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कंकाल नाथ की सिद्धि यात्रा भाग 2

कंकाल नाथ की सिद्धि यात्रा भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य पर आपका एक बार फिर से स्वागत है कंकाल नाथ की सिद्धि यात्रा में अभी तक आपने जाना किस प्रकार से एक व्यक्ति जो शरीर से बहुत ही कमजोर पैदा होता है उसके मन में एक विश्वास आ जाता है कि उसे कंकाल भैरव की सिद्धि करनी है अपनी इस यात्रा में वह गुरु को ढूंढने की कोशिश करता है और एक ऐसे जंगल में पहुंचता है जहां पर एक साधु अपनी विशेष प्रकार की पूजा या तपस्या कर रहा होता है ।उसके परामर्श से वह हनुमान जी की एक मूर्ति को लाने के लिए जाता है जहां पर हनुमान जी की मूर्ति उसकी परीक्षा लेती है और वह एक झाड़ी में फंस जाता है झाड़ियां उसे निगलने की कोशिश करती है उसकी जिंदगी को नष्ट करने की कोशिश करती है आइए जानते हैं आगे क्या हुआ ?जैसा कि अभी तक आपने पहले भाग में जान ही लिया है कंकाल नाथ झाड़ियों में फंसा हुआ था और अपनी मदद के लिए इधर उधर अपनी सहायता की कोशिश कर रहा था लेकिन भाग्य उसका सहारा बिल्कुल भी नहीं दे रहा था ।

प्रतिक्षण झाड़ियां उसके शरीर को कसती जा रही थी एक झाड़ी ने उसकी गर्दन को कसना शुरू कर दिया अब उसके लिए सांस लेना भी मुश्किल होने वाला था कंकाल नाथ ने सोचा कि लगता है हनुमान जी की मूर्ति उसे नहीं मिल पाएगी और उसे मृत्यु हो जाएगी ।तभी वह अपने इष्ट देव यानी कि भैरव जी को याद करने लगता है भैरव जी को याद करते करते वहां पर एक कुत्ता काले रंग का प्रकट हो जाता है जो कुत्ता जोर जोर से भोकने लगता है । कंकाल नाथ उसकी ओर देखता है और बड़े ही विनम्र तरीके से उसकी और नजर डालते हुए उसे भगवान भैरव का स्वरूप समझ कर के उससे मन ही मन प्रार्थना करने की कोशिश करता है क्योंकि उसे मालूम था कि कहीं पर भी काला कुत्ता जो पूरी तरह से काला होता है वह भैरव जी का ही स्वरूप माना जाता है । इसलिए वह उसकी तरफ बढ़ी निगाहों से देखने लगता है । इधर से वह कुत्ता भोंकते भोंकते तेजी से कंकाल नाथ की ओर दौड़ा तभी वहां पर एक छोटा सा खरगोश आता है और उन्ही झाड़ियों में फंस जाता है जिसमें कंकाल नाथ फंसा हुआ था । कंकाल नाथ उसको भी देख कर के यही सोचता है कि मेरी तरह यह भी विशेष तरह से इन चीजों में फस गया है अब उसके सामने कोई विकल्प नहीं था आखिर कंकाल नाथ करता क्या ?इधर क्रोध में भरी हुई उस मूर्ति की शक्ति के कारण कंकाल नाथ झाड़ियों में लगातार फसता चला जा रहा था उसका शरीर लगातार कसता ही जा रहा था और उसे लग रहा था कि यही झाड़ियां उसके शरीर को दबा करके उसकी मृत्यु कर देंगी ।

इसी बीच खरगोश भी फस जाता है खरगोश को देखकर कुत्ता बड़ी तेजी से उस ओर दौड़ता है और खरगोश को अपना शिकार बनाने की कोशिश करता है लेकिन कुत्ता भी उस में धीरे-धीरे फसने लगता है लेकिन बहुत ही चतुराई से उस कुत्ते ने उन झाड़ियों को अपने दांतो से चबाना और काटना शुरू कर दिया जिसकी वजह से कंकाल नाथ के शरीर से चिपकी हुई उन विशेष प्रकार की झाड़ियों को अब उसके असर के कारण हटना शुरू हो गई थी । यानी कि अब वह धीरे-धीरे करके अपनी पकड़ ढीली कर रही थी कंकाल नाथ इस बात से प्रसन्न होता है ।तभी कंकाल नाथ के गर्दन में फंसी हुई जो बेल या डाली थी वह और जोर से कसने लगती है कंकाल नाथ इससे पहले कुछ करता वह खरगोश भी उन डालियों से छूटता हुआ कंकाल नाथ की गर्दन के पास आ जाता है । इसी वजह से कुत्ता एक बार फिर से उस खरगोश को अपना शिकार बनाने के लिए फिर से हमला करता है और अब की बार उसको खरगोश की जगह उस डाली की एक बेल उसके मुंह में आ जाती है जो कंकाल नाथ गले से लगातार कसती चली जा रही थी ।

कुत्ते ने एक बार फिर से बड़ी ही तीव्रता के साथ अपने दातों का प्रयोग करके उस बेल नुमा रस्सी को काट दिया जो झाड़ी के रूप में कंकाल नाथ को लगातार परेशान कर रही थी ।इस चमत्कार से वह बेल की जो है बड़ी सी डंडी टूट जाती है और कंकाल नाथ खांसते खांसते सांस लेता है उसे महसूस होता है कि शायद उसकी जान बच गई है लेकिन अभी भी वहां पर बहुत सारी झाड़ियां थी खरगोश भागता हुआ जंगल की ओर चला जाता है और वह कुत्ता भी वहां से चला जाता है ।कंकाल नाथ उस कुत्ते को दौड़ता हुआ देखता है और भैरव जी को प्रणाम करता है मन ही मन कि आपने मेरे प्राण बचा लिया लेकिन फिर से उस प्रतिमा के आधार पर एक बार फिर से झाड़ियां उसे और ज्यादा कसने लगती है । कंकाल नाथ के सामने कोई विकल्प नहीं था कंकाल नाथ अपनी बुद्धि का प्रयोग करता है कंकाल नाथ कहता है अवश्य ही अगर यह सारी प्रक्रिया इस मूर्ति के कारण हो रही है और यह मूर्ति हनुमान जी की है तो निश्चित रूप से हनुमान जी को रोकने की कोई विधि मुझे सोचने होगी वह भी तुरंत ही नहीं तो यह सारी झाड़ियां मेरा वध कर देगी मुझे मार डालेगी। इस बात को सोचते-सोचते अचानक से उसे समझ में आता है की हनुमान जी किसी भी देवी देवता के रोके नहीं रुकने वाले हैं लेकिन उनकी एक कमजोरी है और वह है श्री राम, कंकाल नाथ जोर-जोर से जय श्रीराम जय श्रीराम कहने लगता है अब धीरे-धीरे करके जितनी भी डाली है वहां पर थी वह उसके शरीर से हटने लगती है और ऐसा करते करते उसके शरीर से सारी डालियां निकल जाती हैं ।

कंकाल नाथ समझ जाता है कि हनुमान जी को केवल और केवल राम जी के द्वारा ही बांधा जा सकता है अन्यथा उन्हें बांधना संभव नहीं है वह लगातार जय श्रीराम जय श्रीराम बोलते हुए उस मूर्ति के पास जाता है और उस पूरी की पूरी प्रतिमा को उठा लेता है और उसे उठा कर के अपने कंधे पर रख लेता है .जय श्रीराम जय श्रीराम कहता हुआ वहां से आगे बढ़ने लगता है ।अभी तक जो मूर्ति विभिन्न प्रकार के चमत्कार दिखा रही थी वह एकदम पत्थर के मूर्ति बन चुकी होती है जो कुछ भी अपना असर नहीं डाल पा रही होती कंकाल नाथ बड़े ही रोब के साथ उस और बढ़ने लगता है ।क्योंकि वह जान चुका था कि अब हनुमान जी किसी भी प्रकार से उसे परेशान नहीं करने वाले हैं ऐसा करते-करते वह उस स्थान की ओर पहुंच जाता है वह उस जगह की और पहुंच जाता है जहां पर वह सिद्ध साधु बैठा हुआ था और वह साधु से जैसे ही देखता है बड़ी ही खुशी के साथ पेड़ पर कूदकर चढ़ जाता है और वहां से फिर से दो चार फल तोड़कर नीचे लेकर आ जाता है और सामने आकर बैठ जाता है खुशी से और मुस्कुराते हुए वह कहता है वाह मैं हनुमान जी का भक्त हूं ।

जो कार्य नहीं कर पाया तूने वह कार्य इतनी आसानी से कैसे कर दिया बता तेरे पास ऐसी कौन सी सिद्धि यह सकती है जिसकी वजह से तूने ऐसा कार्य संपादित कर लिया है ।कंकाली नाथ कहता है मेरा सारा कार्य मेरी बुद्धि ने किया है मुझे यह बात समझ में आ गई कि हनुमान जी को किसी भी प्रकार से रोका नहीं जा सकता है लेकिन हनुमान जी रामचंद्र जी के काज करने के लिए ही प्रकट हुए हैं इसलिए अगर उन्हें रोकना है और उनको अपने नियंत्रण में लेना है तो सिर्फ और सिर्फ श्री राम जी के सहारे ही उन्हें दिया जा सकता है ।इसीलिए मैं अभी तक श्री राम जय श्री राम जय श्री राम कहता हुआ चला आ रहा हूं और देखो इस शब्द कि इतनी शक्ति है कि हनुमान जी जो अभी तक झाड़ियों के रूप में मेरी परीक्षा ले रहे थे मैंने उन्हें रोक लिया है । कंकाल नाथ की बात सुनकर के वह साधु बहुत ही प्रसन्न हो जाता है और कहता है तूने वह कमाल कर दिया जो मैं कब से करना चाह रहा था इस मूर्ति को मेरे घर में मेरे छोटी सी कुटी के अंदर स्थापित कर दे कंकाल नाथ अपने कंधे पर रखी हुई मूर्ति पत्थर की बनी हुई हनुमान जी की मूर्ति उसके कुटिया के अंदर स्थापित कर देता है और कंकाल नाथ कहता है गुरुवर अब मुझे वह रास्ता बताइए किस प्रकार से मैं भैरव जी की सिद्धि कर सकता हूं मुझे श्री कंकाल भैरव नाथ जी की सिद्धि करनी है ।

इस पर वह मुस्कुराता हुआ साधु कहता है कि सुनो मैं तुम्हें एक मार्ग बताता हूं यहां से तुम दक्षिण दिशा की ओर जाओ जहां पर एक पुराना शमशान है उस शमशान में जाने के बाद में वहां पर एक विशेष तरह की स्त्री रहती है जो बड़ी ही सिद्ध साधिका है उसके पास जाकर के तुम वह विद्या सीख सकते हो मैं तुम्हें मार्ग बता रहा हूं उसे बिना जाने हुए कोई देख नहीं सकता है ।इसलिए मेरे कहने के कारण अब तुम वहां जब जाओगे तो वह तुम्हें दिखाई देगी किसी भी प्रकार से उसे मना लेना किसी भी प्रकार से उसे तैयार कर लेना अगर तुमने उसे तैयार कर लिया तो वह तुम्हें वह विद्या सिखा देगी ।जिससे तुम्हें कंकाल भैरव नाथ की सिद्धि कर पाओगे और अपने नाम कंकाल नाथ को सार्थक कर पाओगे जिसके लिए तुम इतना ज्यादा भटक रहे हो उनकी आज्ञा लेने के बाद कंकाल नाथ ने उसे दक्षिण दिशा की ओर प्रस्थान किया । जहां पर वह श्मशान स्थिति था बहुत ही भयानक एक विशालकाय शमशान स्थित था जो जंगल से दक्षिण दिशा की ओर जाने पर मिलता था दूर-दूर तक कोई आबादी नहीं थी और बहुत ही वीराना सा वह स्थान था ।जहां पर लोग आकर के कई वर्षों से अपने अपने पित्तरों को जगाया करते थे जो लोग भी समाप्त हो जाते थे जीवन जिनका समाप्त हो चुका वह होता था वह वहां जलाए जाते थे ।

उनकी लाशों को वहां जलाया जाता था लेकिन इस शमशान का इतना अधिक भय था कि सारे लोग यह कहते थे कि यहां पर रात होने के बाद निश्चित रूप से व्यक्ति की मृत्यु हो जाएगी ।ऐसी खतरनाक जगह पर कंकाल नाथ को भेजा गया था लेकिन कंकाल नाथ के मन में दृढ़ प्रतिज्ञा थी क्योंकि वह भैरव जी को सिद्ध करना चाहता था इसलिए वह किसी भी परीक्षा को देने के लिए तैयार था वह पहुंच गया उसी स्थान पर अभी शाम होने का वक्त हो रहा था वहां से कई लोग अपनी लाशों को और अपने परिजनों को जलाकर के आ रहे थे । उन्होंने उनसे पूछा कि भाई आप यहां किस लिए आए हैं सब लोगों से उसने बात की तब लोगों ने उनसे कहा कि यह स्थान बहुत ही ज्यादा दुर्लभ है और यहां पर विशेष तरह के चमत्कार हुआ करते हैं । यहां पर लोग भूत प्रेत पिशाचो को बड़ी ही आसानी से देख लेते हैं इसलिए मेरी मानो तो किसी भी प्रकार से जैसे ही अंधेरा होना शुरू हो इस स्थान की परिधि से बाहर निकल जाना । हो सके तो आप हमारे गांव ही चलिए हम आप को भोजन कराएंगे और बाकी चीजें भी करवाएंगे,कंकाल नाथ ने सोचा कि मैं तो यहां पर उस स्त्री को देखने आया हूं लेकिन रात्रि के समय शायद मैं उसे ना देख पाऊं इसलिए उसने गांव वालों की बात को मान लिया। गांव वाले अपने गांव में उसे ले गए और अच्छी तरह से उनकी खातिरदारी कराई कंकाल नाथ ने उन्हें कई तरह की बातें भी सिखाई और भिन्न-भिन्न तरह की कहानियां भी सुनाई गांव के लोग बड़े ही मनोरंजन तरीके से उसकी बातों को सुनते रहे तभी एक स्त्री उनमें से निकलकर आई और कहने लगी बाबा आप मुझे लगता है कि कोई सिद्धिवान पुरुष हैं कृपया मेरी मदद की करिए ।

मेरे पिताजी को लगातार खून की उल्टियां हर अमावस्या को होती रहती है कोई ऐसा कारण है जिसकी वजह से उनके साथ ऐसा होता है और यह सारी गड़बड़ी उस शमशान से ही हुई है जिस शमशान से आप लोग अभी आए हैं । यह शमशान बहुत ही ज्यादा खतरनाक है और यहां पर ऐसी बहुत सारी चीजें हुआ करती है रहती है जिसकी वजह से बहुत ही बड़ी बड़ी अलग-अलग तरह की घटनाएं घटती रहती है कई लोगों का कहना है कि वहां पर भूत प्रेत पिशाचो का वास है जिसकी वजह से लोग रात्रि में उस जगह जाने से बहुत ही ज्यादा डरते हैं और उसका नाम लेने से भी डरते हैं मेरे पिताजी किसी कारण से जब एक बार बारिश के समय में उस स्थान की ओर जा रहे थे तो रात्रि हो जाने पर उस स्थान पर वह फस गए थे, क्योंकि उनकी गाड़ी अनाज से भरी हुई थी वह बाहर नहीं निकल पाई इसीलिए उन्हें उस शमशान के नजदीक ही अपनी गाड़ी के साथ वही पर विराम करना पड़ा था । कहते हैं उन्होंने वहां पर अजीब सी चीजे देखी थी जिन अजीब सी चीजों को देखने के कारण से अब हर अमावस्या को उन्हें खून की उल्टियां होती है .कंकाल नाथ ने कहा अगर ऐसी बात है तो आप उन्हें मेरे पास लेकर आइए थोड़ी ही देर बाद उस व्यक्ति को लेकर उसकी वह कन्या आ गई और फिर उस व्यक्ति से कंकाल नाथ ने बातचीत शुरू की जब बातचीत शुरू की तब उसने बताया मैंने वहां पर एक स्त्री को देखा था जो स्त्री की आंखें उल्टी थी यानी कि उसकी आंखें बिल्कुल सफेद थी उनमें काला दीदा नहीं था बिना काले दीदे की औरत को देखकर मेरे को अजीब सा महसूस हुआ और जैसे ही मैं उधर की ओर देखा मुझे तभी नजर आया कि मेरे अनाज में कोई घुस गया है ।

मैंने जब उसके अंदर जाकर देखा तो वही स्त्री मेरे पूरे अनाज की जो बड़ी सी डल्लप था यानी कि बैलगाड़ी जिसके ऊपर सारा का सारा रखा रहता है अनाज, उसके अंदर वह बैठी हुई थी उसे देखकर मेरी सांसे रुक गई फिर अगले ही क्षण वह गायब हो गई उसने जोरदार आवाज में कहा कि हर अमावस्या को अब तू खून की उल्टियां करेगा क्योंकि तूने मुझे देख लिया है तुरंत यहां से भाग जा और इस श्राप से तुझे एक समय आकर कोई मुक्ति दिलाएगा तब तक तुझे इस चीज को हमेशा ही झेलना पड़ेगा और तेरे साथ हमेशा ही ऐसा होता रहेगा ऐसी अवस्था में अब उसके लिए बहुत ही बड़ी समस्या हो गई और हमेशा के लिए उस समस्या में घिर गया यानी कि अमावस्या के दिन उसके साथ हमेशा खून की उल्टियां उसे होती रहती थी । इस प्रकार कंकाल नाथ ने कहा अवश्य ही अगले दिन में वहां जाऊंगा और कंकाल नाथ उस रात्रि को बिताने के बाद अगले दिन सुबह होते ही वहां पर पहुंच गया पूरे शमशान में टहलने के बाद में शाम के समय में कंकाल नाथ ने एक छोटी सी झोपड़ी बनाई जो एक पेड़ के ऊपर उसने निर्मित करवा ली गांव वालों की सहायता से उसके लिए ऐसा निर्माण किया गया था । जबकि गांव वालों ने उसे सख्त हिदायत दी थी कि किसी भी प्रकार से आपको यहां ज्यादा समय न रुकना है वरना रात्रि में कुछ भी हो सकता है रात्रि हो गई कंकाल नाथ इधर उधर देखता हुआ पेड़ पर बनी हुई उस मचान रूपी झोपड़ी में वह सो गया । अभी वह सो ही रहा था कि तभी उसने अपने सिर के ऊपर बाल महसूस किए यानी कि सारे बाल उसके मुंह पर आ गए थे जैसे ही उसने आंखें खोली उसने देखा कि एक भयानक सी औरत जो पूरी तरह से काली है और जिसकी आंखें बिल्कुल सफेद है उसके सिर के ऊपर खड़ी है जिसे देखकर कंकाल नाथ तो बहुत ही ज्यादा डर गया आगे क्या हुआ यह जानेंगे हम लोग अगले भाग में

कंकाल नाथ की सिद्धि यात्रा भाग 3

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