16 सोमवार व्रत से शिव भक्ति प्राप्त होना [email protected]
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज का यह वीडियो भगवान शिव के सोलह सोमवार व्रत और उससे संबंधित एक अनुभव को दर्शाता है जहां पर एक साधिका अपने जीवन में कैसे भगवान शिव की भक्ति प्राप्त करती हैं? वह भी किसी अन्य कार्य के प्रयास से, चलिए जानते हैं इस अनुभव को और पढ़ते हैं इनके पत्र को।
नमस्कार गुरु जी!
मैं अपने आध्यात्म की छोटी सी यात्रा आपको बताना चाहती हूं जो कि शुरू हुई थी। भगवान शिव के सोलह सोमवार व्रत से यह व्रत मैंने 18 वर्ष की उम्र में किया था। मुझे किसी लड़के से बहुत गहरा प्रेम हो गया था। गुरु जी मैं उन्हें पति के रूप में पाने हेतु बहुत जोश के साथ यह व्रत शुरू की थी। मुझे उस नाजुक उम्र में पूरा विश्वास था कि मैं इस संकल्प में सफल हो जाऊंगी। सब लोग प्रेमियों को सच में पागल ही समझते हैं यहां गुरु जी, लेकिन बहुत कम लोग ही जान पाए हैं। गुरु जी यह की प्रेम मार्ग और आध्यात्मिक मार्ग मनुष्य को मोड़ता है। मेरे साथ भी यही हुआ था। मुझे उस व्रत से वह लड़का तो नहीं मिला लेकिन मुझे मेरे शिव भगवान मिल गए।
व्रत तो सोलह सोमवार का था, परंतु मेरा व्रत मैंने पूरे 1 वर्ष तक जारी रखा। पता नहीं गुरु जी यह 1 वर्ष का व्रत कब सिद्ध हो गया। मुझे पता ही नहीं चला। सच कह रही हूं। गुरु जी भगवान शिव सच में बड़े सच्चे बाबा है। थोड़ी सी भक्ति में बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। अपने भक्तों से जुड़ जाते हैं। ज्यादा पूजा पाठ नहीं मांगते। बस दिल के दिल से तार जोड़ देते हैं। तो हुआ यूं कि हमारा पूरा परिवार नागपुर में रहता है। अगस्त का महीना लगने ही वाला था कि मेरे पिताजी ने उज्जैन महाकाल बाबा के दर्शन का मन बनाया। मैं भी उत्सुक थी। दर्शन के लिए मेरे व्रत को 1 वर्ष बीत चुका था तो सोचा चलो बाबा के दर्शन में बड़ा आनंद आएगा। रक्षाबंधन के अवसर पर मेरे पिताजी हम सबको उज्जैन लेकर गए। उज्जैन में हमारा पुश्तैनी मकान है। हमारे सभी संबंधी वहीं पर रहते हैं। तो रक्षाबंधन के पर्व पर हम हर साल वही जाकर मनाते हैं। वह साल मेरा जो पर्व था, वह अगस्त महीने में इतना खास हो जाएगा। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। मेरी व्रत की मनोकामना तो पूरी नहीं हुई थी। बस बाबा पर आस्था बनी हुई थी कि आज नहीं तो कल मेरी प्रार्थना भगवान शिव तक जरूर पहुंच जाएगी। बस इसी विश्वास के साथ वह घड़ी आई जब मेरा पांव बाबा महाकाल के मंदिर में पड़ा। मैं मेरे पिताजी मेरे भैया ताऊ जी हम सभी महाकाल मंदिर के प्रांगण से होते हुए महाकाल मंदिर के गर्भ गृह के अंदर जा पहुंचे। बस यहीं पर चमत्कारिक छोटी सी घटना घटी उसके बाद मेरा भगवान शिव की ओर। ज्यादा! गहरी होती चली गई।
गुरु जी की यह बात 2008 ईस्वी की है जब उन दिनों महाकाल के गर्भ गृह में सभी भक्तों को महाकाल के अभिषेक के लिए जाने दिया जाता था। अभी उतना नहीं जाने दिया जाता है। वह अभिषेक मेरा पहला अभिषेक था। उसके बाद मैं महाकाल मंदिर बहुत बार मेरा जाना हुआ पर हर बार गर्भ ग्रह के अंदर जाना संभव नहीं हो पाया तो मुझे 1 दिन का अभिषेक बहुत रोमांचित कर देता है। वह कुछ ऐसा ही जैसा कि मैंने बताया। हमारा पूरा परिवार महाकाल मंदिर दर्शन हेतु गया था। तब भगवान महाकाल बाबा जी के अभिषेक हेतु मेरे ताऊ जी ने जल का कलश मेरे पिताजी को ला करके दिया। मैं उत्सुक थी कि अभिषेक का कलश मुझे मिलेगा। मगर मिला मेरे पिताजी को मैं पिता के आगे कुछ बोल नहीं पाई। क्या बोलती यह कलश मुझे दे दो। अच्छा नहीं लगता सोचा कि भगवान की जैसी इच्छा। मुझे प्रणाम करके ही आगे बढ़ना चाहिए। बस यही सोचते सोचते हम सभी गर्भ ग्रह के अंदर प्रवेश कर गए। जैसे ही गर्भ गृह में प्रवेश किया। वहां के स्थाई पंडित जी ने मेरी ओर देखते हुए कहा, सिर्फ ओम नमः शिवाय का जाप करो। ऐसा सुनकर मेरे पिताजी को ज्यादा कुछ फर्क नहीं पड़ा। मगर मैंने मन में बार-बार वह बहुत ही अद्भुत पल था। वह मेरे लिए मैं महाकाल भगवान को अपना इतने करीब देख पा रही थी। मैं भगवान शिव को देख रही थी। यह साक्षात शिव हम सब को देख रहे थे। यह अब जाकर पता चला। हमारे बीच जो कुछ भी प्रसंग चल रही थी। यह सब भगवान शिव देख और सुन रहे थे। मेरे पिताजी जो कभी पूजा पाठ नहीं करते थे, उनके पास अभिषेक का कलश आ गया था और मैं मन ही मन उदास हो गई थी। यह सोच कर कि कि कैसी लीला है। यह तेरे ऊपर वाले जिसने साल भर कठोर व्रत किया, उसे आपके पास आकर भी अभिषेक करने का अवसर नहीं मिल पाया। इसी दुख हो चुप चाप सहते हुए जैसे ही पंडित जी हमारी पूजा करवाते जा रहे थे। हम सभी महाकाल बाबा को हाथ जोड़े ओम नमः शिवाय का जाप करते हुए आगे बढ़ रहे थे। कि तभी बारी आई जल के अभिषेक की आगे की पूजा को पढ़ाते हुए पंडित जी ने मेरे पिताजी को कहा, चलिए अब अभिषेक प्रारंभ कीजिए। बस इसी पर मैंने भगवान शिव की ओर देखा और कहा प्रभु आपको जलाभिषेक तो नहीं कर पाई। पर यहां तक आ गई हूं तो मेरा प्रणाम अवश्य स्वीकार कीजिएगा। बस इतना ही मैंने कहा, अपने दोनों हाथ जोड़े और बाबा शिव जी के आगे कि या अचानक न जाने कैसे मेरे पिता के अभिषेक का कलश?
अपने आप ही उन्होंने मुझे बड़ी प्रसन्नता के साथ दे दिया और बड़े ही प्रेम से कहा न जाने क्यों बेटी मुझे ऐसा लग रहा है जैसे महाकाल बोल रहे हैं कि अभिषेक तुम अपनी बेटी से करवाओ। मैं उसके हाथ से ही तुम्हारे अभिषेक को स्वीकार कर लूंगा। ले बेटी यह कलश ले और करो महाकाल भगवान का अभिषेक इतना सुनते ही मेरी खुशी और आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि कैसे बाबा महाकाल ने मेरी आस्था को भी पूरा किया और मेरे पिता को भी निराशित नहीं होने दिया। अब कलश मेरे पास मेरे हाथों में अपने आप ही आ गया जो सोचा ही नहीं था। वह होने जा रहा था। बड़ा ही अद्भुत और जादुई पल था वह मेरे लिए क्योंकि मेरे मन की यह बात किसी को भी नहीं मालूम कि कि मैं कितनी उदास हो गई थी। सिवाय भगवान शिव के जो सबके मन की बात चुपचाप जान लेते हैं। सच में ईश्वर अंतर्यामी होते हैं। मन में कितनी गहराई बातों को वह समझ लेते हैं। उस दिन मैंने भगवान शिव को अपने हाथों से जलाभिषेक किया। मेरे प्रेम और विश्वास की लाज भगवान शिव ने जो रखी उसको पाकर मैं गदगद हो गई थी। यह भी मान गई कि ईश्वर और उनकी माया उनके चमत्कार सच्चे भक्तों के लिए कभी भी और कहीं भी हो सकते हैं। इसमें कहीं कोई संदेह नहीं। इस जादुई घटना के बाद मुझे इतना विश्वास प्रबल हो गया है। गुरुजी की ईश्वर हमें कुछ वरदान दे या ना दे मगर हमारी आस्था को सदैव बचा लेते हैं। भक्तों का सच्चा विश्वास की। ईश्वर को भक्तों से जोड़े रखता है। जय श्री महाकालेश्वर बाबा!