नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। बहुत लोगों की यह मांग थी कि पुत्र प्राप्ति। संतान को प्राप्त करने की कोई साधना बताइए और वह एकदम सटीक होनी चाहिए जिससे अवश्य ही संतान की प्राप्ति हो जाए। इसलिए आज मैं आप लोगों के लिए संतान प्राप्ति की। विशेष साधना और उसके साथ में, अचूक विधियां जिससे संतान की प्राप्ति अवश्य ही होती है, लेकर के आया हूं और इस साधना और अन्य गोपनीय जानकारी के लिए मैंने इंस्टामोजो में इस साधना की विधि और विधान को डाल दिया है। जो भी निसंतान दंपत्ति। उन्हें एक बार इससे buy करके अवश्य ही। इन प्रयोगों को करना चाहिए जिससे उनको निश्चित रूप से संतान का सुख प्राप्त हो सके। क्योंकि? एक ऋण होता है जिसे हर व्यक्ति को चुकाना पड़ता है। और उस ऋण का नाम है। पित्र! ऋण कहते हैं
इसके मुताबिक! प्रत्येक व्यक्ति को संतान पैदा करनी चाहिए ताकि उसके पूर्वजों की सदगति हो सके और वह उत्तम लोक को प्राप्त कर सकें। अगर कोई ब्रह्मचारी बन जाता है तो भी! उसे किसी गुप्त तरीके से संतान का पालन करना चाहिए ताकि उसके पूर्वज उसकी मुक्ति का मार्ग ना रोके और यह एक अनिवार्य ऋण है ।
हम इस संसार में किसी व्यक्ति के माध्यम से ही आए हैं और! हमारा भी यह कर्तव्य है कि हम भी! अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाएं। ऐसा न करने पर मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। जो लोग ब्रह्मचारी हैं, पूर्ण जीवन संत रहने वाले हैं। उन्हें भी किसी पुत्री का दान अथवा पालन। या फिर किसी पुत्र का पालन? और उसका विवाह अवश्य ही संपन्न करवाना चाहिए तभी? उसके पूर्वजों या?
अन्य पितरों की गति होती है और वह आपके मोक्ष के मार्ग में आकर खड़े नहीं होते हैं। लेकिन समस्या यह है कि कभी-कभी विवाह कर लेने पर भी व्यक्ति को संतान की प्राप्ति नहीं होती है। ऐसी अवस्था में व्यक्ति यह सोचता है कि आखिर उसके अंदर क्या कमी है या उसके साथी में ऐसी कौन सी समस्या है। हालांकि कई बार। संतान दोष पहले से लगा होता है। इस कारण भी गर्भ नहीं ठहर पाता है।
ऐसी अवस्था में हम क्या करें, मार्ग बहुत सारे हैं। और उन सब को किया जा सकता है लेकिन कुछ अचूक मार्ग हैं। इनसे अवश्य ही संतान की प्राप्ति होती है। और आजकल तो आईवीएफ पद्धति का भी इस्तेमाल किया जाने लगा है और इससे भी! संतान की प्राप्ति हो जाती है।
लेकिन उस तरह में! आपकी संतान में ऐसे गुण और संस्कार नहीं आ पाते हैं जैसे आप डालना चाहते हैं। इसके अलावा एक महत्वपूर्ण बात यह भी है। प्रत्येक स्त्री गर्भवती हो जाए तो उस दौरान वह! गुरु मंत्र का जाप अवश्य करें। हर पति का यह कर्तव्य है कि उस दौरान अपनी पत्नी का विशेष ध्यान रखें। परिवार के सभी लोग उसका ध्यान रखें। और उसे केवल संस्कारी बातें देखने सुनने और बताने का प्रयास करें। कहते हैं यह 9 महीने ऐसे होते हैं जिस दौरान स्त्री जैसा।
स्वरूप धारण करती है वैसे ही स्वरूप की उसकी संतान उत्पन्न होती है इसलिए अनिवार्य रूप से अगर अपने पुत्र और पुत्री को आप संस्कारी बनाना चाहते हैं कि सदैव आपकी इच्छा अनुसार चलें।
सदैव एक उत्तम पुत्र और पुत्री बने तो उस लिए आप! सदैव इन 9 महीनों के दौरान अपनी पत्नी को केवल सात्विक भोजन विज्ञान। गुरु मंत्र का जाप इत्यादि अनिवार्य रूप से करवाया करें ताकि। शरीर का अंग होने के कारण आपका पुत्र या पुत्री वैसे ही ग्रहण करें जैसे उसकी मां ग्रहण कर रही है।
अब बात करते हैं। संतान प्राप्ति के लिए। आप कई तरह की व्रत भी रख सकते हैं जिनका वर्णन मैं यहां पर बता रहा हूं और एक अचूक यक्षिणी साधना है जिसकी विधि आपको मेरे इन्स्टामोजो अकाउंट में मिल जाएगा, जिसका लिंक मैंने इस वीडियो के नीचे दिया हुआ है। वहां से क्लिक करके आप इस साधना को खरीद सकते हैं और संतान सुख से अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं।
इससे पहले मैं दो व्रतों यानी कि शीतला, षष्ठी व्रत और अहोई अष्टमी व्रत की कथाएं सुना देता हूं। इसको सुनकर भी। पुत्र की प्राप्ति की जाती है।
शीतला षष्ठी व्रत माघ शुल्क षष्टि को। संतान प्राप्ति की कामना से रखा जाता है। कहीं कहीं ‘बासियौरा’ नाम से भी जाना जाता है। इस दिन प्रातः काल निवृत्त होकर मां शीतला देवी का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए और बासी भोजन का भोग लगाकर बासी भोजन ग्रहण करना चाहिए। इसकी कथा इस प्रकार से है। एक ब्राह्मण के 7 लड़के थे। उन सब का विवाह संपन्न हो चुका था, लेकिन ब्राह्मण के बेटों की कोई संतान नहीं हो रही थी। 1 दिन एक वृद्धा ने। ब्राह्मणी को पुत्र बधू से शीतला माता के अष्टमी का व्रत करने का कहा। उस ब्राह्मणी ने श्रद्धा पूर्वक व्रत करवाया और वर्ष भर में ही उसकी सारी बहुए पुत्रवती हो गई।
एक बार ब्राह्मणी ने व्रत की उपेक्षा करके गर्म जल से स्नान किया। भोजन ताजा खाया और बहू को भी वैसा ही करवाया। उसी रात ब्राह्मणी ने एक सपना देखा। उसमें वह अपने पति को जगाया। पर वह तो तब मर चुका था। वह ब्राह्मणी शक से चिल्लाने लग गई। जब वह अपने पुत्रों और वधू की ओर बढ़ी तो देखती है कि वह भी मरे पड़े हैं। वह दहाड़े मारकर विलाप करने लगी। उस से पड़ोसी जाग गए। उन पड़ोसियों ने बताया ऐसा भगवती शीतला के प्रकोप से हुआ है। यह सुनते ही ब्राह्मणी पागल हो गई और वह रोती हुई 1 जुंगल की ओर दौड़ने लगी। रास्ते में उसे एक बुढ़िया मिली। वह अग्नि की ज्वाला से तड़प रही थी। पूछने पर मालूम हुआ कि वह भी उसी के कारण दुखी है। वह बुढ़िया स्वयं शीतला माता की अग्नि की ज्वाला से व्याकुल भगवती शीतला ने ब्राह्मणी को मिट्टी के बर्तन में दही लाने के लिए कहा। तुरंत भगवती शीतला के शरीर पर दही का लेप किया जिससे उनकी ज्वाला शांत हो गई। शरीर स्वस्थ होकर शीतल हो गया।
ब्राह्मणी को अपने किए हुए बात का अफसोस था बार-बार क्षमा प्रार्थना करने लगी। उसके परिवार के मृतकों को जीवित करने कि उसने विनती की शीतला माता ने प्रसन्न होकर मृतकों के सिर पर दही लगाने का आदेश दिया। उस ब्राह्मणी ने वैसा ही किया। उसके परिवार के सारे सदस्य पुनर्जीवित हो गए और तभी से इस व्रत का प्रचलन शुरू हो गया। इसी प्रकार पुत्र प्राप्ति के लिए अहोईअष्टमी के व्रत की परंपरा है।
कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पुत्रवती स्त्रियां निर्जल व्रत रखती हैं। संध्या समय दीवार पर आठ कोने वाली एक पुतली को अंकित किया जाता है। जिस स्त्री को बेटा हुआ हो अथवा बेटी का विवाह हुआ हो तो उसे अहोई माता का पूजन करना चाहिए। एक थाली में सात जगह 4-4 पूर्णिया रखकर थोड़ा-थोड़ा हलवा रखें। इसके साथ ही साड़ी ब्लाउज उस पर सामर्थ्य अनुसार अपने रुपए पैसे रख के चारों ओर से फिर हाथ पैर श्रद्धा पूर्वक सास के पांव छूकर वह सभी समान। सास को दे देना चाहिए और हलवा पूरी को लोगों को बांट देना चाहिए। पुतली के पास ही जाओ माता का उसके बच्चे बनाए जाते हैं। इस दिन शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर कच्चा भोजन खा जाता है। इसकी जो कहानी है वह इस प्रकार से है।
ननंद और भाभी 1 दिन मिट्टी खोदने गए हुए थे। मिट्टी खोदते हुए ननंद ने गलती से साही माता का घर जिससे श्याम माता के अंडे टूट गए और उसके बच्चे कुछ ले गए। नष्ट हो गए। साही माता ने जब अपने घर वापस आई तो वह क्रोधित होकर ननंद से बोली कि तुमने मेरे बच्चों को कुचला है। मैं तुम्हारे पति और बच्चों को खा जाऊंगी। साही माता को क्रोधित देख ननंद तो डर साही माता के आगे हाथ जोड़कर विनती करने लगी तथा ननद की सजा स्वयं सहने को तैयार हो गई। इस पर वह बोली कि मैं तेरी कोख माँग दोनों हर लूंगी। इस पर भाभी बोली कि मां तेरा इतना कहना मानो कोख चाहे हर लो पर मेरी मां माँग मत हरना। समय बीतता गया। भाभी के बच्चा पैदा हुआ और शर्त के अनुसार भाभी ने अपनी पहली संतान साही को दे दी। वह छह पुत्रों की मां बन कर भी नहीं पूछती । जब सातवीं संतान होने का समय आया तो एक पड़ोसन ने उसे सलाह दी कि साही मां के पैर छू लेना।
फिर बातों के दौरान बच्चे को रुला देना जब साही पूछे कि आप क्यों रो रही है, क्यों रो रहा है तो कहना कि तुम्हारे कान की बाली मांग रहा है बाली। देख कर ले जाने। तो फिर पाव छू लेना। यदि वे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दें तो बच्चे को मत ले जाने देना। इस प्रकार साथ की संतान की चाह माता उसे लेने आई पड़ोसन की बताई विधि से उसने साही के आंचल में डाल दिया। बातें करते करते बच्चे को चुटकी भी काट ली। इससे बच्चा रोने लगा तो सामने उसके रोने का कारण पूछा तो भाभी बोली कि तुम्हारे कान की बाली मांगता है। माता ने कान की बाली दे दी। जब वह चलने लगी तो भाभी ने पुनः पैर छुए तो । माता साही ने उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। भाभी ने साही माता से अपना बच्चा मांगा और कहने लगी कि पुत्र के बिना पुत्रवती कैसे हो जाऊंगी? चलो माता ने अपनी हार मान ली और कहने लगी कि मुझे तुम्हारे पुत्र नहीं चाहिए। यह तो तुम्हारी परीक्षा थी। इस प्रकार साही माता ने अपनी छड़ी ली तो उसके 6 पुत्र पृथ्वी पर आ गिरे माता ने अपने पुत्र पाए। भाभी भी प्रसन्न मन से अपने घर चली गई।
इस प्रकार से यह है। दोनों कथाएं और व्रत पुत्र की उत्पत्ति या संतान देने वाली मानी जाती हैं। इसके अलावा यक्षिणी साधना की विशेष विधि और उसका वर्णन मैंने यहां पर नहीं कर रहा हूं और उसके अलावा कुछ अचूक प्रयोगों को भी मैंने पीडीएफ के माध्यम से बना दिया है। नीचे लिंक मिलेगा। उस पर क्लिक करके इंस्टामोजो अकाउंट में जाकर आप इस साधना को खरीद सकते हैं और संतान प्राप्ति की विधि को संपन्न कर सकते हैं। इस प्रकार से आपको निश्चित ही संतान की प्राप्ति होगी और जीवन में। आप को बच्चों का शुभ अवश्य ही प्राप्त होगा। देवी माता आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करें और प्रत्येक व्यक्ति को संतान सुख से पूरित करें, ऐसी मेरी प्रार्थना है तो अगर आज का यह वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। चैनल को आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।
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