साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 206
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है आज दर्शकों के प्रश्न और उत्तर श्रृंखला में कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों को ले रहे हैं जो कि एक साधक ने पूछे हैं। तो सबसे पहले जानते है की कौन है ये प्रश्न? पूर्ण मोक्ष मिलने के बाद किसी को यह। महसूस होता है कि हमारा अस्तित्व ही है या नहीं। उनको ब्रह्मांड का सबसे ज्यादा आनंद, सुख, शांति, सुकून, भोग सब प्राप्त हो जाते है। क्या पूर्ण मोक्ष मिलने के बाद? किसी को कैसा महसूस होता है और पूर्ण मोक्ष मिलने के बाद किसी के साथ क्या होता है, इसके बारे में विस्तार से बताएगा। दूसरा प्रश्न है ब्रह्मांड में ये भौतिक शरीर वाले जीवों का लोग एक पृथ्वी लोग ही है क्या फिर? ब्रह्मांड में। और भी बहुत सारे, बहुत इक शरीर वाले जीवों के लोग मौजूद हैं। इसके बारे में विस्तार से बनाएगा। परमात्मा क्या है, कौन है, क्या चीज़ है, ये कहा रहते है कैसे रहते हैं यह क्या सब? कराते हैं। या फिर यह सब करवातें है? ये महिला है या पुरुष शक्ति है? परमात्मा को। कितने नामों से जाना जाता है, इसे रहस्य के बारे में भी बताइए? माता पराशक्ति कैसी दिखती है इनका? चिंतन कैसे किया जाता है और यह ब्रह्मांड में कहाँ रहती है? माता परा शक्ति का। साकार स्वरूप कौन सा है माता और इनके लोग कौन से हैं आप इन सब विषयों के बारे में मुझे वीडियो के माध्यम से बताएगा। तो देखिए यह है आज के प्रश्न तो सबसे पहले हम महत्वपूर्ण और बड़े प्रश्न से शुरू करते हैं यानी पहला प्रश्न की पूर्ण मोक्ष मिलने के बाद कैसा महसूस होता है?
तो इसका। जो सरल सा। अर्थ है वो है इस प्रकार है। की जो शरीर हैं इसे हम बंधनकारी मानते हैं। यानी की हर एक चीज़ को लिमिट में। करने की ही सामर्थ्य प्रदान करता है। क्योंकि अगर किसी की इच्छा पूरे संसार को देखनी है, उसके लिए आंखें हैं, सुन्दर मधुर संगीत सुनना है उसके लिए एक महान है। बहुत खुशबू। सूंघने की इच्छा है तो नाक दी गई है। सभी प्रकार के स्वाद ग्रहण करने की इच्छा है तो जीभ दी गई है। और स्पर्श का सुख प्राप्त करना है। तो हमें त्वचा दी गई है। यानी की ये शरीर। सभी प्रकार के सुखों को देने वाला है लेकिन सभी की लिमिट होती है। जैसे कि मोबाइल में स्टोरेज जितनें जी बी का होता है उससे ज्यादा भर नहीं सकते। इसके अलावा यह शरीर नष्ट भी होता है। तो इन ही चीजों से जब पूरी तरह मुक्ति मिल जाती है और सबकुछ अनलिमिटेड प्लान की तरह हो जाता है। तब हम मोक्ष की ओर बढ़ते हैं। मतलब? जो भी प्राप्त करने की इच्छा वह सोचने मात्र से हो जाए। जो भी करने का सामर्थ्य वह आप कर पाए। और सब चीजों को जब हम करने की सामर्थ्य आ जाती है तो इसे हम महासिद्धि वान अवस्था कहते हैं। लेकिन यह भी पूर्ण मोक्ष से अलग है क्योंकि मन में जो विचार आता है। वह हमें आखिरकार फंसा ही लेगा। कारण की हम कुछ कार्य करेंगे तो उस कार्य का कोई ना कोई प्रतिउत्तर भी बनेगा। उदाहरण के लिए। अगर मैं कहूं कि मैं एक पृथ्वी बनाता हूँ। और फिर उस पर प्राणियों को पैदा कर देता हूँ। मैं ईश्वर की तरह उनसे कहूंगा कि मेरी पूजा भी करो, अब होगा क्या? उसमें मैंने जो प्राणी उत्पन्न की है, वह। कुछ मुझे मानेंगे, कुछ मेरे खिलाफ़ भी हो सकते हैं जब मैं उन्हें उनके सुख नहीं प्रदान करूँगा, मुझे गाली भी देंगे, मुझे बुरा भला कहेंगे। कुछ तो दूसरे देवताओं की पूजा भी शुरू कर सकते हैं। तो होगा क्या? आखिर मैंने यह कार्य बड़े ही आसानी से शुरू किया था। लेकिन अब यह जटिल होता जा रहा है। ऐसा ही ब्रह्मांड के साथ में भी है।
ईश्वर ने ब्रह्मांड को अपने खेल के लिए रचा था। उस तरह जैसे दर्शक। मैदान में हो रहे खेलों को देखता है और सारे। नियम कानून भी वह वही बनाता है, आनंद प्राप्त करता है लेकिन जब उसके मन के अनुकूल रिज़ल्ट नहीं आता है तो दुखी भी होने लगता है तो ये सारी चीजे। महासिद्धि वान अवस्था तक पहुंचाती है, लेकिन मोक्ष का अर्थ होता है सब प्रकार से शांत होकर पूरी तरह से शून्य हो जाना। जिसमें केवल आनंद हो अस्तित्व विहीन हो जाना। आखिर अस्तित्व विहीन हो ना क्या है? अर्थात सभी प्रकार की। जो भी बंधनकारी चीजें हैं, उन से मुक्त हो ना इसीलिए ईश्वर परमात्मा शून्य की तरह नजर आता है। उसमें कुछ भी राग, देश, कार्य कुछ भी नहीं है। सिर्फ एक आनंद की अवस्था है जिसमें लगातार आनंद है, परम आनंद है, परम सत्य है और हर प्रकार से हर चीज़ से मुक्ति है। इस चीज़ को समझना बहुत ही कठिन है। और यह बड़ा गंभीर प्रश्न भी है, लेकिन जो लोग। साधना? ओर। गहराई से उतरते हुए इस रहस्य को धीरे धीरे जानने लगते है तो वह सारी बातें समझ जाते है। पहली अवस्था में तो हम अपने जीवन को जीत पाए। अपने शरीर। को अपने खेलने का स्थान समझे, इसके दुख से दुखी ना हो, इसके कार्यों से हताश न हों। इससे अपने अनुकूल ढाल रखने की पूरी सामर्थ्य हमारे पास हो। उसके बाद ही हम सिद्धि की ओर बढ़ते हैं। सिद्धियों में छोटी, बड़ी और बहुत विशालकाय सिद्धियां हासिल होती है, जिसमें अष्ट सिद्धियों से लेकर संसार को पैदा करने, संसार की रचना करने, संसार का पालन करने और संसार को नष्ट करने की शक्तियां भी। मौजूद हैं। जैसे की हम। त्रिदेवों के माध्यम से जानते हैं, लेकिन मोक्ष इससे भी आगे की अवस्था है।
अब अगला प्रश्न आपने पूछा है की ब्रह्मांड में भौतिक शरीर वाले जीवों का लोक पृथ्वी ही है या फिर इसके अलावा भी बहुत ही कि शरीर वाली चीजें मौजूद हैं। तो मैं इसके विषय में बताता हूँ कि जीस प्रकार हमारे सौर मंडल में एक गृह हैं पृथ्वी। जहाँ पर। सभी प्रकार के जीव रहते हैं ऐसे ही। हर ब्रह्मांड में। उसके अलग अलग सौर मंडल में विभिन्न प्रकार के अलग अलग जीव रहते हैं। उनकी स् थिति पारिस्थिति। वहाँ की मिट्टी या उस ब्रह्मांड के नियम के अनुसार ही कार्य करती है। आप ऐसे समझिए की हो सकता है जैसे हमारे यहाँ अग्नि जलाने का काम करती है। वायु सुखाने का काम करती है। जल गीला करने का काम करता है। लेकिन उनके ब्रह्मांड में हो सकता है जल जलाने का काम करें। अग्नि ठंडा करने का काम करें। वायु। गीला करने का काम करें। क्योंकि हर ब्रह्मांड की जो परिस्थिति है वह अलग अलग हमें देखने को मिलती है। यह बहुत ही अद्भुत और अलग तरह की बातें हैं और जैसे ब्रह्मांड में हम जन्म लेते हैं, उसी के अनुसार हमें वहाँ रहना पड़ता है क्योंकि शरीर में हम सभी बंधनकारी है यह बात सभी लोग जानते हैं। जैसे हम मनुष्य के शरीर में वर्तमान में है तो हमारे शरीर की अपनी। परिस्थितियां है, हालांकि हमें एक प्रक्रिया में जी रहे हैं। जिसमे हम को स्वच्छंद कार्य करने के लिए ईश्वर ने छोड़ रखा है की हम कुछ भी कर सकते हैं। लेकिन हर चीज़ में उसकी पूरी सत्ता चलती है क्योंकि हर चीज़ में उसने लिमिट लगा रखी है। इसी लिमिट के कारण हम कुछ ऐसा नहीं कर सकते जो हमारे सामर्थ्य से बाहर हो। मन चाहे कितना भी सोच लें। उदाहरण के लिए। कोई पुरुष किसी स्त्री के साथ भोग करता है तो क्या वहाँ पूरी जिंदगी लगातार कर सकता है? बिल्कुल नहीं। उसका शरीर नष्ट हो जाएगा। कोई पुरुष या स्त्री? बहुत भोजन करना चाहता है सभी प्रकार के तो क्या वह कर सकता है नहीं, उसका पेट ही फट जाएगा। पेट खराब हो जायेगा।
ऐसा ही हर एक लिमिट जो है, ईश्वर के द्वारा तय की गई है। लेकिन फिर भी कार्य करने के लिए स्वतंत्र छोड़ा गया है कि आप चाहे पाप कीजिये या पुण्य कीजिये, आपके कर्मों के अनुसार ही आपके आगे आने वाले जन्मों का निर्धारण किया जाएगा। अब अगला प्रश्न पूछा है आपने? परमात्मा क्या है, कौन है, क्या चीज़ है, कहा रहता है, क्या करता है, क्या करवाता है? महिला हैं या पुरुष हैं? तो देखिए। परमात्मा से ही संसार और ब्रह्मांड उत्पन्न हुआ है। यह एक ऐसी अवस्था आप मान सकते हैं। जो आनंद से पूरी तरह भरी हुई है। लेकिन कहते हैं ना खाली बैठे हुए कोई व्यक्ति इस बात के लिए परेशान कभी कभी होता है। की। उसे। कुछ तो करना चाहिए। तो पहली इच्छा उसके मन में जागती हैं। और उस। कुछ नया करने की इच्छा से ही वह कुछ उत्पन्न करता है या कोई क्रिया करता है। और यही क्रिया बढ़ते बढ़ते एक ब्रह्मांड का रूप ले लेती है। और यही आगे बढ़ते हुए फिर एक बहुत बड़ी प्रक्रिया में बदल जाती है। असल में। परमात्मा का अस्तित्व इतना विस्तार है कि वह पूरे ब्रह्मांड में समाया हुआ है। या यूं कहें कि कई ब्रह्मांडों में जहाँ तक उसने अभी तक रचना की है उन सब में स्थित है। वह मेरे रूप में आप के रूप में हर जीव के रूप में स्थित है, लेकिन वो कमज़ोर कैसे हो जाता है? कमजोर बहुत तभी होता है जब इच्छाओं के भंवर में वह पूरी तरह फंस जाता है। और ये इच्छाएं उसे दौड़ आती रहती है। और इसी वजह से कर्म बंधन बनता है।
यही कर्म बंधन उसे बार बार नए नए लोगो में जाने के लिए विवश कर देता है और मुक्ति से दूर होता जाता है। अपनी प्रारंभिक अवस्था को वह भूल जाता है। इसीलिए ना तो वह स्त्री है ना पुरुष। जब उसके मन में पैदा करने की इच्छा होती है तब वह स्त्री है। जब वह पैदा किसी अन्य के माध्यम से करता है तो वह पुरुष है ना तो वह स्त्री है ना वह पुरुष है। सारे कार्यों को। करना। करवाना? यह सारी चीजे। उसके पास हमेशा रहती है। लेकिन स्वयं वाहक खेल का भाग भी है और खेल के बाहर भी है। उससे अलग कुछ भी नहीं है। लेकिन। वह स्वयं को नियंत्रित रखने। ओर स्वयं के कार्यों में। भ्रमित ना हो। इसीलिए अपनी सारी शक्ति को बाहर निकालकर उसके अधीन होकर ही कार्य करता है और यह शक्ति ही माता पराशक्ति है। इसको समझना चाहिए। यही पूरे ब्रह्मांड में फैली हुई एकमात्र शक्ति है। यही शक्ति के अधीन परमात्मा स्वरूप। जीवात्मा रहती है और अपने अपने कार्यों के अनुसार भिन्न भिन्न। कार्यों को करती हुई विभिन्न लोगों का गमन करती है जब तक कि उसे यहाँ आभास नहीं हो जाता कि उसका मूल्य अस्तित्व स्वरूप। मूल ज्ञान क्या है? अब अगला और आखिरी प्रश्न आप। की माता पराशक्ति कैसी दिखती हैं। इनका चित्रण। कैसे किया जाए और यह ब्रह्मांड में कहाँ रहती है? माता पारा शक्ति का सा, काश रूप कौन सा है, माता का कौन सा लोग है तो देखिये जैसे मैंने बताया।
कि परमात्मा की इच्छा से उसे खेलने के लिए एक मैदान चाहिए था तो उसके पास उसने अपनी सारी शक्ति बाहर निकाल दी। ओर यह नियम बताया कि। शक्ति। हालांकि मेरे और तुम में कोई अंतर नहीं है, लेकिन अब होगा क्या? कि मैं आपके अधीन रहकर। इस खेल को खेलूँगा यही जीवन रूपी खेल। मैं अपनी इच्छा से खेलूँगा मैं अपने आप को। अरबों, खरबों नील महासंघ इत्यादि स्वरूपों में बदल लेता हूँ। और। क्यों कि मैं। स्वयं परब्रह्म हूँ। लेकिन अपनी इच्छा से खेल के लिए उपस्थित हुआ हूँ। मैं खेलते खेलते भूल न जाऊं इसलिए आप हमेशा। मुझे नियंत्रित रखें। हर बात में मेरी लिमिट लगाएं, मुझे आभास कराइये कि मैं पैदा होता हूँ। मैं अपना जीवन जीता हूँ। पर। निश्चित रूप से मृत्यु को भी प्राप्त करता हूँ ताकि यह खेल आखिर समाप्त अवश्य हो। ताकि अगर मैं खेल मैं भूल जाऊं। की मैं कौन था? तो आप मुझे बार बार यह याद दिलाएं। तो यह खेल खिलाने वाली। और सब कुछ। ब्रह्मांड में करने और करवाने वाली जो दिव्य शक्ति है उन्हीं को ही हम माता पराशक्ति कहते हैं। अनंत ब्रह्मांडों की स्वामिनी वही है। वहीं करोड़ों। भगवान शिव भगवान विष्णु और ब्रह्मा ओं की रचना करती है।
वही स्वर्ग नरक, पृथ्वी, विभिन्न प्रकार के लोगों का। ओर। विभिन्न अस्तित्व धारी। शक्ति यों का जन्म करती है। उनके ही कृपा से सब कुछ है। इसलिए। कि कोई उन्हें ना जान पाएं। अपने मूल स्वरूप को हमेशा छिपाकर रखती है। वो लोग बहुत ज्यादा भाग्यशाली हैं जो सिर्फ उन पराशक्ति के विषय में जानते मात्र है। देवी अथर्वशीर्षम में स्पष्ट रूप से यह बात बताई गई है। किस सिर्फ उन्हें जानने मात्र से करोड़ों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं? उनको लगातार जो जीवनभर बजता है। उसके जीवन से सब कुछ। बिलकुल बुरी तरह से नष्ट हो जाता है जो भी। उनका बुरा घर्म है। बुरा प्रभाव है। बुरे ग्रहों का असर है कारण क्योंकि सब कुछ करने वाली वही है। उन्होंने ही। आपको इस जीवन को दिया है इस खेल की रचना की है जो कि आपने। जन्म लेने से पहले वादे के हिसाब से आपने यहाँ पर शुरू किया था। लेकिन। जब कोई जीव रूपी परमात्मा का अंश इस धरती पर जन्म लेता है। और यहाँ की माया में फंसकर भोग अपनी इच्छाओं को पूरी करना। अपने जीवन के उद्देश्यों के पीछे भागना। इसी में बार बार यह भूल जाता है कि वास्तव में वह तो अस्तित्वविहीन आनंद से भरा हुआ परमात्मा का ही अंश है।
ओर माता से वादा कर के इस धरती पर। जनम लिया है। ताकि वह। कुछ खेल खेल सके आनंद को प्राप्त कर सके। लेकिन यहाँ की परिस्थितियां कठिन होती जाती है और वह भटकता जाता है। इच्छाओं को इतना ज्यादा धारण कर लेता है कि मरने के बाद भी किसी नई इच्छा के लिए जन्म लेता है। और यह प्रक्रिया अनंतकाल तक चलती रहती है। इच्छाओं और कर्मों का ऐसा भंवर। वह पैदा कर लेता है कि वह जन्मों जन्मों तक उससे निकल नहीं पाता। उन कीड़े मकोड़ों को देखो जो जनसंख्या बढ़ाने में एक ही बरसात में अरबों की संख्या में हो जाते हैं। और गर्मी पड़ते ही सभी नष्ट हो जाते हैं। भोग की इतनी तीव्र शिक्षा प्रजनन की इतनी बड़ी शक्ति? की। एक ही मौसम में उनकी संख्या अरबों में हो जाती है। यानी उनके अंदर अरबों इच्छाएं मौजूद है। इसी प्रकार मनुष्य भी है। लेकिन मनुष्य जब तक माता पराशक्ति की भक्ति नहीं करेगा, परमात्मा की भक्ति में लीन नहीं होगा, वह बार बार यह भूल जाएगा। और यही याद दिलाने का कार्य एक गुरु का होता है। एक गुरु ही अपने शिष्यों को यह समझाता है।
की आप यह बात को समझें कि आप कौन हैं? आपमें और मुझमें कोई भेद नहीं है। और हम वास्तव में उसी परमात्मा के अंश से प्रकट हुए इस खेल को खेलने के लिए इस पृथ्वी पर आए हैं। हम कठिन परिस्थितियों से गुजरते हुए अपने पूर्व कर्मों के अनुसार भोग को भोगेंगे। लेकिन इसमें फंसेंगे नहीं। अगर फंस गए तो फिर एक भंवर में फंसकर कहीं और जनम लेंगे। और यह प्रक्रिया अनंतकाल तक चलती रहे गी। इसीलिए यह बहुत आवश्यक हो जाता है। की आप उन पराशक्ति को जानें। उनकी भक्ति करें। उनके अनन्त नामों का। वर्णन अपने गुरु से सुने, उनके रहस्य को गुरु के माध्यम से जानकर आजीवन उनकी भक्ति करें। और इस सत्य को समझते हुए कि मैं यहाँ पर। खेल खेलने आया हूँ, स्वयं कोई खेल नहीं हूँ। मुक्ति को प्राप्त करें और परमात्मा में लीन हो जाए। इच्छा चाहे कितनी भी बड़ी हो।
चाहे मुझे ब्रह्मांड का स्वामी बना दे। या फिर। सारी सत्ता या पूरा साम्राज्य आपके अधीन हो। कहीं ना कहीं इच्छा से दूसरी इच्छा जुड़ी होती है। ओर इन्हीं इच्छाओं के बलबूते ये पूरा संसार चलता रहता है और आगे बढ़ता रहता है। विभिन्न प्रकार की परिस्थितियां आती जाती है। सब कुछ बदलता रहता है और यह प्रक्रिया जीवन मरण की भी इसीलिए लगातार चलती रहती है। अब यहाँ पर है क्या आपको सिद्धियां प्राप्त करनी है? या फिर आपको पूर्ण मोक्ष प्राप्त करना है। या फिर हर इच्छा से अपने अस्तित्व को इतना कमजोर करते चले जाना है की आज के बाद आपको यह भी याद ना रहे कि आप खेल खेलने आए थे स्वयं खेल नहीं है। तो ये थी आज के इनके कुछ प्रश्न और एक गंभीर आध्यात्मिक चर्चा इन प्रश्नों के माध्यम से की गई है। अगर आज का वीडियो आप लोगों को पसंद आया है तो लाइक करे, शेर करें, सब्सक्राइब करे। आप का दिन मंगलमय हो। जय माँ पराशक्ति।