कर्ण पिशाचिनी साधना विभिन्न प्रयोग
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम कर्ण पिशाचिनी की साधना के कई सारे तरीकों के विषय में जानेंगे। इसके माध्यम से हम कर्ण पिशाचिनी की अलग अलग तरह से की जाने वाली साधनाओं का ज्ञान आज के इस वीडियो के माध्यम से जान सकेंगे तो चलिए शुरू करते हैं।
कई साधकों की यह मांग थी कि कर्ण पिशाचिनी प्रयोग की विधियां उन्हें बताई जाए और इसे किसी भी प्रकार के शुल्क से भी मुक्त रखा जाए, इसलिए आज मैं आप लोगों के लिए। सभी के लिए कर्ण पिशाचिनी साधना के विभिन्न कई सारे प्रयोगों को लेकर के आया हूं। हालांकि मैंने वैदिक प्रयोग अपनी इंस्टामोजो अकाउंट में डाल रखा है।
वह एक अलग ही प्रयोग है लेकिन तांत्रिक कई तरह के प्रयोग किए जाते हैं। इनकी सिद्धि के लिए और आज मैं उन्हीं प्रयोगों के विषय में आप लोगों को बताऊंगा।
कर्ण पिशाचिनी के विषय में लगभग सभी लोग जानते हैं जो तंत्र क्षेत्र से जुड़े हुए हैं कि यह एक ऐसी यक्षिणी है जो पिशाचिनी स्वरूप में। आपके कानों में आकर आपके प्रश्नों के जवाब देती है और इसके माध्यम से आप किसी भी प्रकार की समस्या का हल जान लेते हैं। लेकिन क्योंकि यह साधना अगर आप सीधे ही करते हैं तो इसके माया जाल में फंस कर अधोगति की ओर जाते हैं। इसीलिए सावधानी पूर्वक पहले अपने गुरु मंत्र को या किसी योग्य गुरु के माध्यम से अपने मुख्य देवता की साधना को संपूर्ण कर लेना चाहिए। उसके बाद ही इसकी साधना करनी चाहिए। यह एक ऐसी अदृश्य शक्ति होती है जो स्त्री रूप में आपके सामने प्रकट होकर। आपकी समस्याओं को आप के बाएं कान में अथवा दाहिने कान में आकर बताती है। कर्ण पिशाचिनी ऐसी मान्यता है कि जो भी यक्षिणी देवलोक से किसी शाप वश पृथ्वी पर भटक रही है। उन्ही में से किसी शक्ति को मंत्रों के माध्यम से पकड़ लेने और उसे अपने अनुरूप बनाने की एक प्रक्रिया है। इसके मंत्र की साधना से व्यक्ति। भूतकाल और वर्तमान काल की सभी बातें जान लेता है और अगर वर्षों तक इसकी साधना की जाती है तो भविष्य की घटनाएं भी व्यक्ति जानने लगता है। लेकिन मैं नए साधकों को सबसे पहले सावधान कर देना चाहता हूं जिन्होंने गुरु मंत्र की दीक्षा नहीं ली हो अथवा अपने इष्ट देवता के मंत्र का कम से कम 900000 से अधिक जाप ना किया हो। उनके लिए यह साधना खतरनाक हो सकती है।
कर्ण पिशाचिनी की साधना, वैदिक और तांत्रिक दोनों ही विधियों से की जाती है। इसकी साधना ज्यादातर 11 या 21 दिनों में पूर्ण हो जाती है, लेकिन 21 दिन के अनुष्ठान को अच्छा माना जाता है। साधना के दौरान इसके प्रति पूर्ण आस्था, आत्मविश्वास और किसी भी प्रकार की असहजता को झेलने की अटूट क्षमता होनी चाहिए क्योंकि यह भयानक रूप से डराती। वासना में फंसाती और अपने कार्यों को सिद्ध करने के लिए किसी भी हद तक साधक जाने की एक सोच का निर्माण कर लेता है जो कि उसके लिए हमेशा ही खतरनाक होती है। इसका एक मंत्र इस प्रकार है।
ऊँ लिंग सर्वनाम शक्ति भगवती कर्ण-पिशाचिनी चंड रुपी सच सचमम वचन दे स्वाहा!!
इसी प्रकार इसकी विधि इस प्रकार से है। यह एक खतरनाक साधना है साधना सिद्धि के समय काले वस्त्र पहन कर। किसी भी प्रकार से किसी से बातचीत ना करते हुए निराहार रहते हुए स्त्री गमन से दूर रहते हुए कड़े नियमों का पालन करके आप इसकी साधना को संपन्न कर सकते हैं। इसका 21 दिनों का प्रयोग इस प्रकार से करना चाहिए जिसमें चौघड़िया मुहूर्त के दौरान रात में। पीतल या कांसे की थाली में उंगली के द्वारा सिंदूर से त्रिशूल बनाएं और फिर शुद्ध गाय का घी तेल दो दीपक जलाएं और उसका सामान्य पूजन करें। फिर ऊपर बताए गए मंत्र का।
जाप करें 1100 सौ बार इस प्रयोग को 21 दिन तक करने से कर्ण पिशाचिनी सिद्धि होती है। मंत्र है –
ऊँ नमः कर्ण पिशाचिनी अमाघ सत्यवादिनि मम कर्णे अवतरावतर
अतीतनागतवर्तमानानि दर्शय दर्शय मम भविष्य कथय ह्रीं कर्णपिशाचिनी स्वाहा!!
दूसरा प्रयोग है- इस प्रयोग को अधिकतर दीपावली में होली में या ग्रहण काल में शुरू करना चाहिए। इसकी भी पूर्ण आहुति 21 वे दिन संपन्न होती है। प्रयोग के लिए आम की लकड़ी के बने तखत पर अनार की कलम से मंत्र को 108 बार लिखते हुए उच्चारण किया जाता है। एक बार लिखने के बाद उसे मिटा कर दूसरा लिखा जाता है। अंतिम बार इसकी पंचोपचार विधि से पूजा की जाती है और इस प्रकार रोज 1100 सौ मंत्र जाप पस्त उच्चारण के साथ पढ़ना चाहिए।
ऊँ नमः कर्ण पिशाचिनी मत्तकारिणी प्रवेशे
अतीतनागतवर्तमानानि सत्यं कथय में स्वाहा!!
तीसरा प्रयोग इसका इस प्रकार से आपको करना है जिसमें ग्वारपाठे को अभिमंत्रित कर उसके गूदे को हाथ और पैरों में लेप लगाएं। यह प्रयोग भी 21 दिन का माना जाता है। प्रतिदिन 5000 जाप करें और 21 दिनों में इसकी सिद्धि हो जाती है। यह ऊपर के दोनों प्रयोग से अधिक शक्तिशाली माना जाता है। इसका मंत्र इस प्रकार से है।
ऊँ ह्रीं नमो भगवति कर्ण पिशाचिनी चंडवेगिनी वद वद स्वाहा!!
चतुर्थ प्रयोग- इस प्रयोग में जैसा तीसरे में कहा गया उसी तरह करना है। आपको उसी तरह से लगभग 21 दिनों तक सिर्फ इसका मंत्र 5000 की संख्या में रोज पढ़ते हुए जाप करना है। केवल इसमें मंत्र बदल जाएगा और मंत्र होगा-
ऊँ ह्रीं सनामशक्ति भगवति कर्ण पिशाचिनी चंडरूपिणि वद वद स्वाहा!!
इसी प्रकार अगला पांचवा प्रयोग करेंगे, वह कैसे करेंगे। इसमें गाय के गोबर के साथ पीली मिट्टी मिलाकर प्रतिदिन पूरे कमरे की लिपाई की जाती है या फिर तुलसी के चारों ओर के कुछ स्थान को लिखना चाहिए। उस स्थान पर हल्दी, कुमकुम, अक्षत डालकर आसन बिछा और मंत्र का प्रतिदिन 10000 की संख्या में जाप करें। यह केवल 11 दिनों में संपन्न हो जाता है। मंत्र है
मंत्र: ऊँ हंसो हंसः नमो भगवति कर्ण पिशाचिनी चंडवेगिनी स्वाहा!!
अब अगले छठे प्रयोग के विषय में बात करते हैं। इसे रात को लाल कपड़े पहन कर किया जाता है। इसका शुभारंभ घी के दीपक को जलाने के बाद 10000 मंत्र जाप की संख्या से प्रतिदिन जाप करते हुए 21 दिनों तक करने पर कर्ण पिशाचिनी साधना पूर्ण होती है। इसका मंत्र इस प्रकार से है- ओम भगवती चंडकरणे पिशाचिनी स्वाहा।
सातवें प्रयोग में आधी रात को कर्ण पिशाचिनी को एक शुद्ध देवी के रूप में स्मरण करते हुए और अत्यंत पवित्र मानते हुए। साधना करनी चाहिए। यह एक शुद्ध देवी साधना के रूप में किया जाता है और वेदव्यास जी ने भी इसी मंत्र को सिद्ध किया था। सबसे पहले मंत्र की पूजा ओम अमृत कुरु कुरु स्वाहा लिखकर करनी चाहिए। उसके बाद मछली की बलि देने का विधान है जो निम्न मंत्र के साथ किया जाता है। –
ऊँ कर्ण पिशाचिनी दग्धमीन बलि,
गृहण गृहण मम सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा!
इस विधान के पूर्ण होने के बाद मंत्र का 5000 बार जाप करना चाहिए। ध्यान रहे पूरी प्रक्रिया प्रातः सूर्योदय से पहले पूर्ण कर लेनी चाहिए। इसी प्रकार मंत्र में
मंत्र: ऊँ ह्रीं नमो भगवति कर्ण पिशाचिनी चंडवेगिनी वद वद स्वाहा!!
इसकी पूर्णाहुति तर्पण के मंत्र ओम कर्ण पिशाचिनी तर्पयामी स्वाहा से की जाती है। यह भी प्रयोग कुल 21 दिनों में संपन्न होता है। इन सभी प्रयोगों के माध्यम से हम कर्ण पिशाचिनी नाम की यक्षिणी को हम सिद्ध कर लेते हैं। जैसे कि मैं पहले ही इसके विषय में अपने पिता के अनुभव को बता चुका हूं। वहां पर मैंने स्पष्ट रूप से बताया था। जब साधना कम दिनों की होती है तो वह पिशाचीनी स्वरूप में सिद्ध होती है और जब यही साधना बढ़ जाती है तो यक्षिणी स्वरूप में सिद्ध होती है और अगर इसकी साधना 1 या 2 वर्ष से अधिक की जाती है तो यह योगिनी स्वरूप में भी सिद्ध होती है। लेकिन इसका स्वरूप सदैव नकारात्मक ही होता है। इसलिए सावधानी पूर्वक ही इसकी साधना करनी चाहिए और अपने नियंत्रण में सदैव इस शक्ति को रखना चाहिए ना कि आप इसके नियंत्रण में हो जाए।
इस साधना से व्यक्ति अनगिनत लाभ प्राप्त कर सकता है। खासतौर से प्रश्नों के जवाब के माध्यम से धन कमाने के लिए आसान हो जाता है। लेकिन बिना किसी योग्य गुरु और गुरु मंत्र की पूर्ण अनुष्ठान किये बिना इसकी साधना करना खतरनाक साबित हो सकता है। व्यक्ति का मानसिक संतुलन बना रहे यह आवश्यक है क्योंकि कान शरीर का महत्वपूर्ण अंग है। इसके माध्यम से शरीर का बैलेंस बना रहता है तो कान अगर आपका अनियंत्रित होगा तो आप के शरीर का बैलेंस भी बिगड़ जाएगा और कर्ण पिशाचिनी कान से संबंधित ही शक्ति है। मेरे इस? छोटे से उदाहरण के माध्यम से आप समझ चुके होंगे कि मैं क्या कहना चाहता हूं बाकी सभी समझदार है और अपनी सामर्थ्य के हिसाब से ही साधना है करते हैं तो यह था पिशाचिनी के विभिन्न मंत्रों के माध्यम से किया जाने वाला प्रयोग। अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।