नमस्कार दोस्तो धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है आज मैं आप लोगों के लिए लेकर आया हूं दुर्लभ और गोपनीय सजींवनी विद्या सिद्धि लेकर आया हूं जो भगवान शिव शंकर ने शुक्राचार्य को प्रदान की थी । एक बार रावण ने भगवान शिव से पूछा कि हे भगवान शिव शंकर आपने जो संजीवनी विद्या शुक्राचार्य को प्रदान की थी उसका ज्ञान मुझे भी दीजिए ।
तब भगवान शिव शंकर भोले सुनो रावण मंगलवार को श्मशान में जाकर एकांत स्थान में जहां कोई आता जाता नहीं वहां पर बैठकर 10 लाख मंत्र का जाप करके सिद्ध कर लेना चाहिए । मंत्र सिद्ध हो जाने पर अकोल वृक्ष के नीचे शिवलिंग को स्थापित कर के उसका पूजन करना चाहिए । उसके बाद शिवलिंग के समीप ही नवीन घट की स्थापना करें फिर उस वृक्ष और घट तथा शिवलिंग सहित सूत के डोरे से वैशिष्ट करके और इसके बाद चार साधकों के साथ क्रमश प्रणाम करें और प्रत्येक 2 साधक वहां पर अघोर शिव मंत्र का जाप करें।
शिव जी की पूजा करता रहे और जब उस वुक्ष के फल पक जाए तब उनके फलो को लेकर पूर्वोक्त घट उनसे पुरण करे और प्रतिदिन गंध फूल नैवैघ से उसकी पूजा करें। फिर सब चीजों की भूसी अलग करके मुख मे घिसे फिर कुम्हार के हाथ का बना हुआ बड़ा मिट्टी का पात्र लाकर उसके मुख को सुहागे के चूर्ण से लेप कर दे ऊपर से मिट्टी का लेप करके उसमें कुंडली के आकार से सावधानीपूर्वक बीजो को उर्ध्व मुख होकर बो दे ।
जब वह सुख जाए उनके ऊपर तांबे का पात्र आधा मुख करके रख दे उसके बाद आग जलाकर तेल निकाले और उस तेल को यत्न पूर्वक रख ले । आधा माशा उक्त तेल को आधा माशा तिल मे मिलाकर मरे हुए मनुष्य के उपर डाले तो वह फिर से जिदां हो जाता है । सर्प के काटने से जिस व्यक्ति कि मृत्यु हुयी हो गयी हो तो वह फिर से जिन्दा हो जाता है लेकिन मरे हुए इंसान को 24 घंटे से ज्यादा मरे न हुआ हो यह सुनिश्चित है । मँत्र यह है :
मँत्रः। ( अथ संजीवनी विद्या )
शि़व उवाच :- हे रावण अथ संजीवनी विद्या की प्रयोग विधी सुनो –
मँत्र: ॐ अघोरेभ्यो अथ घोरेभ्यो घोर घोरतरेभ्यः सर्वतः सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्यः ।।
अगर आपको यह साधना पसंद आई हो तो आपका धन्यवाद।।