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जिनसेन का अज्ञात मंदिर और नंदो का खजाना भाग 1

जिनसेन का अज्ञात मंदिर और नन्दों का खज़ाना भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । बहुत समय से मांग हो रही थी कि मैं एक बार फिर से प्राचीन मठ मंदिरों की कहानियां लेकर के आऊ  । ऐसी कहानियां जो खो गई जिनका कोई आज अस्तित्व नहीं बचा । लेकिन पढ़ने के लिए और साथ ही साथ उनसे ज्ञान प्राप्त करके ऐसे अद्भुत रहस्य भी खोजे जा सके । इसलिए उन कहानियों को लेकर आना हर बार आवश्यक हो जाता है । आज मैं जो आप लोगों के लिए कहानी लेकर आया हूं वह है जिनसेन का अज्ञात मंदिर और नंदो का खूनी खजाना । यह भाग-1 है और इस कहानी में आप जानेंगे नंद वंश के बारे में । जिसमें एक राजा थे महा पद्मा नंद इन्होंने कलिंग पर आक्रमण करके बहुत सारा सोना चांदी हीरे जवाहरात और एक भयंकर बड़ा सा खजाना उठाकर के ले कर आ गए थे । और साथ ही साथ वहां से क्योंकि वह जैन धर्म को मानते थे इसलिए वहां से जिनसेन की प्रतिमा को भी उठा कर लाए थे । कहते हैं रास्ते में उन्होंने एक ऐसे स्थान पर छोटा सा मंदिर जिनसेन का बनवाया और वहां पर ही कहीं खजाना गड़वा दिया था । नंदो का खजाना आज भी वह गड़ा हुआ है कहां पर गड़ा है यह कह नहीं सकते । लेकिन यह गंगा नदी में मिला हुआ है यानी कि गंगा नदी उसका उससे टच है । गंगा नदी उसके ऊपर से होकर बहती है या उससे होकर निकलती है इसी वजह से गंगा नदी में सोना मिलता है इसीलिए सोना पाया भी जाता है । यह बहुत ही गोपनीय बात है और बहुत ही ज्यादा अद्भुत भी है । अगर यह खजाना खोज लिया जाए तो लोगों का कहना है कि जितना बड़ा एक नगर होता है उस नगर के बराबर का सोना गड़ा हुआ है । अब क्योंकि यह बहुत ही गोपनीय बात है । लेकिन इसके साथ जो कहानी जुड़ी हुई है मैं आज उसकी बात करूंगा ।

यह कार्य तो महापद्मनंद ने कर दिया था उसे सब सर्वछद्रान तक कहा जाता था । यानी की उसने उस समय के लगभग सभी क्षत्रियों को नाश कर दिया था यानी कि उन सब को मार डाला था । मगध का एक वंश था जिसे उग्रसेन के भी नाम से जानते थे । महाबोधि वंश एक बौद्ध ग्रंथ है वहां से इनके बारे में पता चलता है । उसके अलावा खारवेल राजा कलिंग के थे उनका एक हाथी गुम अभिलेख है उसमें भी महापद्मा नंद का जिक्र आता है । तो इन महानतम राजा के द्वारा लगभग लगभग उस समय सारा क्षेत्र जीता गया था और भयंकर विजय प्राप्त करने के बाद । कलिंग से इन्होंने एक नहर भी वहां पर कहते हैं खुदवाई थी । और उससे लेकर के बड़ा एक बहुत बड़ा खजाना था सोने चांदी से भरा हुआ । उसको वह लेकर के वहां से आए हुए थे उन्होंने कहीं वह खजाना गढ़वा दिया था । इस खजाने को बाद में इसके बारे में एक जेनोफोन है वह एक विदेशी अध्ययन करते थे । तो जेनोफोन ने कहा था कि महापद्मनंद बहुत ही ज्यादा मतलब पैसे वाले व्यक्ति है धनाढ्य व्यक्ति है । और इनका जो सेनापति था भद्र शाल था तो यह सब लोग धन लेकर के जब वापस आए थे । तो उन्होंने गोपनीय तरीके से इनके दो आमत्य थे । बाद में घनानंद के भी बने एक सप्टाल थे एक स्थूलभद्र थे । तो यह लोग जैन थे इन्होंने बाद में कहते हैं इनके ही वंशजों ने उस खजाने को किलित करवा दिया दबा दिया । ऐसी जगह दबा तो वह हुआ ही था उस खजाने का विवरण किसी को नहीं पता लगने दिया । और उस पर सो पिशाचिनीयों की फौज बिठा दी थी ।

सो पिशाचिनीयों की फोज बिठा दी थी यह पिशाचिनीया आज भी उस खजाने की रक्षा कर रही है । इसलिए आज तक उस खजाने के बारे में कोई भी पता नहीं लगा पाया है कोई यह नहीं जान पाया है कि यह खजाना कहां पर है । और किसी जमाने में जहां पर जिनसेन का मंदिर बना था एक छोटा सा मंदिर बनाया गया था । और उस स्थान की खोज की जानी अभी बाकी है कि कहां पर वह जगह हो सकती है कहां पर वह खजाना हो सकता है । लेकिन लोगों का अनुमान है की गंगा नदी में मिलने वाला जो सोना है जिसको लोग बालू में से छानते हैं । थोड़ा-थोड़ा वह नंदो के खजाने से आता है यानी कि नंदो का जो खजाना है उससे हो करके पानी गंगा का पानी बहता है । उसी वजह से वह सोने का तत्व लेकर आ जाता है । इसीलिए नदी में सोना बटोरा जाता है यानी कि यह सोना बहुत ज्यादा बड़ा है । यह एक नगर के बराबर बड़ा है यानी कि एक जितना बड़ा नगर होता है उतना खजाना सोने चांदी तस्तरिया सोने के पलंग सोने के बर्तन सोने की वस्तुएं सोने के सिक्के हीरे मोती जवाहरात वगैरह बहुत कुछ इस महानतम खजाने में छुपा हुआ है । यह खजाना है जो खूनी कैसे हुआ आज की कहानी में हम जानेंगे कहते हैं कि इसी पीढ़ी में कई सौ साल बाद एक तांत्रिका हुई जिसका नाम था कृतिका । कृतिका एक बार अपनी योग साधना में लीन थी और उसे भिन्न-भिन्न प्रकार की सिद्धियां प्राप्त थी । और भिन्न-भिन्न प्रकार की सिद्धियों की अर्चना पूजा किया करती थी उसका उद्देश्य यह था कि वह और भी ज्यादा ताकतवर तांत्रिक बने । और भयंकर से भयंकर चीजों को प्राप्त कर सके वह अपनी तंत्र शक्ति में बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली होती चली जा रही थी । और धीरे-धीरे करके एक दिन उसने उधर से गुजरते हुए एक पिशाच को पकड़ लिया था ।

एक पिशाच जो हवा में से गुजर कर उधर से जा रहा था पिशाच वहीं रुक गया और उसने पूरी शक्ति लगाई । यद्यपि उसके पास और भी तांत्रिक शक्तियां रही होगी लेकिन पिशाच कुछ भी नहीं कर पा रहा था । पिशाच पूरी तरह से जब शक्तिहीन हो गया और उसकी कोई सामर्थ नहीं रही तो वह उस क्षेत्र में नीचे उतर आया । उसने सोचा लड़ने से अच्छा है इस तंत्रिका के पास जाऊं और यह जो भी कहती है और जो भी आज्ञा देगी वह मुझे माननी ही पड़ेगी मेरे पास इसके अलावा कोई मार्ग भी नहीं है । पिशाच नीचे उतरा और करबद हो करके धीरे-धीरे करते हुए उस कुटीया यानी कि एक जिस प्रकार पुराने जमाने में छोटी छोटी कुटिया होती थी उस कुटी के अंदर वह चला गया । जहां पर तांत्रिक कृतिका जो है तपस्या कर रही थी उसकी तपस्या के कारण चारों तरफ जो भी शक्तियां उसके नजदीक आती थी वशीकृत होकर उनकी शक्तियां नष्ट हो जाती थी । और उसके पास चली आती थी इसकी वजह से उस क्षेत्र से गुजरने वाली कोई भी आत्मा या शक्ति उसकी गुलाम बन जाती थी । तांत्रिक कृतिका बहुत ही ज्यादा अपनी इस योग विद्या में निपुण हो चुकी थी तंत्र मंत्र शक्तियों से वह भरी हुई थी । तभी कृतिका ने अपने नेत्र खोले और उस पिशाच को अंदर आने को कहा पिशाच जैसे ही अंदर गया । पिशाच ने उसे प्रणाम किया और कहा हे देवी तू कौन है और मेरी शक्तियां छीनने से तेरा क्या अभिप्राय है । उसकी बात को सुनकर तांत्रिका कृतिका ने कहा की सुनो मैं तुमसे कुछ चीज चाहती हूं मैंने सुना है जो भिन्न-भिन्न प्रकार की तांत्रिक खजाने हैं वह इस देश में भरे पड़े हुए हैं ।

एक भी खजाना अगर मिल जाए तो व्यक्ति पूरी तरह से ढनाढ्य हो सकता है फिर उसे और कुछ करने की आवश्यकता नहीं रहेगी । मुझे तो तू यह बता क्या तेरी नजर में कोई खजाना है जिसे मैं प्राप्त कर सकती हूं या ऐसी कोई जगह जहां पर कोई बड़ा सा खजाना गढा हो उसके बारे में तो मुझे बता । उस पिशाच ने कहा देवी आप अगर मेरी शक्तियां वापस कर यहां से जाने की आज्ञा प्रदान करें तो मैं अवश्य ही आपको एक जगह के बारे में बता सकता हूं । तांत्रिका कृतिका ने कहा ठीक है मैं तुझे मुक्त कर दूंगी तो फिर तू मुझे बता की ऐसी कौन सी जगह है ऐसा कौन सा स्थान है जहां पर कोई खजाना गड़ा हो सकता है मुझे खजाना चाहिए और वह किसी भी कीमत में चाहिए । धन वैभव आने पर बाकी कोई कार्य बचेगा ही नहीं केवल मैं अपनी शक्तियां ही बढ़ाऊंगी इसलिए मुझे धन की आवश्यकता है । उस पिशाच ने कहा हे देवी नंदो का एक बहुत बड़ा खजाना है गंगा नदी के तट पर बसा हुआ है वह अंदर इस तरह से है कि आप या कोई भी इस खजाने को नहीं देख सकता है । कोई भी वर्षों तक उसका पता नहीं लगा सकता है और मैं यह भी दावा करता हूं कि आप उस खजाने को प्राप्त नहीं कर पाएंगी । लेकिन क्योंकि आपने मुझसे पूछा है इसलिए मैं आपको बताना जरूरी समझता हूं मैं आपको उस महानतम खजाने के बारे में और उसका नक्शा भी आपको दूंगा । लेकिन मैं यह आपको बता दूं वह खजाना तंत्र मंत्र से किलित किया हुआ खजाना है बहुत ही मुश्किल है उसे प्राप्त करना । तांत्रिका कृतिका गुस्से से देखते हुए उस पिशाच से बोली कि क्या तुझ में शक्ति नहीं थी क्या तेरे में समर्थ नहीं थी तू तो मेरे ऊपर से उड़ कर जा रहा था उसके बाद भी तुझे जमीन पर आना पड़ा ।

मैं तांत्रिका कृतिका इस वक्त इस भारतवर्ष में सबसे बड़ी तांत्रिक हूं मेरी सामर्थ्य और शक्ति के आगे कोई भी नहीं टिक सकता है । तो बस मुझे बता वह स्थान कौन सा है मैं अवश्य ही उस खजाने को प्राप्त करूंगी । पिशाच ने कहा अगर आप मुझे शक्तियां प्रदान करें तो मैं आपका सेवक बनकर उस स्थान पर जाकर पूरी जानकारी उसके बारे में दे सकता हूं । तांत्रिका कृतिका ने हंसते हुए कहा और तू शक्ति भी प्राप्त करना चाहता है मुझसे । पिशाच ने मुस्कुराते हुए कहा देवी अगर आप की सेवा करने का तो कुछ मुझे भी पारितोषित मिलना चाहिए । तांत्रिका कृतिका ने कहा ठीक है ले जा मैं तुझे चार योगियों की शक्तियां प्रदान करती हूं अब तुझे कोई कहीं भी जाने से नहीं रोक सकेगा चाहे कोई भी किसी भी जगह क्यों ना हो यह गुप्त योगियों की शक्ति मैं तुझे प्रदान करती हूं । और इस तरह उसने अपनी शक्ति से उस पिशाच के अंदर चार तरह की गोपनीय योगिनीयो की शक्ति डाल दी । उस शक्ति को प्राप्त करके पिशाच अत्यंत ही प्रसन्न हुआ पिशाच की सामर्थ बढ़ गई थी साथ ही साथ उसकी भूख भी बढ़ गई थी । उसने सोचा इससे अच्छा अब क्या हो सकता है कि एक थोड़ी सी सहायता कर ली जाए और इतनी अधिक शक्तियां प्राप्त कर ली जाए । वह वहां से उड़ा तुरंत ही उस गोपनीय जगह पर गया जहां पर जिनसेन की एक छोटी सी प्रतिमा रखी हुई थी । उस प्रतिमा के अंदर से उसने प्रवेश किया यानी धरती के अंदर वह धरती में अंदर 15 फुट नीचे मूर्ति स्थापित थी । उस मूर्ति के नीचे एक विशालकाय खजाना गड़ा हुआ था जिसके बगल से ही गंगा नदी बहती थी ।

गंगा नदी उसके ऊपर से ही बह रही थी । खजाना उसके नीचे था इस तरह से पिशाच उस स्थान तक पहुंचा । तभी वहां पर उसे सो पिशाचिनियो ने घेर लिया । क्योंकि पिशाच के पास कृतिका की दी हुई शक्ति थी इसलिए उसने योगिनीयों को वहां पर भ्रमित जाल शक्ति प्रयोग करने का बात कही । उसने भ्रमित जाल शक्तियों का प्रयोग किया चार योगियों की शक्ति से सब को भ्रमित कर दिया यानी कि उन्हें कुछ भी दिखना बंद हो गया । तब अंदर जाकर के उसने उस विशालकाय एक नगर के बराबर रखे हुए धन को देखा और उन्हें देखता ही रह गया । अद्भुत रूप से कहते हैं सोने से पिशाच और पिशाचिनिया और भी बलवान होते चले जाते हैं नाग भी सोने पर इसीलिए बैठता है ताकि सोने की ऊर्जा और शक्ति वह प्राप्त कर सकें । देवता लोग भी इसीलिए यह प्रयास करते रहते हैं कि सोना उन्हें पर प्राप्त हो सोने से शक्ति प्राप्त होती है ना सिर्फ भौतिक शक्ति उसके अंदर ऊर्जा भी होती है । पीले रंग की वह ऊर्जा अत्यधिक शक्तिशाली बनाती है भूतों को प्रेतों को पिशाचो को यहां तक कि नागो को ।

तो अवश्य ही रूप से इस पूजा को प्राप्त करने के लिए जहां पर भी खजाना गड़ा होता है वहां पर भूत प्रेत पिशाच या सर्प कुंडली मार के बैठ जाते हैं । क्योंकि उनको उस से ऊर्जा प्राप्त होने लगती है उसको ऊर्जा की शक्ति से उनका विकास होता है और वह अत्यधिक शक्तिशाली होते चले जाते हैं । यही हाल वहां पर भी था तांत्रिक क्रिया करके वहां पर सो पिशाचिनिया बैठा दी गई थी । यद्यपि उनको भ्रमित कर दिया गया था लेकिन फिर भी किसी की सामर्थ्य नहीं थी कि वह उस खजाने को निकाल सके । भ्रमित करना अर्थात कुछ दिखाई ना देना सामने वाले को पिशाच और उसके साथ योगनिया जो चार आई थी । उन्होंने ऐसा दृश्य उत्पन्न किया कि कुछ देर के लिए सारी पिशाचनिया भ्रमित हो गई और सारी खोज खबर लेकर के वह पिशाच वहां से उड़ चला । उड़ते उड़ते वह फिर से कृतिका के पास आ गया कृतिका के पास जा कर के वह बोला । देवी और सब तो उत्तम है खजाना भी इतना बड़ा है कि आपकी सामर्थ भी नहीं है कि उसको समेट पाए यह किसी राजा की भी समर्थ नहीं हो सकती जब तक कि वह उसके लिए एक पूरा किला ना बनवा दे । कितना खजाना है वहां पर बहुत बड़ा खजाना पुराने समय में रखा गया होगा । उसमें बाद में तांत्रिक क्रिया करवा करके  उस खजाने की रक्षा के लिए सौ पिशाचनिया बेठा दी गई थी

। और पिशाचनिया भी साधारण नहीं है वह बहुत ज्यादा शक्तिशाली है अगर आपने योगिनीयों को मेरे साथ नहीं भेजा होता तो वह कच्चा मुझे चबा जाती । खैर लेकिन फिर भी वहां से खजाना निकालना अलग-अलग बात है भ्रमित कर देना तो सरल था पर क्योंकि आत्माएं उन धन पर विराजमान है । इसलिए उनसे यह धन छीनना बहुत ही कठिन होगा । कृतिका ने कहा आगे तुम बताओ कि उसे किस तरह प्राप्त किया जा सकता है । तो पिशाच ने कहा ऐसा कोई पुरुष जो मन में भी किसी स्त्री का विचार अभी तक ना लाया हो ऐसा कुंवारा पुरुष और एक महानतम साधक की उस खजाने को निकाल सकता है । इसके अलावा और कोई नहीं क्योंकि पिशाचिनीया अभी उसकी परीक्षा लेगी और पूरी ताकत लगाएंगी कि वह उनके भ्रम में आ जाए । ऐसा सिद्ध पुरुष जिसने कई सौ वर्षों तक तपस्या की हो पूरी तरह से कवारा हो और किसी भी स्त्री को मन में भी उसके प्रति उसके बुरे भाव या कामुकता के भाव उसके मन में ना आए हो । केवल एक ऐसा ही पुरुष उस खजाने को निकाल सकता है । कोई स्त्री इस खजाने को नहीं निकाल सकती तांत्रिक कृतिका ने कहा ठीक है तो ऐसा पुरुष आखिर मिलेगा कहां । तब पिशाच ने कहा जल दर्पण का प्रयोग कीजिए और तांत्रिक कृतिका ने कहा यह क्या होता है । तो पिशाच ने कहा आप एक पात्र में कपालिनी मंत्र का प्रयोग करके उस कटोरे के अंदर पानी में देख सकती है की ऐसा व्यक्ति इस धरती पर कहां मौजूद है । यह दर्पण की तरह से यह बात आपको बताएगा कि कहां पर ऐसा पुरुष या ऐसी कोई चीज मिल सकती है । इस प्रकार पिशाच ने उन्हें गोपनीय मंत्र दिया और उस मंत्र का जाप करने के बाद में उसे उस कटोरे में एक चेहरा नजर आया चेहरा था एक तपस्वी पुरुष का जिसका नाम था भानु देव ।

भानु देव को देखकर ही तांत्रिक कृतिका के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई उसने कहा इसे किसी भी तरह से वशीकृत करके ले आओ । फिर पिशाच ने कहा इसे वशीकृत करना असंभव है मैं तो क्या कोई भी से वशीकृत नहीं कर सकता है जब तक की इसकी खुद की इच्छा नहीं होगी । इसलिए आप कोई और मार्ग निकालिए तांत्रिक कृतिका ने कहा ठीक है चलो मैं और तुम और मेरी यह शक्तियां साथ में चलेगी भानु देव के पास । भानु देव एक स्थान पर बैठकर अपने गुरु की आज्ञा से तपस्या कर रहा था । तपस्या करते करते अचानक से जब उस दिन की तपस्या का समय समाप्त हुआ तो वह उठा और भोजन बनाने के लिए गुरु के लिए और स्वयं के लिए भी रसोई की तरफ बढ़ चला । तभी रसोई में उसे एक सुंदर सी स्त्री दिखाई पड़ी और वह तुरंत आकर के उसने भानु देव को प्रणाम किया । भानु देव ने आश्चर्य से उसे देखा और कहा आप कौन हैं देवी । उसने कहा मैं एक राजा की कन्या हूं मैं जंगल में भटक गई थी भटकते भटकते मैं यहां आ गई मैं भोजन अच्छा बना लेती हूं । जब तक कि मैं अपने पिता के पास वापस नहीं पहुंच जाती मुझे क्या भोजन मिल सकता है । भानू देव ने कहा यह तो अच्छी बात है मुझे भोजन बनाने में आपकी सहायता करने में अत्यधिक आनंद होगा क्योंकि आप भोजन अच्छा बना लेती है जैसा कि आपने कहा । तो कृपया मेरे लिए और मेरे गुरु के लिए भी भोजन बनाने का कष्ट करें मैं आपको समस्त प्रकार की सब्जियां और अन्य पदार्थ ला करके दूंगा । भानू देव ने कहा आज ही अच्छा हुआ कि कम से कम एक अच्छा स्वादिष्ट किसी स्त्री के हाथों से बना भोजन खाने को मिलेगा । वह अपने गुरु के पास गया गुरु ने उसे जोर से डाटा और कहा मैं किसी पराई स्त्री का हाथ का बना हुआ भोजन नहीं कर सकता । क्योंकि मैं सिद्धि और साधना में हूं । आगे क्या हुआ यह मैं आपको अगले भाग में बताऊंगा । क्या भानु देव ने किया और तांत्रिक कृतिका ने किस प्रकार से भानु देव को अपने कार्य के लिए राजी किया । कहां है वह खूनी खजाना जो कई लोगों की जान ले चुका है । तो इस कहानी के आगे के भागों में हम जानते रहेंगे । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

जिनसेन का अज्ञात मंदिर और नंदो का खजाना भाग 2

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