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12 ज्योतिर्लिंगों की पौराणिक और तांत्रिक कथाएं अघोरा तांत्रिक भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। 12 ज्योतिर्लिंगों की पौराणिक और तांत्रिक कथाओं का यह भाग 1 है। इसके माध्यम से हम इस सावन के महीने में 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन उनकी कथाएं और साथ ही साथ उससे जुड़ी एक विशाल तांत्रिक कथा के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं इस गुप्त और पौराणिक तांत्रिक कथा को यह कथा अघोरा नाम के एक तांत्रिक अघोरी की है। क्योंकि वह एक बहुत ही अधिक! जिज्ञासु और लालची तांत्रिक था। उसने सबसे पहले प्रेत सिद्धि की और इस सिद्धि की वजह से उसने बहुत सारा धन इकट्ठा करना शुरू कर दिया था। उसकी प्रसिद्धि चारों तरफ फैलती चली जा रही थी।अंततोगत्वा एक दिन एक व्यक्ति उसके पास आया। उसने कहा, अगर आप मेरे दुश्मनों को मार दे तो मैं आपको मेरे पास सोने का एक मटका रखा है। वह पूरा का पूरा आपको दे दूंगा। पूरी जिंदगी आपको फिर कमाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह सुनकर अघोरा बहुत अधिक खुश हो गया। उसने कहा ठीक है, मैं तुम्हारे दुश्मनों का नाश कर दूंगा। बताओ क्या करना है? तब उस व्यक्ति ने कहा मुझे! मेरे दुश्मनों का नाश करवाना है, मेरे 12 दुश्मन है। उन सभी का नाश कर दो। तब अघोरा ने कहा, उन सब के वस्त्र लेकर रोज आते जाओ मै हर अमावस को तुम्हारे चार शत्रुओं का नाश कर दिया करूंगा। क्योंकि अघोरा के पास प्रेत की तांत्रिक सिद्धि थी और अब वह प्रेत से मारण कर्म करवाने वाला था।

इस प्रकार 4 लोगों के वस्त्र लेकर वह व्यक्ति अघोरा तांत्रिक के पास आता। अघोरा ने मंत्रों के माध्यम से प्रेत को उन चारों का वध करने के लिए भेज दिया। कुछ ही देर में प्रेत चारों को जान से मार कर वापस आ गया। इसी प्रकार आगे यही सब चलता रहा और चौथी अमावस को। 12वीं! शत्रु की मृत्यु करके वह प्रेत वापस आ गया। अब खुश हुआ वह व्यक्ति पूरा मटका लेकर अघोरा तांत्रिक के पास आ गया। उसने? सारा मटका दे दिया। इस प्रकार अघोरा बहुत अधिक खुश हुआ। सोचने लगा मुझे अब वैवाहिक जीवन जीना चाहिए। यह रोज-रोज साधना करना ठीक नहीं है। मुझे सुंदर स्त्री चाहिए। इसीलिए मैं किसी? मानवी से विवाह कर लेता हूं। लेकिन उसका यह सोचना कुछ दिनों में निरर्थक सिद्ध हो गया क्योंकि कोई भी स्त्री स्वार्थ से परे प्रेम नहीं कर पा रही थी। और उसने अपने प्रेत के माध्यम से पता किया तो ऐसी कोई स्त्री उसे दिखाई नहीं पड़ी। आखिरकार उसने एक अप्सरा को पत्नी रूप में सिद्ध करने की सोची। इस प्रकार उसने एक विशालकाय तांत्रिक साधना का आयोजन किया और 21 वे दिन साक्षात वह अप्सरा उसके सामने प्रकट हो गई। अप्सरा को देखकर तांत्रिक कहने लगा। तुम मेरी पत्नी बन जाओ। इस पर अप्सरा हंसते हुए कहने लगी। तुम्हारी क्षमता नहीं कि तुम मुझे अपनी पत्नी बना पाओ। इतने पापी व्यक्ति से मैं क्या शादी करूंगी? तब अघोरा ने पूछा क्या हुआ? तब उसने बताया तुम्हारे ऊपर 12 ब्रह्म हत्या का श्राप लगा हुआ है। इसलिए मैं तुम्हारी पत्नी नहीं बन सकती।

अगर मैं तुम्हारी पत्नी बनी तो मुझे भी यह श्राप भोगना पड़ेगा क्योंकि मैं तुम्हारी पत्नी हूं। यह सुनकर अघोरा ने कहा, यह सब कब हुआ? तब अपनी शक्ति से अप्सरा ने उसके शरीर में उसे 12 जगह कोढ़ दिखाया। उस कोढ! से उपजे घावों को देखकर वह एक बार फिर से परेशान हो गया और उससे पूछा, मेरे शरीर में 12 जगह घाव क्यों हैं? क्या इनको समाप्त करने का कोई मार्ग नहीं है? तब उस अप्सरा ने बताया जिस व्यक्ति ने तुम से 12 हत्याएं करवाई है। वह 12 ब्राह्मणों की हत्या है जो मंदिर में पूजा पाठ किया करते थे। उस मंदिर का मठाधीश बनने के लिए उस व्यक्ति ने तुम से उनकी हत्याएं करवा दी और अब वह मंदिर का मालिक है।उस मंदिर की सारी संपत्ति सोना चांदी सब उसके अधीन है। उन 12 ब्राह्मणों की हत्या प्रेत के माध्यम से करने के कारण तुम पर 12 जगह घाव उभर आए हैं और तुम इनसे तभी मुक्त हो सकते हो जब साक्षात भगवान शिव तुम्हारी मदद करें।अघोरा रोते हुए कहने लगा। क्या मेरे इन पापों से मुक्त होने का कोई माध्यम दूसरा नहीं है? तब उस अक्षरा ने कहा, 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करते हुए वहां तुम्हें साधनाएं करनी होंगी। तभी तुम पाप से मुक्ति प्राप्त कर सकते हो। अघोरा ने उस अप्सरा की बात मान ली और चल दिया पहले!ज्योतिर्लिंग की तरफ! जो कि सोमनाथ था।
गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे सोमनाथ नाम का विश्व प्रतीक ज्योतिर्लिंग स्थापित था यह क्षेत्र प्रभास क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। यहीं भगवान्‌ श्रीकृष्ण ने जरा नामक व्याध के बाण को निमित्त बनाकर अपनी लीला का संवरण किया था। यहां के ज्योतिर्लिंग की कथा का पुराणों में इस प्रकार से वर्णन है-दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याएं थीं। यह बातें सुनकर अब अघोरा वहां के मुख्य पुरोहित के पास पहुंचा और उनसे इस कथा को सुनने लगा ताकि उसका पाप नष्ट हो।पुरोहित ने कहा, इन सभी का विवाह चंद्रदेव से हुआ था। लेकिन चंद्रमा का सारा स्नेह और प्रेम उनमें से केवल रोहिणी के लिए था। दक्ष प्रजापति की अन्य बेटियाँ उसके इस कृत्य से बहुत दुखी थीं। उसने अपने दुख की यह कहानी अपने पिता को सुनाई। दक्ष प्रजापति ने चंद्रदेव को यह बात कई प्रकार से बताई। लेकिन रोहिणी के वश में उनके हृदय पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंत में, दक्ष क्रोधित हो गए और उन्हें ‘क्षय’ होने का शाप दिया। इस श्राप के कारण चंद्रदेव तुरंत तबाह हो गए। जैसे ही वह नष्ट हुआ, पृथ्वी पर उसके ठंडे और ठंडे वर्षा के सारे काम बंद हो गए। चारों तरफ कोहराम मच गया। चंद्रमा भी बहुत दुखी और चिंतित था। उनकी प्रार्थना सुनकर, इंद्रादि देवता और वशिष्ठ जैसे ऋषि अपनी मुक्ति के लिए ब्रह्माजी के पास गए।
सब बातें सुनने के बाद ब्रह्मा ने कहा- ‘चंद्रमा अन्य देवताओं के साथ पवित्र प्रभास क्षेत्र में जाकर अपने श्राप से मुक्ति के लिए भगवान शिव, जो मृत्युंजय हैं, की पूजा करें। निश्चय ही उनकी कृपा से उनके श्राप का नाश होगा और वे रोगमुक्त हो जाएंगे, उनके कथनानुसार चंद्रदेव ने भगवान मृत्युंजय की आराधना का सारा काम पूरा कर लिया। उन्होंने घोर तपस्या करते हुए मृत्युंजय मंत्र का दस करोड़ बार जाप किया। इससे प्रसन्न होकर मृत्युंजय-भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया। उन्होंने कहा- ‘चंद्रदेव! तुम शोक मत करो न केवल तुम मेरे वर से अपने श्रापों से छुटकारा पाओगे, साथ ही प्रजापति दक्ष के वचनों की भी रक्षा होगी। हर दिन कृष्ण पक्ष में आपकी एक कला घटेगी, लेकिन शुक्ल पक्ष में फिर से आपकी एक-एक कला उसी क्रम में बढ़ेगी। इस तरह आपको हर पूर्णिमा को पूर्णिमा की प्राप्ति होती रहेगी।’ चंद्रमा को दिए गए इस वरदान से सारे संसार के लोग प्रसन्न हुए। सुधाकर चंद्रदेव ने फिर से दस दिशाओं में वर्षा की फुहारों का काम पूर्ववत करना शुरू कर दिया। श्राप से मुक्त होकर चंद्रदेव ने अन्य देवताओं के साथ भगवान मृत्युंजय से प्रार्थना की कि आप जीवन के उद्धार के लिए माता पार्वती जी के साथ यहां निवास करें। भगवान शिव ने इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और ज्योतिर्लिंग के रूप में माता पार्वती के साथ यहां रहने लगे।
चन्द्रमा का एक नाम सोम भी है, उन्होंने भगवान शिव को अपना नाथ-स्वामी मानकर यहीं तपस्या की थी। इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है, इसके दर्शन, पूजा, पूजा से भक्तों के सभी पाप और बुरे कर्म जन्म के बाद नष्ट हो जाते हैं। वे भगवान शिव और माता पार्वती की अटूट कृपा के पात्र बन जाते हैं। उनके लिए मोक्ष का मार्ग सहज ही सुलभ हो जाता है। उनके सभी सांसारिक और पारलौकिक कार्य स्वतः ही सफल हो जाते हैं।इस प्रकार उस पुरोहित ने इस कथा का वर्णन किया था। जिसे सुनकर। जैसे ही अघोरा मंदिर से बाहर निकला एक ब्राह्मण वहां खड़ा हुआ नजर आया। उसने कहा, आपने भले ही मेरी हत्या की हो किंतु मैं आपको श्राप से मुक्त करता हूं और स्वयं भी देवलोक की ओर गमन करता हूं। इस प्रकार पहले पाप से छुटकारा अघोरा मिल चुका था। लेकिन ब्राह्मण ने कहा, आपको यहां पर? महा शिव के मृत्युंजय स्वरूप की साधना करनी होगी आपको? महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए महामृत्युंजय योगिनी देवी को सिद्ध करना होगा। तभी आपका पहला ब्रह्महत्या का पाप पूरी तरह नष्ट होगा।
इस प्रकार उस स्थान पर बैठकर। महामृत्युंजय का जाप करते हुए 1 माह के भीतर ही महामृत्युंजय योगिनी साक्षात प्रकट हो गई और उन्होंने पहले श्राप के विमोचन के लिए उनके शरीर के जिस अंग को छुआ जहां पर वह पाप नष्ट हो गया था। इस प्रकार वह स्थान पवित्र हो गया और देवी ने कहा, इसी प्रकार प्रत्येक योगिनी को तुम्हें जाकर सिद्ध करना होगा तभी तुम अपने समस्त पापों से मुक्त हो पाओगे और तुम्हारे शरीर में गुप्त योगिनी शक्तियां भी जागृत होंगी। साथ ही साथ तुम्हारे अंदर कुंडली ऊर्जा की भी अधोगति से अपनी पूर्ववत स्थिति को प्राप्त कर लेगी और कुंडलिनी शक्ति उच्चता की ओर गमन करेगी। यह कहकर देवी वहां से गायब हो गई अब अगले!ज्योतिर्लिंग की यात्रा शुरू करनी थी अघोरा को आगे क्या हुआ हम लोग जानेंगे अगले भाग में। तो अगर आपको यह तांत्रिक और पौराणिक कथा अच्छी लग रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।
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