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माला प्राण प्रतिष्ठित करने की प्राचीन विधि

आपको सर्वप्रथम माला खरीद कर विधि पूर्वक उसका संस्कार करना चाहिए अन्यथा जप निष्फल है अगर आपको इसका सही ज्ञान नहीं है तो किसी योग्य विद्धवान से उसका एक बार संस्कार अवश्य करा ले जिस तरह किसी भी मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा के बाद वह मूर्ति चैतन्य हो जाती है उसी प्रकार माला के संस्कार से माला चैतन्य अवस्था में हो जाती है और उसके द्वारा किया गया जप फलदाई हो जाता है –

माला संस्कार विधि-

साधक सर्वप्रथम स्नान आदि से शुद्ध हो कर अपने पूजा गृह में पूर्व या उत्तर की ओर मुह कर आसन पर बैठ जाए अब सर्व प्रथम आचमन और पवित्रीकरण करने के बाद गणेश-गुरु तथा अपने इष्ट देव/ देवी का पूजन सम्पन्न कर ले-

तत्पश्चात पीपल के 09 पत्तो को भूमि पर अष्टदल कमल की भांति बिछा ले और एक पत्ता मध्य में तथा शेष आठ पत्ते आठ दिशाओ में रखने से अष्टदल कमल बनेगा अब इन पत्तो के ऊपर आप माला को रख दे तथा अब अपने समक्ष पंचगव्य तैयार कर के रख ले किसी पात्र में और उससे माला को प्रक्षालित(धोये)करे-

पंचगव्य क्या है-

तो आप जान ले कि गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर यह पांच चीज गौ का ही हो उसको पंचगव्य कहते है पंचगव्य से माला को स्नान करना है-स्नान करते हुए अं आं इत्यादि सं हं पर्यन्त समस्त स्वर वयंजन का उच्चारण करे –

ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं !!

यह उपरोक्त मन्त्र का उच्चारण करते हुए माला को पंचगव्य से धो ले और ध्यान रखे इन समस्त स्वर का अनुनासिक(नाक द्वारा)उच्चारण होगा अब माला को पंचगव्य से स्नान कराने के बाद निम्न मंत्र बोलते हुए माला को जल से धो ले-

ॐ सद्यो जातं प्रद्यामि सद्यो जाताय वै नमो नमः भवे भवे नाति भवे भवस्य मां भवोद्भवाय नमः !!

अब माला को साफ़ वस्त्र से पोछे और निम्न मंत्र बोलते हुए माला के प्रत्येक मनके पर चन्दन- कुमकुम आदि का तिलक करे-

ॐ वामदेवाय नमः
जयेष्ठाय नमः
श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः
कल विकरणाय नमो
बलविकरणाय नमः
बलाय नमो बल प्रमथनाय नमः
सर्वभूत दमनाय नमो मनोनमनाय नमः !!

अब धूप जला कर माला को धूपित करे और मंत्र बोले-

ॐ अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्य: सर्वेभ्य: सर्व शर्वेभया नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्य:

अब माला को अपने हाथ में लेकर दाए हाथ से ढक ले और निम्न ईशान मंत्र का 108 बार जप कर उसको अभिमंत्रित करे-

ॐ ईशानः सर्व विद्यानमीश्वर सर्वभूतानाम ब्रह्माधिपति ब्रह्मणो अधिपति ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदा शिवोम !!

अब साधक माला की प्राण-प्रतिष्ठा हेतु अपने दाय हाथ में जल लेकर विनियोग करे-

ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्मा विष्णु रुद्रा ऋषय: ऋग्यजु:सामानि छन्दांसि प्राणशक्तिदेवता आं बीजं ह्रीं शक्ति क्रों कीलकम अस्मिन माले प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः !!

अब माला को बाय हाथ में लेकर दायें हाथ से ढक ले और निम्न मंत्र बोलते हुए ऐसी भावना करे कि यह माला पूर्ण चैतन्य व शक्ति संपन्न हो रही है-

ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम प्राणा इह प्राणाः !
ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम जीव इह स्थितः !
ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम सर्वेन्द्रयाणी वाङ् मनसत्वक चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण प्राणा इहागत्य इहैव सुखं तिष्ठन्तु स्वाहा !
ॐ मनो जूतिजुर्षतामाज्यस्य बृहस्पतिरयज्ञमिमन्तनो त्वरिष्टं यज्ञं समिमं दधातु विश्वे देवास इह मादयन्ताम् ॐ प्रतिष्ठ !!

अब माला को अपने मस्तक से लगा कर पूरे सम्मान सहित स्थान दे-इतने संस्कार करने के बाद माला जप करने योग्य शुद्ध तथा सिद्धिदायक होती है-

नित्य जप करने से पूर्व माला का संक्षिप्त पूजन निम्न मंत्र से करने के उपरान्त ही जप प्रारम्भ करे-

ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि
सर्व मंत्रार्थ साधिनी साधय-साधय
सर्व सिद्धिं परिकल्पय मे स्वाहा !
ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः !

अगर आपको कुछ भी करना नही आता है तो देवी अथर्वशीर्ष का पाठ माला या यंत्र या प्रतिमा पर करने से भी वह स्वतः प्राण प्रतिष्ठा हो जाती है l

जप के समय हमेशा ही ध्यान रक्खे-

1- जप करते समय माला पर किसी भी व्यक्ति की दृष्टि नहीं पड़नी चाहिए –

2- गोमुख रूपी थैली(गोमुखी)में माला रखकर इसी थैले में हाथ डालकर जप किया जाना चाहिए अथवा वस्त्र आदि से माला आच्छादित कर ले अन्यथा जप निष्फल होता है –

३- संस्कारित माला से ही किसी भी मन्त्र जप करने से पूर्ण-फल की प्राप्ति होती है-

2 thoughts on “माला प्राण प्रतिष्ठित करने की प्राचीन विधि”

  1. Namaskar guruji
    Mera naam hetram delu
    Mujhe aapke dwara likhi gai दुर्गा सप्तशती book leni ह

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