नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज एक ऐसा अनुभव प्राप्त हुआ है जो कि डाकिनी से संबंधित है इस तरह के अनुभव और कहानियों को सुनने में लोगों को बहुत ही अधिक आनंद आता है तो चलिए पढ़ते हैं पत्र को और जानते हैं कि डाकिनी से संबंधित एक कैसा अनुभव है।
प्रणाम गुरुजी मेरा नाम सुखविंदर है।मैं पंजाब का रहने वाला हूं। पर मेरे!
परदादा! जब असम में गए थे तो उनके साथ में कुछ ऐसी चीजें उस दौरान घटित हुई थी जिनको उन्होंने। बाकी लोगों को बताया और वही सुनते हुए मैं बड़ा हुआ हूं। वही एक घटना! डाकिनी से संबंधित मैं आज आपको बता रहा हूं।
यह एक सत्य घटना है लेकिन? विश्वास न करने वालों के लिए मैं कुछ नहीं कह सकता।
चलिए मैं आपको बताता हूं। आखिर हुआ क्या था?
यह बात उस दौरान की है जब अंग्रेजों का शासन था।अंग्रेज!अपने कुछ ही अस्पतालों में लोगों का इलाज करते थे। तो यह कार्य करने की जिम्मेदारी उन लोगों के पास थी जो लोग स्वयं को वैद्य कहते थे। वह लोग लोगों का खुद ही इलाज किया करते थे।
उदाहरण। वह! वैध्य अपने एक कार्य क्षेत्र का चुनाव कर लिए थे। वह वहां कैसे पहुंचे नहीं जानता किंतु एक दिन वह अपने औषधालय में बैठे हुए थे।
तभी उन्होंने बाहर आए हुए एक व्यक्ति को देखा। वह कहने लगा मेरे परिवार में कोई बीमार है।
लेकिन समस्या यह है कि उसके लिए अभी आपको चलना पड़ेगा। मुझे नहीं लगता कि वह व्यक्ति बचेगा। इस पर मेरे उन पर दादाजी ने कहा। ठीक है मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूं। ऐसा करो एक मशाल की व्यवस्था करो। और मैं तुम्हारे साथ उस व्यक्ति को देखने जाऊंगा। इस पर वह व्यक्ति कहने लगा। वह सब तो ठीक है। रात ढलते ढलते मैं तो यहां पर आ गया हूं। पर वापस आपको ले जाना मुझे खतरनाक लगता है। इस पर मेरे परदादा ने पूछा, ऐसा क्या है जिसकी वजह से तुम बहुत ज्यादा डरे हुए हो? उन्होंने कहा बीच में पड़ने वाला जंगल!
वह जंगल बहुत ही ज्यादा खौफनाक है और वहां बड़ी ऐसी ऐसी बातें आज तक हुई हैं जिसकी वजह से कोई भी रात को उस जंगल से गुजरता नहीं है। ऊपर! से ठंडी के दिन है। ठंड के मौसम में बहुत तेज कोहरा गिरता है और बर्फ सी महसूस होती है जमी हुई।
वह ओस की बूंद है जो चारों और सर्द माहौल बना देती हैं।
और ऐसे में बड़े ही ठिठुरते हुए हमें जाना होगा। दूसरी बात! मशाल भी ज्यादा देर हो सकता ना चले, क्योंकि ऊपर से गिरने वाली और ठंडक सब बर्बाद कर सकती है। तब मेरे परदादा ने कहा, इतनी चीजों से तुम डर जाते हो?
मैं अभी तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूं। लेकिन इसके बाद फिर भी उस व्यक्ति ने। दबे हुए शब्दों में कहा।
भाई साहब, एक बात सुनिए। मैंने यह सुना है कि रात को वहां डाकनियां घूमती हैं।
मेरे परदादा ने। इन बातों पर विश्वास नहीं किया होगा। पर उन्होंने उससे कहा, तुम इन? डाकिनी जैसी चीजों पर विश्वास कैसे करते हो? यह तो सिर्फ सुनी सुनाई बातें हैं। तब उस व्यक्ति ने कहा। भाई साहब, आप कुछ भी कहे पर यह बहुत ही खतरनाक बात है। आज तक कोई रात के समय वहां से होकर नहीं गुजरा। जो भी व्यक्ति जाता है, दिन में ही जाता है। ऐसा कहा जाता है काली रात में इनकी ताकतें बढ़ जाती हैं और आज तो अमावस भी है!
मेरे दादा हंसने लगे। उन्होंने कहा कि तुम्हें अपने मरीज को ठीक करवाना है या बातें बनानी है।
उस व्यक्ति ने कहा। मैं तो स्वयं चाहता हूं कि जल्दी से जल्दी उस व्यक्ति तक पहुंचे और आप उसका इलाज कर दें। पर मुझे बहुत डर लगता है। कहीं उसका इलाज करने से पहले मौत हमारा ही इलाज ना कर दे। इस पर? मेरे परदादा ने कहा, तुम्हें घबराने की कोई जरूरत नहीं है। मैं तुम्हारे साथ चलता हूं और अगर कोई समस्या होगी तो हम लोग अपने छिपे हुए हथियारों का इस्तेमाल करके।
मुसीबत को दूर कर देंगे।
मुझे तो सिर्फ बस जानवरों का डर है। पर वह आग से डरते हैं और अगर आपके पास हथियार हो तो भी आप को कोई रोक नहीं सकता।
इनके द्वारा दी गई हिम्मत के कारण। उस व्यक्ति ने कहा ठीक है। अगर आप कहते हैं तो हम लोग चलते हैं।
मेरे परदादा उस व्यक्ति के साथ जाने को तैयार हो गए। हाथों में मशाल लिए हुए वह उस क्षेत्र की ओर बढ़ने लगे। ठंडी के दिन?
घना कोहरा।
चारों ओर का दर्द वातावरण अजीब सा था। जमाने वाली ठंड में दोनों लोग। अपनी आग को बचाते हुए गुजर रहे थे। साथ में उन्होंने अपने कुछ हथियार भी रखे हुए थे जो उनके कपड़ों के अंदर थे लेकिन डर तो सबको लगता है जंगल के उस रास्ते से होते हुए जैसे ही वह कुछ आगे बढ़े तभी शेर के गरजने की आवाज उन्हें सुनाई देने लगी यह सुनकर मेरे दादा जी के साथ आया हुआ व्यक्ति कहने लगा यह शेर हमें मार डालेगा, मेरे परदादा ने कहा, कोई बात नहीं। डरो नहीं आग के पास शेर नहीं आते हैं।
वह उनकी बात को समझ तो रहा था लेकिन उसका डर कहीं जाने वाला नहीं था शेर के गुरगुरने की आवाज। बढ़ती जा रही थी। इन दोनों लोगों की धड़कनें भी तेजी से बढ़ने लगी।
थोड़ा और आगे जाने पर उसने कहा, यहां का श्मशान घाट भी आ गया। मेरे परदादा ने कहा, यह क्या है तो उसने बताया यहां पर हिंदुओं को जलाया जाता है।
इसके कारण से उसने कहा। हमें यहां से और भी सावधानी से गुजरना चाहिए। क्योंकि कभी-कभी शेर मरी लाशों को खाने के लिए भी आ जाते हैं और आज तो उन्हें जिंदा इंसान ही मिल जाएगा। यह बातें सुनकर के मेरे परदादा भी डरने लगे तभी उन्होंने सामने से शेर को आते देख भी लिया। ऐसा पहली बार उन्होंने अपनी आंखों से देखा था। एक बड़ा और विशालकाय शेर उनकी ओर बढ़ता हुआ चला रहा था। उसे देख कर के अब दोनों लोगों की हालत पतली हो गई। एक तो वैसे भी ठंड थी उस पर ऐसी स्थिति। तभी वह शेर पास आकर के। जोर से गुर्राया उसके आवाज को सुनकर मेरे परदादा के साथ आया। व्यक्ति इधर-उधर झाड़ियों में भाग गया। अब केवल मेरे दादाजी थे और उनके सामने शेर चलता हुआ आ रहा था। मेरे परदादा को लगा कि आज शायद उनका आखरी दिन होगा क्योंकि मशाल उसकी ताकत के आगे कुछ भी नहीं है। फिर भी उन्होंने अपनी मशाल को आगे कर दिया।
मशाल को आगे करने का कोई फायदा नहीं हुआ, वह तो डर ही नहीं रहा था। आखिर उसके अंदर ऐसी ताकत आई कहां से? जानवर तो आग से डर जाते हैं। और उसके बाद जो हुआ वह अचरज भरा था। वह! शेर एक चट्टान का सहारा लेकर बैठ गया। वहां पर एक सुंदर सी स्त्री प्रकट हुई।
इंसान का रूप ले लिया था शेर ने।
ऐसा नज़ाराआज तक देखने में नहीं आया था। उन्होंने! उस स्त्री के पास जाकर पूछा तो वह स्त्री अपनी। हाथ की उंगलियों को इशारा देकर उन्हें पास बुलाती हुई बोली- तू पहला इंसान है जिसने मेरा यह रूप देखा है। अमावस की रात में मैं अपने सिद्धि रूप में आ जाती हूं। और देख मैं कितनी अधिक सुंदर लग रही हूं। लग रही हूं ना?
ऐसा उसने बार-बार कहा। मेरे परदादा सच में उसकी सुंदरता को देखकर उस पर मुग्ध हो गए थे। उन्होंने कहा, आप जैसी सुंदर औरत मैंने आज तक नहीं देखी है। आप कौन हो और फिर से इंसान कैसे बन गई?
वह हंसकर कहने लगी, ठीक है तुझे मैं सारी बात बताती हूं लेकिन। तूने मुझे देख लिया है इसका दंड तो तुझे भोगना पड़ेगा। यह सुनते ही मेरे परदादा के। होश उड़ गए। अभी तक तो वह अच्छा समझ रहे थे पर यह तो कह रही है कि उन्हें दंड भुगतना पड़ेगा। उन्होंने हाथ जोड़कर नमस्कार करते हुए उससे कहा। आप मुझे क्षमा कीजिए, मैं नहीं जानता, आप कौन हैं और आप ऐसे? जानवर और इंसान का रूप कैसे ले ले रही है? फिर भी अगर मुझसे कोई गलती हो गई है तो मुझे माफ कीजिए।
वह बैठे-बैठे उन्हें अपने पास बुलाती हुई बोली। तूने तो मेरा दिल खुश कर दिया है, ठीक है। अब मैं तुझसे एक मांग रखती हूं। चल तैयार हो जा क्या तू कर पाएगा? वैसे भी आज अमावस है।
तो मैं एक पुरुष चाह रही थी।
पुरुष की चाह में। इधर-उधर भटकती तब तक तू ही आ गया। मेरी शर्त सुन मेरी शर्त यह है कि तुझे मुझ से संभोग करना होगा। और जितना वीर्य तेरा खर्च होगा? उतना गुना सोना मैं तुझे दे दूंगी।
याद रखना अगर तूने मुझे खुश नहीं किया तो मैं तुझे मार डालूंगी और अगर तूने मुझे खुश कर दिया तो वीर्य के बराबर सोना तुझे दे दूंगी।
यह सुनकर मेरे परदादा को बड़ा आश्चर्य हुआ ऐसी शर्त उन्होंने नहीं सुनी थी। आगे क्या हुआ मैं आपको अगले भाग में बताऊंगा गुरुजी! नमस्कार!
संदेश – यहां पर इन्होंने अपने परदादा के जीवन में घटित एक घटना को कहानी के रूप में लिख कर भेजा है। अगर यह कहानी आपको पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। चैनल को आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।