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साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 197

साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 197

प्रश्न १ :- गुरूजी जैसे भगवान शिव काशी में विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित है  और इसी तरफ १२ अलग अलग स्थानों  पर  १२ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित है तो प्रश्न यह है की ज्योतिर्लिंग के स्वरूप में भगवान अपने अंश रूप में रहते है तो शिव जी की शक्ति में और अंश शक्ति में क्या अंतर है ?

उत्तर:- भगवान् शिव जो है वह मूल देवता है और उनके अंश के रूप में जो भी शक्तियाँ  जहाँ जहाँ स्थित है वह उस स्थान पर कल्याण कर रही है | भगवान् शिव में और उनके अंश में कोई अंतर तो नहीं  है लेकिन जो उद्देश्य होता है इसके आधार पर प्रत्येक व्यक्ति के लिए चीज़े बदल जाती है | उदहारण के लिए अगर कोई व्यक्ति भगवान शिव की पूजा करता है तो वह उनसे सब कुछ प्राप्त कर सकता है लेकिन अगर वह भगवान बैद्यनाथ की आराधना करता है तो उनका  मूल उद्देश्य किसी प्रकार के रोग से मुक्त करना है और वह पर जो भगवान शिव का स्वरुप है वह  सभी प्रकार के रोगों को समाप्त करने वाला स्वरुप है |

प्रश्न २ :- जो साधु भिक्षा मांग कर भोजन करते है और भगवान का भजन करते है और वह अलग अलग लोगो का दान दिया हुआ भोजन करते है जिसमे कोई दुष्ट होता है तो कोई अच्छा होता है तो क्या उनके पुण्य नष्ट होते है ? क्या उनकी ऊर्जा उन लोगों को प्राप्त होती है? ऐसी स्थिति में क्या होता है ?

उत्तर:-  जो व्यक्ति भोज करवा रहा है या कोई दान दे रहा है तो उस व्यक्ति को उस चीज़ का पुण्य प्राप्त होता ही है | अगर कोई व्यक्ति दुष्ट स्वाभाव वाला है और उनके घर कोई संत भोजन करते  है तो उस व्यक्ति को शुभ फल अवश्य मिलेगा लेकिन जो साधु है उन्हें उसका पूरा प्रभाव नहीं मिलेगा और उनका  कुछ न कुछ तपस्या का अंश नष्ट होगी |

प्रश्न ३ :- साधक एक दिन में न जाने कितनी बार अलग अलग लोगो को स्पर्श करता है तो अगर एक साधक लोगों को स्पर्श करेगा तो क्या होगा ?

उत्तर:- ऊर्जा जो है वह २ तरीको से बाहर निकलती है एक नेत्रों के माध्यम से और दूसरा हाथो  के उंगलियों के माध्यम से और जो व्यक्ति साधना करता है या किसी प्रकार का मंत्र जप करता है तो उसके शरीर में ऊर्जा बनती है | अगर वह किसी को स्पर्श करता है तो जो तपस्या का अंश है वह दूसरे व्यक्ति के शरीर में प्रवाहित हो जाती है  इसलिए कई साधक और योगी  जल्दी किसी को स्पर्श नहीं करते  और न ही चरण अपने स्पर्श करने देते है क्योंकि अगर कोई उनका चरण स्पर्श भी करता है तो ऊर्जा बाहर की ओर गमन करती है |

प्राचीन काल में एक नियम था की जब गुरु अपना कार्य संपन्न कर ले या दीक्षा क्रम संपन्न कर ले तो प्रत्येक शिष्य उनके चरणों को स्पर्श करे, ऐसा क्यों था ? ऐसा इसलिए था की गुरु के अंदर जो तपस्या का अंश है वह  चरणों के स्पर्श के माध्यम से शिष्यों को प्राप्त हो और वह साधनाओ में सफलता प्राप्त कर सके इसलिए गुरु आशीर्वाद के रूप में अपनी तपस्या का अंश देता था की वह साधनाओं को सिद्ध कर सके |

अधिक जानकारी के लिए नीचे youtube विडियो पूरा देखे-
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