कंकाल नाथ की सिद्धि यात्रा भाग 3
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य पर आपका एक बार फिर से स्वागत है कंकाल नाथ की सिद्धि यात्रा भाग 2 मे अभी तक आपने जाना उसमें आपको समझ में आया होगा कि किस प्रकार से कंकाल नाथ नाम का एक व्यक्ति होता है जो अपनी सिद्धि की प्राप्ति के लिए एक यात्रा पर निकलता है ।उसकी यात्रा एक ऐसे गांव में जाती है जहां पर एक व्यक्ति खून की उल्टियां कर रहा होता है ।उस व्यक्ति से जब पूछा जाता है तब वह बताता है कि वह शमशान से भयभीत है और उसे श्मशान में उसने कुछ अजीब सी चीजें देख ली थी जिसकी वजह से उसे लगातार खून की उल्टियां हो रही थी ।कंकाल नाथ अपनी सिद्धि यात्रा में मार्गदर्शक हनुमान की आज्ञा लेकर के आया हुआ था और उसी शमशान में जाकर के अपने लिए एक कुटी बनाता है । वह कुटी एक मचान की तरह से पेड़ पर स्थापित की जाती है ।जहां से बैठ कर के उसे साधना और बाकी चीजें करनी थी क्योंकि कुटी ऊंचे स्थान पर बनाई गई थी । इसलिए कंकाल नाथ के लिए जो जमीनी समस्याएं होती है उनसे बचाव हो सकता था ।यही सोच कर के उन्होंने पेड़ पर एक कुटिया का निर्माण किया था ।
अपनी साधना के लिए, लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनके ऊपर वही शक्ति फिर से मंडराने वाली है जो गांव और आसपास के लोगों को भयंकर ढंग से भयभीत कर चुकी है एक भूतनी सी दिखने वाली स्त्री जो एकदम काले रंग की थी । उनके सामने नजर आती है और वह सोए हुए होते हैं अब जानते हैं आगे क्या हुआ । जैसा की अभी तक की कहानी में आपको पता चल चुका है कंकाल नाथ जैसे ही अपनी आंखें खोलता है । उसे अपने सिर के ऊपर बड़े-बड़े बाल डाले हुए काले रंग की एक भूतनी दिखाई पड़ती है जिसे देखकर के कंकाल नाथ भयभीत हो जाता है ।भय इस तरह का था कि उसके अलावा उसे और कुछ नजर ही नहीं आ रहा था कैसी शक्तिशाली माया थी? उस माया से पार पाना मुश्किल था यानी कि कंकाल नाथ को उस भयानक स्त्री के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था । कंकाल नाथ इधर उधर जिधर भागने की कोशिश करता वह हर तरफ उसे वही नजर आने लगी । काला अंधेरा उसमें भी वह भयंकर स्त्री चारों तरफ खड़ी थी। कंकाल नाथ घबराने लगा एक बार फिर से वह भैरव जी को याद करने लगा भैरव जी को लगातार याद करने की वजह से अचानक से ही इनकी आंखें खुल गई और उसे नजर आया कि वह ऐसा सपना देख रहा था, कि वह स्वयं सोया हुआ था ।
उसने चारों तरफ देखा और रात्रि के लगभग 12:00 बज रहे थे उसकी नींद टूट चुकी थी भयानक सपने ने कंकाल नाथ को भयभीत कर दिया था लेकिन कंकाल नाथ को सिद्धि प्राप्त करनी थी और श्री गुरु जिसने यह मार्ग बताया हुआ था कि आप जाइए उस शमशान में और उस सिद्धिनी को ढूंढिए जिसकी वजह से वहां पर चारों तरफ विशेष प्रकार का वातावरण कायम है ।कंकाल नाथ उसी यात्रा में अब अपनी कुटिया से नीचे पेड़ के नीचे उतर आता है और श्मशान में टहलने लगता है तभी वहां पर कुछ दूर पर एक पेड़ जोर से हिल रहा होता है । उस पेड़ को हिलता हुआ देख कर धीरे-धीरे कंकाल नाथ उस पेड़ की तरफ बढ़ता है उस पेड़ के पास पहुंचने पर वहां पर मरे हुए कई सारे जानवर दिखाई देते हैं ।यह देखकर कंकाल नाथ भयभीत हो जाता है कंकाल नाथ सोचता है कि अवश्य ही यहां पर कोई बड़ा जानवर है इसलिए उसे पेड़ पर चढ़ जाना चाहिए और जैसे ही वह पेड़ पर चढ़ता है नीचे एक भयानक काले रंग का बड़ा सा बिल्ला दिखाई देता है ।जो वहां घूम रहा था उस काले बिल्ले की नजर एकदम से कंकाल नाथ पर पड़ती है जो कि पेड़ के ऊपर चढ़कर बैठे थे । कंकाल नाथ अपने हृदय पर हाथ रखकर यही सोच रहे थे कि अगर अभी मैं नीचे होता तो बाकी जानवरों की मौत के जैसा ही, मेरी भी मौत यह बिल्ला कर देता पर, कंकाल नाथ भूल गया कि बिल्ले को पेड़ पर चढ़ना आता है और अब एक बड़ी मुसीबत कंकाल नाथ के सामने आने वाली थी ।
बिल्ले ने जैसे ही उसे देखा उसकी और गुर्राया और धीरे-धीरे करके उसी पेड़ पर चढ़ने लगा कंकाल नाथ की अब सांसे रुकने वाली थी ।कंकाल नाथ सोचने लगा कि यह तो बिल्ला है और इतना विशालकाय बिल्ला आज तक मैंने नहीं देखा है आमतौर पर बिल्ले और बिल्लीया छोटे होते हैं ।यह काला बिल्ला है और इतना बड़ा है ।कैसे यह मेरे तक आसानी से पहुंच जाएगा और मुझे मार डालेगा, जैसे कि इसने बाकि जानवरों को नीचे और पशु पक्षियों को मार चुका है ।कंकाल नाथ घबरा करके एक बार फिर से भैरव जी को बड़ी तेजी से याद करने लगा ।बिल्ला तेजी से कंकाल नाथ के सामने आकर खड़ा हो गया और सामने आ करके बोलने लगा खाऊ कि ना खाऊ ?कंकाल नाथ ने आश्चर्य से उस बिल्ले की तरफ देखा उसकी आंखें फटी की फटी रह गई की कोई बिल्ला कैसे मनुष्य की आवाज में बोल सकता है । कंकाल नाथ के साथ इस श्मशान में अजीब अजीब तरह की घटनाएं घट रही थी पहली बार इस तरह के अनुभव उसे हो रहे थे अब यह सोचने वाली बात थी कि आखिर यह सब कैसे संभव हो पा रहा है ऐसी अद्भुत शक्तियों वाली चीजें उसे कैसे दिखाई दे रही है । कंकाल नाथ ने उस बिल्ले से कहा मुझे माफ कर दो मैं इस क्षेत्र में किसी को ढूंढने के लिए आया हूं आप मुझे जाने दीजिए मुझे मत खाइए ।
फिर उसने कहा ठीक है अगर तू कहता है तो मैं तुझे नहीं खाता लेकिन बता आखिर तुम मुझे क्या खिलाएगा? कंकाल नाथ ने कहा आप जो कहेंगे मैं वह आपके लिए उपस्थित करूंगा लेकिन मुझे छोड़ दीजिए मुझे यहां से जाने दीजिए ।कंकाल नाथ की बात सुनकर के बिल्ला जोर-जोर से आदमी की तरह हंसने लगा और हंसते हुए बिल्ला एक बार फिर से कंकाल नाथ को कहता है कि भला कोई अपना भोजन कैसे छोड़ सकता है ।कोई तो ऐसा कारण दे जिसकी वजह से मैं तुझे छोड़ दूं और बाकी ओ की तरह मैं तेरा शिकार ना करूं ।कंकाल नाथ कहता है मैंने कहा ना मैं आपकी सेवा करूंगा तो फिर बिल्ला कहता है ठीक है तू मेरी सेवा करना ही चाहता है तो जा नीचे उतर और वहां से सामने पड़ा हुआ हिरण उसको उठा कर के मेरे पास लेकर के आ,केवल तभी मैं तुझे जिंदा रखूंगा ।जा ऐसा कर बिल्ले के इस प्रकार से कहने पर कंकाल नाथ आश्चर्यचकित हो जाता है ।लेकिन मरता क्या ना करता, कंकाल नाथ के सामने कोई दूसरा विकल्प नहीं था कंकाल नाथ धीरे-धीरे उस पेड़ के नीचे उतरने लगा और कहने लगा हे भगवान भैरव मेरी रक्षा करो, हे भगवान भैरव मेरी रक्षा करो मन ही मन बुदबुदाता हुआ वह किरण के पास पहुंचता है और उस हिरण को अपने कंधे पर रखकर उस पर पर चढ़ने लगता है ।
हिरण का वजन ज्यादा होने के कारण कंकाल नाथ को चढ़ने में काफी समस्या आ रही थी लेकिन फिर भी कंकाल नाथ उसे अपने कंधे पर रखकर ऊपर चढ़ने लगता है और धीरे-धीरे चढ़कर वह उस जगह पर पहुंचता है और बिल्ले के पास जाकर उस हिरण को रख देता है ।हिरण को सामने देख कर के बिल्ला जोर-जोर से एक बार फिर से हंसने लगता है और उसकी गर्दन पर मुंह रखकर उसे खाने लगता है । वह इस तरह से उसकी गर्दन को नोच कर खाने लगता है जिससे खून चारो तरफ बिखर रहा होता है ।अभी नया-नया मरा हुआ हिरण अपने शरीर से खून बहाने लगता है क्योंकि उसकी गर्दन को फाड़ फाड़ कर के वह बिल्ला उसे खा रहा था ।कंकाल नाथ इस तरह का दृश्य देखकर बहुत ज्यादा भयभीत था और यह सोच रहा था कि कहीं उसकी गर्दन भी हिरण की गर्दन की तरह ना हो जाए । बिल्ला खाने के बाद संतुष्ट हो जाता है और कंकाल नाथ के सामने कहता है अब बता तू यहां किस काम से आया है । कंकाल नाथ कहता है मुझे उस सिद्ध स्त्री को ढूंढना है जो यहां रहती है मैं उनकी सेवा करना चाहता हूं ।कंकाल नाथ के यह सुनने पर बिल्ला कहता है ठीक है वह तो आ जाएगी लेकिन यह बता तू उसकी सेवा किस तरह करेगा और क्या कहेगा ।कंकाल नाथ कहता है हाथ जोड़कर के मैं उन्हें मां मान लूंगा और उनकी सेवा करूंगा वह जो भी मुझे सिखाएंगे मैं सीख लूंगा क्योंकि मैं यहां इसीलिए आया हूं मुझे एक सिद्ध गुरु ने भेजा है उन्होंने कहा था कि इस श्मशान में वह सिद्धि स्त्री आपको मिलेगी और वह अवश्य ही आपको दिखाई देगी पर मैं इतने समय बाद भी उन्हें देख नहीं पाया हूं ।
मैं चाहता हूं वह मुझे नजर आए और उसके बाद फिर मैं उसे उनसे विद्या लूं, मैं उनकी सेवा करना चाहता हूं कंकाल नाथ के इस प्रकार कहने पर बिल्ला जोर से हंसता है और कहता है अच्छा तो बता सबसे पहली सेवा तू कौन सी करेगा ?कंकाल नाथ कहता है जो वह कहे, फिर वह बिल्ला कहता है कि पहली सेवा तू कर चुका है ।अब बता तू कौन सी सेवा करना करेगा कंकाल नाथ कहता है पहली सेवा मैं कर चुका हूं इसका क्या अर्थ है और जैसे ही वह ऐसा कहता है, वह बिल्ला एक स्त्री का रूप धारण कर लेता है ।स्त्री सामने खड़ी थी उसे देखकर के कंकाल नाथ आश्चर्य में पड़ जाता है जिससे वह बात कर रहा था वह एक सिद्ध शक्ति थी ।वह स्त्री थी जो बिल्ली बनी हुई उसके सामने थी ।उसी ने उससे हिरण भी उठाया और सारे कार्य भी करवाए कंकाल नाथ में तुरंत ही उनके चरण पकड़ लिए और बोला हे देवी मैं धन्य हो गया आपकी सिद्धि देख कर के मैं आश्चर्यचकित हूं बिल्ले के रूप में आप यहां निवास करती हैं ।
इस पर वह स्त्री कहती है की देख मेरा नाम है नूरा, मैं नूरा सिद्धनी हूं मुझे वेग पिशाचिनी सिद्धि है इसलिए मैं जैसा चाहो वैसा रूप बना सकती हूं और जो चाहे वह कर सकती हूं बस मुझे जब भूख लगती है तब मैं जीवो का भक्षण करती हूं । मैं मनुष्य का भी भक्षण कर सकती हूं पर मैं मनुष्य को नहीं खाती क्योंकि मनुष्य को खाने से उनकी ऊर्जा मुझे प्राप्त हो जाएगी ।मैं पिशाचिनी को संतुष्ट करने के लिए जीवो का भक्षण करती हूं मैं तेरा भी भक्षण कर देती और जब मुझे कोई मेरे रूप में मुझे देख लेता है तो निश्चित रूप से उसके जीवन में भयंकर संकट आ जाता है ।जिस व्यक्ति को तू देख कर यहां आया है वह खून की उल्टियां मुझे देखने के कारण ही कर रहा है । मुझे देख लेने वाला जीवित नहीं बचता है । जब तक कि मेरी इच्छा ना हो और देख मैंने तुझे जीवित छोड़ दिया है ।अब बता यहां किस लिए आया है और क्या चाहता है कंकाल नाथ ने कहा मां मुझे सिद्धियां चाहिए मैं चाहता हूं कि मैं कंकाल भैरव को सिद्ध कर पाऊं। नूरा सिद्धनी हंसते हुए कहती है इतना आसान नहीं है रे मुझे देख पिशाचिनी सिद्ध करने में 12 साल लग चुके हैं और मैं अब किसी भी जानवर का रूप धारण कर सकती हूं किसी का भी रूप लेकर कहीं भी जा सकती हूं । मैं अपनी इच्छा अनुसार तीव्र वेग से कहीं भी पहुंच सकती हूं । मेरी शक्ति इतनी अधिक है इस श्मशान में मेरी इच्छा के बिना किसी पेड़ का पत्ता भी नहीं हिल सकता है । लेकिन मुझे साधना करते हुए 12 वर्ष बीत चुके हैं तब जाकर के कहीं मुझे वेग पिशाचिनी सिद्धि है ।
आज मुझ मैं और वेग पिशाचिनी में कोई अंतर नहीं है वेग पिशाचिनी सिर्फ और सिर्फ अपना भोग मांगती है इसीलिए मैं जानवरों का शिकार कर लेती हूं। किसी भी जानवर के रूप में आकर के और फिर मेरे माध्यम से ही वह पिशाचिनी जानवरों का भक्षण करती है उसे खाती है ।मुझ में और उसमें कोई भेद नहीं रह गया है महा अमावस्या को हम लोग भगवान शिव जी की साधना करते हैं और भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं ।इसी कारण से मैं सिद्धि योगिनी हूं मैं महाशक्तिशाली हूं और कोई भी ऐसा नहीं है जो मेरा वेग मेरी शक्ति का सामना कर सके । बाकी समय में योग साधनाओ में ही व्यतीत करती हूं ।बस इस पिशाचिनी की भूख मिटाने के लिए मुझे शिकार भी करना पड़ता है और इसे में हिरण और ऐसे ही जानवरों का भोजन करवाती हूं।
कंकाल नाथ ने कहा अवश्य ही माता मुझे आप सेवा का मौका अवश्य दीजिए मैं आपके लिए भोजन जो भी आप लाएंगे जो भी चीज लाएंगे उस चीज को मैं अच्छी तरह से पका कर आपको दूंगा। नूरा सिद्धनी हंसने लगती है और कहती है ठीक है जा तैयारी कर मैं तुझे आज्ञा देती हूं रहने की इस स्थान पर, कंकाल नाथ बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हो जाता है और इस प्रकार से कंकाल नाथ उनसे कंकाल भैरव की विद्या सीखने की तैयारी करने लगता है ।अब वेग पिशाचिनी के स्वरूप में किसी भी जानवर सिंह या किसी भी शक्तिशाली जानवर का रूप ले करके नूरा सिद्धनी जंगल में जाती है और जब कभी हिरण वगैरा या खरगोश वगैरह पकड़ कर लाती है तो उसे अच्छी तरह से मास को पकाकर के भोजन के रूप में नूरा सिद्धनी को कंकाल नाथ देने लगता है ।नूरा सिद्धनी कुछ ही दिनों में बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हो जाती है और एक दिन चिता के पास जाकर के खड़ी हो जाती है और कहती है कि ठीक है आजा आज से मैं तुझे कंकाल भैरव की सिद्धि मैं तुझे सीखाऊंगी । कंकाल नाथ बहुत ही ज्यादा खुश हो जाता है और कहता है कि मां अवश्य ही आप मुझ पर प्रसन्न हो चुकी है मेरी सेवा से आप संतुष्ट है तो मुझे आप यह विद्या सिखाइए ।
नूरा सिद्धनी कहती है ठीक है पहला चरण सुन सबसे पहले जैसे ही यह चिता जलने लगे और इसके शरीर का प्रत्येक मांस हट जाए बिलकुल हड्डी हो चुका हो तुझे जलती हुई हड्डी इस श्मशान में चिता से उठानी होगी ।अगले दिन जब गांव के लोग आते हैं और चिता को जलाने लगते हैं और जलते जलते जो चीता पूरी तरह से जो जल चुकी होती है और केवल हड्डियां ही शेष रह जाती है उसी समय कंकाल नाथ आग के अंदर हाथ डाल देता है और आश्चर्य से भर जाता है वह हड्डियां बाहर खींच लेता है ।कंकाल नाथ को स्वयं पर विश्वास नहीं होता उसने एक ऐसे मानव की पूरी हड्डियां बाहर निकाल ली थी जो पूरी हड्डी ही हड्डी थी और पूरा शरीर जल चुका था । यह देखकर के आश्चर्य से वह नूरा सिद्धनी को देखता है जिस सिद्धनी को कोई नहीं देख पा रहा था उसे कंकाल नाथ आराम से देख पा रहा था और उनके पास जाकर के कहता है यह कैसे संभव हुआ ?नूरा सिद्धनी कहती है अरे तू मेरा शिष्य हो चुका है तू कहीं भी हाथ डाल, तू कुछ भी कर मैं तेरे साथ हूं अब अपनी मां की सेवा कर और कर जा किसी मनुष्य को पकड़ कर ले आ। कंकाल नाथ कहता है मां मनुष्य को क्यों अरे मुझे उसकी बलि देनी है कंकाल नाथ कहता है मां मैं मनुष्य की बलि नहीं दे सकता हूं किसी जानवर की बात होती तो अवश्य कि मैं दे देता ।इस पर नूरा सिद्धनी कहती है तू मुझे नाराज कर रहा है यह सिद्धि का दूसरा चरण है अगर तू नहीं लाया तो तेरी सिद्धि नहीं होगी ।कंकाल नाथ आश्चर्य में पड़ जाता है आखिर कंकाल नाथ कैसे किसी मनुष्य को नूरा सिद्धनी के सामने ला सकता है क्या करें वह यही वह सोच में पड़ जाता है आगे क्या हुआ यह हम जानेंगे कंकाल नाथ की सिद्धि यात्रा में भाग 4 में ।
कंकाल नाथ की सिद्धि यात्रा भाग 4