नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। रहस्यमई किले का पारस पत्थर। इस कहानी में अभी तक आपने जाना कि तांत्रिक अब तैयार था। शुद्ध पारद के साथ प्रयोग को करने के लिए किंतु कुछ? बुरी आत्माएं! वहां पर उसका इंतजार कर रही थी। जानवरों के रूप में, क्योंकि आत्माओं को यह बात पता चल गई थी कि सोने का निर्माण करने वाली शक्ति आ चुकी है। इसी कारण से जानवरों के रूप में वह सभी। उस तांत्रिक को अपने कब्जे में लेना चाहते थे किंतु तांत्रिक समझदार था। उसने उन जानवरों की ओर ध्यान ही नहीं दिया और अपने मार्ग पर चलता रहा। बुरी आत्माएं उन जानवरों के रूप में उसके पीछे पीछे चल पड़े। तांत्रिक यह सब बातें समझ रहा था। लेकिन वह यह बात जानता था कि उसे अपना प्रयोग सिद्ध करना आवश्यक है। इसलिए आखिरकार वह उसी स्थान पर पहुंचा जहां पर उसने उन माता को सिद्ध किया था। अब उसने उस महाकाली यंत्र पर अग्नि प्रज्वलित की और घड़े को उस पर स्थापित कर दिया। उस घड़े में शुद्ध पारद को ऊपर तक भर दिया और फिर उसमें वह! टिटहरी से प्राप्त पत्थर डालकर उस घड़े को बंद कर दिया गया। अब उसे अपनी 21 दिन की साधना करनी थी।पत्थर डालकर अब धीमी आग की आंच में। वह पत्थर शुद्ध होने लगा। पारद की वजह से अब उस! दिव्य पत्थर को और भी सुंदर बनने में देर नहीं थी। इस प्रकार वह उसी स्थान पर बैठकर साधना करने लगा। देवी मां ने जो भी मंत्र उसे बताए थे उनका उच्चारण करता रहा इस प्रकार प्रत्येक दिन बीतने पर उसे यह अनुभूति होती थी। अवश्य ही आज वह पत्थर और अधिक शुद्ध हो गया होगा। उसने देखा कि उसके चारों और वह बुरी आत्माएं जानवरों के रूप में एक इखट्टी ही होती चली जा रही हैं। वह स्थान! उन जानवरों के लिए एक सैरगाह हो चुका था। किंतु कोई भी तांत्रिक के पास नहीं जा रहा था। सभी शक्तियां इस बात का इंतजार कर रही थी कि कब यह तांत्रिक अपने प्रयोग में सफल होगा और इस प्रकार करते हुए कुल 21 दिन बीत गए। 21 वे दिन मंत्र जाप समाप्त होते ही जैसे ही उस तांत्रिक ने उस घड़े की ओर देखा। घड़ा स्वयं बोलने लगा। उस घड़े ने कहा। रे तांत्रिक तू ने आखिरकार वह कार्य कर डाला है। अब मुझे जल्दी से खोल दे। और अपना यह दिव्य पत्थर प्राप्त कर। पारे की शक्ति से अब तेरे हाथ में दुनिया का सबसे दुर्लभ पारस पत्थर बनकर तैयार हो चुका है। इसकी शक्ति बहुत ही दुर्लभ है। लोहे की बनी हुई किसी भी वस्तु को अगर तू इसे छुयाएगा तो वह निश्चित रूप से स्वर्ण में बदल जाएगा।इस प्रकार! अब तेरी यह साधना संपूर्ण हुई। यह कहकर वह घड़ा शांत हो गया। तांत्रिक खुशी से अपनी आंखें खोलता है और सामने! उस घड़े को तोड़कर उसमें से वह दिव्य पत्थर प्राप्त कर लेता है। उस पत्थर की चमक अद्भुत थी।तांत्रिक ने अपने हाथ की उंगलियों में लोहे का एक छल्ला पहन रखा था। जैसे ही पारस पत्थर उसे लोहे को छूता है, वह स्वर्ण में बदल जाता है और इस प्रकार वह समझ गया कि वास्तव में उसे पारस पत्थर प्राप्त हो चुका है क्योंकि सोने की अंगूठी उसे प्राप्त हो चुकी थी। अब उसे बड़े प्रयोग करने थे लेकिन जैसे ही वह उठा चारों ओर सभी जानवर उस पर तेजी से दौड़ कर हमला करने आने लगे। तांत्रिक घबरा गया। तांत्रिक ने देखा चारों ओर से जंगल में विराजमान सभी तरह के जानवर उसकी और दौड़कर आ रहे हैं। इन जानवरों से बचने का कौन सा उपाय वह करें? तभी उसे ध्यान आया कि जिस महाकाली यंत्र ने।
माता को भी बांध लिया था। क्या वह इन जानवरों को नहीं बांध सकता? उसने अपने तंत्र प्रयोग के माध्यम से उस महाकाली यंत्र के चार दिव्य स्वरूप बनाए और उसे अपने चारों तरफ स्थापित कर दिया।
इस प्रकार जानवर वहां आ कर रुक गए। कोई भी उस चबूतरे में प्रवेश नहीं कर सकता था।
इस प्रकार सभी जानवर थक हार कर अपने अपने घरों को वापस लौट गए क्योंकि उनकी इस यंत्र के सामने एक भी ना चली। अब तांत्रिक खुश होकर अपने आगे के मार्ग पर विचार करने लगा। उसने कहा, सबसे पहले उस वैद्य की कन्या को प्राप्त करना जरूरी है। धन के आगे वह वैद्य कितना टिकेगा मैं उसे इतने अधिक उपहार दूंगा कि वह अपनी कन्या का विवाह मुझसे करने के लिए तुरंत ही राजी हो जाएगा। और उसने रास्ते में एक बर्तनों की दुकान देखी जो कि लोहे के सभी बर्तन थे। उसने एक बैलगाड़ी में उन सभी बर्तनों को रख दिया। और अपने पारस पत्थर का प्रयोग किया देवी मां के उस गोपनीय मंत्र का उच्चारण कर पारस पत्थर को जैसे ही उसने उन बर्तनों को छुआया? तो चमत्कार घटित हो गया। वह सारे बर्तन सोने में बदल गए। इस प्रकार पूरी बैलगाड़ी सोने के बर्तनों से भरी हुई थी। उनको लेकर वह चल पड़ा उस व्यक्ति के घर की ओर रास्ते में जो भी लोग उसके उस बैलगाड़ी को देखते आश्चर्यचकित हो जाते किंतु कई लोगों ने यह समझा कि शायद पीतल के बने बर्तन लेकर कोई व्यक्ति जा रहा है।
क्योंकि कोई इस बात पर यकीन नहीं कर रहा था कि वह जिन बर्तनों को लेकर चल रहा है, वह सोने के भी हो सकते हैं। इस प्रकार वैद्य के घर तक पहुंचा वैद्य को बुलाया और कहा मुझे तुम्हारी कन्या चाहिए। मैं उसे प्राप्त करना चाहता हूं।
वैद्य ने कहा। क्या?
वह तो अभी छोटी है कम से कम उसे 16 वर्ष की तो होने दो। तब उसने कहा नहीं मुझे तुम्हारी कन्या अभी तुरंत चाहिए और तुम्हें जितना सोना चाहिए यह रहा और उसने वह बैलगाड़ी उसे दिखाते हुए कहा, वैद्य ने जाकर उन बर्तनों को देखा और छूकर महसूस किया तो वास्तव में बहुत सारे बर्तन सोने के थे। वैद्य बहुत खुश हुआ। किंतु उसने कहा, मेरा मेरी इस कन्या पर पूरा प्रभाव नहीं है। यह कन्या मेरी वास्तविक संतान नहीं है। मुझे किसी प्रकार यह प्राप्त हुई थी। और इसके लिए तुम्हें उस कन्या से ही पूछना पड़ेगा। तब? वह कन्या वहां आई और तांत्रिक ने बड़े ही गर्मजोशी से उससे कहा, मैं तुझे अपनी रानी बनाकर रखूंगा। मेरे साथ चल तू जितना सोना चांदी चाहती है। और जितना भी? प्राप्त करना चाहती है वह सब कुछ मैं तुझे दे दूंगा। देख मेरे पास कितना अधिक सोना पड़ा हुआ है तब उस कन्या ने कहा, मैं तुमसे विवाह नहीं करना चाहती। मेरा विवाह तो सेनापति के पुत्र से पहले से ही तय है और उसके अलावा मैं किसी और पुरुष की नहीं बन सकती हूं। तब तांत्रिक क्रोध में भरकर कहने लगा। मैं तो तुझे अपनी पत्नी बनाना चाहता था पर लगता है सिर्फ तुझे अपने भोग के लिए ही। इस्तेमाल करना उचित रहेगा। मैं सिर्फ तुझसे कुछ रातों तक संबंध बना लूंगा और फिर तुझे तेरे घर छोड़ दूंगा। फिर तू जिससे चाहे उससे विवाह कर लेना और इसके लिए मैं तुझे जितना चाहे उतना सोना दे दूंगा।
यह सुनकर कन्या क्रोध में आ गई तांत्रिक अपने धन के उस प्रभाव के कारण अपने को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति समझ रहा था। आगे क्या हुआ जानेंगे अगले भाग में तो अगर आपको यह जानकारी और कहानी पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।