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हल छठ ललही छठ बलराम जयंती व्रत कथा महत्व

हल छठ ललही छठ बलराम जयंती व्रत कथा महत्व

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। हल अष्टमी बलराम, जयंती या ललही छठ। इसे एक ही नाम से जाना जाता है। अलग-अलग तरीकों से इसे मनाया भी जाता है। कई दर्शकों की मांग पर मैं आज। इस व्रत और इससे संबंधित जानकारी को आप लोगों के साथ साझा कर रहा हूं। तो सबसे पहले जानते हैं, यह कब पड़ेगी और इसका समय क्या है?

भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि। 27 अगस्त 2021 के दिन शुक्रवार को शाम 6:50 से लगेगी। यह तिथि अगले दिन यानी 28 अगस्त को रात्रि 8:55 तक रहेगी। मान्यता है माताये हलषष्ठी का व्रत संतान की लंबी आयु की प्राप्ति के लिए रखती हैं।

हिंदू पंचांग में हल षष्ठी एक महत्वपूर्ण त्योहार है और यह भगवान श्री कृष्ण के भाई बलराम को समर्पित है।

भगवान बलराम, माता, देवकी और वसुदेव की सातवीं संतान थे। हल षष्टि का त्यौहार बलराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। रक्षाबंधन और श्रवण पूर्णिमा के 6 दिन बाद बलराम जयंती मनाई जाती है। इसे राजस्थान जैसे अन्य राज्यों में विभिन्न नामों से अलग-अलग जाना जाता है।

गुजरात में इसे चंद्र सृष्टि और ब्रज क्षेत्र में बलदेव छठ और रंधन छठ के रूप में जाना जाता है। भगवान बलराम शेषनाग के अवतार माने जाते हैं। इस त्यौहार के अन्य और भी नाम है जैसे हलषष्ठी ललही छठ, बलदेव छठ, रंधन छठ, हरछठ व्रत, चंदन छठ, छठी और तिन्नी छठ

बलराम जी को बलदेव! बलभद्र हलाधर! हला युद्ध और संस्कार के रूप में भी जाना जाता है। बलराम जी को भगवान शेषनाग का अवतार भी समझा जाता है। कुछ लोग इसी दिन को माता सीता का जन्म दिवस भी मानते हैं और इसी तिथि को मनाते भी हैं। बलराम जी का प्रधान शस्त्र हल और मुसल था इसलिए उन्हें हलधर भी कहते हैं। उन्हीं के नाम पर इस पर्व का नाम हलषष्ठी रखा गया था। हमारे देश के पूर्वी जिलों में से ललही छठ के नाम से जाना जाता है। इस दिन महुए की दातुन करने का विधान है। महुआ के माध्यम से अपने दांतो को साफ किया जाता है। इस व्रत में हल द्वारा जूता हुआ फल या अन्य का प्रयोग वर्जित माना जाता है। इस दिन गाय के दूध दही का प्रयोग भी वर्जित होता है। भैंस का दूध और दही प्रयोग किया जाता है। इस दिन पूजा विधान कैसे करते हैं?

उस दिन प्रातः काल स्नानादि के पश्चात पृथ्वी को लीप कर एक छोटा सा तालाब बनाया जाता है जिसमें झारबेरी, पलाश, गूलर की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई हरछठ को गाड़ दिया जाता है और इसकी फिर पूजा की जाती है। पूजा के बाद में सतनाजा इनकी गेहूं चना, मक्का, धान, बाजरा, ज्वार और जौ आदि का भुना हुआ लावा चढ़ाया जाता है। हल्दी में रंगा हुआ एक वस्त्र तथा सुहाग सामग्री भी इसमें।पूजा के बाद मंत्र से प्रार्थना की जाती है जो इस प्रकार से है

गंगा के द्वारे पर कुशावते विल्व के नील पर्वते।
स्नात्या कनखले देवि हरं सन्धवती पतिम्।।
ललिते सुभगे देवि सुख सौभाग्य दायिनी।
अनन्त देहि सौभाग्यं मह्मं तुभ्यं नमो नमः।।

अर्थात हे देवी आप ने गंगाद्वार, कुशावर्त, विल्वक, नील पर्वत और कनखल तीर्थ । स्नान करके भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त किया था। शुभ और सौभाग्य देने वाली ललिता देवी आपको बारंबार नमस्कार आप मुझे अचल सुहाग प्रदान करें।

हलषष्ठी कथा-

हलषष्ठी की जो कथा है, वह इस प्रकार से आती है। एक गर्भवती ग्वालिन के जब बच्चा पैदा करने का समय नजदीक था तब उसे उसको पीड़ा होने लगी थी। उसका दही मक्खन बेचने का कारोबार था । उसने सोचा यदि प्रसव हो गया तो दही मक्खन बिक नहीं पाएगा। यह सोचकर उसने दूध दही घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए वहां से जल्दी कुछ ही दूर पहुंचने पर उसे असहनीय दर्द होने लगा। वह एक झारबेरी की ओट में चली गई और वहां पर। एक बालक को जन्म दिया। वह बच्चा वही छोड़कर पास कि गांव में दूध दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हलषष्ठी थी।

गाय भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे साधे गांव वालों को बेच दिया था। उस दिन झर बेरी के नीचे कुछ नहीं बच्चे को छोड़ा था। उसी के समीप भी एक खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया। इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया था। उसने झारबेरी के कांटों से ही बच्चे के चीरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर फिर चला भी गया। कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगा कि यह सब उसके पाप की ही सजा है। सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध नहीं बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट नहीं किया होता तो मेरे बच्चे की ऐसी दशा नहीं होती। इसलिए मुझे लौटकर सारी बातें गांव वालों को बता कर के फिर से प्रायश्चित करना चाहिए। ऐसा नीचे करके वह उस दिन फिर गांव में पहुंची, जहां उसने दूध दही भेजा था। वहां गली-गली में वह घूम घूम कर अपने दूध दही के बारे में बताने लगी और उसके फल स्वरुप मिले। दंड के बारे में भी उसने चारों ओर बताया।

तब वहां की स्त्रियों ने स्व धर्म रक्षा के लिए और उस पर रहम खा कर के उसे माफ कर दिया था और फिर आशीर्वाद दिया। बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झर बेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर वह आश्चर्य में पड़ गई कि वहां पर उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा हुआ था। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी फिर दोबारा झूठ ना बोलने का प्रण लिया था ।

इस दिन आप किसी को भी मूर्ख ना बनाएं और कभी झूठ ना बोलें। जीवन में क्योंकि अपने स्वार्थ के लिए झूठ बोलना ब्रह्म हत्या के समान माना जाता है। इसीलिए उसके जीवन में ऐसा सब कुछ घटित हुआ था। लेकिन प्रायश्चित रूप में उसने वास्तव में उस महान सत्य को उजागर किया कि अगर व्यक्ति प्रायश्चित करता है तो प्रभु उस पर सदैव प्रसन्न हो जाते हैं। इसी दिन?

बलराम जी की पूजा और उपासना करने से ऐसा बल और सामर्थ्य वाला पुत्र और शक्तियां प्राप्त होती हैं जिससे जीवन व्यक्ति का सुखी हो जाता है। इसीलिए इस दिन बिना झूठ बोले। व्यक्ति अगर व्रत का पालन करता हुआ इस कथा को सुनता है तो उसके जीवन में इस फल का। प्रभाव अवश्य ही देखने को मिलता है उसके। बच्चे और! किसी भी स्त्री की संताने सुरक्षित हो जाती हैं। तो यह थी। बलराम जयंती हल छठ या ललही छठ की कथा। अगर आपको आज का वीडियो पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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