साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरुरी जानकारी 19
१. जब मै भगवान शिव की साधना करता था तो मुझे एक सफ़ेद प्रकाश दिखता था| लेकिन अब मुझे वो सफ़ेद प्रकाश नहीं दिखता है इसका कारण क्या है और सफ़ेद प्रकाश का अर्थ क्या है ?
उत्तर :- देखिये सफ़ेद प्रकाश दिखने का अर्थ है की आपकी कुण्डलिनी सही तरफ बढ़ रही है| और प्रकाश को ही मूल तत्त्व माना जाता है| लेकिन ये प्रकाश जितना ज्यादा होते जाएगा जितना जादा बढ़ता जाएगा उतना ही व्यक्ति परमात्मा के निकट पहुँचता चला जाएगा आपका मंत्र सिद्ध हो जाएगा| जो मूल तत्त्व है आत्म तत्त्व है उसका और भी ज़ादा आभास होता चला जाएगा और आप कह रहे थे की आपको अब वो सफ़ेद प्रकाश नजर नहीं आता
शुरुवात में जब अपना मन किसी चीज़ को देखता है तो बहुत तीव्रता से उसकी तरफ भागता चला जाता है, तो वो कही भटकता नहीं है लेकिन जब हम वही कार्य प्रतिदिन करते जाते है तो हमारा मन उन चीज़ो से हटने लगता है| ये चीज़ हम स्वयं नहीं जानते है | अपने मंत्र की संख्या भले ही अधिक कर दी हो लेकिन आपका मन स्थिर नहीं है उस प्रकाश की तरफ इस वजह से अब आपको वो प्रकाश दिखता नहीं है|
२. जब मै मंत्रो का जप करता था और ध्यान में चला जाता था तो शरीर में कम्पन सा होने लगता था| और ध्यान मेरा वही टूट जाता था| ये कम्पन धीरे धीरे कम होते गया अब बिलकुल नहीं होता इसका कारण क्या है ?
उत्तर :- इसका भी वही उत्तर है जो मैंने ऊपर बताया की पहले आपके शरीर में होने वाली गतिविधियों और शक्ति एक छोटे से अंश को भी आप महसूस करने की कोशिश करते थे, लेकिन अब आप नहीं कर पा रहे है आपका मन और आपकी आत्मा उस पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रही है|
३. जब मै मंत्र जाप करता था ध्यान में धीरे धीरे प्रवेश करता था तो मै बहुत अजीब चीज़ो को देखता था| मै बहुत सारे व्यक्ति को काम करते हुए देखा करता था जैसे की black and white कोई फिल्म देख रहा हूँ| जब मै ये दृश्य देख रहा होता था तो मुझे पता था की ये सच नहीं है बिना ध्यान में बैठे मुझे ऐसे दृश्य नहीं देखते है इसी चीज़ का आश्चर्य मुझे होता है इसका क्या अर्थ है ?
उत्तर :- साधारण सी बात है आप पहले किसी लोक में प्रवेश कर जाते थे अपने ज्ञान और साधना के माध्यम से तो दो तरह की चीज़े होती है| जब ध्यान में हम प्रवेश करते है तो लोको में प्रवेश करने पर जो वहा की पहली आकृति बनती है वो हमारे मन की छवि के रूप में दर्शाती है| जो हमारे मन के अंदर छवि होती है वो दिखाई पढ़ती है धीरे धीरे जब ध्यान में और गहराई आती चली जाती है, तो फिर वो छवियाँ समाप्त हो जाती है| और वास्तिविक वहा के जो लोग है, शक्तिया है, उनका दर्शन होने लग जाता है| लेकिन अपने वही गलती की है ध्यान एकाग्रित नहीं कर पा रहे है |
४. साधना के दौरान क्या लहसून और प्याज़ वर्जित करना चाहिए
उत्तर :- देखिये अगर आप राजसी साधना करते है तो ही यानि साधना भी तीन तरह की होती है सात्विक, राजसिक और तामसिक | आपको निर्धारित करना होगा की जिस मंत्र की आप साधना करना चाह रहे है वो आप राजसिक रूप में सात्विक रूप में या तामसिक रूप में करेंगे
राजसी साधना स्वर्ग लोक और उच्च लोक को ले जाने वाली है| लेकिन आपको पूर्ण मोक्ष की तरफ नहीं ले जाती है| लेकिन भौतिकता भी देती है और भौतिकता के सारे नियम को ध्यान में रखते हुए साधना कर सकते है|
तामसिक साधना में केवल भौतिक जीवन की बात होती है| उसमे आध्यात्मिक का उद्देश्य नहीं होता वो केवल भौतिकता तक ही सीमित रहती है|
सात्विक साधना में भौतिक जीवन को ज़ादा महत्त्व नहीं दिया जाता, आध्यात्मिक और पूर्ण मोक्ष का लक्ष्य होता है|
अगर आपको लहसुन और प्याज नहीं खाना है तो आप सात्विक रूप में साधना कर सकते है| अगर आपको वो खाना ही है तो आप राजसी साधना कर सकते है |
५. मेरे पास एक रुद्राक्ष की माला है उससे मैंने माता की साधना मंत्र जाप किया हुआ है तो क्या मै इस माला से कुबेर साधना कर सकता हूँ ?
उत्तर:- देखिये आपकी जो ऊर्जा है उस मंत्र की माता के मंत्रो की अगर आप उस ऊर्जा को कुबेर साधना में लगाना चाहते है तो आप उस माला से कर सकते है| क्युकी माता बड़ी शक्ति है कुबेर से इसलिए अगर आप माता की शक्ति इसमें लगाना चाहे तो
लेकिन मेरे हिसाब से ऐसा नहीं करना चाहिए कारण ये है की आप भटक जाएंगे जो ऊर्जा आपने माता की साधना से बनाई थी, वो कुबेर साधना में काम करने लग जाएगी| इसलिए अपने जो पिछला कर्म किया था वो इस दिशा में मुड़ जाएगा इसलिए आपको नई माला का प्रयोग करना चाहिए|
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