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साधुओ का जिन्नों से युद्ध भाग 1

साधुओ का जिन्नों से युद्ध भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। दर्शकों की विशेष मांग पर आज मैं एक ऐसी घटना को लेकर आया हूं जो कि इतिहास में तो वर्णित है लेकिन उसका सही प्रकार से विवेचन नहीं किया गया है। एक ऐसी कहानी जो की पूरी तरह सत्य है, लेकिन इतिहास में जिस तरह से उसका वर्णन किया जाना चाहिए, वह नहीं किया गया और यह उस प्रश्न को लेकर है कि जब हमारे यहां बड़े-बड़े साधु, तांत्रिक इत्यादि मौजूद थे। तब मुस्लिम शासकों के अत्याचारों के विरुद्ध यह अपनी शक्ति क्यों? नहीं दिखा पाए और सारे गुलाम कैसे बना दिए गए तो कोई ऐसी वास्तविक घटना जिसके माध्यम से यह पता चलता हो कि वास्तव में साधुओं के पास शक्ति का भंडार होता है और वह चाहे तो कुछ भी कर सकते हैं। इस सच्ची घटना के माध्यम से आज आप लोग जान पाएंगे। यह कहानी है नागा रूद्र भैरव के साथियों और उनकी साधना और युद्ध के बारे में। जिनका नाम तक इतिहास में वर्णित नहीं है तो चलिए शुरू करते हैं इस अनूठी और अनसुनी कथा के बारे में।

आज से कई 100 वर्ष पूर्व जब हमारे यहां मुगल शासकों का शासन था तब भी भारत में कुछ ऐसे क्षेत्र थे जहां पर भगवान की विशेष रूप से पूजा और प्रार्थना की जाती थी। उसी में एक प्रसिद्ध स्थान था। भगवान श्री कृष्ण को समर्पित मथुरा। वही स्थान है जो वर्तमान में मथुरा वृंदावन और गोकुल के रूप में जाना जाता है। इस स्थान पर उस काल में भी बहुत बड़ी भक्ति के साथ में पूजा उपासना और साधना की जाती थी। यह वह वक्त था जब दिल्ली पर मुसलमान मुगल शासक आलमगीर द्वितीय का शासन था।

यह एक कमजोर और डरपोक शासक था लेकिन मथुरा वालों को इससे क्या मतलब यहां तो कृष्ण भक्ति जन-जन में वास करती थी प्रत्येक व्यक्ति भगवान कृष्ण की अतुलनीय भक्ति में डूबा हुआ था लेकिन किसी को क्या पता था कि इस स्थान पर भविष्य में कितनी बड़ी मुसीबत आने वाली है? यह स्थान कृष्ण भक्ति के लिए सारे संसार में प्रसिद्ध था। और भगवान कृष्ण की लीलाओं से संबंधित कथा और उनके जीवन चरित्र को यहां के लोग अपने प्राणों में बसाते थे। यह स्थान सदैव से पूजनीय था और सनातनी हिंदुओं के लिए एक सबसे बड़ा तीर्थ स्थान उस वक्त के दौर में इसे माना जाता था लेकिन?

दूर से आने वाले शासक अहमद शाह, दुर्रानी या अहमद शाह अब्दाली आगे चलकर इस स्थान पर क्या करने वाला था। किसी को भी नहीं पता था। लेकिन उसके आने से पहले हम नागा रूद्र भैरव और उनकी समर्पित साधना नवार्ण देवी के लिए उसकी कथा को भी जानते हैं। नागा रूद्र भैरव नागा बनने के बाद अपने साथियों के साथ आकर गोकुल में रहने लगा। थोड़े दिनों बाद वहां पर अन्य नागा साधु भी आकर सभी नागा रूद्र भैरव और उनके साथियों के साथ उनकी प्रसिद्ध देवी नर्वाण देवी की साधना करने लगे। यह स्थान पर बैठकर नागा अपनी साधना किया करते थे। धीरे-धीरे नागा रूद्र भैरव सिद्धि वान बनते चले गए और नवार्ण देवी उन से प्रसन्न होती जा रही थी। देवी उन्हें एक दिन स्वप्न में आकर कहने लगी। भविष्य में तुम्हें बहुत बड़ा कार्य करना है। तुम्हें गोकुल की रक्षा करनी पड़ेगी और यह कहकर देवी अदृश्य हो गई । तब नागा रूद्र भैरव यह सोच कर कि इसी स्थान पर मुझे सब की रक्षा करनी होगी। ऐसा माता ने क्यों कहा पता नहीं यह बात उन्होंने अपने सभी बंधु नागा साथियों को बताई और उनसे कहा कि माता ने इस प्रकार संकेत किया है। तब सारे नागा हंसकर कहने लगे। भला हम लोग इस क्षेत्र को क्यों बचाएंगे? पूरा क्षेत्र तो भगवान श्री कृष्ण की लीला से बना हुआ है और इस स्थान की रक्षा वह स्वयं करते हैं। इसलिए ऐसे स्थान के विषय में ऐसी बात तुम्हारे मन का भ्रम होगा। शायद ज्यादा सोचने की वजह से तुम्हें ऐसा कोई सपना आ गया है और सारे नागा हंसने लगे लेकिन किसी को यह बात नहीं पता थी कि एक बहुत बड़ी मुसीबत जल्द ही इस क्षेत्र में प्रवेश करने वाली है।

इधर नागा रूद्र भैरव नर्वाण देवी के मंत्रों से उनकी साधना करने लगा और अपनी ऊर्जा शक्ति को बढ़ाता रहा। नागा रूद्र भैरव, क्योंकि सिद्धि वान था, इसीलिए उसके पास गांव वाले और आसपास के गोकुल के नजदीक रहने वाले लोग अपनी अपनी समस्याओं को लेकर आते रहते थे और सिद्धि होने के कारण नागा रूद्र भैरव उन सबकी मदद किया करता था। इसी कारण उस क्षेत्र में इनका बड़ा नाम हो गया। इसीलिए आसपास के क्षेत्र से और भी अधिक नागा साधु वहां आकर रहने लग गए क्योंकि सबका एक साथ रहने के कारण वह एक बड़े मठ में परिवर्तित हो गया था। जहां पर कई सौ नागा साधु एक साथ निवास करते थे और उन सब के भरण पोषण और भोजन का कार्य आसपास के गांव के कई लोग संभालते थे और गोकुल सहित कई सारे गांव, भोजन, सामग्री इत्यादि इन साधुओं को देते रहते थे। इस प्रकार! वहां पर? उन नागा साधुओं सहित एक बड़ा मठ बन गया था। लेकिन धीरे-धीरे एक मुसीबत जो इनकी तरफ बढ़ने वाली थी जिसके बारे में किसी को भी पता नहीं था। अफगानी और तुर्की अब भारत देश की ओर बढ़ने वाले थे। हम जानते हैं हिंदू धर्म की रक्षा के लिए और संस्कृति को बचाने के लिए साधुओं ने कभी विशेष कार्य नहीं किया। केवल 8 वीं सदी में आदि शंकराचार्य जी ने ही इसके बारे में काफी कार्य किया था और उन्होंने हिंदू सनातन धर्म की रक्षा की थी और उन्होंने ही नागा साधुओं को शस्त्र और अस्त्र चलाने की शिक्षा भी प्रदान की थी। इसी कारण से उनके अंदर एक सैनिक पहले से मौजूद था, लेकिन इसके बारे में उनकी जानकारी शून्य थी क्योंकि वह समय के साथ बातें भी चली गई थी।

अब हम जाते हैं उस घटना की ओर जिससे यह सारी उथल-पुथल मच गई थी। नादिर शाह की मौत के बाद अहमद शाह अब्दाली सन 1748 में अफगानिस्तान का शासक बना। उसने 1748 से लेकर के 1758 तक कई बार लूटपाट और भारत पर चढ़ाई की थी। उसने अपना सबसे बड़ा हमला 1757 में जनवरी के महीने में दिल्ली के ऊपर किया। यह दिल्ली उस समय की मजबूत स्थिति में नहीं थी क्योंकि मुगल शासकों का अस्तित्व अब काफी कमजोर पड़ चुका था। आलमगीर द्वितीय नाम से एक मुगल शासक। उस वक्त शासन करता था। यह बहुत ही कमजोर और डरपोक किस्म का राजा था। जब अहमद शाह अब्दाली की सेना दिल्ली पर पहुंची तो उसकी विशालकाय और लाखों की सेना को देखकर यह बहुत ही ज्यादा डर गया। इसलिए उसने अब्दाली के सामने जाकर माफी मांगना ही उचित समझा। जब वह अब्दाली के पास गया तो अब्दाली ने कहा, तुम्हारी औकात मेरे सामने कुछ भी नहीं है। तब अपनी जान बचाने के लिए आलमगीर द्वितीय ने एक अपमानजनक संधि उससे की और कहा कि मेरे पास तो मुसलमान बहुत ही कम है, लेकिन यह पूरा देश और दिल्ली हिंदुओं से भरी पड़ी है। ऐसे में आप पूरी दिल्ली को लूट लीजिए और जितना भी धन मिले, आप उसे ले जा सकते हैं। सिर्फ मुझे मेरे परिवार और मुसलमानों को बख्श दे। तब अब्दाली ने उसकी यह संधि मान ली और उसने पहली बार दिल्ली को लूटने के लिए अपनी पूरी सेना वहां भेज दी।

अहमद शाह अब्दाली 1 महीने तक दिल्ली में रहा और लूटमार करता रहा कहते हैं वहां की लूट से उसे करोड़ों की संपत्ति हाथ लगी थी। और दिन-रात वह कत्लेआम मचाता रहा जहां भी उसे पुरुष दिखाई देते उन सब को मार दिया जाता। बच्चों को दास बना लिया जाता औरतें हरम में रख ली जाती और इन्हें अफगानिस्तान भेज दिया जाता। इसी प्रकार पूरी दिल्ली तबाह हो गई। कहते हैं दिल्ली के लूटने के बाद अहमद शाह अब्दाली का लालच।

और ज्यादा बढ़ गया। उसने दिल्ली से जुड़ी हुई कई सारी जाटों की रियासतों को लूटने का भी मन बना लिया। इसलिए उसने ब्रज पर अधिकार करने के बारे में पता किया क्योंकि यह बात सभी मुसलमानों के लिए उस वक्त बहुत महत्वपूर्ण थी। इस सारे देश को इस्लामिक देश बना दिया जाए और ऐसा केवल तलवार के बल पर किया जा सकता था। इसलिए ब्रज पर अधिकार करने के लिए उसने जाटों और मराठों में जो उस वक्त विवाद चल रहा था, इस स्थिति का पूरा फायदा उठाया। और अब अहमद शाह अब्दाली की पठान सेना दिल्ली से आगरा की ओर चल पड़ी कहते हैं। रास्ते में उनकी पहली मुठभेड़ जाटों के साथ बल्लभगढ़ में हुई जहां पर जाट सरदार बालू सिंह और सूरजमल के जेष्ठ पुत्र जवाहर सिंह ने सेना की एक टुकड़ी लेकर अब्दाली की उस विशाल सेना को रोकने की कोशिश किया लेकिन उनके इस वीरता पूर्ण कार्य का भी कोई प्रभाव नहीं हुआ और जाट सेना शत्रु सेना से बुरी तरह पराजित हो गई। अब जब वहां के लोगों से यह पता चला कि पूरा का पूरा मथुरा क्षेत्र धन पैसा रूपया के माध्यम से भरा पड़ा है। हिंदुओं का सारा धन यहां है तब उसने कहा कि इस पूरे क्षेत्र को नष्ट कर दिया जाए।

उसने कहा कि मथुरा नगर हिंदुओं का पवित्र स्थान है। उसे पूरी तरह निश्ते नाबूत कर दो। आगरा तक एक भी कोई इमारत खड़ी हुई ना दिखाई पड़े। जहां कहीं पहुंचो, कत्लेआम करो, लूटो लूट में जो मिलेगा उसी का होगा। सिपाही लोग काफिरों के सिर काट कर लाए। प्रधान सरदार के खेमे के सामने लगातार इन कटे सिरों को डाला जाए। सरकारी खजाने से प्रत्येक सिर के लिए ₹5 इनाम दिया जाएगा। यह इतिहास में वर्णित एक बहुत ही भयानक आदेश है। उस वक्त ₹5 का इनाम आज के 50,000 से भी ज्यादा का था।

इसके बाद क्या हुआ जानेंगे हम लोग अगले भाग में अगर यह जानकारी और यह सत्य घटना आपको पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

साधुओ का जिन्नों से युद्ध भाग 2

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