नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। एक बार फिर से मैं आप लोगों के लिए मंदिरों और मठों की गोपनीय कहानियां लेकर प्रस्तुत हुआ हूं। आज की हमारी जो कथा है वह भगवान आनंद भैरव की है जो कि भगवान शिव का ही भैरव स्वरूप है यह कथा उनकी और उनकी एक शक्तिशाली केसी पिशाचिनी की कथा है। चलिए शुरू करते हैं।
हरिद्वार में भगवान आनंद भैरव का एक प्रसिद्ध मंदिर है। जब यहां मंदिर नहीं बना था, इससे भी कई हजार साल पहले की यह कथा है। क्योंकि जिस भी स्थान पर मंदिर बनते हैं वह स्थान पूर्व काल में अवश्य ही कोई सुप्रसिद्ध मठ या मंदिर का इलाका होता था। इसी कारण से उस क्षेत्र में बाद में मंदिरों का निर्माण हुआ है। ऐसा माना जाता है कि आनंद भैरव हरिद्वार के कोतवाल कहलाते हैं। क्योंकि हरिद्वार की जो अधिष्ठात्री देवी है, यह माया देवी कहलाती हैं। वर्तमान समय में इसी माया देवी मंदिर में स्थित, आनंद भैरव मंदिर आजकल सन्यासियों द्वारा प्रसिद्ध जूना अखाड़े द्वारा चलाया जाता है।
इसी स्थान पर जब एक घनघोर वन था, यहां पर एक ऋषि थे जिन का नाम गुण नाथ था। गुण नाथ अपने समय के भगवान भैरव को सिद्ध करने वाले प्रसिद्ध ऋषि माने जाते थे। उनकी प्रसिद्धि सुनकर दूर से एक व्यक्ति जिसका नाम मलय था, उनसे मिलने के लिए आया। क्योंकि मलय ने गुण नाथ के बारे में बहुत कुछ जाना और सुना था। गुण नाथ की महिमा चारों ओर फैली हुई थी। सभी कहते थे कि उन्हें आनंद भैरव की सिद्धि है। जो कि इस नगर के कोतवाल भी हैं। आनंद भैरव बहुत ही विशिष्ट स्वरूप है भगवान भैरव का। मलय, गुण नाथ के पास पहुंचते हैं और उन्हें प्रणाम करके उनसे अपने हृदय की बात बताने के लिए निवेदन करते हैं। गुण नाथ कहते हैं अवश्य ही पुत्र मलय किस उद्देश्य हेतु तुम मुझसे मिलने के लिए आए हो? इस पर मलय कहता है प्रभु अगर आप मेरे गुरु बने और मुझे आनंद भैरव जी की सिद्धि करवा दें। तो मैं यह अपना सौभाग्य समझूंगा।
गुण नाथ ने कहा अवश्य अगर तुम शिष्य बनने आए हो? तो? मैं तुम्हें इससे पहले यह बता दूं कि दोषों से तुमको कैसे बचना है? विभिन्न प्रकार के दोष साधनाओं में उत्पन्न हो जाते हैं। अगर उन दोषों से नहीं बचा जाता है तो फिर दोष तुम्हें समाप्त कर देते हैं। यह दोष बहुत ही दुर्लभ होते हैं और मस्तिष्क और शरीर पर हावी होकर व्यक्ति का अस्तित्व ही नष्ट कर देते हैं। इससे पहले कि तुम भगवान आनंद भैरव की सिद्धि करो और उनके गोपनीय विधान को प्राप्त करो मैं तुम्हें एक कथा सुना कर सावधान करना चाहता हूं। मलय ने कहा, अवश्य ही गुरुदेव! मैं वह कथा सुनना चाहूंगा जिसके माध्यम से आप मुझे सावधान करना चाहते हैं।
गुण नाथ जी ने कहा, मेरे एक मित्र थे। जो की बहुत ही उत्तम कोटि के साधक थे। उनका नाम सुलभ नाथ! था। सुलभ नाथ! अपने आप में एक विशिष्ट सिद्धि रखने वाले। बड़ी-बड़ी सफेद दाढ़ी और सिर पर सफेद बाल वाले हाथ में दंड लिए घूमा करते थे। उनको भगवान आनंद भैरव की प्रत्यक्ष सिद्धि थी। ऐसा देखने में कम ही आता है जब किसी देवता की किसी व्यक्ति को प्रत्यक्ष सिद्धि हो। इसी कारण से जब भी किसी को कोई समस्या आती वह सन्यासी सुलभ नाथ के पास अवश्य ही पहुंच जाता था। 1 दिन सुलभ नाथ ऐसे ही घूम रहे थे। तभी नगर का एक व्यक्ति उनके पास दौड़ता हुआ आता है और कहता है! गुरुवर एक समस्या आन पड़ी है। कृपया हमें उस समस्या से मुक्त करवाइए। इस पर सुलभ नाथ जी कहते हैं, अवश्य ही क्या समस्या है?
उन्होंने कहा, मैं अपनी पुत्री का विवाह करके वापस आ रहा था। तभी मुझे रास्ते में मेरी ही पुत्री खड़ी हुई दिखाई दी। मैंने उससे पूछा, मैंने तो तुम्हारा विवाह कर दिया था। फिर तुम यहां पर वापस खड़ी हुई क्यों दिख रही हो? इस पर वह हंसने लगी। उसने आकाश में एक नीले रंग का बवंडर बना दिया। उसे देखकर मेरे साथ बरात में गए। बहुत सारे लोग घबरा गए। सब लोग यह सोचने लगे कि यह क्या कर रही है। यह किस तरह की माया रच रही है और इसका तो विवाह हो गया था। फिर यह इस निर्जन स्थान पर क्या कर रही है? आप तुरंत ही वहाँ चलिए और देखिए वह अभी भी उसी स्थान पर है। इस पर सन्यासी सुलभ नाथ जी ने कहा, अवश्य ही मैं उस स्थान की ओर चलूंगा। सन्यासी सुलभ नाथ उस व्यक्ति के साथ में उस स्थान की ओर गमन कर जाते हैं।
थोड़ी ही देर बाद वह उसी स्थान पर पहुंच जाते हैं। जहां पर उस व्यक्ति की पुत्री आकाश में एक बवंडर सा बना रही थी। जिसे देखकर सभी लोग भयभीत थे। आसपास के लोग उस स्थान पर आकर खड़े हो गए थे जिन्हें देखकर वह और भी ज्यादा जोर जोर से हंस रही थी। उसको देखकर सभी घबरा जाते कि आखिर इस पर क्या किसी प्रेत या पिशाच का साया तो नहीं है? अब सन्यासी सुलभ नाथ उस स्थान पर पहुंच जाते हैं और अपने मंत्रों से अभिमंत्रित करके जल उस पर फेंकते हैं। जल फेंके जाने पर वह स्त्री जोर जोर से हंसने लगती है और कहती है तेरे इन मंत्रों का मुझ पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ने वाला। ऐसे छोटे-मोटे तंत्र तो मैं यूं ही तोड़ देती हूं। यह देखकर सन्यासी सुलभ नाथ सोच में पड़ जाते हैं। सुलभ नाथ अपने अन्य मंत्रों का प्रयोग कर उस पर विभिन्न प्रकार की शक्तियों का प्रयोग करते हैं। पर सारी की सारी बेअसर हो जाती हैं।
ऐसा सुलभ नाथ के साथ पहली बार हो रहा था। कि कोई उनकी टक्कर का उन्हें मिला था। यह देखकर अंततोगत्वा जब कोई मार्ग नहीं रहता तब सुलभ नाथ आनंद भैरव मंत्र का प्रयोग कर अपने दंड को उस कन्या के ऊपर चला देते हैं। दंड उस कन्या के शरीर पर जाकर लगता है। जोर से चिल्लाती हुई वह कन्या बेहोश हो जाती है। तभी आकाश में उन्हें एक दृश्य दिखाई देता है। वहां पर एक शक्तिशाली पिशाचिनी खड़ी होती है। वह कहती है मैं इसे नहीं छोड़ने वाली। मैं इसकी मृत्यु अवश्य कर दूंगी। मेरा यही बदला है। तू यहां से चला जा अन्यथा मैं तुझे भी समाप्त कर दूंगी। याद रख आनंद भैरव भी तुझे नहीं बचा पाएंगे। यद्यपि तूने अपनी शक्ति का प्रयोग कर मुझे कुछ देर के लिए इसके शरीर से अलग कर दिया है। लेकिन फिर भी मैं यह दावा करती हूं कि तू मुझे नहीं रोक सकेगा। सन्यासी सुलभ नाथ किसी पिशाचीनी के मुंह से ऐसे शब्द सुनकर आश्चर्य में पड़ गए थे।
उन्होंने तो सोचा भी नहीं था कि कोई पिशाचीनी इतनी अधिक शक्तिशाली हो सकती है। आखिर उसमें इतनी अधिक शक्ति आई कहां से है? क्योंकि? कोई भी नकारात्मक शक्ति इतनी अधिक शक्तिशाली नहीं हो सकती जो स्वयं भैरव का सामना कर सके। इस पर सन्यासी सुलभ नाथ उसे कहते हैं। अवश्य ही तुम इस कन्या का वध करने में समर्थ हो। लेकिन मुझे यह बात तो पता चले कि आखिर तुम इसे क्यों मार डालना चाहती हो? मैं यह जानना चाहता हूं कि आखिर तुम्हारी इस से दुश्मनी क्या है? इस बार हंसते हुए वह पिशाचीनी कहती है। अगर तू मेरी कथा जानना ही चाहता है तो ठीक है, मैं तुझे अपनी कथा सुनाती हूं। किंतु तुझे मुझसे यह वादा करना होगा कि तू मेरे मार्ग में नहीं आएगा।
इस पर सन्यासी सुलभ नाथ कहता है अगर मुझे तुम्हारी कथा। सत्य प्रतीत हुई तो अवश्य ही मैं तुम्हारे मार्ग में नहीं आऊंगा। लेकिन अगर मुझे ऐसा लगता है कि तुम किसी निर्दोष को दंड दे रही हो तो फिर मैं तुम्हारे ही सामने खड़ा रहूंगा। इस पर? पिशाचीनी कहती है, कोई बात नहीं, मैं समझ गई, तू नहीं हटेगा। पर तेरी अगर यह इच्छा है कि मैं तुझे अपनी कथा सुनाऊं तो चल सुन ले। मेरा नाम केसी है? मैं बहुत ही शक्तिशाली पिशाचिनी हूं। इस पृथ्वी पर मुझेसे अधिक शक्तिशाली दूसरी कोई पिशाचीनी नहीं है। किंतु मैं पिशाचिनी कैसे बनी? यह एक! बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। मैं अब उसी के बारे में तुम्हें बताती हूं। आगे पिशाचिनी ने क्या कहा हम लोग जानेंगे भाग 2 में तो अगर आपको यह कहानी पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।
आनंद भैरव और शक्तिशाली केसी पिशाचिनी भाग 2
आनंद भैरव और शक्तिशाली केसी पिशाचिनी भाग ३
आनंद भैरव और शक्तिशाली केसी पिशाचिनी भाग 4
आनंद भैरव और शक्तिशाली केसी पिशाचिनी 5 वां अंतिम भाग