भानु अप्सरा और अप्सरा लोक के दर्शन भाग 3
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। भानु अप्सरा और अप्सरा लोक के दर्शन भाग 3 आज हम लोग जानेंगे। अभी तक की कहानी में आपने जाना कि साधक कैसे अप्सरा को सिद्ध करने और उसकी साधना के दौरान अप्सरा लोक में पहुंच जाते हैं। अब पढ़ते हैं इनके पत्र को और जानते हैं। आगे इनके साथ क्या घटित हुआ था?
ईमेल पत्र- प्रणाम गुरुजीl मैं मेरे अनुभव का तीसरा भाग आपको भेज रहा हूंl मेरे साधना ठीक ऐसे ही आगे बढ़ रही थीl अगस्त के 14 तारीख सपने में अप्सरा के पहली बार दर्शन के बाद, अब मुझे कई बार सपने में उन अप्सरा और अप्सरालोक के दर्शन होना चालू हो गएl
पहली बार दर्शन के बाद दूसरी बार जब मुझे सपने में दर्शन हुए तब थी अगस्त के महीने की 19 तारीखl रोज की तरह साधना के बाद जब मैं रात को सो गया, तब सपने में मैंने देखा कि मैं उसी अप्सरालोक के उस जंगल में हूंl पर इस बार मुझे अपने चारों तरफ कोई भी दिखाई नहीं दीl तो मैं उस जंगल में इधर उधर चलते हुए सभी को ढूंढता रहाl मुझे और कोई तो नहीं दिखा पर कुछ देर बाद वह चंद्रज्योत्सना अप्सरा देवी मुझे दिख गई जिनको मैंने पिछली बार उस काले शेर के साथ देखा थाl वह एक पेड़ के नीचे रखी हुई एक बड़े से पत्थर के ऊपर ध्यानमग्न अवस्था में बैठी हुई थीl उस समय उनके मुंह पर बहुत तेज सा था, जैसे वह कोई महातपस्विनी होl उनके चेहरे में एक शांति सी छाई हुई थी और वो हल्का हल्का मुस्कुरा रही थीl पेड़ के ठीक पीछे वह बड़ा सा काले रंग का शेर सो रहा था जिसे मैंने पिछली बार देखा थाl अप्सरा देवी के इतनी सुंदर छवि को देखने के बाद मैं मोहित का हो गयाl तो मैं उन ध्यानमग्न अप्सरादेवी के पास जाकर पत्थर के सामने नीचे ज़मीन पर बैठ गया और उनके सुंदर से चेहरे को देखने लगाl
कुछ देर बाद उस शेर की नींद टूट गई और वह पेड़ के पीछे से सामने की तरफ आने लगाl तभी उसकी नजर मेरे ऊपर पड़ीl वह मेरी तरफ आते हुए अपने दो चमकीले पीली आंखों से मुझे घूर रहा थाl ऐसे एक भयानक जानवर को मेरी तरफ आते देख मैं बहुत ज्यादा डर गयाl तब मैंने उन अप्सरा देवी के चरण पकड़ लिए और मुझे बचाने के लिए उनसे प्रार्थना करता रहाl मेरे ऐसा करने पर उनका ध्यान टूट गया और तभी उन्होंने अपने हाथों से इशारा करते हुए उस शेर को बैठने को कहाl वह शेर ठीक मेरे पास आकर बैठ गयाl पर मैं तब भी बहुत डर रहा था क्योंकि वह शेर मुझे तब भी देखें जा रहा थाl तब उन अप्सरा देवी ने हंसते हुए अपने मीठी सी आवाज में मुझसे कहा, ‘डरो मत प्रकाश, यह तुम्हें कुछ नहीं करेगाl और तुम वहां नीचे क्यों बैठे हो? आओ, मेरे साथ यहां बैठो’l मैंने कहा, आपका धन्यवाद देवी, पर मैं यही ठीक हूंl मेरा ऐसे इंकार करने पर उस शेर ने अचानक बहुत जोर से दहाड़ाl मैं तब बहुत घबरा गया और जल्दी से उठ कर अप्सरा देवी के पास बैठ गयाl
मुझे ऐसा करते हुए देख वह अप्सरा देवी बहुत जोर जोर से हंस पड़ीl वो मुझे हंसते हुए बोली,’देखा प्रकाश, तुम्हारा मुझे मना करना मेरे इस बच्चे को पसंद नहीं आया, इसलिए मेरे बच्चे ने तुम्हें डांट दिया’l मैंने पूछा,’क्या? आपका संतान? लेकिन एक पशु भला आपका संतान कैसे हो सकता है?’ मेरे ऐसा पूछने पर उन्होंने मुझसे हंसते हुए कहा, ‘प्रकाश, अगर तुम मुझसे ऐसे ही आप-आप करके बातें करोगे, तो मैं तुमसे बात नहीं करूंगीl तुम प्रेमिका रूप में मेरी साधना कर रहे हो, इसलिए मैं तुमसे मेरे प्रति एक प्रेमी जैसे ही व्यवहार की आशा रखती हूंl तुम मुझे केवल मेरे नाम से पुकारना, मुझे अच्छा लगेगा’l तब मैंने कहा, ठीक है देवी, जैसी तुम्हारी इच्छा, तुम्हारे मुख् मंडल का तेज बिल्कुल सूर्य के समान है, तो मैं आज से तुम्हें भानु कह कर बुलाऊंगाl तब भानु ने हंसते हुए मुझे कहा, ‘ठीक है प्रकाश, जैसा तुम चाहोl अभी मेरे साथ चलो, तुम्हें कुछ दिखाती हु’l ऐसा बोलने के बाद भानु ने मेरा हाथ पकड़ कर चलना शुरू किया और मुझे उस खूबसूरत जंगल के एक दूसरे छोर पर ले गईl हमारी पीछे पीछे वह शेर भी चलते हुए आ रहा थाl
जंगल के दूसरे छोरपे पहुंच कर मैंने देखा कि वहां पर एक मंदिर था और मंदिर के अंदर एक वेदी के ऊपर, माता दक्षिणाकाली की एक बड़ी सी मूर्ति स्थापित हैl मूर्ति की ऊंचाई करीब-करीब 7 से 8 feet की लग रही थी, पर माता की यह मूर्ति वैसी नहीं थी जैसे हम आमतौर पर देखा करते हैंl मूर्ति कुछ इस प्रकार की थी, सबसे नीचे की तरफ माता का एक सिंहासन था जिसके पांच पैर थे, बीच में एक और चार कोने में चारl मैंने ठीक से देखा तो पाया कि, सिंहासन की वह 5 पैर, पांच अलग-अलग मूर्तियां थीl मतलबकी उन 5 मूर्तियों के सिर के ऊपर माता काली का वह आसन रखा हुआ थाl सिंहासन की बाई तरफ के दो पैर में से, पीछे की तरफ भगवान ब्रह्मदेव की मूर्ति और सामने की तरफ भगवान विष्णु की मूर्ति थीl सिंहासन की दाहिनी तरफ के दो पैरों में से दोनों में ही भगवान शिव की एक-एक करके मूर्ति थी जिनके 5 मुख और चार हाथ थेl सिंहासन के बीच का जो पैर था, वहां पर भी महादेव की एक मूर्ति थी जिनके पांच मुख और 10 हाथ थेl मूर्तियों के सिर के ऊपर जो आसन रखा हुआ था, उस आसन में महादेव की एक लेटी हुई मूर्ति थी, ठीक जैसे हम माता काली के चरणों के नीचे देख पाते हैंl महादेव का यह स्वरूप पूरी तरह से दिगंबर था और उन के शरीर का रंग सफेद रंग का था, जैसे दूध का रंग होता हैl
फिर मैंने देखा कि, महादेव के नाभि से एक नाभि कमल निकला हुआ है, ठीक जैसे भगवान विष्णु के मूर्तियों में हमें देखने को मिलता हैl फिर उस नाभि कमल के ऊपर महादेव की एक बैठी हुई मूर्ति स्थापित थी, इनके शरीर का रंग काजल के समान पूरी तरह से काला थाl भोले बाबा का यह काला स्वरूप बहुत ही डरावना था, इनके मुंह में डरावने दांत थे और इनके तीन नेत्रों का रंग हल्का लाल थाl गले में माता काली की ही तरह मुंड की माला, सिर के ऊपर जटा और वस्त्र के रूप में बाघ की छाल थीl इनका एक मुख और दो हाथ थे, जिनमें से दाहिनी हाथ में एक दंड था जिसके ऊपर एक खोपड़ी की हड्डी लगी हुई थी और बाए हाथ में एक कपाल पात्र था, जैसा अघोरियों के पास होता हैl इनके सर के ऊपर अर्धचंद्र और गले में सांप की माला थीl फिर महादेव की बाई तरफ की जंघा के ऊपर माता काली की मूर्ति स्थापित थीl माता का स्वरूप भी समान रूप से भयानक थाl मा के काजल के समान काले शरीर में चार हाथ, सर पर लंबे-लंबे खुले हुए बाल, मुंह पर डरावने दांत और तीन लाल-लाल आंखें थीl मां की दाहिनी तरफ की ऊपर और नीचे के हाथों में वर और अभय मुद्रा, बाई तरफ की ऊपर की हाथ में खड़ग, नीचे की हाथ में कटा हुआ सिर और गले में मुंड की माला थीl मां के पूरे शरीर में कई गहने और सर के ऊपर एक बड़ा सा मुकुट थाl यह सब कुछ भले ही मैं सपने में देख रहा था पर लग रहा था कि मेरे साथ सच में घटित हो रहा हैl
माँ की ऐसी मूर्ति मैंने कभी नहीं देखी थीl मैंने भानु से इस विचित्र मूर्ति के बारे में पूछा तो उसने बताया की, ‘यह महाकालेश्वर सहित मा महाकाली की प्रतिमूर्ति हैl मूर्ति के एकदम ऊपर में जो कृष्णबर्निय शिव मूर्ति स्थापित है वह महाकालेश्वर शिव हैl महादेव के इसी महाकाल रूप की उपासना महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में होती हैl महाकाल के बाई तरफ के जंघा के ऊपर जो काली मूर्ति स्थापित है वह कोटीब्रह्मांडनायिका दक्षिणाकाली कहलाती हैl महाकालेश्वर और महाकाली एक साथ जिस सिंहासन पर बैठे हुए हैं, उसे पंचप्रेतासन कहां जाता हैl कालीधाम में माता, महादेव के साथ इसी रूप में निवास करती हैl मैं इसी रूप में माता की आराधना करती हूं’l फिर भानु ने मुझे बताया, ‘पृथ्वीलोक के 1 वर्ष, देवलोक के केवल 1 दिन के समान होते हैं, इसी प्रकार से देवलोक के 12 वर्षों तक मैंने इसी मंदिर में महादेवी की तपस्या की थीl जीस से प्रसन्न होकर मा ने महाकालेश्वर सहित इसी स्थान पर मुझे साक्षात दर्शन भी दिए थेl फिर मा और महादेव ने मेरे तपस्या के फल स्वरूप, मुझे यह सिंह प्रदान किया जिसे तुम मेरे साथ देख पा रहे होl यह शेर कोई साधारण पशु नहीं बल्कि, महाकाली के गण मे से एक गण हैl इसका नाम कालनेमि है, क्योंकि यह समस्त नकारात्मक शक्तियों की विध्वंस स्वरूपा है, ब्रह्मांड की नकारात्मक शक्तियां ही कालनेमि का आहार हैl पर मेरे लिए तो यह मेरे बच्चे जैसा हैl एक आज्ञाकारी संतान की तरह मेरे सारे कार्यों में यह मेरी सहायता करता हैl
इसके बाद भानु ने मुझे उस महाकाली मूर्ति की महत्व के बारे में बताया जो मैं आगे के किसी भाग में बता दूंगा गुरुजी, नहीं तो पत्र बहुत बड़ा हो जाएगाl तब तक के लिए आपको प्रणाम गुरुजीl
सन्देश-यहां पर इन्होंने!अप्सरा लोक में देवी चंद्र ज्योत्सना जिनको यह भानु के नाम से पुकार रहे हैं उन के माध्यम से माता महाकाली के दर्शन भी किए हैं। और उनकी दिव्य स्वरूप जो अप्सरा लोक में पूजित है, उसके दर्शन किए हैं। तो यह था आज तक का इनका यह भाग आगे इस कथा में क्या घटित होगा। अगले पत्र के माध्यम से जानेंगे तो अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद। भानु अप्सरा और अप्सरा लोक के दर्शन भाग 4
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