यह कार्य केवल पत्नी का होता है। तुम मेरी पत्नी तो हो नहीं? इस कारण से मैं तुम्हारी सेवा कार्यों को कैसे स्वीकार कर लूं? इस पर आसुरी अप्सरा एक बार फिर से कहती है। गंधर्व विवाह में विवाह करने की आवश्यकता नहीं होती बस दोनों के मन मिलने चाहिए। और मैं आपको मन से अपना स्वामी मानती हूं। क्या आप मुझे अपनी सेविका नहीं मान सकते? आप मुझे कुछ करने की आज्ञा तो दीजिए।

राजवीर सोचता है जब यह इतना कह रही है और स्वतः ही समर्पण करना चाहती है तो मैं क्यों ना इसकी बात को स्वीकार कर लूं। उन्होंने उस अप्सरा को आज्ञा दे दी। अब अप्सरा ने वहां पर एक चमत्कारी कुटी बना दी और राजवीर और अप्सरा दोनों उसके अंदर प्रवेश कर गए। सुबह का प्रकाश जब दिखता है तब राजवीर स्वयं को बाहर पाता है। वहां कोई कुटिया नहीं थी। नाहीं वहां पर उसे मुंड दिखाई दे रहा था। आसुरी अप्सरा भी गायब थी।

वह कब तक सोता रहा उसे पता नहीं चला। वह बहुत ही ज्यादा परेशान हो जाता है। जिस मुंड के लिए वह यहां तक आया था। आखिरकार एक अप्सरा के कहने पर। उसके साथ रात्रि बिताने के कारण उसने अब अपना वह मुंड खो दिया था। बिना मुंड के माता की रक्षा कैसे होगी? वह बहुत अधिक परेशान हो जाता है। आगे के भाग में हम लोग जानेंगे कि आगे क्या घटित हुआ तो अगर आपको यह कहानी कहानी पसंद आ रही है तो पोस्ट शेयर करें ।

श्यामा माई और चमत्कारिक मुंड 5 वां अंतिम भाग

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