नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आपका एक बार फिर से स्वागत है। अभी तक बहुत सारे ऐसे अनुभव है जो दूसरे लोग भेजते हैं, लेकिन आज एक ऐसा अनुभव है जिसके साक्षी हम स्वयं मान सकते हैं। लेकिन इससे अधिक मैं आपको उसके बारे में कुछ भी नहीं बता सकता। एक साधक की यात्रा है। इसमें एक ऐसा अनुभव किया जिससे उसके। स्वयं के जीवन के रहस्य भी खुले और एक बहुत बड़ी घटना को भी। जानने और समझने का उसे पूरा मौका मिला। तो चलिए शुरू करता हूं मैं आज का अनुभव।
यह अनुभव एक व्यापारी का है। जो अपने गांव में अपनी शादी के उपरांत अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ में गांव जाता है। उद्देश्य था। करवा चौथ मनाना और साथ ही साथ नवरात्रि का पर्व भी मनाना।
बहुत समय के बाद। व्यापारी को मौका मिला था। कि वह? कुछ समय अपने गांव में बिता सकें।
ऐसा मौका बहुत ही कम मिल देखने को मिलता है क्योंकि कामकाज के दौर में समय अधिकतर अपने गांव क्षेत्र में जाने का व्यक्तियों को कम ही मिल पाता है। व्यापारी अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ में। अपने गांव आ जाता है। गांव में परिवार के लोगों का ऐसा मत था कि माता के मंदिर अवश्य जाएं और वहीं से करवा चौथ की सामग्री करवा भी खरीद ले।
क्योंकि करवे की पूजा होनी आवश्यक है। करवा चौथ के दौरान उसने नया करवा खरीदना आवश्यक होता है।
करवा पूजे जाने की प्रथा, जिसे हम करवा चौथ भी कहते हैं। लगभग हमारे देश में सभी जगह होती है। ऐसा ही उसके साथ भी घटित हो रहा था।
और उस व्यापारी ने अपनी पत्नी को कहा कि परिवार के अन्य सदस्यों यानी कि अन्य स्त्रियों के साथ जाकर के वह करवा खरीद ले
तो वह निकलती है। और? थोड़ी ही दूर जाने के बाद अचानक से।
काफी! बड़ी मात्रा में लोगों का आना जाना एक स्थान से हो रहा था। लेकिन समय ऐसा था जिसके कारण से उसे उसे और से जाना उचित नहीं लगा। परिवार के सदस्यों ने कहा, बीमारी फैली हुई है इसलिए! लोगों से दूर रहने में ही फायदा है। लोगों की बात को सुनकर। वह भी कहने लगी कि क्यों ना हम लोग मंदिर तक पहुंचने के लिए किसी दूसरे मार्ग का चयन करें। परिवार की स्त्रियों को उसकी बात समझ में आ गई। लेकिन उन्होंने कहा कि उस और जाने के लिए बीच में एक खंडहर पड़ता है जो दूसरा रास्ता घूमकर है।
उसने कहा ठीक है! खंडहर से होते हुए गुजरेंगे और फिर माता के मंदिर तक पहुंच जाएंगे।
सभी ने आपस में। यह सुना है कि और सभी तैयार हो गए उस रास्ते से जाने के लिए।
सभी स्त्रियां उस रास्ते से जाने लगी जाते-जाते थोड़ी दूर। जब वह खंडहर मे अचानक से। इस नई नवेली दुल्हन के सिर में हल्का सा दर्द होने लगा। उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। बड़ा ही अजीब सा उसे महसूस हो रहा था, किंतु क्या करती? बाकी लोगों की समझ से उसे उसी रास्ते से जाना था। क्योंकि दूसरे रास्तों पर भीड़ होने की वजह से लोगों से दूरी बनाए रखना आवश्यक था। यही सोच कर! उसने कहा चलो कोई बात नहीं, खंडहर की ढूंढ कर। से बचते हुए मुझे मंदिर पहुंच जाना होगा। और वह अन्य स्त्रियों के साथ उस खंडहर से गुजरने लगी। तभी अचानक से वह बेहोश होकर गिर गई।
अन्य स्त्रियॉं ने उसे उठाया। और? उसे मंदिर पर ले जाकर बिठा दिया।
किसी को यह समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह नव नवेली वधू बेहोश कैसे हो गई है?
थोड़ी देर बाद परिवार के अन्य सदस्य भी आ गए। और सब ने कहा माताजी के दर्शन कर लिए जाएं। तब तक? वधु को होश आ चुका था। किंतु वधू ने मंदिर प्रवेश करने से साफ इनकार कर दिया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वह कह रही थी, उसकी तबीयत सही नहीं है। इसलिए वह मंदिर नहीं जाएगी। तो परिवार वालों ने भी ज्यादा जोर नहीं दिया क्योंकि वह अभी अभी बेहोश हुई थी।
सभी ने सोचा शायद वह नहीं जाना चाहती और बाकी लोग मंदिर से दर्शन कर उसके पास वापस आ गए और उसे कहने लगे चलो घर। मैं तुरंत घर चलने को तैयार हो गई। घर पहुंचने के बाद में। अचानक से उसने कहा कि?
आज मेरा! भोग खाने का मन है। विशेष प्रकार के भोग की मांग करने पर परिवार के सदस्यों को आश्चर्य हुआ। कि आखिर? अभी तो यह बेहोश हुई थी और अब एक विशेष तरह के भोग की मांग कर रही है। परिवार के सदस्य उसे आश्चर्य पूर्वक देखने लगे। लेकिन उसका मन!
शायद उस ओर झुक चुका था इसलिए वह जोर-जोर से कहने लगी। सभी को और भी अधिक आश्चर्य हुआ कि नव नवेली वधु को आखिर हुआ क्या है और यह क्यों गुस्से से? भोग भोग मांग रही है। इसी प्रकार उसके लिए भगा कर लाया गया। और लगभग 1 किलो की मात्रा वह आसानी से चट कर गई और कहने लगी और हो तो और लाओ।
उसका पति यह देखकर आश्चर्य में पड़ गया और उसने गुस्से से कहा, परिवार में मेरी बदनामी क्यों कर रही हो? आखिर चाहती क्या हो? क्या मैं तुम्हें शहर में अच्छी चीजें नहीं दिलाता हूं? इस पर वह गुस्से में आ गई और कहने लगी। मेरी जो ईच्छा में वह खाऊंगी।
और कोई भी मुझे नहीं रोकेगा। आखिर होते कौन हो तुम मुझे रोकने वाले? पर? उसके पति को बड़ा ही अचरज हुआ। जो पत्नी अभी तक जी जी कहकर ही बातें किया करती थी। यहां पर इस तरह का बर्ताव कर रही थी।
उन्होंने! उसका हाथ पकड़ कर उसे एक कमरे में लेकर गए और समझाने की कोशिश करने लगे।
तभी। परिवार वाले सदस्यों ने बड़ी जोर जोर से चिल्लाने की आवाजें सुनी।
वह व्यक्ति जोर-जोर से चिल्लाकर कमरे से बाहर भागा था। उसने कहा मेरी पत्नी पागल हो चुकी है।
उसने मुझे मारा है। यह देखकर बाकी लोगों को भी आश्चर्य हो गया। कि आखिर इसकी पत्नी को हुआ क्या है? उसने अपने पति को आखिर क्यों मारा?
तो तभी ने सभी ने सोचा। कुछ ना कुछ तो गड़बड़ जरूर है। यह सब कुछ खंडहर से शुरू हुआ है क्या इससे? औरत के ऊपर कोई साया आ गया है।
इसीलिए उन्होंने एक तांत्रिक को बुलाने की सूझी!
शाम तक तांत्रिक को फोन किया गया। और वह तांत्रिक बुला लिया गया।
तांत्रिक आश्चर्य में था।
क्योंकि जब उसने परिवार के सदस्यों को पूछा कि आपको मेरा फोन नंबर कहां से मिला? तो सब ने कहा कि यही स्त्री यह नंबर बड़बड़ा रही थी।
तभी हम लोगों ने इस नंबर पर कॉल किया।
और आपसे बातचीत हुई आपको सारी बात बताने पर आप यहां आ गए।
उस साधक व्यक्ति को अचरज हुआ। कि मेरा नंबर तो किसी के पास नहीं। इस व्यक्ति को कैसे मिला?और फिर उस व्यक्ति ने कहा। कि ठीक है अगर मैं यहां आ चुका हूं। तो फिर आपका कार्य करके ही जाऊंगा।
और जैसे ही वह उसे स्त्री के पास आकर बैठे।स्त्री जोर जोर से हंसने लगी।
उसने कहा कि?
घर के बरामदे में 2 फुट गहरा खोदो।
और उस खुदाई से जो मिले वह लेकर के आओ। उसकी पत्नी भी भाषा को सुनकर सभी आश्चर्य में थे। उसकी बात में गहराई थी और आवाज थोड़ी मोटी थी।
जब उसने इस प्रकार से कहा। तो सभी आश्चर्य में आ गए। साधक महोदय ने भी कहा ठीक है? अगर यह कह रही है तो आप सभी को अपनी फरवानी होगी। और परिवार के सदस्यों ने ना चाहते हुए भी बरामदे की अच्छी खासी फ़र्श को तोड़ दिया। 2 फुट गहरा खोदने के बाद। उन्हें एक करवा मिला। करवे में रखे हुए तीन रत्न।
उन 3 दिनों में। एक नीलम था।
एक हीरा था और एक रत्न पन्ना था।
इस प्रकार से होती नवरत्न!
उसके पास लाएंगे।
और उन्हें देखकर बहुत जोर जोर से हंसने लगी। उसने कहा मुक्त कराओ जब तक इन तीनों को मुक्त नहीं कराया जाएगा? तब तक मैं इसके शरीर से नहीं हटूंगी।
यह बात सुनकर सब के सब आश्चर्य में पड़ गए। उस स्त्री पर आखिर किस की आत्मा थी? और उसने वह तीन रत्न क्यों निकलवाए थे जो एक करवे में? भरे हुए थे।
उस स्त्री में प्रवेश की चुड़ैल ने अपने बारे में बहुत कुछ बताया, अब बारी थी तांत्रिक! की तांत्रिक ने उससे पूछा, तुम्हारे साथ ऐसा क्या घटित हुआ जिसकी वजह से तुम यह सब कार्य कर रही हो? यह सुनकर रोती थी। वह स्त्री चीख कर बोली, मेरे साथ बहुत गलत हुआ है। मैं करवे में रहकर लोगों की मौत देखना चाहती हूं।
मैं जिस से प्रेम करती थी उसी ने मेरे साथ धोखा किया। और मैं इस करवे में फंसी रह गई।
यह करवा ही मेरी मृत्यु का कारण है। इस पर तांत्रिक ने कहा।
यह मैं कैसे मानूं मुझे पूरी बात बताओ? तब उस स्त्री ने कहा कि जो यह तीन रत्न निकले हैं।
यह 3 नग तुम धारण कर लो।
और फिर मैं तुम्हें वह सारी बातें बताऊंगी।
उस तांत्रिक ने उन 3 रत्नों को अपने गले में धारण कर लिया।
और तभी वह स्त्री जोर जोर से हंसने लगी।
उसने कहा सुनो! इस गांव से कुछ ही दूरी पर एक और गांव है। मैं वहां एक ठाकुर के घर में नई ब्याहता था बन कर आई थी।
और मैं बहुत अधिक खुश थी। मेरे पति भी उस दौरान मेरा अच्छे से ख्याल रखते थे।
किंतु धीरे-धीरे उनका व्यवहार बदलने लगा। वह दूसरी स्त्रियों के चक्कर में आ गए थे। गांव में बहुत सारी ऐसी स्त्रियां थी जो चरित्रहीन थी। इसी कारण से उन सबके पास कई पुरुषों का आना-जाना हुआ करता था।
मेरे पति को भी यह बुरी लत गांव की गलत संगत की वजह से लग गई।
एक बार जब मुझे इस बात का पता चला। तो मैंने अपने पति को कहा, अगर दोबारा मुझे आप? किसी अन्य स्त्री के साथ दिखाई दिए। तो मैं आपको छोड़ कर चली जाऊंगी।
मेरी इस धमकी का उनके ऊपर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा। मुझे भी बड़ा जोर से गुस्सा आ गया।
करवा चौथ वाली रात के समय अचानक से ही मुझे बड़ा गुस्सा आया। और करवे का पानी पीकर मैंने कहा कि मैं अपने पति के लिए इस व्रत को त्यागती हूं। और मैंने!
चंद्रमा से यह कहा कि मैं अपने पति का साथ छोड़ती हूं ऐसे।
गंदे पति को अपने पास रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। क्योंकि उस दिन मैंने! अपने ही पति को एक पराई स्त्री के पास जाते हुए देख लिया था और वहां उसकी कुटिया में प्रवेश करते थे।
उनके प्रवेश करते ही मुझे इस बात का आभास हुआ कि जिसके लिए मैंने सारा जीवन अर्पित कर दिया। वह पुरुष किसी अन्य स्त्री के लिए करवा चौथ की रात को भी नहीं रुक रहा है।
और इस वजह से मैं! इतना अधिक क्रोधित हो गई कि मैंने गुस्से में आकर व्रत को तो थोड़ा ही साथ ही साथ।
मैं इस बात के लिए अपने आपको तैयार करने लगी कि मैं अपने पति को छोड़ दूंगी।
लेकिन कभी भी किसी व्रत का संकल्प लेने के बाद उसको इसी प्रकार कभी नहीं छोड़ते। और यहीं पर गलती हो गई। मेरे मंगलसूत्र में लगे हुए 3 नग मैंने करवे के अंदर तोड़ कर रख दिये।
और गई अपने पति को मारने के लिए।
मैंने दरवाजा खोलकर देखा तो वह उस औरत के पास बैठे हुए।
अपनी रासलीला रचा रहे थे। मेरे पति ने जब मुझे देखा तो वह बहुत अधिक झेप गए। लेकिन? उस स्त्री ने कहा लो तुम्हारी पत्नी आ गई। अब इससे कैसे बचोगे? यह कहकर वह हंसने लगी।
मेरे पति को गुस्सा आया उसने कहा। आज के दिन भी तुझे चैन नहीं है। अपने करवा चौथ का व्रत को छोड़कर तू यहां यह सब करती फिर रही है। अब तो मुझे और भी अधिक गुस्सा आ गया। मैंने अपने पति को एकटक देखा और गुस्से से बोली जिसके लिए यह व्रत वगैरह लिए जाते हैं। अगर वही इस तरह का कमी ना इंसान निकले तो भला उस स्त्री के जीवन का। क्या मतलब रह जाता है? जो किसी दूसरे के लिए स्वयं को भूखा रख रही हो।
उसने कहा। अभी समझदार नहीं है, तू नहीं जानती पुरुष पुरुष होता है और अपनी मर्जी से कुछ भी कर सकता है।
क्या तू मुझे छोड़ कर जा पाएगी कौन रखेगा तुझे? एक ब्याह था, अपने पति का घर छोड़कर नहीं जा सकती।
उसकी बातें सुनकर मुझे और भी अधिक गुस्सा आया। मैंने वहीं पर पास में रखे हुए। एक कुल्हाड़ी को उठाया। और उससे उस स्त्री के सिर पर दे मारा। उसका सिर फट गया और वही वह तत्काल मृत्यु को प्राप्त हो गई। मेरे पति को भी बहुत अधिक गुस्सा आ गया।
उसने तुरंत ही उसी कुल्हाड़ी को उठाया और मेरे सिर पर दे मारा। मेरी भी वहीं पर मौत हो गई।
इसके बाद मेरे पति ने बहुत ही अधिक गुस्से में।
घर आकर। उस करवे को। देखा जिसमें मेरे 3 नग रखे हुए थे।
और कुछ कर जंगल ले जाकर के।
एक स्थान में गाड़ दिया।
यह सोच कर कि मेरे साथ मेरे सुहाग की निशानी भी सदा के लिए समाप्त हो जाएगी।
किंतु?
आज से कुछ वर्ष पूर्व!
इस गांव के एक व्यक्ति को जंगल में खोदकर के अपने घर ले आया ।
क्योंकि यह करवा चांदी का था और इसके अंदर तीन बड़े नग पड़े थे।
इन तीन बड़े नगों को देखकर।
उन्हें प्राप्त करने की इच्छा से यह व्यक्ति इसे अपने घर तक ले आया। और अपने घर में उसने यह अपनी पत्नी को दिया।
पत्नी ने इसे पहन लिया। लेकिन जैसे ही उसने इसे पहना मेरी आत्मा का प्रकोप उस पर हुआ। मैं पुरुषों से नफरत करती थी इसलिए उसके शरीर पर हावी हुई।
और इसकी वजह से वह स्त्री अत्यधिक। गुस्सा करने लगी और अपने पति को छोड़ने की बातें करने लगी। दोनों में हाथापाई हुई और तब! किसी कारण से यह नग नीचे गिर गए। जैसे ही नग उस स्त्री के शरीर से नीचे गिरे स्त्री को होश आया और कहने लगी। यह मैं क्या कर रही थी, उसने अपने पति से माफी मांगी।
तब? उस व्यक्ति ने अपने ही आंगन में इसे गढ़वा दिया।
नग सहित करवे को उसके अंदर गड़वा दिया गया था।
लेकिन मेरी!
एक कमी जो।
किसी गलती के कारण हो गई थी वह यह थी कि करवे में।
लगा हुआ कुछ।
नग के हिस्सों का सोना। उस व्यक्ति के हाथ में लग गया था।
और?वह! उसे छुड़ाने की जब कोशिश कर रहा था तो वह अच्छी तरह छूट नहीं पा रहा था। सोने का हाथ में घिसकर लगना। मेरी ही शक्ति का परिचायक था । वह व्यक्ति उसे हटाने के लिए मंदिर की ओर जाने लगा। क्योंकि उसे लग रहा था कि अगर वह मंदिर जाकर।
इसको हटाएगा तो आसानी से हट जाएगा क्योंकि इस पर कोई बुरी बला का साया है। तभी व्यक्ति उस खंडहर वाले छोटे रास्ते से जाने लगा। खंडहर में अचानक से ही।
गिर पड़ा और उसके हाथ से रगड़ कर मिट्टी में ही वह सोने का हिस्सा वहीं रह गया।
उस सोने पर जब इस नव नवेली वधु के पैर पड़े तब मेरा। अंश इसके शरीर में समा गया।
और अब मेरा उद्देश्य था कि मैं? फिर से किसी पुरुष को मार डालू जैसा मेरे पति ने मेरे साथ किया वैसा ही अब हर स्त्री अपने पुरुष के साथ करेगी। यही मेरी आखिरी इच्छा रह गई थी। इसीलिए मैं सोच रही थी कि मैं।
इसके पति को उसके हाथों ही मरवा देती।
लेकिन? मंदिर में कुछ फूल? जो अत्यधिक किसी पवित्र व्यक्ति के द्वारा लाए गए थे।
इस स्त्री को छू गए थे। इसी कारण से उनके असर की वजह से मुझे यह भावना हुई कि मुझे अपनी मुक्ति का प्रयास करना चाहिए।
उन पवित्र फूलों के कारण से। मै जान पाई कि अब मुझे अपनी मुक्ति का प्रयास करना चाहिए। बदले की भावना आखिर में कब तक रखूंगी?
तब मुझे! आभास हुआ और। आपको बुलाने की इच्छा महसूस हुई।
क्योंकि आप जैसा पवित्र व्यक्ति।
कोई भी यहां पर नहीं है।
इसी कारण से मैंने वह नंबर बोला जिसके माध्यम से आपको यहां पर बुलाकर लाया गया।
और आज आप ही मेरी मुक्ति करवाएंगे?
यह सुनकर तांत्रिक कहने लगा। देर से ही सही तुम्हें सद्बुद्धि की प्राप्ति हुई है। इसलिए मैं तुम्हारी मुक्ति का प्रयास अवश्य करूंगा बताओ किस प्रकार से?
तुम्हारी मुक्ति संभव है।
इस पर वह शक्ति कहने लगी किसी? पतिव्रता स्त्री और उसके।
बहुत ही पवित्र पति के द्वारा ही यह संभव है।
पतिव्रता स्त्री यदि अपने करवे में रखकर। इसे पूजेगी। और फिर सच्चे हृदय से अपने। पति के द्वारा। इन्हीं रत्नों को स्वयं धारण करेगी अथवा अपने पति को धारण करवा देगी तो मैं मुक्त हो जाऊंगी।
इस प्रकार उस तांत्रिक ने अपनी ही पत्नी को बुलाया। और उस पतिव्रता स्त्री ने। करवे की पूजा की। और उस पूजा को करने के पश्चात। उन रत्नों को अपने ही पति को धारण करवा दिया।
जितनी भी नकारात्मकता थी, उन रत्नों में सदैव के लिए समाप्त हो गई।
ठीक वैसे ही जैसे कि किसी गर्म वस्तु के पास ठंडी वस्तु को रखने पर। ठंडी वस्तु भी गर्म होने लगती है। और ठंड का दोष नष्ट हो जाता है।
यहां पर भी वैसा ही हुआ और दोनों के प्रेम की वजह से उस चुडेल का तामसिक! प्रभाव सदैव के लिए नष्ट हो गया और उसको तांत्रिक ने मुक्ति भी प्रदान कर दी। यहां पर यह बात स्पष्ट है कि व्रत पर्व या त्योहार। सदैव एक सीख देते हैं। एक दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पण की अगर समर्पण दोनों में एक जैसा ही है तो कोई भी नकारात्मक शक्ति आपका कुछ बिगाड़ नहीं सकती बल्कि स्वयं भी पवित्र हो जाती है।
लेकिन अगर किसी जोड़े में आपस में नकारात्मकता है और प्रेम नहीं है तो कोई भी व्रत पर्व या त्योहार उसे शुद्ध नहीं कर सकता।
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