अनुरागिनी यक्षिणी से मेरा सामना अंतिम भाग
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आपका एक बार फिर से स्वागत है । हमारी कहानी चल रही है आज हम जानेंगे
इसका अंतिम भाग । अनुरागिनी यक्षिणी से मेरा सामना अंतिम भाग जैसा कि आप लोग जानते ही हो कि मैंने
यक्षिणी की परीक्षा ली थी । उसमें वह सफल रही थी । मुझे भी अब यकीन हो गया था की जो मैं सपने में देख रहा हूं वह
सब सही है । यक्षो की दुनिया होती है यह सारी बातें मैंने अपने भाई को बताई । तो उसने कहा तभी मुझे सिद्धि नहीं
मिल रही है शायद । चलो ऐसा करो कि तुम भी मेरे साथ ही बैठकर जाप करो । देखते हैं क्या होता है । मैं मान गया
अब मैं भी रात को उनके साथ ही बैठकर जाप करने लगा ।
दोनों ने मिलकर साथ में उस रात को पूजा की ।लेकिन कोई
अनुभव नहीं हुआ । फिर भाई ने कहा ऐसा करो तुम अलग कमरे में जाकर जाप करो । मेरे साथ नहीं मैंने कहा ठीक है
। रात को 2:00 बजे तक जाप करता रहा । और जाप करते करते थक कर सो गया । अचानक ही फिर सपने आना शुरू
हो गए । मैंने देखा सपने में वही जगह बैठा हूं जहां जाप कर रहा हूं । तभी मेरे पीछे कई जानवरों के दौड़ने की आवाज
आ रही थी । मैंने पीछे मुड़ कर देखा । तो जानवर भागते हुए मेरे पास आ रहे थे । तो मैं उठकर भागा । कि यह कहीं
मुझे कुचलना ना दे । तभी एक सफेद रंग की गाय आकर मेरे पास खड़ी हो गई । और उसने सभी जानवरों को अपनी
सिंह से डरा कर भगा दिया । वह गाय बहुत सुंदर थी पता नहीं मेरे अंदर यह भावना कहां से आई । कि मैं उसे चूमने
लगा । और मैंने उसके स्तन पकड़ लिए और उनमें मुंह लगा दिया ।
और दूध पीने लगा ।तभी मैंने ध्यान दिया तो मैं
स्तब्ध रह गया । वह कोई गाय नहीं एक सुंदर स्त्री थी जो पूर्णता नग्न थी । जिसे मैंने चूमा था जिसके स्तनों का पान
करा रहा था वह गुस्से से चिल्लाते हुए बोली । यह क्या किया तुमने मेरा स्तनपान कर लिया मैं तुम्हें अपना प्रेमी
बनाना चाहती थी । और तुम मेरे पुत्र कैसे बन गए । ओहो अच्छा तो यह माता दुर्गा की माया है । की तभी मैं स्त्री नहीं
गाय होकर तुम्हें दिखी । और तुम मेरे साथ वो नहीं कर पाए । मैं तो स्त्री बनकर ही शुरू से आई थी ।लेकिन दिखी
तुम्हें गाय के रूप में । तुम देवी पार्षद का पद पा चुके हो । इसलिए मैं तुमसे माफी मांगती हूं । तुम केवल अपने जीवन
में उच्च साधना ही करो । और नश्वर जीवन से मुक्ति की ओर आगे बढ़ो भोगो में मत फसना । कह कर वह चली गई ।
उस दिन मेरे भाई को अनुरागिनी ने दर्शन दिए ।और पूछा क्या चाहते हो । भाई ने कहां तुम मेरी पत्नी बनो । तो
यक्षिणी ने कहा तुम्हारी तो पत्नी है । फिर तो भाई ने कहा मैंने उसे त्याग दिया है ।
मुझे बस तुम ही चाहिए । देवी
बोली ठीक है लेकिन पहले मुझे संभोग द्वारा संतुष्ट करो । तो भाई खुश होकर बोला ठीक है। यक्षिणी फिर बोली
अगर संतुष्ट नहीं कर पाए तो मैं चली जाऊंगी । और फिर कभी तुमसे सिद्ध नहीं हो पाऊंगी । भाई ने कहा ठीक है
।दोनों में संभोग शुरू हो गया । थोड़ी ही देर में यक्षिणी भयानक चुड़ैल में बदल गई । और संभोग करने लगी । इससे
भाई इतना अधिक घबरा गया है कि उसे छोड़कर भाग खड़ा हुआ । यक्षिणी ने पीछे से कहा तुमने मुझे मूर्ख बनाया है ।
तुमने अपनी पत्नी को लेकर भी झूठ बोला । इसलिए मैंने ऐसा रूप धरा अब मैं कभी सिद्ध नहीं हो पाऊंगी । कह कर
वह चली गई । यह बात सुबह मुझे मेरे भाई ने बताई । इस पर मैंने कहा तुम्हें देवी से झूठ नहीं बोलना चाहिए था । तो
इस प्रकार यह मेरी अनुरागिनी देवी का अनुभव रहा था । आपको पसंद आया होगा यह सभी साधकों के लिए एक
सबक है किसी गलत भावना से कभी साधना ना करें । धन्यवाद आपका दिन मंगलमय हो ।