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चंद्रा अप्सरा ने खूबसूरत प्रेमिका मुझे दी एक अद्भुत प्रेम कहानी भाग 2

चंद्रा अप्सरा ने खूबसूरत प्रेमिका मुझे दी एक अद्भुत प्रेम कहानी भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। चंद्रा अप्सरा ने खूबसूरत प्रेमिका मुझे दी अद्भुत प्रेम कहानी का दूसरा भाग है तो चलिए पढ़ते हैं इनकी पत्र को और जानते हैं आगे की इनकी अनुभव की विषय में ।

नमस्ते गुरुजी सबसे पहले मैं आपको धन्यवाद कहना चाहता हूं क्योंकि आपने मेरा अनुभव प्रकाशित किया और बिना किसी को कुछ बताएं और अब आगे की अपने जीवन की इस घटना के विषय में बताता हूं। मैंने आपसे कहा था कि वह लड़की। जिसे मैं पसंद करने लगा था, अब जो मैं यह साधना कर रहा था। शायद केवल उसे देखने और उससे बातें करने के लिए ही उस क्षेत्र में जाना चाहता था और यही मेरा सबसे बड़ा बहाना था। तब गुरुजी रात हुई तो मैंने सोचा। अब  उससे जाकर मिल लेता हूं और अपनी साधना भी अवश्य ही करूंगा तो मैं अपने घर से रात होते ही निकल गया। अब मैं वहां जब पहुंचा तो जंगल में घना अंधेरा छाया हुआ था। वहां जाते मुझे हमेशा डर लगता था क्योंकि वह जगह अपने आप में बहुत ही खतरनाक नजर आती थी। अब रात में जब मैं वहां पहुंचा तो अपनी साधना के लिए बैठ गया। पर मेरा मन तो उस लड़की के लिए ही परेशान था क्योंकि वह वादा करके गई थी कि मैं तुमसे कल फिर यहीं पर मिलने आऊंगी तो गुरु जी मैंने अपनी साधना तो कंप्लीट की, लेकिन हमेशा यही सोचता रहा कि आखिर वह कब आएगी? और मैंने अपनी साधना पूर्ण करके साधना से मै घर वापस जाने के लिए वहां से उठा। थोड़ी दूर अचानक से मैंने जंगल में कुछ जोरदार हलचल हुई हलचल कुछ ऐसी लग रही थी जैसे कि वहां पर कुछ हुआ है।

अजीब सी बात थी कि झाड़ियों में बहुत तेज किसी के भागने की आवाज आ रही थी कि तभी मैंने जो देखा मेरी दोस्त यह तो वही लड़की है जो भाग रही है। आखिर वह किस से डर कर भाग रही थी। मुझे इस बात की चिंता होने लगी। लेकिन तभी जो मैंने नजारा देखा, मेरी तो सांसे ही रुक गई। एक बहुत ही मोटा तगड़ा और विशालकाय भेड़िया उसकी तरफ दौड़ रहा था। वह भेड़िया इतना ज्यादा शक्तिशाली नजर आ रहा था कि ऐसा लगता था कि वह बहुत ज्यादा खाता और पीता है। उस भेडिये को देखकर मेरे तो मन में बहुत ज्यादा डर पैदा हो गया। आखिर उस भेड़िए से मैं उसे कैसे बचाऊ?

जो उस पर हमला करने ही वाला था।

तो मैंने सोचा चलो उसकी और तेजी से दौड़ कर जाता हूं। कोई डंडा लकड़ी का टुकड़ा पत्थर जो भी मिलेगा उस पर एक-एक कर मारूंगा। और मैंने तभी एक डंडा जो कि पेड़ से टूटी हुई एक डाली थी, उसे उठा लिया और तेजी से उस लड़की की तरफ भागा। मैंने उसे आवाज देना शुरू कर दिया कि डरो नहीं मैं आ रहा हूं कि तब तक भेड़िया कूदकर उसके शरीर पर चढ़ गया वह जोर से चिल्लाते हुए नीचे गिरी और मैं भी वहां पहुंच गया था। मैंने उसे मारने के लिए अपने उस डंडे को बहुत तेजी से ऊपर उठाया कि जो मैंने देखा, वह तो और भी ज्यादा आश्चर्यजनक रहा। क्योंकि गुरु जी, वह तो हंसते हुए उसके पैरों को पकड़ कर उसे अपने गले से लगा रही थी और वह भी उसके साथ जैसे खेल रहा हो तभी वह उस पर बार-बार उछल रहा था। मैंने सोचा यह तो लगता है पालतू कुत्ते की तरह है मैंने डंडा उस पर उठा रखा था। यह देखकर अचानक से वह मेरी तरफ पलट गया और गुर्राते रहते हुए मेरी तरफ बढ़ने लगा। वह मुझ पर हमला करने ही वाला था कि वह लड़की फिर से मेरे और उसके बीच में आ गई और उसने जोरदार आवाज में उसे कहा, रुक जाओ तो वह एकदम जैसे कोई भीगी बिल्ली होती है। उसी तरह शांत होकर नीचे बैठ गया जैसे कि बहुत ज्यादा उसे डांट दिया गया हो। यह देख कर मुझे और भी ज्यादा आश्चर्य हुआ। मैंने उससे पूछा, क्या यह तुम्हारा पालतू है तो उसने कहा यह हमारे आश्रम में बचपन से ही पला बढा है?

इसकी इतनी अधिक लंबाई चौड़ाई और अच्छा भोजन मिलने के कारण इसकी तंदुरुस्ती बहुत ज्यादा बढ़ गई है। क्योंकि यह हमारे यहां घायल अवस्था में आया था तो गुरु जी ने इसकी मरहम पट्टी की और फिर उसे पाल लिया। आज यह बिल्कुल एक कुत्ते की तरह ही हमारे आश्रम में रहता है और इससे मेरी निकटता कुछ ज्यादा ही है। इसीलिए जब भी मैं जंगल में जाती हूं चाहे मैं कितना भी छुप कर जाऊं। यह पता नहीं कहां से जान जाता है और फिर मेरे पीछे दौड़ने लगता है। इसे देखकर मैं भी तेजी से भाग रही थी ताकि इस से ओझल हो जाऊं, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और यह मुझे सूंघता हुआ पहुंच गया। मेरे पास और खेलने लगा मेरे से, इस तरह यह फिर से मेरे पास आ ही गया। जबकि मैं तो तुमसे मिलने अकेले आना चाहती थी, लेकिन यह बीच में आ ही गया। क्या करूं तब मैंने उससे कहा, तुम्हारे यहां तो बहुत अचरज भरे काम होते हैं। लगता है रहस्यों से भरा हुआ तुम्हारा आश्रम है उसने कहा हां, यह बात सत्य है। हमारे गुरु जी और हम सभी लड़कियां और लड़के उनके सानिध्य में विभिन्न प्रकार की गुप्त साधनाए किया करते हैं।

गुरु जी का कहना है इंसानों से हम थोड़ा दूरी बनाकर रखें। परिवार और प्रेम यह सारी चीजें हमें रोकती हैं तो मैंने कहा, ऐसा तो नहीं है क्योंकि सारे अच्छे जितने भी साधु और संत हुए उनके खुद के परिवार थे। उन्होंने कभी भी परिवार का त्याग नहीं किया। पता नहीं आपके गुरु जी ऐसा क्यों करवाते हैं तो उसने कहा, गुरु जी खुद अविवाहित है। उन्होंने शादी नहीं की है। उनका तो पूरा जीवन हम लोगों को साधना सिखाने, पूजा पाठ करने इत्यादि तक सीमित है।

अब यह उनकी मर्जी है। तब मैंने उससे पूछा, आखिर तुम मुझसे मिलने क्यों आई हो? तो उसने कहा, मेरा कोई अच्छा दोस्त नहीं है। पहली बार तुम्हें देखकर ही मन में आकर्षण हुआ। तब से सोचा कि तुम्हें अपना दोस्त बना हूं और तुमसे ही मिलने के लिए मैं इतनी दूर से आई हूं। अब बताओ क्या तुम्हारी आज की साधना पूरी हो चुकी है? तो मैंने कहा आज की मेरी साधना तो पूरी हो चुकी है। तो उसने कहा, एक बात तुम्हें बताऊ  बुरा तो नहीं मानोगे तो मैंने कहा, हां जरूर बताओ मैं बुरा क्यों मानने लगा?

तब उसने कहा मुझे लगता है तुम अपनी साधना में ध्यान नहीं दे रहे हो। कोई भी साधना में पूरी तरह से तन्मयता के साथ देवी या देवता को स्थापित करके ही साधना करनी चाहिए और बात पर आपका ध्यान नहीं खोना चाहिए पर मुझे लगता। आपका ध्यान कहीं और है।

तब मैंने उससे पूछा, अच्छा आप तो भविष्यवक्ता भी लग रही है तो आप ही बता दीजिए किस पर मेरा ध्यान है? तो वह मुस्कुराने लगी। मैंने कहा इस प्रकार मुस्कुराने की जरूरत क्या है? आपसे मैंने प्रश्न पूछा है? तब आपने कोई जवाब ही नहीं दिया तो वह कहने लगी। क्या एक लड़की की मुस्कुराहट से तुम समझ नहीं पाते हो कि मैं क्या कहना चाहती हूं?

मैंने उससे कहा, इतना ज्यादा ज्ञान मुझे नहीं है। स्पष्ट रूप से मुझे बताओ तो वह कहने लगी। तुम यहां सिर्फ मेरे लिए ही आए हो और साधना करना तो केवल एक बहाना था।

तब मैं तो बिल्कुल आश्चर्य में ही आ गया था क्योंकि यह तो मेरे मन की बात थी। उसे कैसे पता चली तो मैंने उससे पूछा, आपको यह बात कैसे पता चली तो उसने कहा हमारे पास साधना के साथ थोड़ीन सिद्धियाँ

भी तो है मन की बात जान लेना उन्हीं सिद्धियों में सम्मिलित है। इसीलिए तो मैं भी तुमसे मिलने आई हूं। अब कोई आपसे मिलने के लिए अपने घर से इतनी दूर साधना करने आए तो फिर हम क्यों नहीं उससे मिलने जाए। इसीलिए आश्रम के नियम के हिसाब से तो मुझे यहां पर नहीं आना चाहिए था। पर फिर भी मैं यहां पर आई हूं।

कि तभी मैंने देखा एक तीर उसके और मेरे बीच से होकर गया। जैसे ही मैंने उससे कहा, यह क्या था उसने कहा, जल्दी से नीचे बैठ जाओ। हम पर हमला होने वाला है और तुरंत कि मैं उसके साथ नीचे बैठ गया और वहां तीरों की बारिश होने लगी।

आगे क्या हुआ गुरुजी अगले भाग में मैं आपको बताऊंगा आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!

सन्देश- तो देखिए यहां पर इन्होंने यह अपने जीवन की घटना और साधना का विवरण भेजा है। आगे के भाग में हम जानेंगे आदि की घटना के विषय में राज का वीडियो और आपको इनको पसंद आ रहा है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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