Table of Contents

तारापीठ और श्मशान भैरवी की साधना भाग 2

तारापीठ और श्मशान भैरवी की साधना भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आप का एक बार फिर से स्वागत है । जैसे कि हमारी कहानी अभी तक चल रही हैं  की किस प्रकार से आपने अभी पढ़ा कि महोदर बाबू बहुत ही ज्यादा परेशान हैं । इस बात से भयभीत हैं कि वह जहां तारापीठ में श्मशान भैरवी की साधना करने के लिए आए हुए हैं । वहां पर भयानक वातावरण चारों तरफ बनता जा रहा है । उन्हें अजीब अजीब तरह की शक्ले दिखाई दे रही है डर के मारे उनकी हालत खराब हुई जा रही है । वो कुछ समझ नहीं पा रहे हैं । लेकिन महोदय बाबू की एक कमी थी उसका वर्णन करना भी यहां पर बड़ा ही आवश्यक हो जाता है । उनकी कमी थी शराब अंग्रेजी शराब साधना के संपन्न हो जाने के बाद भोग के रूप में जमीन पर या उस साधना की चिता में डालनी थी । इसलिए इस बात को बड़े ध्यान से सोच रहे थे कि मैं इतनी शराब बर्बाद क्यों करूंगा ।शराब के बहुत ही अच्छे शौकीन महोदर बाबू अंग्रेजी शराब ले आए थे । साधना की उत्सुकता में उन्होंने इस बात को सोचा ही नहीं कि वह बहुत ही अच्छी शराब लेकर इस  श्मशान में आए हुए हैं यह उनकी कमजोरी थी ।

खैर किसी तरह उन्होंने यह सब साधना धीरे-धीरे करके संपन्न की और रात्रि में जब उनकी पूरी मालाएं हो गई । उसके बाद गुरु श्याम पंडित जो उनसे काफी दूर बैठे हुए थे उनकी तरफ उन्होंने नजर दौड़ाई और उन्होंने देखा कि श्याम बाबू उंग रहे हैं यानी उनकी नजर मेरी तरफ नहीं है । महोदर बाबू के लिए साधना वगैरा एक मजाक की वस्तु सी ही थी । लेकिन जोश में आकर के वह गुरु श्याम पंडित के कहने पर साधना करने तो आ गए थे । लेकिन उनका मन इन बातों में काफी कम ही लग रहा था । उन्होंने शराब गिराने के बहाने यह सोचा कि अंत में जब मैं भोग दूंगा अच्छा होगा कि वह भोग मैं खुद ही ग्रहण कर लूं । और उन्होंने ऐसा ही किया जब चिता पर शराब की बोतल को गिराने की कोशिश कर रहे थे उसी समय अपनी हथेली लगा ली । और उस शराब को अपने हाथ में भर लिया और उसे पी गए । इन्होंने इधर-उधर बड़ी तेजी से देखा कहीं कोई देख तो नहीं रहा है । और एक बार फिर से उन्होंने यही प्रक्रिया की और फिर अपने हाथ में शराब डाली और उसे पिया और संतुष्ट हो गए  । इसके बाद वहां पर जो एक चिमटा दिया गया था साथ में कहीं अगर कोई जानवर कुत्ते या सियार बगैरा ना आए तो उस वक्त आप इस चिमटे को बजा देना ताकि मैं आपकी सहायता के लिए आ जाऊं ।

और साथ ही साथ आप भी इससे उसे हटा सकते हैं कोई ऐसी शक्ति जो मानवीय नहीं है किंतु वह प्रेत भी नहीं है यानी कि जानवर है आपके सामने आ जाए आप इस चिमटे से डरा करके उसे भगा सके । तो महोदर बाबू की नजर चिमटे पर गई और उन्होंने जमीन पर रखकर बजा दिया । उसकी वजह से तुरंत ही वहां पर जो स्वर उत्पन्न हुआ तुरंत ही गुरु श्याम पंडित ने सुन लिया । और गुरु श्याम पंडित जी वहां पर धीरे-धीरे करके आ गए । और उन्होंने कहा अच्छा हुआ जो तुम्हारी साधना पहली ही रात्रि की संपन्न हो गई तो कैसा लगा पहली रात को । महोदर बाबू ने कहा कुछ खास नहीं मुझे तो लग रहा था कि कुछ ऐसी शक्तियां नजर आएंगी वैसी शक्तियां नजर आएंगी लेकिन यह तो पहली रात यूं ही कट गई । क्या मुझे यह आगे करना चाहिए अथवा यह सब केवल मजाक है । गुरु श्याम पंडित जी ने कहा आप घबराइए नहीं आगे आगे देखिए कि क्या होता है । बस विश्वास रखिए मुझ पर । इस साधना पर आपको निश्चित रूप से इसका फल प्राप्त होगा । इसके बाद वह लोग अपने घर के लिए निकल गए । घर में आकर के महोदर बाबू सोने लगे । क्योंकि रात भर की थकान काफी अधिक थी और साधना के बाद आदमी थक जाता है । इसलिए उन्होंने वहां पर सोने का फैसला किया अपने कमरे में उन्होंने अलग ही जमीन में ही बिस्तर लगा रखा था ।

क्योंकि साधना काल में जमीन में ही सोया जाता है इसलिए उन्होंने वहीं पर अपने बिस्तर को लगा लिया था । और उस कमरे को बंद करके रखने की बात गुरु श्याम पंडित जी ने कही थी । तो उसके बाद महोदर बाबू जाकर के सोने लगे । थोड़ी देर सोए ही थे अचानक से उनके ऊपर पड़ी हुई चादर किसी ने खींचा ।और वह जैसे ही उठे उनके बाएं गाल पर और दाहिने गाल पर दो तमाचे जोर के पड़े और वह चिल्ला पड़े । आह आह करने लगे महोदर बाबू को कुछ समझ में ही नहीं आया वह उठकर इधर-उधर देखें तो कोई भी नहीं था । उन्होंने अपने गालों को मला और कहा किसने इतनी तेज तमाचा मुझे मारा है कि क्या मैं सपना देख रहा था । यह सच्चाई है क्या । उन्हें कुछ समझ में नहीं आया वह एक बार फिर से सो गए लगभग एक दो घंटे हुए होंगे । एक बार फिर से किसी ने उनकी चादर खींची और एक फिर से दो तमाचे बाएं गाल और दाएं गाल दाएं गाल पर पड़ा । इस बार वह सतर्क उठ बैठे और उसे पकड़ने की कोशिश करने लगे । लेकिन हवा को भला कौन पकड़ सकता है । महोदर बाबू घबराकर उठ बैठे और कहा यह कैसी माया है कौन है जो मेरी नींद खराब कर दे रहा है । और बार-बार तमाचे मारकर भाग जा रहा है इधर-उधर  टहलने के बाद थोड़ी ही देर मे फिर से उन्हें नींद आने लगी । और वे एक बार फिर से सो गए और फिर वही 1 घंटे बाद फिर वही हरकत हुई दो तमाचे दाहिने गाल और बाएं गाल पर खाए । तमाचो की वजह से गाल लाल हो गए । और महोदर बाबू को कुछ समझ में नहीं आया अपनी नींद पूरी कर ।

दौड़ते हुए वह गुरु श्याम पंडित जी के पास गए और उन्हें सारी बात बताई । तो गुरु श्याम पंडित जी ने कहा मैंने कहा था ना आपसे कि आपको अनुभव अवश्य होंगे ।महोदर बाबू ने कहा आप अनुभव की बात करते हैं मैं बेमतलब थप्पड़ खा रहा हूं । और आपको अनुभव दिखाई पड़ता है गुरु श्याम पंडित जी ने कहा आपको घबराने की आवश्यकता नहीं है । साधना में आपने कोई ना कोई गलती अवश्य की होगी मुझे पक्का विश्वास है । वरना थप्पड़ मारने वाली बात सच नहीं होती । कोई भी शक्ति इस प्रकार से आपका बुरा भी करें और सजा भी इस तरह की दे । जो आपके लिए घातक ना हो । लेकिन आप पर असर भी करें ऐसा तो मैं पहली बार सुन रहा हूं । अब मुझे यह बताइए कि सबसे बड़ी गलती करी क्या है तुमने । महोदर बाबू ने कहा मैंने तो कोई गलती नहीं की मैं पूरी साधना को बड़े अच्छे ढंग से संपन्न किया था । बस मैंने इतना किया था कि शराब व्यर्थ क्यों की जाए और मैंने शराब भोग के रूप में देने की वजह खुद ही पी गया । तो गुरु श्याम पंडित जी ने कहा ओहो क्या मूर्खता आपने कर दी । थप्पड़ खाना तो अनिवार्य हो सकता है बच्चे भी गलतियां करते हैं । तो मांऐ मारती ही हैं । और फिर श्मशान में आप एक बुजुर्ग इंसान ऐसी गलती करें तो फिर उसे तो सजा मिलेगी ही मिलेगी । महोदर बाबू ने कहा मैंने गलती की है ।

तब गुरु श्याम पंडित ने कहा और नहीं तो क्या आपने बहुत बड़ी गलती थी । जो आपको देवी को देना चाहिए था वह स्वयं ही पी गए । महोदर बाबू ने कहा जमीन में और चिता मे उसको डालने से क्या फायदा होता वह तो जल ही जाती और जमीन में बिखर जाती । वह तो मैं पीकर के उस चीज को बचाया ही था । गुरु श्याम पंडित जी ने कहा नहीं आप से कोई गलती अवश्य हुई है और आप मुझे बताइए कि तमाचा कैसे और कौन मार रहा था । तो महोदर बाबू ने कहा जैसे कोई सख्त हाथ बहुत ही तेज तमाचा मारता है । महोदर बाबू ने कहा वह तमाचा मर्दाना लग रहा था । गुरु श्याम पंडित जी ने कहा ओ इसका मतलब यह सारा खेल प्रेत टीले का है ।महोदर बाबू ने कहा यह प्रेत टीला कहां पर स्थित है । वहीं पर एक प्रेत टीला भी स्थित है वहां के प्रेत निश्चित रूप से श्मशान भैरवी के सहयोगी सेवक होंगे । उन्हीं में से कोई प्रेत इस हरकत को देख कर के आपसे नाराज हो गया । और आ करके आपको तमाचे मारने लगा । महोदर बाबू ने कहा तमाचे बड़े जोर के पड़े थे मेरी हिम्मत नहीं है कि मैं दोबारा साधना करूं । ऐसा अभी पहले दिन ही हो रहा है तो 21 दिन में और क्या क्या घटित होगा । महोदर बाबू को गुरु श्याम पंडित जी समझाते हुए कहते हैं आपने संकल्प ले लिया है और संकल्प आप बीच में नहीं छोड़ सकते हैं । अगर आपने ऐसा किया तो आप की मौत तक हो सकती है ।

क्योंकि आप कोई साधारण साधना नहीं कर रहे आप श्मशान भैरवी की साधना कर रहे हैं । महोदर बाबू के आगे कुआं पीछे खाई अब उनके समझ में कुछ नहीं आया उन्होंने कहा ठीक है मैं करूंगा । लेकिन मुझे यह तमाचो से बच जाऊं मैं बेमतलब तमाचे नहीं खाना चाहता । तो महोदर बाबू की बात सुनकर गुरु श्याम पंडित ने कहा ठीक है प्रेत टीले पर जा करके हम एक छोटी सी पूजा करके आएंगे ।और यह पूजा हम थोड़ी देर पहले करेंगे ताकि मैं आपको वहां कुछ बता भी सकूं । और बहुत से राज वहां के खोल भी सकूं तो चलिए शुरू करते हैं । शाम के वक्त दोनों मिलकर के उसी स्थान पर पहुंच गए । वहां पर पहुंचने के बाद में उन्होंने उस प्रेत टीले पर जाकर के शराब चढ़ाई । और कुछ मंत्रों का उच्चारण करके सारी बातें संपन्न की और कहा कि अब आपको भय करने की आवश्यकता नहीं है । तो इस स्थान की महिमा मन में जान लीजिए । तो उन्होंने कहा हां बताइए । वैसे तो मैं यहां रहता ही हूं आपके मुंह से सुन लूंगा तो बड़ा ही अच्छा लगेगा । तारापीठ मंदिर का जो प्रांगण है श्मशान घाट यह ऐसा स्थान है जहां पर बहुत ही सालों से तांत्रिक साधनाएं होती आई है । इस महान श्मशान घाट में जलने वाली चिता की अग्नि कभी बुझती नहीं है । इसीलिए लोगों को यहां पर भय भी नहीं लगता मंदिर के चारों तरफ द्वारका नदी बहती है ।

और यह स्थान बहुत से सिद्ध साधकों के लिए बहुत ही अच्छा और बढ़िया माना जाता है । यहां पर माता तारा शिव जी को अपने मस्तक पर विराज मान करके उन्होंने कहा था की । चिंता मत करो चिता भूमि में जब मृत्यु विराजमान करोगे तो मैं तुम्हारे साथ रहूंगी । तुम्हारे सारे पाप दोष और सभी बंधनों से मैं मुक्त कर दूंगी । यह बात यहां पर कहकर माता तारा भगवान शिव के साथ विराजमान थी । उनकी प्रसिद्धि बहुत ही ज्यादा फैली हुई थी । श्मशान में जलने वाले शव का धुंआ यहां चारों तरफ फैलता है । इस पीठ का विशेष महत्व इसलिए माना जाता है । तांत्रिकों के लिए शीघ्र सिद्धि प्रदान करता है । यहां पर जो एक शिला है जिसकी हम लोग पूजा कर रहे हैं यहां लोग पित्र पक्ष में अपने पितरों की आत्मा की शांति और पिंडदान वगैरा भी किया करते हैं । इसी स्थल पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र जी ने भी अपने पिता का तर्पण और पिंडदान किया गया था । विंध्याचल के शिवपुर के राम दया घाट पर स्थित मां तारा आदिशक्ति मां विंध्यवासिनी के आदेशों के अनुसार जगत कल्याण करती रहती है । और मां विंध्यवासिनी की प्रबल सहायिका भी मानी जाती है और उनकी प्रबल सखी भी होकर के यहां पर अद्भुत शक्तियां प्रदान करती हैं । इसलिए यह स्थान बहुत ही अच्छा है तो यह मैंने आपको इस स्थान के बारे में वर्णन बता दिया है ।

इसलिए आप अब सावधान हो करके साधना कीजिए । और  साधनाओं की और गोपनीय बातें मैं आपको आगे बताता रहूंगा आप चिंता मत कीजिए । और आज की साधना शुरू कीजिए इस प्रकार से उनके वचनों से संतुष्ट होकर गुरु श्याम पंडित की बातें अब महोदर बाबू के हृदय में उतर चुकी थी । महोदर बाबू ने अपने मन को बड़ा कड़ा करके पक्का कर लिया कि अब वह साधना से नहीं डीगेंगे और साधना करते रहेंगे । फिर उन्होंने उस रात की साधना शुरू की कुछ ही देर में वहां पर जोर-जोर से कुत्ते भोंकने लगे कुत्तों के भौंकने की वजह से महोदर बाबू डरने लगे । महोदर बाबू पहले ही तमाचे खा चुके थे इसलिए उन्हें इस बात से बहुत डर लग रहा था कि आज उनके साथ पता नहीं क्या हो जाएगा । इस बात की गंभीरता को समझते हुए उन्होंने चिमटे को अपने पास ही रख लिया बहुत ही जल्दी कहीं इसका अवसर ना आ जाए मुझे चिमटा बजा ना पड़े और दूर बैठे गुरु श्याम पंडित जी मेरी सहायता के लिए दौड़ कर चले आए । इस प्रकार व साधना करने लगे साधना के बीच में ही उन्हें भयानक बदबुए आने लगी । ऐसी बदबुए जिनके बारे में वर्णन करना कठिन है ऐसे कि जैसे कोई बगल में लाशें सड़ रही हैं । उन सड़ी हुई लाशों की बदबू को सहन करते हुए वह साधना करते रहें ।

क्योंकि उन्हें स्पष्ट रूप से इस बात का आभास था और उन्हें बताया गया था इस तरह की हरकतें होती ही होती है । तभी उनकी पीठ में अजीब सी सरसराहट हुई । उस सर सर आहट में उन्हें पीठ में भयंकर जलन सी महसूस हुई उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था । लेकिन इन्होंने कहा कि साधना मुझे पूर्ण करनी है तो वह साधना इसी प्रकार से करते रहे । तभी जिस चिता में अपना हवन कर रहे थे उस चिता की लाश आधी सी ऊपर की ओर उठ सी गई । उसे देख कर के महोदर बाबू एकदम भयंकर रूप से भयभीत हो गए । उन्हें लगा कि आत्मा ही जाग गई लेकिन उनका यह भ्रम था । कुछ ही देर में उनको इस बात का आभास हो गया है कि ऐसा अधिकतर हो जाता है । जब लाशे जल रही होती है तो उसका आगे या पीछे का हिस्सा एकदम ऊपर उठ जाता है । तो वह जलने की वजह से ही ऐसा होता है इस प्रकार से उन्होंने आज फिर वह गलती नहीं की और अपनी शराब को उसमें डालने लगे । लेकिन आज जो उन्होंने देखा उससे उनके होश फाख्ता हो गए । जब वह शराब डाल रहे थे तो उन्हें शराब गिरती हुई नजर नहीं आई बीच से ही गायब हो गई । इसे देखकर के महोदर बाबू की सिट्टी पिट्टी और गुल हो गई । उन्होंने सोचा कि यह क्या है । अब इसके बाद क्या हुआ हम जानेंगे इसके तीसरे भाग में । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

https://youtu.be/YyB1kIF6TcI

Scroll to Top