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साधना में हवन अनिवार्य क्यों है

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साधना में हवन अनिवार्य क्यों है

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य मेंबर्स वीडियो में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। आज आज हमारा टॉपिक है। यह यज्ञ से संबंधित है। कई बार लोगों के मुझे ईमेल आते हैं और तब लोग पूछते हैं कि गुरु जी गुरु मंत्र का अनुष्ठान जो आपने बताया है 900000 मंत्र जाप, दशांश हवन सहित इसमें अगर हम हवन नहीं कर पाते हैं तो फिर हम इसका दुगना जाप कर के क्या इसे कंप्लीट कर सकते हैं तो मैं भी उन्हें सलाह देता हूं कि अगर आपके पास किसी तरह कोई व्यवस्था नहीं है कि आप हवन कर पाएं तो आप मंत्र का दुगना जाप कर लीजिए। लेकिन आपको यह बात मैं आज बताना आवश्यक समझता हूं। अगर भौतिक लाभों की बात की जाए। जीवन में तो आपके लिए हवन करना अनिवार्य वस्तु है। इसीलिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है कि जब हम किसी भी मंत्र का जाप करते हैं तो उसका दसवां हिस्सा यानी दशांश हवन अवश्य करें कि अगर कोई व्यक्ति एक लाख मंत्र का जाप करता है तो उसे 10000 मंत्रों में उसी मंत्र की आग स्वाहा शब्द लगाकर हवन। अवश्य करना चाहिए। आखिर हवन का इतना ज्यादा महत्व क्यों है और क्यों हवन के बिना कभी-कभी आपका सारा पाठ भस्म हो सकता है, नष्ट हो सकता है? क्यों हवन को महत्वपूर्ण माना जाता है तो वैदिक अर्थों में आज मैं आपको इसके बारे में आप बताने वाला हूं।

कहते हैं जो अग्नि होती है। यह पवित्र करने वाली मानी जाती है। हिंदू धर्म में यज्ञ जो एक संस्कृत शब्द है जो कि पूजा प्रार्थना, अर्पण और सम्मान का संकेत देता है। इसे बलिदान भेंट भक्ति के रूप में भी जाना जाता है। यज्ञ की प्रक्रिया अलग अलग तरीके से होती है। हालांकि मैं विभिन्न प्रकार की कठिन हवन के बारे में बात नहीं कर रहा हूं। हवन हमेशा सरल विधि से और सहज तरीके से करना चाहिए क्योंकि इसे आप जितना। कठिन बनाएंगे। यह उतना ज्यादा कठिन होता चला जाएगा। हवन में भी आपको बस इतना ध्यान रखना है कि हर मंत्र का स्वाहा शब्द लगाकर उसकी आहुति उसके देवता तक पहुंचाई जाए।

बाकी उसकी तांत्रिक चीजों या फिर जो कर्मकांड है उस पर पीछे आपको नहीं भागना है। इससे आप भटक जाएंगे और  प्रक्रिया में फंसे रह जाएंगे, जिसका लाभ आपको नहीं देखने को मिलता है जो कि एक सरल तरीके से हो सकता है तो इसमें अग्नि में आप लोगों को पढ़कर मंत्रों और प्रार्थना को पढ़कर उसके अंदर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को डालते हैं। यह वस्तुएं क्या है जैसे कि हम लोग जानते हैं कि सबसे ज्यादा हवन में हवन सामग्री और देसी घी गाय का घी भी कहते हैं, उसका उपयोग किया जाता है। आखिर क्यों हवन सामग्री जो होती है, वह प्रकार से ऐसा शुद्ध चूर्ण होता है जो जलाने में सहायक होता है और साथ ही उसे आहुति भी दी जा सकती है और जहां तक बात रहती है गाय के घी की जो होता है यह सबसे उत्तम! अग्नि को प्रिय वस्तु मानी जाती है। कहते हैं कि अग्नि देवता आपकी सारी खुशियां आपके देवता तक पहुंचाने का कार्य करते हैं। यही कार्य में दिया गया है। इसीलिए हमारे यहां चिता को भी जलाने के लिए कहा गया है। गाड़ने के लिए नहीं कहा गया क्योंकि अग्नि कहते हैं, शुद्ध करती है और उसको। उसके अंतिम लक्ष्य तक पहुंचाने का कार्य होती है और अगर वैदिक ग्रंथों को पढ़ा जाए तो आपको यह भी पता होगा कि इसे पृथ्वी के देवता और अंतरिक्ष दोनों के देवता के रूप में हम जानते हैं। यानी कि अग्नि ही देवता के ऐसे देवता हैं जो स्वर्ग में रहने के बावजूद भी पृथ्वी पर वास करते हैं और धरती में या पाताल लोक तक का निवास है। कहने का मतलब है कि अग्नि देवता नीचे से लेकर ऊपर तक जुड़े रहते हैं। इसीलिए जो ऊर्जा सौर ऊर्जा है वह। अपनी लक्ष्य तक पहुंचाने का कार्य अग्नि देवता का ही होता है इसलिए ऊपर की ओर उठती हैं। यानी कि वह मुक्त कर रही है। उस वक्त को उस भोजन के रूप में उस दिन तक पहुंचाना। वैसे तो यज्ञों के अलग-अलग प्रकार में बताए गए हैं।

मैं उसके बारे में भी आपको बता देता हूं जिसमें एक यज्ञ जो है जिसे पाक यज्ञ कहते हैं,

पाक यज्ञ: इसमें वर्ष के एक निर्दिष्ट समय पर तैयार व्यंजनों को जलाना शामिल है। अस्तका, श्रावणी, स्थालीपाका, अग्रहायणी।

सोम यज्ञ: व्यक्तियों, परिवारों और मानवता के लिए हिंदू स्वर्गीय देवताओं को संतुष्ट करने के लिए किया जाता है। समारोह के दौरान, सोम पौधे के तरल पदार्थ देवताओं को चढ़ाए जाते हैं। सोम यज्ञों में अग्निस्तोमा, उक्त्य, षोडशी और वाजपेय शामिल हैं।

हविर यज्ञ: आहुति के रूप में गाय का कच्चा दूध, गेहूं, घी और वनस्पति तेल चढ़ाएं। अग्नियधान, अग्रायण, चातुर्मास्य, सौत्रामणि, अग्निहोत्र।

वेदव्रत: इनका उपयोग वैदिक विद्यार्थियों की प्रगति को मापने के लिए किया जाता है। महानम्नी, मह, उपनिषद और गोदान चार वेदव्रत हैं।

सिर्फ यज्ञ का महत्व माना जाता है। पांच महायज्ञ बात कीजिए जो सब के लिए अनिवार्य होता है। पांच महायज्ञ से अलग जीवन यज्ञ के रूप में भी हम जानते हैं। इसमें पहला होता है।

ब्रह्म यज्ञ – इसमें हम वेदों को पढ़ना साझा करना हिंदू सनातन धर्म को आज की स्थिति में सीखना आप कह सकते हैं तो यह हो गया। आपका ही करना बहुत आवश्यक है। प्रत्येक हिंदू सनातनी के लिए तभी वह। अपनी वैदिक शक्तियों को समझ पाएगा। अपने गुरु के वाक्यों को जान पाएगा और जीवन में उसे उतार कर पाएगा। तभी जब वह वेदों को पढेगा, वैदिक ज्ञान को प्राप्त करेगा या गुरु के मुख से उस ज्ञान को सरल भाषा में सुनेगा जैसे कि मैं आपको इस वक्त दे रहा हूँ। इसी प्रकार दूसरा है।

देव यज्ञ-  देवताओं को हम कच्चा घी, दूध, अनाज, सोम इत्यादि अर्पित करते हैं। हवन के माध्यम से या फिर भोग के माध्यम से कभी भी देवी देवताओं के भोग रखते हुए लोग भोजन प्रदान करते हैं तो इसे कहते हैं,

पितृ यज्ञ-पितृपक्ष में पिंडदान करते हैं। उनके निमित्त विभिन्न प्रकार से उनकी सेवा के लिए कुछ भोजन इत्यादि भी रखते हैं तो यह सारा जो होता है पितृ यज्ञ कहला। इसका एक दूसरा भी अर्थ है। संतान उत्पत्ति से यानी कि आप संतान उत्पन्न करते हैं तो आप पितृ यज्ञ से मुक्त होते हैं। इसी प्रकार चौथा है

भूत यज्ञ –जानवर पक्षी और आध्यात्मिक प्राणियों को खाना खिलाया जाता है। भूत यज्ञ का मतलब होता है जो इस जीवन को समाप्त करके आ स्थिर अवस्था में कहीं घूम रहे हैं। इसमें हम। जानवरों को खिलाते हैं, पक्षियों को खिलाते हैं और आध्यात्मिक प्राणी यानी कि जो स्थान देवता या उसी स्थान पर कुल कुल देवी देवता या फिर आध्यात्मिक शक्ति रखने वाले जो भी शक्ति है, उनको मानसिक रूप से जो ग्रहण कराया जाता है, उनके लिए भोजन रखा जाता। उसे भूत यज्ञ की स्थिति में लड़ते हैं और पांचवा यज्ञ होता है।

मनुष्य यज्ञ- के इसे भी सभी लोग करते ही हैं। अतिथि यानी आपके घर कोई आता है जब कोई दरिद्र व्यक्ति हूं। कोई भूखा व्यक्ति हो, कोई बेघर व्यक्ति हो या फिर भंडारा इत्यादि की सहायता से जो भोजन दिया जाता है या आप किसी के लिए भोजन कैसी व्यवस्था में बनाते हैं। यह सारा मनुष्य यज्ञ कहलाता है। इन्हीं मनुष्य को दिया जाने वाला भोजन।  पांच यज्ञ हर व्यक्ति करता है और तभी मुक्ति को प्राप्त करता है। तो मैंने आपको बताया कि आखिर आध्यात्मिक अर्थ वास्तविक अर्थ क्या है, लेकिन अगर मैं स्पष्ट रूप से बताओ तो जैसे कि आप किसी मंत्र का जाप करते हैं। आपने कोई मंत्र पढ़ा। जैसे कि अगर मैं उदाहरण के लिए आपने एक मंत्र पढ़ा? ओम अग्नि देवता नमः और यह मंत्र है जब हम इसका हवन करेंगे तो वह ओम अग्नि देवता नमः आगे स्वाहा शब्द अवश्य लगाएंगे। स्वाहा का मतलब होता है। मैंने अर्पित किया कि से आपके इस मंत्र को इस मंत्र के माध्यम से उस देवता को ताकि उस तक मेरी बात पहुंच जाए और लेकर जाएंगे। कौन अग्नि देवता इसीलिए अग्नि देवता को यह कार्य सौंपा जाता है कि मैंने जो यह आहुति दी है, यह मंत्र जो मैंने बोला है। इस मंत्र को इसके आगे स्वाहा लगा कर के जो आहुति दी है, यह भोग के रूप में आप ले जाइए क्योंकि वह शरीर धारी नहीं है जिसे आपका शरीर है। मेरा शरीर शरीर युक्त नहीं है। ऊर्जामय है अब ऊर्जा शरीर जो होता है वह आपकी तरह भोजन तो नहीं ले सकता है।

लेकिन उनको मानसिक रूप से अर्पित करते हैं जैसे कि अगर हमारे आगे जैसे भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति है। लड्डू गोपाल वगैरा करते हैं। उनको हम भोग लगाते हैं तो क्या वह खाते हैं, बिल्कुल नहीं खाते। यहां पर क्या होता है। यहां पर एक मानसिक रूप से हम यह मानते हैं कि आपने भोजन किया तो मैंने आप को भोजन कराया। इसी आधार पर अब मैं भोजन। तू मेरा जो भोजन है, यह शुद्ध हो जाएगा। लेकिन वास्तविक रूप में किसी व्यक्ति को भोजन कैसे करा सकते हैं। आप कैसे उसे वह प्रदान कर सकते हैं। उसे भोग प्रदान करने का कार्य केवल एक शक्ति करती है। उन्हें अग्नि देवता कहा जाता है। इसीलिए अगर आप कभी वैदिक ग्रंथों को पढ़ेंगे तो सबसे ज्यादा इंद्र के बाद लोगों का वर्णन जिनका का आता है। लगभग ढाई सौ के करीब बार वर्णन आता है। अग्नि देवता का ही 3वेद में अग्नि देवता का वर्णन 200 सूक्तों में मिलता है देवता का वर्णन आता है। अगर आप वैदिक ग्रंथों को पढ़ेंगे तो आज रात में पड़ जाएंगे वैदिक ग्रंथों में। अग्नि, देवता, इंद्र, देवता, इत्यादि अन्य देवताओं का वर्णन ज्यादा आता है। केवल कहते हैं विष्णु भगवान का तीन बार और कुछ इनसे ज्यादा भगवान रुद्र यानी भगवान शिव का वर्णन बाद कि हमारे पुराणों में देवताओं का अधिक महत्व हो गया और यह आगे ज्यादा बड़े देवता के रूप में दिखाई देने लगते हैं। लेकिन अगर वैदिक ग्रंथों में देखा जाए तो अग्नि देवता, इंद्र, देवता इत्यादि देवताओं को बहुत बड़ा। माना गया। वहां पर इंद्र देवता है। इंद्र देवता को आप आज के इंद्र देवता या वैदिक पुराणों में पित्र देवता का उसके जैसे नहीं है वहां पर ईश्वर का स्वरूप माना जाता था। इंद्र का यानी जो इंद्रियों से परे है उन्हीं को इंद्र कहां गया जो इंद्रियों से परे आदि मनुष्य की। लिमिटेशन है उसकी इंद्रियां लिमिटेड बना देती हैं। एक छोटी सी दायरे में बांध देती हैं। वह कोई भी कार्य अनंत रूप में नहीं कर सकता। इसीलिए वहां पर इंद्र का वर्णन ईश्वर का स्वरूप ब्रह्म का स्वरूप है। वहां पर इंद्र को कहा गया है।  ब्रह्म के बाद अगर किसी का वर्णन सबसे ज्यादा आया है तो वहां पर आया है। अग्नि देवता की अग्नि देवता है जो जीवन से मुक्ति प्रदान करते हैं और आप के देवता तक पहुंचाने का कार्य करते हैं। इसलिए ब्रह्मा जी ने सृष्टि के आदि ने यही कहा था कि यज्ञों के द्वारा तुम सभी उन्नति करो। इन सभी के लिए कहा था तो यज्ञ में जो अग्नि होती है, वह इतनी पवित्र होती है कि उसमें जाली गइयां होती। उस देवी या देवता तक अवश्य जाती है। इसीलिए कहीं अगर आपको नहीं लिखा। मिलता है कि मुझे इसका दशांश।

अवश्य दशांश हवन कीजिए चाहे वह योगिनी साधना हो, भैरवी साधना होगी। यक्षिणी हो, किन्नरी हो, अप्सरा हो, दशांश हवन अवश्य कीजिए। तू यह मूल मात्र तो आप  कर सकते हैं। कभी डरने की आवश्यकता नहीं। आप मुझ से भी पूछ सकते हैं कि सरल विधि से उसका खमन कैसे किया जाए और प्रमुख देवी देवताओं को उसमें होती अवश्य देनी चाहिए। बस इतना आपको ध्यान रखना है। बाकी कर्मकांड में पडने की आवश्यकता नहीं है। बात को सरलता से समझ है क्योंकि कोई भी चीज कई लोग अपने पैसे कमाने के चक्कर में और वैदिक साहित्य के बाद जब उत्तर वैदिक काल और उसके बाद आगे की कार्य तो पंडितों ने उस चीज को इतना कठिन दिखा दिया कि जनता आसानी से हवन इत्यादि ना कर पाए। लेकिन बहुत समय से सरल थी तो हम जिन लोगों ने उसे और कठिन बनाया था कि उनके पास को अधिकार है उसे करने या करवाने का तो यह चीजें।

चले आ रहे हैं। इसी वजह से समस्याएं भी उत्पन्न होती चली गई। लोगों का ध्यान सीमित होता चला गया और उसकी वजह से बहुत सारे नुकसान भी देखने को मिलते हैं। अब मैं आपको महत्व के बारे में बताता हूं कि यज्ञ से क्या क्या महत्व है होता है उसका क्या-क्या फायदे हो सकते हैं तो वह भी किया कि जो है, मनुष्य को देवताओं से जोड़ता है। यह मानवता के प्रति दयालुता सभी देवताओं को स्वीकार करवाता है। मानसिक और आध्यात्मिक रूप से मंत्र को शुद्ध करता है। यज्ञ, शरीर आत्मा, मन और पर्यावरण सभी को शुद्ध करता है। नकारात्मकता वहां से नष्ट हो जाती है। जब औषधीय जड़ी बूटियों का हवन किया जाता है तो यज्ञ स्थल के आसपास के जोड़ रोग और कीटाणु होते होते हैं। वह नष्ट हो जाते हैं। करो ना कॉल में भी जो लोग हवन करते थे, विशिष्ट प्रकार की औषधियों से तो वहां पर करो ना का कोई असर देखने को नहीं मिला। और दुआ जीवाणु रोधी हो जाता है। देवता का आशीर्वाद उसको अवश्य मिलता है। एक शांत जीवन उसकी जिंदगी में आता है। यज्ञ से क्रोध और शत्रुता की कमी हो जाती है। प्रेम शांति और उदारता उत्पन्न होती है। सभी कष्टों और आप समाप्त होते हैं तो कुछ बातों को भी ध्यान रख लीजिए। इसके लिए अगर आप कहीं हवन करना चाह रहे हैं तो सबसे पहले उसी स्थान की सफाई करने फूल पत्ती सब्जी। पर सजावट भी कर सकते हैं। मंडप के मध्य चौकोर अग्निकुंड कहां पर रखनी चाहिए। अग्निकुंड के लिए लकड़ी की आवश्यकता पड़ती है। आम की लकड़ी मानी जाती है लेकिन विशेषताओं में किसी भी प्रकार की अशुद्धि लकड़ी को छोड़कर लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। उसका इस्तेमाल करें, उसमें कहती थी। 30 कोटि देवताओं का वास होता है। इसी कारण से गाय के अंदर यह शक्ति होती है कि वह सभी की माता कहलाती है और माता होने के कारण उसके द्वारा दी गई आकृति का प्रभाव सीधे-सीधे देवताओं तक पहुंचता है और। उस वक्त जब भी आप हवन करें, एक-दो व्यक्ति सहायता के लिए अवश्य रखें क्योंकि सारी चीजें अगर उपलब्ध नहीं भी है तो आप इशारा करके बुला सकते हैं। यज्ञ में भाग लेने वाले व्यक्तियों को अपने जो बैठने का तरीका है वो सुख आसन पद्मासन में होना चाहिए और सुकरी मुद्रा से ही हवन कुंड में आपका होती डालनी चाहिए। कभी भी सीधा हाथ करके नहीं डालना हो तो आप सऊदी कहलाती है। स्वाहा सुनने के बाद ही आपको हवन में आहुति डालनी चाहिए कि जैसे मैंने बोला, ओम नमः शिवाय स्वाहा जैसे स्वाहा बोलेंगे। उसके बाद ही डालनी पहले नहीं डालनी इसके अलावा।

सभी प्रकार से अगर आपको कई बार ऐसा होता खुजली लगती है तो कोई लकड़ी बकरी वगैरह या फिर कोई पुराने जमाने में जो होता था। हिरन का सींग रखते थे। खुजाने के लिए। क्योंकि पसीना जब आता है तो कभी-कभी कुछ चीजों का ध्यान रखना उस वक्त बातचीत नहीं करनी चाहिए क्योंकि मंत्र जाप के ऊपर ध्यान देना चाहिए। ध्यान नहीं रखना चाहिए। जो है इत्यादि करके शुद्ध करके आ पैरों को साफ करके करना चाहिए और सरल से सरल और कम कपड़े पहने की कमी के कारण शरीर में खुद भी उर्जा उत्पन्न होती। सामने से शरीर को तेज ऊष्मा की प्राप्ति भी होती है तो ज्यादा कपड़े पहनकर के हवन नहीं करना चाहिए। प्लीज सब बातें मैंने आपको बताई है। हवन के लिए तो हवन अवश्य कीजिए। दशांश हवन करना आवश्यक है। आपको पता होगा जब हम माता के मंत्र का जाप करते तो आप स्पष्ट रुप से आता तुम स्वाहा तुम सदा तुम ही बस डकार तो रात में का मतलब ही देवी माता आप ही स्वाहा हो, आप ही सुधार की कोई भी मंत्र जप के आगे स्वाहा लगाकर डाला जाता है। पहली उनकी आंखों की माता को ही जाती है। नहीं माता को ही हम हर प्रकार से आहुतियां प्रदान करते हैं। यह एक गोपनीय ब्रह्मांड के रहस्य है।

क्योंकि यह बातें बताने योग्य नहीं होती है लेकिन फिर भी मैं आपको बता रहा हूं क्योंकि आप माता पराशक्ति से जुड़े हुए हैं। यानी कि संसार में किसी भी देवी देवता को दी गई स्मावाहा आहुति माँता पराशक्ति को ही दी जाती है क्योंकि वही स्वाहा है, वही स्वधा है। स्वधा जो होते हैं, यह पितरों के निमित्त दिया गए। जो होता है यानी पितरों को भी जोर दिया जा रहा है। वह भी माता को ही दिया जा रहा है और उनसे जो है कृपा जाकर देवताओं को मिलने उनसे जाकर कृपा आप के पितरों को मिल रही है की जानकारी आज के बारे में आपको पता है। आपको आज का वीडियो पसंद आया होगा। इसीलिए आप लोग अवश्य करें और अत्यंत!

या फिर कोई कर्मकांडी हवन करने की आवश्यकता नहीं है। मंत्र के आगे स्वाहा लगाकर सहज रूप से देसी घी का प्रयोग करें और कुछ विशेष साधना में जिन भी चीजों की आवश्यकता होती है करने के लिए उसी चीज से करें। जेसे माता काली में आप काले तिल का इस्तेमाल करेंगे तो इन चीजों को ध्यान रखना किस किस चीज का इस्तेमाल कर रहे हैं। आप अपने गुरु से पूछ सकते हैं या फिर उसकी साधना विधि हो उसके बारे में जानकारी आपको नहीं चाहिए। आप सभी का दिन मंगलमय हो जय मां पाराशक्ति।

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