नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। 12 ज्योतिर्लिंगों की पौराणिक और तांत्रिक कथाओं में अघोरी तांत्रिक अब केदारनाथ की यात्रा की ओर चल पड़ा लेकिन? इतनी दूर पहुंचने के लिए उसे सही मार्गदर्शन की आवश्यकता थी इसलिए उसने कुछ मंत्रों का उच्चारण किया और अभी तक जिन योगिनी शक्तियों ने उसको सिद्धि प्रदान की थी। वह सभी आकर के उसकी मदद करने लगी। उन सभी ने उसे तुरंत ही उस स्थान पर पहुंचा दिया। जहां पर वह केदारनाथ धाम मौजूद था।यह ज्योतिर्लिंग पर्वतराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित था। पुराणों और शास्त्रों में केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा का बारंबार वर्णन किया गया है।इस चोटी के पश्चिम भाग में पुष्य मति मंदाकिनी नदी के किनारे केदारेश्वर महादेव मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध था।यह स्थान मूल रूप से सिद्ध देवताओं, तपस्या इत्यादि के लिए बहुत ही अधिक प्रसिद्ध था। यहां के मठाधीश से उन्होंने वह कथा सुनी थी कि कई हजार वर्षों तक तपस्वी!श्री नर और नारायण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की थी। तपस्या से सारे लोको में उनकी चर्चा होने लगी। चराचर के पितामह ब्रह्मा जी और विष्णु जी भी महा तपस्वी नरनारायण के तप की प्रशंसा करने लगे। अंत में भगवान शिव ने उनकी कठिन साधना से प्रसन्न होकर उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिए। नर और नारायण भगवान भोलेनाथ के दर्शन से उनकी पूजन करते हुए वर मांगने को जब कहा तो उन्होंने कहा, देवाधिदेव महादेव जी आप हम पर प्रसन्न हैं तो भक्तों के कल्याण के लिए सदैव अपने स्वरूप को यहां स्थापित करें और इस प्रकार केदार पर केदारनाथ ज्योतिर्लिंग सदैव के लिए बन गया। यहां दर्शन पूजन करने से भक्तों को अलौकिक। फलों की प्राप्ति के साथ शिव भक्ति और मोक्ष की प्राप्ति भी होती थी। इसी कारण से अब उसी स्थान पर अघोरा ने। केदारी नाम की एक योगिनी शक्ति की साधना की और उन्हें प्रसन्न करते हुए एक और ब्राह्मण आत्मा की मुक्ति करवाई। केदारी नाम की योगिनी ने उन्हें अब भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की यात्रा करने को कहा।अब उस स्थान के लिए यह निकल पड़े जो वर्तमान में पुणे से लगभग 100 किलोमीटर दूर सहयाद्री की पहाड़ी पर स्थित था।इस? ज्योतिर्लिंग पर पहुंचकर उन्हें यहां की प्रसिद्ध कथा का ज्ञान हुआ। प्राचीन काल में भीम नाम के एक महा प्रतापी राक्षस थे। वह कामरु प्रदेश में अपनी मां के साथ रहते थे। यह कामरूप प्रदेश असम था। यह महाबली राक्षस रावण के भाई कुंभकरण का पुत्र था, लेकिन उसने अपने पिता को कभी नहीं देखा था। क्योंकि होश संभालने से पूर्व ही कुंभकरण का वध भगवान श्रीराम ने कर दिया था। अपने अभीष्ट की प्राप्ति के लिए। 1000 वर्ष तक इसने कठिन तपस्या की ताकि वह हरि का वध कर सकें। तब ब्रह्माजी ने उसे लोक विजई होने का वरदान दिया। उसने देवलोक पर आक्रमण कर इंद्र आदि सभी देवताओं को वहां से बाहर निकाल दिया। अब भीम का पूरा अधिकार क्षेत्र पर हो गया। उसने श्री हरि को भी युद्ध में परास्त किया। फिर वह! कामरूप के परम शिव भक्त राजा सुदक्षिण पर आक्रमण करने गया । उनके सभी सेना मंत्रियों और अनुचर सहित उन सब को बंदी बना लिया। इस प्रकार उसने सभी लोगों को अपना अधिकार जमा कर धार्मिक कृत्य को बंद करवा दिया। उसने यज्ञ दान, तप आदि सभी कर्म रोक दिए। इन सब अत्याचारों के कारण सभी भगवान शिव की शरण में गए। तब भगवान शिव ने कहा, मैं शीघ्र ही उस अत्याचारी राक्षस का संहार करूंगा। उसने मेरे प्रिय भक्त कामरूप नरेश को सेवाको सहित बंदी बना रखा है। वह अत्याचारी अब और अधिक जीवित रहने योग्य नहीं। भगवान शिव से यह आश्वासन पाकर सभी देवता और ऋषि मुनि वापस अपने स्थान लौटा है। इधर राक्षस भीम के बंदी गृह में पड़े हुए राजा ने भगवान शिव का ध्यान किया। वे अपने सामने पार्थिव शिवलिंग रखकर अर्चना कर रहे थे। ऐसा करते देख क्रोध से भरे राक्षस भीम ने अपनी तलवार से उस पार्थिव शिवलिंग पर प्रहार किया, किंतु उसकी तलवार का स्पर्श उस लिंक को हो ही नहीं पाया। उसके भीतर से साक्षात शंकर जी प्रकट हुए और उन्होंने अपनी हुंकार मात्र से उस राक्षस को जलाकर भस्म कर दिया। भगवान शिव ने कहा, यह स्थान अब परम पवित्र पूर्ण क्षेत्र बन जाएगा और यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास करूंगा क्योंकि भीम का मैंने वध किया इसलिए भीमेश्वर के नाम से यह ज्योतिर्लिंग प्रसिद्ध होगा। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा अनंत है और अमोघ फल प्रदान करने वाला है। इसी स्थान पर अघोरा ने बैठकर फिर भीमा नाम की योगिनी की साधना की। और भीमा को उन्होंने प्रश्न किया। भीमा की शक्ति के कारण एक और ब्राम्हण की मुक्ति हो सकी और भीमा से आज्ञा लेकर अब वह चल दिए। विश्वनाथ के ज्योतिर्लिंग की ओर जो कि काशी में स्थित है। इस स्थान की महिमा पहले से ही अनंत मानी गई है क्योंकि काशी स्वयं भगवान शिव की वास स्थली मानी जाती है। यह स्थान सर्व प्रसिद्ध था। इस स्थान पर भगवान शंकर ने।अपनी कई सारी लीलाएं पहले ही रची हुई थी। इसीलिए इस स्थान को प्रसिद्ध माना जाता था। भगवान शिव का यह धाम इसलिए प्रसिद्ध था क्योंकि कहते हैं। इसे भगवान शिव ने अपने लिए ही रखा था। उनके त्रिशूल पर यह नगरी स्थित थी।इसे आध्या स्थली भी कहा जाता है। भगवान विष्णु ने इसी स्थान पर सृष्टि कामना से तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। अगस्त्यमुनि ने भी इसी स्थान पर अपनी तपस्या द्वारा भगवान शिव को संतुष्ट किया। भगवान शंकर ने उनके कान में तारक मंत्र का उपदेश किया था। कहते हैं। कोई भी व्यक्ति काशी में मृत्यु को प्राप्त करें तो निश्चित रूप से स्वर्गवास प्राप्त करता है और शिव लोक उसे मिलता है। कहते हैं भगवान शंकर पार्वती से विवाह करके कैलाश पर्वत रह रहे थे। लेकिन वहां पिता के घर में ही विवाहित जीवन बिताना पार्वती जी को अच्छा नहीं लगता था। एक दिन उन्होंने भगवान शिव से कहा, आप मुझे अपने घर ले चलिए यहां रहना मुझे अच्छा नहीं लगता। सारी लड़कियां शादी के बाद अपने पति के घर जाती हैं। मुझे पिता के घर में ही रहना पड़ रहा है। तब भगवान शिव ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। माता पार्वती के साथ व पवित्र नगरी काशी आ गए और यहां आकर विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन पूजन द्वारा मनुष्य समस्त पापों से छुटकारा पा जाता है। प्रतिदिन नियम से श्री विश्वनाथ के दर्शन करने वाले भक्तों के योग क्षेम का समस्त भार भगवान शंकर स्वयं अपने ऊपर ले लेते हैं। ऐसा भक्त उनके परमधाम का अधिकारी बन जाता है इस प्रकार। इस स्थान पर। भगवान शिव के विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई थी यह कथा सुनकर अब अघोरा ने विश्व योगिनी नाम की। महाशक्तिशाली योगिनी की साधना करने बैठ गए जो गुप्त रूप से यहां विद्यमान थी। उनकी साधना के द्वारा विश्व योगिनी प्रसन्न हुई और उन्होंने एक और ब्राह्मण की मुक्ति करवाई इसी के साथ उन्होंने अब।कहा कि तुम्हें अगली यात्रा त्रिंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की करनी होगी? यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रांत में नासिक से 30 किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में तुम्हें जान वही प्राप्त होगा। तब अघोरा ने अपनी शक्तियों के माध्यम से त्रिंबकेश्वर पहुंचकर एक विद्वान ब्राम्हण से। शिवपुराण में वर्णित कथा को सुना। उस ब्राह्मण ने कहा, एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियां किसी बात पर उनकी पत्नी अहिल्या से नाराज हो गई। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपकार करने के लिए प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके नियमित भगवान गणेश की आराधना की। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर गणेश जी उनसे वर मांगने को कहने लगे। तब उन ब्राह्मणों ने कहा, प्रभु यदि आप हम पर प्रसन्न हो तो किसी प्रकार ऋषि गौतम को यहां के आश्रम से बाहर निकाल दें। उनकी यह बात सुनकर गणेश जी ने उन्हें ऐसा वर मांगने से के लिए समझाया। किंतु वह सब आग्रह पर अटल है। अंततः गणेश जी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी। अपने भक्तों का मन रखने के लिए एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत में जाकर रहने लगे। गाय को फसल चरते देख ऋषि ने उसे भगाने के लिए उसे हाथ में लिए घास त्रण से मारा . उनके स्पर्श होते ही वह गाय वही मर कर गिर पड़ी। अब तो हाहाकार मच गया। सारे ब्राह्मण एकत्र होकर को हत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दुखी हो गए। अब उन सारे ब्राह्मणों से उन्होंने कहा कि तुम्हें यह आश्रम छोड़कर कहीं दूर चले जाना होगा। गौ हत्यारे के निकट रहने से पाप लगेगा। वह वहां से एक कोस दूर जाकर रहने लगे, किंतु उन ब्राह्मणों ने वहां भी उनका रहना दूभर कर दिया। वह कहने लगे गौ हत्या के कारण तुम्हें अब वेद पाठ और यज्ञ आदि कार्य करने का कोई अधिकार नहीं रह गया है। अत्यंत अनन्य भाव से ऋषि गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि आप लोग मेरे प्रायश्चित का कोई उद्धार का कोई उपाय बताएं। उन्होंने कहा गौतम तो अपने सब पापों को सब को बताते हुए तीन बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करो। फिर लौटकर यहां पर एक महीने का व्रत करो। इसके बाद ब्रम्हगिरी की 101 परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी मुक्ति होगी अथवा गंगा जी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंग ओं से शिवलिंग से शिवजी की आराधना करो। उसके बाद पूरा गंगा जी में स्नान करके इस ब्रम्हगिरी की 11 बार परिक्रमा करो। फिर 100 घडो के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंग को स्नान करने से ही तुम्हारा उद्धार होगा। ब्राह्मणों के कथन अनुसार महर्षि गौतम सारे कार्य पूरे कर के पत्नी के साथ पूर्णता तन्मय होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न हो भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर मांगने को कहा। ऋषि गौतम ने उनसे कहा, मैं यही चाहता हूं कि आप मुझे गौ हत्या के पाप से मुक्त कर दे। भगवान शिव ने कहा गौतम तुम सर्वथा निष्पाप गौ हत्या का अपराध तुम पर जानबूझकर लगाया गया है । वैसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दंड देना चाहता हूं। इस पर महर्षि गौतम ने कहा, प्रभु उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आप का दर्शन प्राप्त हुआ। अब उन्हें मेरा परम हितकारी समझ कर उन पर आप क्रोध ना करें। बहुत से मुनियों और देव गणों ने वहां एकत्र होकर गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान शिव से सदा यही विराजमान होने की प्रार्थना कि वह उनकी बात मान कर वहां त्र्यंबक ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थित हो गए। गौतम जी द्वारा लाई गई गंगा जी वहां पर गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगी। यह ज्योतिर्लिंग समस्त पुण्य को प्रदान करने वाला है। इस प्रकार उस ब्राम्हण से वहां की कथा सुनकर अघोरा बहुत प्रसन्न हुआ और अब उस स्थान पर उन्होंने एक बार फिर से महायोगिनी की साधना शुरू कर दी। यहां पर मौजूद। त्रियंबकी नाम की योगिनी की साधना करने पर उन्हें। उनके कई सारे पापों से मुक्ति भी मिली जो पूर्व काल में उन्होंने किए थे जैसे यहां पर ऋषि को मिली थी। अब एक और ब्राह्मण मुक्ति को प्राप्त कर चुका था। अब उन्होंने! साधना करने के दौरान एक गलती कर दी। तभी। योगिनी ने क्रुद्ध होकर कहा। तुम्हें असाध्य रोग हो गया है क्योंकि तुमने मेरी साधना सही प्रकार से नहीं की है। इस पर अघोरा ने कहा, मेरे शरीर पर! विभिन्न प्रकार के और रोग उत्पन्न हो गए हैं, मेरी त्वचा जल रही है। इसलिए आप मेरी रक्षा का कोई उपाय बताइए, वह कहने लगी जाओ। अब अगली यात्रा में वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पहुंचो। वहां तुम्हें इस रोग से मुक्ति मिलेगी और?ब्राह्मण हत्या से तुम्हारा जीवन मुक्त हो सकेगा। इस प्रकार अब अघोरा ने शुरू की वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की यात्रा। इस प्रकार! अब तक उन्होंने 8 ज्योतिर्लिंगों की यात्रा कर ली थी और नवी की उन्हें अब तैयारी करनी थी। आगे क्या घटित हुआ जानेंगे अगले भाग में? 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12 ज्योतिर्लिंगों की पौराणिक और तांत्रिक कथाएं अघोरा तांत्रिक भाग 3
Dharam Rahasya
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