नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। दर्शकों के प्रश्न और उत्तर से निकला को लेकर आज एक बार फिर से मैं आप लोगों के सामने उपस्थित हूं। आज के प्रश्नों को आप थंबनेल के माध्यम से जान ही चुके हैं। तो चलिए शुरू करते हैं। इन प्रश्नों को पढ़ना और इनके क्या उत्तर हमें धर्म ग्रंथों और अन्य बातों के माध्यम से प्राप्त होते हैं, इस पर भी विचार करेंगे। पहला प्रश्न है सीता माता ने प्रभु को स्वर्ण अमृत के शिकार के लिए क्यों कहा जबकि हिंदू धर्म में पशु हत्या निषेध है? गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या को निर अपराध होने पर भी श्राप आखिर क्यों मिला था। बली की मन्नत क्या सही है। इसकी जगह क्या सात्विक बलि दे सकते हैं। अप्सरा, यक्षिणी, योगिनी इत्यादि की दैनिक पूजा हो सकती है। क्या और अपनी मृत्यु का बदला हर आत्मा क्यों नहीं लेती जबकि कुछ लेती हैं? तो पहला प्रश्न इस प्रकार से है कि क्या हिंदू धर्म में पशु हत्या निषेध है?
संदेश -देखिए पशु हत्या निषेध नहीं है बल्कि यह कहा गया है कि निअपराध की कभी भी जान ना ली जाए। हमारे यहां तीन प्रकार के कर्म हैं। सात्विक राजसिक और तामसिक और तीनों ही अपनी अपनी परिस्थितियों के हिसाब से वैध और अवैध। यानी जैसे मछुआरा बिना मछली पकड़े और उसे खाए जीवन नहीं चला सकता। शिकारी या पुराने समय में बहेलिया। बिना हिरण को मारे उसका भोजन प्राप्त नहीं कर सकता। इसी तरह कुछ तामसिक और राजसिक। भोजन! किए बिना यह कार्य संभव है ही नहीं। इसलिए ईश्वर ने सभी को शाकाहारी होने! से छूट दी है। कुछ शाकाहारी होते हैं और कुछ मांसाहारी भी होते हैं। रही बात सीता माता के द्वारा प्रभु श्री राम को तो, वह एक माया थी। यह बात माता सीता को भी पता थी और प्रभु श्री राम को भी पता थी कि यह स्वर्ण मृग एक माया है लेकिन? क्योंकि वह माया में संसार में आए हैं इसलिए उन्हें माया रचनी थी। माता सीता ने शिकार के लिए नहीं बल्कि मृग को पकड़कर लाने के लिए कहा था। इसलिए!
भगवान श्रीराम उसके पीछे भागे थे वरना वह वहीं से तीर चला सकते थे और मृग वहीं पर मर जाता। इसलिए इस बात को समझना आवश्यक है कि सीता माता ने म्रग के शिकार के लिए नहीं बल्कि मृग को पकड़कर लाने के लिए कहा था जो कि सोने का था। अगला प्रश्न!
गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या को मेरा प्राप्त होने पर भी आखिर श्राप क्यों मिला? असल में अहिल्या पूर्व जन्म में एक अप्सरा थी और उन्हें वापस इंद्रलोक जाना ही था।
इसके लिए एक पूरी कहानी का निर्माण और इस जीवन में यानी धरती पर होने वाले कोई भी कार्यक्रम की एक जो लीला होती है, वह भी खेलनी आवश्यक हो जाती है। जब व्यक्ति ज्ञानवान होता है। मां पराशक्ति के पूर्ण ज्ञान को रखता है तो यह समझता है कि वह एक कठपुतली की तरह है और इस शरीर में वास कर रहा है। इसलिए वह जो कुछ कर रहा है, वह स्वयं नहीं बल्कि करवाया जा रहा है। लेकिन हर व्यक्ति ऐसा नहीं समझ पाता। और जब व्यक्ति अपने को शरीर मान लेता है तो उसके साथ अवश्य ही गलत होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। यही ऋषि गौतम और उनकी पत्नी अहिल्या के साथ हुआ था। अहिल्या ने अपने सतीत्व की रक्षा नहीं की और तुरंत ही अपने ऋषि गौतम की उस मांग को स्वीकार कर लिया। की? अभी आपके साथ मुझे शारीरिक संबंध बनाना है और इसका! पता जब ऋषि गौतम को चला कि उनका रूप लेकर इंद्र आया है। तो उन्होंने फिर अहिल्या को पत्थर हो जाने का श्राप दिया और उस पत्थर का।
शापमोचन भगवान श्री राम द्वारा किया गया था और उन्हें वास्तविक रूप या फिर से अप्सरा बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। यह सिर्फ एक माया है और जीवन इसी प्रकार से माया के विभिन्न चरणों से होता हुआ अपनी वास्तविक स्थिति और मुक्ति को प्राप्त करता है। अगला प्रश्न पूछा गया है कि?
बली की मन्नत क्या सही है? इसकी जगह सात्विक बलि दे सकते हैं।
पुराने समय में राजसिक और तामसिक साधनाएं अधिक होती थी और इसके माध्यम से होने वाली जो भी पूजा और साधना है, वह जल्दी सफल होती थी। लेकिन? समय के साथ अब सात्विकता की ओर व्यक्ति बढ़ने लगा है और सात्विकता मोक्ष की ओर ले जाती है। राजसिक और तामसिक शक्तियां केवल इस जीवन में ही आप का भला कर सकती हैं। मृत्यु के उपरांत कोई भी भला नहीं किया जा सकता है और व्यक्ति फिर से अधोगति में आ जाता है। लेकिन सात्विक साधक व्यक्ति अपने इस जीवन में भले ही पूजा-पाठ का लंबा समय ले ले क्योंकि सात्विक साधना है, जल्दी से सिद्ध नहीं होती। इन में वर्षों लग जाते हैं। राजसिक साधना कुछ महीनों में सिद्ध होती हैं और तामसिक साधना कुछ दिनों में सिद्ध हो जाती हैं। इस प्रकार! अब बली की मन्नत! को हम सात्विक बली के रूप में ले सकते हैं और तामसिक बलियों को छोड़ सकते हैं। हम भैरव जी को मुर्गा या मांस दें या फिर उन्हें लड्डू या बेसन की बनी चीजें खिलाएं। यह हम पर निर्भर करता है। अगर आप सात्विक साधना करेंगे तो आपका लोक और परलोक दोनों ही सुधरेगा इसलिए अवश्य ही बलि जो है वह तामसिक या राजसिक नहीं देकर सात्विक बलि देने की ओर प्रत्येक साधक को बढ़ना चाहिए।
अप्सरा यक्षिणी योगिनी की क्या दैनिक पूजा हो सकती है
जी हां! इन सब की दैनिक पूजा हो सकती है लेकिन इनकी शक्तियां! कृपा रूप में आप पर बरसे लेकिन अगर आप जिंदगी भर इनकी साधना और पूजा करने के चक्कर में पड़ेंगे। इससे कहीं बेहतर है कि इनकी तांत्रिक पूजा करके आप इन्हें सिद्ध कर लीजिए क्योंकि आजीवन पूजा तो केवल बड़ी शक्तियों अपने इष्ट देवी देवताओं और परमात्मा की करनी चाहिए क्योंकि हमें अंततोगत्वा इन्हीं में जाकर के विलीन होना है और महा मोक्ष को प्राप्त करना है। इनकी यानी अप्सरा यक्षिणी, योगिनी इत्यादि की साधना दैनिक की जा सकती है, लेकिन करने से कोई विशेष लाभ नहीं है क्योंकि इनकी पूजा अगर आप दैनिक करते हो तो इन्हें वर्षों में आप सिद्ध कर लोगे। लेकिन आपने इनके लिए वर्षों का समय समाप्त कर दिया और यह केवल आपके भौतिक जीवन को ही तृप्त कर पाए और आध्यात्मिकता कुछ भी प्राप्त नहीं हुई। इसलिए उत्तम नहीं लगता। इसके बजाय तांत्रिक तरीके से इनकी साधना करके आप इन्हें सिद्ध करें और अपनी इच्छा अनुसार कोई भी कार्य करवाएं। इसीलिए दैनिक पूजा का मैं परामर्श नहीं दूंगा। इनकी तांत्रिक पूजा का ही परामर्श आपको देता हूं।
अगर दैनिक पूजा करनी है तो केवल गुरु मंत्र अपने इष्ट देवता और परमात्मा की करनी चाहिए। इसके अलावा प्रतिदिन की रोजाना पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि इनकी सामर्थ्य्य इतनी है ही नहीं कि आपको यह मुक्ति दे सके। फिर आप इन्हें प्रत्येक दिन क्यों दे रहे हैं?अगला प्रश्न
अपनी मृत्यु का बदला हर आत्मा क्यों नहीं लेती है जबकि कुछ लेती हैं?
जैसा कि हम लोग जानते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का अलग-अलग स्वभाव होता है। कुछ सात्विक स्वभाव के होते हैं। कुछ राजसिक स्वभाव के और कुछ तामसिक स्वभाव के होते हैं। ऐसे ही आत्माएं भी होती हैं। जो तामसिक स्वभाव की आत्माएं हैं, वह मृत्यु के बाद बदला लेने के लिए तड़पती रहती हैं। और उन्हें मौका मिलेगा तो वह ऐसा अवश्य ही करती हैं। राजसिक आत्माएं। अपने भले का सोचती हैं वह बदले जैसी बुरी भावनाओं के पीछे नहीं दौड़ती। लेकिन फिर भी वह इसी जीवन से चिपकी रहती हैं। इसीलिए कहते हैं राजसिक व्यक्ति मरने के बाद फिर से मनुष्य योनि में जन्म लेता है।
वही सात्विक आत्मा जो होती है वह यह जानती है कि अगर किसी ने उसके साथ कुछ गलत किया तो उसने सिर्फ उसके शरीर के साथ ही गलत किया था। और मृत्यु के बाद अब उसका जीवन! शरीर से बंधा हुआ नहीं है और इसी कारण से अब वह मुक्ति क्या प्रयास करें? परमात्मा में मिले क्योंकि जो खेल उसे मनुष्य रूप में रहकर खेलना था, वह वह खेल चुकी है। और अब उसे लेकर उस अवस्था के लिए।
भूत की तरह वापस जाना अच्छा नहीं है। इसी कारण से अगर किसी सात्विक व्यक्ति का कोई वध कर देता है, उसे मार देता है। या उसके साथ बहुत गलत किया होता है। इसके बावजूद भी वह आत्मा उसे माफ कर देती है और अपनी मुक्ति की ओर बढ़ जाती है। इसी कारण से वह दोबारा जन्म नहीं लेती है और! स्वर्ग में अथवा पूर्ण मुक्ति परमात्मा में मिलकर मुक्ति को प्राप्त कर लेती है क्योंकि वह जानती है शरीर तो हमेशा नाशवान ही है। मैं सिर्फ इस शरीर में रहता या रहती थी।
लेकिन राजसिक आत्मा ! दोबारा से उन्हीं लोगों और इच्छाओं को प्राप्त करने के लिए वापस जन्म लेती है और तामसिक आत्मा जो होती है। वह ऐसी होती है कि? वह केवल यह सोचती है कि उसे किस प्रकार से बदला लेना है? क्योंकि वह शरीर को ही सब कुछ समझती है और ऐसा करने पर वह आत्मा हमेशा।
किसी बुरी योनि में फंसी रहती है प्रेत पिशाच इत्यादि निम्न श्रेणी की शक्तियों में बंध करके रह जाती है क्योंकि उसके अंदर बदले की भावना है। वह यह बात जानती ही नहीं कि यह शरीर तो केवल! निमित्त मात्र था जिसे परमात्मा ने एक खेल खेलने के लिए रचा था और उस खेल को वह सत्य मानकर उसी में फंस जाती है।
इस प्रकार आज के सारे प्रश्न आप सभी को संतुष्ट करें हो तो अवश्य ही इस वीडियो को लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।