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वायु अप्सरा साधना प्राचीन विधि

वायु अप्सरा साधना प्राचीन विधि

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम जिस दुर्लभ अप्सरा साधना के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे। इसे हम वायु अप्सरा के नाम से जानते हैं। वायु अप्सरा का वर्णन बहुत ही प्राचीन ग्रंथों में किया गया था। उस दौरान इस गुप्त विद्या को प्राप्त करके न सिर्फ स्वर्ग लोक तक का गमन एक साधक कर सकता था बल्कि वायु अप्सरा जो न सिर्फ पृथ्वी बल्कि अंतरिक्ष में भी विभिन्न लोगों का विचरण अपने साधक को। करवाने में समर्थ शाली मानी जाती थी किंतु आज के इस युग में इसकी साधना का लोप हो चुका है और इसका वर्णन हमें कहीं पर भी देखने को नहीं मिलता है। यह एक थोड़ी लंबी साधना होने के कारण आज के युग का मानव इसे करने के विषय में नहीं सोचेगा लेकिन क्योंकि प्राचीन और दुर्लभ साधनाओं का ज्ञान देना इस चैनल की विशेषता है। इसलिए हम आज आप लोगों के लिए एक प्राचीन वायु अप्सरा साधना को लेकर आए हैं। हालांकि इस अप्सरा को सिद्ध करने के बहुत सारे नियम और पद्धतियां है और अलग-अलग नामों से यह शक्ति जानी भी जाती है। लेकिन यह एक! इस विधि को मैं बताने जा रहा हूं। अत्यंत ही शक्तिशाली विधि है और उसके द्वारा अवश्य ही वायु अप्सरा को साधक सिद्ध कर सकता है। इसकी साधना करने से पहले जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात है, वह यह है कि साधक ने भगवान शिव, माता पार्वती इन दोनों की साथ में पूजन अवश्य की हो। और यह साधक अवश्य ही 1 वर्ष तक इन दोनों का पूजन पहले कर चुका हो क्योंकि वायु गमन की विद्या भगवान शिव और माता पार्वती को प्राप्त है। इस विद्या के कारण ही साधक को अगर भगवान शिव और माता पार्वती से आज्ञा प्राप्त नहीं होगी तो सिद्धि प्राप्त नहीं होती है।

यही अप्सरा एक शक्ति है जो कि स्वयं वायु देवता की इच्छा से कार्य करती हैं और उनकी सेविका शक्ति के रूप में जानी जाती हैं जिसे भी वह अपनी अप्सरा के रूप में स्वर्ग में स्थान देते हैं।  आशीर्वाद के रूप में किसी को भी अपनी शक्ति प्रदान कर सकते हैं। इनके ही बल के कारण हनुमान जी को वायुपुत्र कहा गया और देवी अंजनी अप्सरा के रूप से बाद में हनुमान जी की माता बनी थी। मूल रूप से यहां पर जो विशिष्ट बात है, वह यह है कि वायु अप्सरा देवी को सिद्ध करने के लिए दूसरा चरण जो लगता है, वह वायु देवता की सिद्धि होता है। वायु देवता को सिद्ध करने के लिए साधक भगवान शिव और माता पार्वती। आराधना के बाद वायु देवता की 1 वर्ष तक साधना अवश्य करें। इस दौरान आप किसी खंडहर या फिर जिस जगह भी उजड़ी हुई हो किंतु वह किसी के रहने का स्थान कई 100 वर्ष पूर्व रहा हो ऐसी जगह पर।

बैठकर के वायु देवता का नमन करें। अपने सामने वायु देवता की प्रतिमा स्थापित करें जो कि एक इच्छापुर एक मूर्ति के सम्मान प्राप्त मानी जाएगी। अब उनके आगे ध्यान लगाकर। प्राणायाम करें और केवल सांसो की गति सांसो के आने और सांसो के जाने पर ध्यान लगाते हुए। ॐ वं वायु देवताए नमः। इस मंत्र का लगातार जाप करता रहे 1 वर्ष तक रोजाना। कम से कम 2 घंटे मंत्र जाप करें। माला की आवश्यकता नहीं है। ना ही कोई आसन और ना ही किसी विशेष वस्तु की आवश्यकता होती है। प्रतीकात्मक रूप में केवल एक मूर्ति वायु देवता की आपके साथ होनी चाहिए। आपको केवल सांसो के आने और सांसो के जाने और मंत्र का जाप करते रहना है। 1 वर्ष इसी प्रकार जाप करते रहे कहते हैं इस मंत्र का 1 वर्ष तक जाप करने के बाद यह मंत्र सिद्ध हो जाता है। इसी के साथ किसी भी दिन वायु देवता आप को दर्शन देते हैं अथवा हवा के रूप में वहां पर तेज हवाएं चलने लगती है और तब ध्वनि सुनते हैं। यह ध्वनि स्वर्ग लोक की ध्वनि होती है और यह ध्वनि स्वयं वायु देवता उत्पन्न करते हैं। उस दौरान आप को बड़े ही ध्यान पूर्वक उनकी वायु से उत्पन्न होने वाले स्वरों को सुनना है। जब इन स्वरों को आप सुनेंगे तो इनका अर्थ अपने आप ही जान जाएंगे। क्योंकि यह एक गोपनीय मंत्र होता है। उस वक्त आप को बड़े ही ध्यान से अपने कानों से वायु देवता द्वारा बोले गए मंत्र को सुनना है। यही वह मंत्र है जिसका अब आपको आगे चलकर जाप करना होगा इसी मंत्र का जाप करने से। वायु अप्सरा की सिद्धि होती है।

 कहते हैं कि अगर साधक इन स्वरों को सही प्रकार से नहीं सुन पाए। तब भी अपनी साधना को जारी रखना चाहिए। इससे प्राणायाम की अद्भुत शक्ति साधक के अंदर विद्यमान हो जाती है। प्राण विद्या सिखाना और जानना उसको स्वयं ही आ जाता है क्योंकि यह साधना पूरी तरह सात्विक साधना है। इसलिए इसमें भय और किसी भी प्रकार के परीक्षा का कोई संकट नहीं होता है। यह एक आध्यात्मिक साधना है और प्राचीन समय में वेदों में वर्णित थी। किंतु समय के साथ इसका लोप हो गया। अब आते हैं तीसरे चरण में। जब आपको मंत्र प्राप्त हो जाए तो आपको अब साधना के लिए तत्पर हो जाना है। अब आप किसी ऊंचे पहाड़ पर पहुंचे और उस की सबसे ऊंची चोटी पर जहां तीव्र हवा बह रही हो वहां पर जाकर के इसके मंत्र का 14 दिन लगातार दोनों हाथ उठाकर रोजाना 4 घंटे मात्र रात्रि के समय जाप करें। रोज इस प्रकार 4 घंटे करने पर छठे या सातवें दिन से आपको स्पष्ट रूप से वायु अप्सरा की छवि दिखाई देने लगती है। यह एक अत्यंत ही सुंदर मनोरम और बहुत ही खूबसूरत अप्सरा मानी जाती है। जब यह आप के चारों ओर घूमती है। वायु के द्वारा तो आपके चारों और खुशबू ही खुशबू फैल जाती है। इतनी अलौकिक खुशबू संसार के किसी भी फूल या  पदार्थ में नहीं होती है।

इस अद्भुत सुगंध को सुनने मात्र से साधक प्रसन्न चित्त हो जाता है। उसे लगता है कि उसके वर्षों की तपस्या साधना सफल हो रही है। अगले कुछ दिनों में आपको साधना के दौरान! वह दिखती और गायब होती नजर आती है। अत्यंत ही सुंदर वस्त्रों में पूर्ण सज्जा के साथ आपको वह दिखाई पड़ती है। चांदी के चमकने वाले आभूषणों से लदी हुई वह चारों तरफ आपके घूमती रहती है। इसी प्रकार दिन बीते जाते हैं। हर दिन साधना के बाद आप अत्यंत ही प्रसन्न रहने लगते हैं। जिससे भी आप बात करते हैं वह आपकी बातों में ही वशीभूत हो जाता है। अगर प्यार से आप किसी को कुछ कहते हैं तो वह सदैव आपकी बात को मान लेता है। आपके कहे हुए शब्द किसी भी व्यक्ति स्त्री पुरुष सदैव उसे याद रखते हैं। अब शायद साधना के 14 दिन तक किसी भी समय साक्षात रुप में आकर के सामने खड़ी हो जाती है। वायु अप्सरा और आपके आसन को तोड़कर अपने हाथों से आपको सामान्य मुद्रा में ले आती है। आप सामने खड़े हुए आप उसे साथ-साथ देखते हैं। तब पहली बार वह आपकी की इच्छा पूछती है। साधक विनम्र होकर उससे कहे कि मैं आपसे।

कोई भी संबंध जो आप स्थापित करना चाहते हैं माता का, बहन का अथवा पत्नी का उससे अपने मन की बात कह दी। इसके बाद शरीर के लिए वह शक्ति आपके साथ विद्यमान हो जाती है। इसके अलावा! अगर आपने पत्नी के रूप में उसे अपनी सहायक नहीं बनाया है तो आपको उनसे अवश्य ही एक अंगूठी मांगनी चाहिए या अंगूठी आप पहन ले। इसे पहनकर आप इसे इन के गुप्त मंत्र जो कि वायु देवता द्वारा बताया गया था। अंगूठी को 7 बार रगड़ेंगे तो देवी तत्काल साक्षात प्रकट हो जाती हैं। इनके जैसी शक्तिशाली और सुन्दरतम अप्सरा इस संसार में दूसरी नहीं मानी जाती है। कहते हैं अगर साधक इन्हें पत्नी रूप में प्राप्त करता है तो वायु देवता की अद्भुत शक्तियां उसके अंदर विद्यमान हो जाती हैं। यह इनका हाथ पकड़कर किसी भी जगह कहीं भी हवा में उड़कर पहुंच सकता है। वायु की गति से यह उड़ता हुआ सारे संसार को देख सकता है। न सिर्फ पृथ्वी के भाग में उससे ऊपर अंतरिक्ष में और विभिन्न लोकों में भी जाने की गति यह अप्सरा प्रदान करती है। सदैव अप्सरा उसके साथ ही विद्यमान रहती है। उसकी कोई भी अच्छा वह पूरी कर सकती है। जिस भी वस्तु की इच्छा आपको लगती है। वह शून्य से वह वस्तु प्रकट करके साधक के हाथों में  साक्षात दे सकती है। इसी कारण से यह बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली अप्सरा मानी जाती हैं। किसी भी वस्तु को लाकर साधक को दे देना किसी भी स्थान पर साधक को पहुंचा देना इनकी मूल विशेषता होती है। इतना ही नहीं ऐसा साधक किसी के भी कभी भी प्राण ले सकता है। क्योंकि जिस पर भी साधक क्रोधित हो या उसके आसपास उसे जिसे भी अपने वश में करके मृत्यु प्रदान करनी हो कहते हैं। उस स्थान की वायु को शून्य वह कर सकता है। इनका क्षेत्र 20 मीटर का होता है। 20 मीटर के क्षेत्र में यह कहीं पर भी वायु को शून्य कर सकते हैं। इसी कारण से प्रत्येक जीव सांस न ले पाने के कारण मृत्यु को प्राप्त हो सकता है।

इस अप्सरा को सिद्ध करने वाला साधक अतुलनीय बलशाली होता है और मृत्यु के बाद वायु देवता के रूप में ही जन्म लेता है।

यह एक अत्यंत ही प्राचीन और गुप्त साधना है। इसका वर्णन मैंने आपको किया है। मैंने यहां पर वायु देवता का मंत्र बता दिया है और इन अप्सरा का मंत्र वायु देवता के द्वारा ही बताया जाता है।

तो यह थी एक अत्यंत ही गोपनीय वायु अप्सरा की साधना। अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

https://youtu.be/ApgG9NkCOjc

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