प्रणाम गुरुजी
गुरुजी, पिछले पत्र मे दर्शकों ने जितना प्यार, मुझे और सुगंधा को दिया है. उन्हें मैं शब्दों मे बयान नहीं कर सकता. मुझे यकीन है कि आपके आशिर्वाद और दर्शकों के इस प्रेम के कारण ही मैं, सुगंधा को कुछ खुशिया दे पाया हू. क्युकी इस जन्म से पहले तक, जितना मैं अभी तक जानता हू, मैंने उसे दुख और आंसू ही दिए हैं. माता रानी की कृपा से शनिवार 23 may 2020. को मुझे रात मे मेरी कुलदेवी का स्वप्न आया था. और जो कुछ कुलदेवी ने मुझे बताया था, और जिस प्रकार मुझे मार्ग-दर्शन दिया है. आज के इस पत्र में बताने का प्रयास करूगा. और गुरुजी उसके दो दिन पहले. सुगंधा ने मुझे भगवान नारायण, भगवान शिव, और माता रानी की मूर्ति रूप मे नित्य पूजा करने की आज्ञा दी थी. और मुझे रोज पूजा किस तरह करनी चाहिए. जिस प्रकार बतलाया है. वो भी बताने का प्रयास करूगा.
और एक बात कहना चाहता हू गुरुजी आपकी आज्ञा लेकर, की माता रानी की पूजा विधी नहीं बता पाऊँगा, क्युकी सुगंधा के मुताबिक साधारण पूजा मे भी कभी कभी माता तो नहीं मगर माता की सेविका शक्तियों के दर्शन हो जाते है, सौ मे से किसी एक साधक के साथ ही ऐसा होता है. लेकिन गुरु की कृपा दृष्टी के बिना वो साधक कोई न कोई गलती अवश्य कर बैठता है. जिसके परिणाम स्वरूप वो साधक विचलित भी हो सकता है. इसलिए मैं दर्शकों से माफ़ी मागता हू, और फिर से निवेदन करता हू गुरु बना कर आप लोग गुरु से ही माता रानी के किसी भी रूप कि पूजा, या साधना विधी लीजिये. क्युकी अगर आप कल को किसी मुसीबत में फंसते भी है, तो सुगंधा नहीं आएगी बचाने आपको क्युकी वो अभी आपको जानती नहीं है, और मैं तो इस योग्य हू ही नहीं कि आपको बचा सकू. उस समय आपकी रक्षा आपके गुरु का दिया हुआ गुरुमंत्र और कवच इत्यादि ही कर सकते है. मैं सभी दर्शकों से माफी मांगता हू प्रणाम करके और गुरूजी आपके चरणों को स्पर्श करके आज का पत्र शुरू करता हू
गुरुजी दूसरी बार जब योगिनी माता ने मुझे दर्शन दिए थे. तो अगले पूरे दिन मुझे तेज बुखार और असहनीय दर्द था. मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे शरीर की नसें फट जाएगी. और सुगंधा के आने के बाद ही मुझे दर्द और बुखार से राहत मिली थी. और फिर मैंने भोजन किया सुगंधा के कहने पर. और सुगंधा ने मुझे आराम करने को कहा ये कहते हुए कि, सब कुछ बदल गया आपका इतने सालो मे , रूप, रंग, कद, काठी, आपकी आवाज, मगर एक चीज नहीं बदली आपका जिद्दी स्वभाव. हर चीज जानने की इतनी जल्दी क्यु है आपको? समय आने पर आप को माता खुद किसी ना किसी रूप में आ कर सब कुछ बता देगी. और मेरे बार बार मना करने के बाद भी आप माता की सेविका शक्तियों को आमंत्रण देते है. वो कोई छोटी मोटी शक्तियां नहीं है. माता का अंश है उन सभी शक्तियों मे. अघोरियों को पूरा जीवन लग जाता है उनकी एक झलक पाने के लिए. माता का आशिर्वाद ही है कि वो बालिका रूप में आती है. अन्यथा उनके साक्षात भयानक रूप को देख कर बड़े बड़े सिद्ध और अघोरी भी पागल हो जाते है. अपने होश और अपनी चेतना सब कुछ खो बैठते है . आपको रोज उन्हें इस तरह नहीं बुलाना चाहिए.
जब उन शक्तियों ने पहली बार आपको दर्शन दिए थे, तभी उन्होंने संकेत दे दिया था, की “अब आज से हम सभी चौसठ बहने यही रहेगी”.वो अदृष्य रूप से सिर्फ आपकी रक्षा के लिए है, क्युकी आप माता के आशीर्वाद है, आपका ये जीवन मेरी तपस्या का फल है. इसके आगे कुछ भी करने का आदेश उन शक्तियों को नहीं है. लेकिन जब आप खुद उनका आह्वान करेगे तो वो प्रकट होगी ही. मैंने सुगंधा से कहा गुरुजी की नहीं सुगंधा मैंने सिर्फ माता से बात की थी, उन शक्तियों से बात नहीं की थी मैंने. उन शक्तियों से तो मैं खुद बहुत डरता हू. मैंने उनको कभी नहीं बुलाया वो खुद आयी थी. सुगंधा ने मुझसे कहा कि आपके इस तरह बेवजह बुलाने से माता गौरी नहीं आएगी. ऐसे में आपके सवालों के जवाब उनके अंश ही आपको देगे. आपने कभी सोचा है, जब आप किसी भी दर्द मे होते है तो मुझे कितना दुख होता है?? गुरुजी मैंने सुगंधा से कहा कि नहीं सुगंधा plzz रोना मत मैं वचन देता हू की आज से कभी माता से कुछ नहीं पूछूँगा. सुगंधा ने कहा और मेरी हर बात भी मानेंगे. इसका भी वचन दीजिए? मैंने कहा गुरुजी हाँ हर बात मानूँगा. तब सुगंधा थोड़ी खुश हुई गुरुजी. और फिर सुगंधा के कहने पर मैंने उस रात आराम किया.
गुरुजी गुरुवार के दिन जब सुगंधा आयी तो उसने मुझे अचानक से कहा कि अभी तक आप अर्ध नारीश्वर स्तोत्र ही पढ़ते थे. लेकिन अब आपको नित्य और समान्य पूजा करना सीखना चाहिए. उस दिन सुगंधा ने मुझको भगवान विष्णु, महादेव और माता रानी की नित्य और समान्य घर पर की जाने वाली पूजा की विधी बतायी. क्युकी उस दिन गुरुवार था तो सुगंधा ने शुरुआत भगवान नारायण की पूजा से की. गुरुजी पूजा की विधी को मैंने 4 भागों मे बाट दिया है. ताकी दर्शकों को समझने मे कोई परेशानी न हो.
1:-) स्नान पश्चात शरीर की शुद्धि :-गुरूजी स्नान विधी तीसरे पत्र मे बतायी थी. गुरुजी सुगंधा ने अपनी मीठी और मधुर आवाज में मुझसे कहा कि हाथ पैर धों कर आसान पर बैठ कर आपको सबसे पहले आचमन करना है. फिर मौनभाव मे रह कर सब ओर से अपनी रक्षा करे. पूर्व दिशा की ओर मुह करके स्वस्ति आसन या पद्म आसान आदि कोई सा आसन बाँध कर स्थिर बैठे. और नाभि के मध्य भाग में स्थित धुएँ के समान वर्ण वाले प्रचंड वायुरूप ‘यं’ बीज़ का चिंतन करते हुए अपने शरीर से सम्पूर्ण पापो को भावना द्वारा अपने शरीर से अलग करे. फिर ‘क्षौं’ बीज़ का ध्यान करते हुए ऊपर नीचे तथा अगल बगल मे फैली हुई उस प्रचंड ज्वाला से उस पाप को जला डाले. इसके बाद बुद्धिमान पुरुष आकाश मे स्थित चंद्रमा की शीतल ज्योति का ध्यान करे. और उससे प्रभावित होकर हृदय कमलों मे व्याप्त होने वाली सुधामय सलिल की धाराओं को. जो सुषुमृ योनि के मार्ग से शरीर की सब नाडीयो मे फैल रही है. उस शीतल ज्योति को अपने निष्पाप शरीर मे उतार ले. इस प्रकार शरीर की शुद्धि करके तत्वों का नाश करे. और फिर हस्त शुद्धि कर ले.
2:-) पूजा सामग्री का शुद्धीकरण :- बाये भाग में जल पात्र और दाहिने भाग में पूजा की सामग्री रखनी चाहिए आपको हमेशा. अपनी मीठी और मधुर आवाज में गुरुजी सुगंधा ने मुझसे कहा. इसके बाद गंध और पुष्प आदि से युक्त दो अर्घ्य पात्र रखे. फिर हाथ में जल लेकर ‘अस्त्राय फट’. इस मंत्र से अभिमंत्रित कर योगपीठ इत्यादि सींच दे. उसके बाद अर्घ्य, पद्म, आचमन, मधुपर्क, वस्त्र(भगवान के वस्त्र), यज्ञोपवित, भगवान के आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, मिष्ठान इत्यादि भी इसी मंत्र से जल छिड़क कर शुद्ध कर ले.
3:-) भगवान के सेवकों की भी पूजा करले :- गुरुजी सुगंधा ने बताया की, मंदिर या पूजा के कमरे मे पूर्व दिशा में भगवान के विग्रह की सेवा मे रहने वाले पार्षदों को प्रणाम कर ले. पूर्व के दरवाजे पर गरुड़ को नमन करके, दक्षिण द्वार पर सुदर्शन चक्र को प्रणाम करना चाहिए, उत्तर द्वार पर गदा और ईशान तथा अग्नि कोण मे शंख और धनुष को प्रणाम करना चाहिए. भगवान के दाएँ बाएँ दो तुणीर, बाये भाग में तलवार और ढाल दाहिने भाग में माता लक्ष्मी की स्थापना करके माता लक्ष्मी को प्रणाम करना चाहिए. भगवान के सामने वनमाला, श्रीवत्स, और कौस्तुभ को स्थापित कर उनकी भी पूजा करनी चाहिए. ये बैकुंठ का भीतरी मंडल हुआ. अब बाहरी मंडल मे दिक्पाल यानी सभी देवताओं को स्थापित कर उनकी भी पूजा उनका नाम लेकर करनी चाहिए.
अंत में भगवान की आरती से पहले, दक्षिण और उत्तर की दिशा में स्थित धाता और विधाता को ध्यान करके प्रणाम कर ले. गंगा और यमुना को ध्यान कर उन्हें भी प्रणाम कर ले. फिर शंखनिधि और पद्मनिधी इन दोनों निधियों को भी ध्यान करके प्रणाम कर ले. द्वारलक्ष्मी, वास्तुपरुष, आधारशक्ति, कूर्म, अनंत, प्रथ्वी, धर्म, ग्यान, वैराग्य, और ऐश्वर्य का ध्यान करके इन सबको प्रणाम कर ले. तत्पश्चात अधर्म ( अधर्म, अज्ञान, अवैराग्य, और अनैश्वर्यं) को भी प्रणाम कर ले क्यु की ये भी भगवान विष्णु के ही रूप है. जो उनकी माया से प्रकट होते है. उसके बाद वेद, सतयुग सहित चारो युग, सूर्य आदि देवताओ के मंडल, विमला, उत्कर्षणी, ज्ञाना, क्रिया, योगा, सत्या, ईशा, अनुग्रहा, निर्मल मूर्ति दुर्गा, सरस्वती, गणेश, क्षेत्रपाल और वासुदेव इन सभी को ध्यान कर in सबको प्रणाम कर ले.
4:-) अंत में भगवान की पूजा करे :- भगवान से प्रार्थना करे कि भगवान आप तो अनन्त है, अगर मुझ अज्ञानी से कोई नाम या आपका कोई रूप रह गया हो तो मुझे माफ़ कर दीजिए. प्रभु के चरणों को छूकर प्रभु से कहना चाहिए आपके सब रूपों को मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिए. भगवान को स्नान करवा कर उन्हें स्वच्छ कपड़े पहना दे. पुष्प और गंध भगवान के चरणों में अर्पित कर, भगवान को मिष्ठान, फल इत्यादि भोग लगा कर मन में एक प्रतिबिंब बनाए की भगवान खा रहे है. आरती की थाली उठा कर सभी दिशाओं में घूम कर भगवान की आरती, स्तुति, भगवान के स्तोत्र को गाना चाहिए. और मन मे यही धारणा रखनी चाहिए कि कण कण मे विद्यमान भगवान नारायण मुझे देख रहे हैं. और अंत मे तिल और घी आदि से होम करे. इस प्रकार घर में भगवान नारायण की रोज पूजा करने मात्र से, धर्म, काम, अर्थ और मोक्ष चारो पुरुषार्थ प्राप्त हो जाते है. और मेरे सर पे हाथ फेरते हुए सुगंधा ने कहा कि अगर आप इस प्रकार से रोज पूजा करेगे तो अंत मे देव लोक को अवश्य प्राप्त होगे.
गुरुजी सुगंधा ने महादेव जी की भी सामन्य पूजा की विधी बतायी है. मगर वो सब संस्कृत में होने के कारण मैं अभी तक हिन्दी मे translate नहीं कर पाया हू. भगवान शिव की पूजन विधि अगले पत्र मे बता दूँगा. गुरुजी अगले दिन शुक्रवार था और सुगंधा रोज की तरह उस दिन भी मेरे साथ थी. और रात्रि होने पर मुझे सुला कर अन्तर ध्यान हो गई थी. मगर रात में मुझे सपने मे सुगंधा ने दर्शन दिए. एक गोल रोशनी के घेरे में जिसमें सुगंधा का सिर्फ चेहरा दिखाई दे रहा था. सुगंधा ने मुझसे कहा सावधान रहिएगा आपकी कुल देवी आपसे मिलने वाली है, वो किसी भी समय, किसी भी रूप में आपको दर्शन अवश्य देगी. और फिर वो रोशनी सुगंधा के चेहरे के साथ गायब हो गई. और मेरी नीद खुल गई. उस रात ढंग से नहीं सो पाया गुरुजी. और पूरी रात यही सोचता रहा कि. अब कुल देवी मुझसे क्या चाहती है.? लेकिन योगिनी माताओं के अनुभव से मैं इतना तो समझ चुका था. की अगर वो आयीं भी तो मदद करने ही आएगी.
और फिर गुरुजी अगले दिन शनिवार को 23may को उन्होंने मुझे सपने में दर्शन दिए. मैंने उसी पहाड़ को देखा जो मेरे home town से लगभग 50km की दूरी पर है. और उस पहाड़ को वहां के स्थानीय निवासी डोगरा पहाड़ के नाम से जानते है. ये नाम एक कबीले जाती का था. जो कई 1000 साल पहले डोगरा पहाड़ी, और उससे लगे हुए जंगलों मे रहा करते थे. और ऐसा माना जाता है कि उन देवी की स्थापना उन्हीं कबीले के लोगों द्वारा की गई थी. उनकी आत्माए आज भी डोगरा माता की पूजा करने आती है और सूरज निकलने से पहले, और सूरज ढलने के बाद उस जगह परिंदे भी नहीं जाते है. ये कहानी बचपन में दादी ने मुझको सुनायी थी. और गुरुजी मैं सपने में, मैं खुद को उसी पहाड़ से लगे जंगल में पाता हू. और माता की चौकी भी मुझे साफ़ साफ़ पहाड़ी के शिखर पर दिखाई दे रही थी.
मैंने देखा कि एक बहुत ही बुजुर्ग महिला लकड़ियों को सिर पर रख कर उसी पहाड़ की तरफ जा रही है. और उन लकड़ियों का बोझ उनसे उठाया भी नहीं जा रहा है . गुरुजी क्युकी अधिकतर आबादी उस area की बहुत ही गरीब है, तो जंगलों की लकड़ियां काट कर ही लोग अपना चूल्हा जलाते है और ये आम बात है वहां की. मैं उनके पास गया और मैंने बोला अम्मा कहा जाना है आपको?, किस गांव जाना है? लाइये मैं मदद कर देता हू. अम्मा ने जब मेरे चेहरे की तरफ मुस्करा कर देखा तो मेरे शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई गुरुजी. उनका वो तेजस्वी चेहरा और नीली आंखे देख कर . मैंने लकड़ियों का गठ्ठा फेका और उनके चरण पकड़ लिए. मैंने रोते हुए कहा कम से कम आप तो खेल मत खेलिए मेरे साथ माँ. और फिर कुलदेवी माता ने मुझको उठाया. और वही एक चट्टान पर बैठ कर उन्होंने कहा की “माता आदि शक्ति जब चाहेगी तब सब जान जाओगे ” यही कहती है ना वो देवी तुझसे हमेशा. तो तुझे उसकी बात माननी चाहिए पुत्र , और आज एक जरूरी बात जानने का समय आ गया है. इसीलिए मैंने तुझे दर्शन दिए है.
तेरे जन्म के ठीक एक साल पहले मैंने तेरी दादी को स्वप्न में दर्शन देकर सब कुछ उनको तेरे बारे में बता दिया था. तेरी दादी सब कुछ जानती है. उस अप्सरा के बारे में भी जानती है. और मेरे इस पर्वत से पूर्व दिशा की ओर लगभग 200 कोस की दूरी पर माता आदि शक्ति का एक शक्तिपीठ है. मैंने तेरी दादी को पूरे परिवार सहित वहां जा कर मन्नत मागने के लिए बोला था . तेरे माता पिता की शादी को लगभग 12 वर्श हो चुके थे. लेकिन पुत्र प्राप्ति के बिना वो दोनों दुखी थे और तेरे स्वर्गीय दादा श्री और तेरी दादी तो पोता पाने की खातिर पैदल नंगे पैर मेरे चरणों को प्रणाम करने आते थे. और इसी बीच उस अप्सरा ने माता आदि शक्ति को प्रसन्न कर लिया पुत्र. और तुझे कीट पतंगों की योनि से मुक्ति दिलाकर सीधा मनुष्य योनि दिलवा दी.
मैंने डोगरा माता से कहा गुरुजी की मुझे योगिनी शक्तियों ने बताया कि मैं प्रेत योनि मे था इससे पहले? गुरुजी कुल देवी ने कहा उन्होंने सत्य ही कहा है पुत्र. तुझे चौरासी लाख योनियों के एक भ्रमण को पूरा करने का श्राप था पुत्र. प्रेत योनि से मुक्ति तुझे तब मिली जब अग्नि देव ने उस अप्सरा की तपस्या से खुश होकर अपनी आत्मा का एक अंश निकाल कर, शीतल रूप की अग्नि ज्योति आशिर्वाद रूप में दी उसको. मगर मनुष्य योनि तुझे तभी प्राप्त हुई जब उस अप्सरा ने माँ जगत जननी को प्रसन्न किया. इन दोनों घटनाओ के बीच तुझे कई योनियों मे जन्म लेना पड़ा. उसने बहुत कष्ट सहा है तेरे लिए. लोग कहते हैं की तेरे श्रापित होने के बाद उसका विलाप, उसकी करुण पुकार सुन कर पारिजात वन के कल्प वृक्ष तक सूख गए, उसने हर जगह मदद मागी, मगर किसी ने उसकी मदद नहीं की. लेकिन महादेव का दिल बड़ा भोला है. वो ऊपर से जरूर कठोर है पुत्र मगर अंदर से चांदनी से भी शीतल. जिन्हें दुनिया ठुकरा देती है उन्हें महादेव शरण देते है. फिर चाहे वो कोई सुन्दर अप्सरा हो या भयानक दिखने वाले प्रेत और पिशाच.
जब हर दरवाजा उस देवी के लिए बंद हो चुका था.तब महादेव के परम भक्त देव गुरु ब्रहस्पति माध्यम बने. इसीलिए तुझे उसने सिखाया है. शिव और शक्ति एक है. रोज पढ़ता है ना वो स्तोत्र?? मैंने माता को रोते हुए जवाब दिया जी माता पढ़ता हू. पुत्र तपस्या करने से पहले उस अप्सरा ने अपना श्रंगार त्याग दिया था. अब समय आ गया है उसका श्रंगार उसे वापस दिलवाने का और ये कार्य तेरे सिवा और कोई नहीं कर सकता. मैंने माता से पूछा कि वो तो रोज आती है शृंगार करके मेरे पास . तो गुरुजी माता ने मुझसे कहा कि चार मोतियो की माला गले मे पहन लेने से अप्सराओ का शृंगार पूरा नहीं होता पुत्र. अप्सराओ का श्रंगार तो बड़े बड़े ऋषि और सिद्धों को भी विचलित कर देता है. और वो भी उस अप्सरा का जिसे देख कर उर्वशी और रम्भा को भी जलन होती थी कि ये हमसे सुन्दर कैसे दिख सकती है?? उस श्रंगार की बात कर रही हू मैं.
जब तेरी दादी ने माता आदि शक्ति के सामने पोता पाने के लिए झोली फैलाई थी तो माँ की मूर्ति पे चढ़ी एक गुलाब की माला और माँ के माथे से थोड़ा सिंदूर उसकी झोली में गिर गया था. मैंने पहले ही तेरी दादी को ये सब बता दिया था स्वप्न के माध्यम से. वो लाल गुलाब की माला और चुटकी भर सिंदूर आज भी तेरी दादी ने सम्भाल कर रखा है. विधान ये है कि तुझे वो माला उस अप्सरा के गले मे डालनी है और उसी सिंदूर से उसकी मांग भरनी है. तभी उसे उसका पूर्ण शृंगार प्राप्त होगा. और वो अपने तपस्विनी रूप को त्याग कर फिर से श्रंगार करेगी. और उसकी तपस्या पूर्ण हो जाएगी. गुरुजी फिर कुल देवी ने कहा कि पुत्र अब तुझे तेरी निद्रा से जागना चाहिए. भोर होने वाली है. मुझे भी यहा से दो सौ कोस दूर जाना है माँ आदि शक्ति की अराधना करने. मैंने कुल देवी से पूछा क्या माता मैं सपने में हू.?? उन्होंने कहा हाँ पुत्र ब्रम्हमुहूर्त होने वाला है अब तुझे उठना चाहिए.और मुझे विजयी भव का आशीर्वाद देकर माता कुल देवी अन्तर ध्यान हो गई गुरुजी और मेरी भी नीद खुल गई. और time 4:15min हो रहे थे घड़ी में.
उस समय मैंने दादी को फोन लगाना उचित नहीं समझा गुरुजी मैंने सूरज निकलने का इंतजार किया और बैठे बैठे यही सोचता रहा कि और कितने राज अपने दिल मे छिपा रखे है तुमने सुगंधा? सूरज निकलने के बाद मैंने दादी से बात की गुरुजी. मैंने पूछा कि दादी मुझे सुगंधा के बारे में सब कुछ जानना है आपसे.?? पहले तो दादी समझी नहीं उन्होंने मुझसे कहा कौन सुगंधा बेटा? फिर मैंने सुगंधा का देव लोक का नाम लेकर पूछा. तो दादी थोड़ी देर के लिए बिल्कुल चुप हो गई गुरुजी . और फिर उन्होंने मुझसे रोते हुए पूछा कि क्या बेटा स्वप्न आया था तुझे उस देवी का.?
मैंने कहा दादी वो रोज आती है मुझसे मिलने. आप उसके बारे में सब कुछ जानती थी. आपने मुझे पहले बताया क्यु नहीं? दादी ने रोते हुए जवाब दिया गुरुजी की बेटा मुझे माफ़ कर दे. तेरे दादा जी ने मुझे कसम दी थी. उनका मानना था कि वो शक्ति जिस दिन स्वर्ग से उतरेगी तुझे अपने साथ ले जाएगी. हम तुझे खोना नहीं चाहते थे. क्या मम्मी पापा भी जानते है मैंने पूछा दादी से? दादी ने कहा नहीं बेटा तेरे दादाजी की कसम की वज़ह से, मैंने उनको भी कुछ नहीं बताया था. लेकिन कुल देवी ने मुझे सपने में कहा था. की एक दिन तेरा पोता खुद तुझसे पूछेगा उस शक्ति के बारे में, चाहे तुम लोग जितना भी उससे छुपाने की कोशिश करो. माँ आदि शक्ति आशिर्वाद दे चुकी है उस अप्सरा को. और कुल देवी की वो बात आज सच हो गई बेटा. गुरुजी दादी ने बताया कि वो माला टूट कर गिरी थी मेरे दामन में. सिर्फ तू उस माला की गाँठ बांध सकता है. माता गौरी का नाम लेकर उस गाँठ को बांध देना. और ध्यान रहे एक भी फूल गिरने न पाए. और उस देवी को माला पहना कर. माता रानी के ही सिंदूर से उसकी माग भर देना.
गुरुजी दादी ने रोते हुए बताया की वो गुलाब की माला और वो सिंदूर आज भी मैंने सम्भाल कर रखी है. शायद इसीलिए मैं अब तक जिंदा थी. कुल देवी ने चेतावनी देते हुए कहा था कि ये किसी और की अमानत है, अगर इस माला को तूने नष्ट करने की कोशिश भी की तो तेरे समस्त कुल का नाश निश्चित है. और देवीय शक्तियां तेरे पितरों को भी नहीं छोड़ेगी.गुरुजी दादी ने आगे बताया की बेटा तीस साल हो गये उस गुलाब की माला को मेरे पास. मगर आज भी वो फूल मुरझाए नहीं है. ऐसा लगता है कि जैसे अभी अभी किसी ने ताजे फूल तोड़ कर माला बनायी हो. और उन फूलों की खुशबु गुलाब की तरह नहीं है बेटा एक अजीब सी खुशबु है उन फूलों मे . जो बस आत्मा को शान्ति प्रदान कर देती है. मैंने अपनी अस्सी साल की उम्र में ऐसी खुशबु पहले कभी नहीं देखी.
मैंने दादी से कहा गुरुजी की मैं जानता हू दादी वो खुशबु किसकी है. बचपन से जानता हू उस खुशबु को मैं. दादी ने रोते हुए मुझसे फिर माफ़ी मागी गुरुजी. मैंने कहा दादी ऐसा मत बोलो, दोबारा नर्क मे मत डालो मुझे. मैं समझता हू आपको. और मुझे कोई कहीं नहीं ले जा रहा है . इस जीवन के बाद ही मैं आगे की ओर जा पाउंगा. मैं अपनी पूरी जिंदगी आप लोगों के साथ ही हू. और वो अप्सरा ऐसी नहीं है जैसा आप लोगों ने धारणा बना रखी थी उसके लिए. की वो बस आएगी और किसी के बेटे की हत्या कर उसकी आत्मा अपने साथ स्वर्ग लोक ले जाएगी. और मैं वो माला और सिंदूर लेने आ रहा हू दादी. गुरुजी दादी ने कहा मगर बेटा lockdown तो अभी भी है.?? मैंने दादी को कहा आप परेशान मत हो मैं गाड़ी बुक करके कैसे भी करके आ जाऊँगा. और दादी को प्रणाम करके मैंने phone काट दिया गुरुजी.
पीछे मूड कर देखा तो सुगंधा खड़ी थी. और उसकी आँखों में आंसू थे. इससे पहले कि मैं कुछ बोलता सुगंधा ने कहा कि आप कहीं नहीं जायेगे. जहा सैकड़ों वर्षो तक मैं बिना शृंगार के रही, कुछ दिन और रह लुंगी. मगर अब आपको और कोई नियम नहीं तोड़ने दूंगी. आपने मुझे वचन दिया है आप मेरी हर बात मानेंगे. सुगंधा ने मुझसे पूछा मानेंगे ना??? मैंने भी संस्कृत में जवाब दिया उसको आत्मनानाम त्वम मम एक्यम. और ये सुन कर सुगंधा हंस पडी थी गुरुजी.
अंत में गुरुजी एक बात कहना चाहता हू सभी दर्शकों से, कि आप लोग please आज के बाद से किसी, मच्छर, cockroach, मक्खी या मकड़ियों को न मारे. आप खुद घर में इतनी सफाई रखे कि वो पनपने न पाए. फिर भी अगर एक दो मच्छर आ जाते है तो हम मच्छरदानी लगा कर सो सकते है. अगली बार किसी मक्खी या मच्छर को मारने से पहले एक बार मेरे बारे में ही सोच लीजियेगा. शायद वो भी किसी सुगंधा का प्रतीक होगा, जिसकी सुगंधा उसके लिए कहीं तपस्या कर रही होगी.
सभी दर्शकों को प्रणाम करता हू और गुरुजी आपके चरणों को स्पर्श करके आज का पत्र यही समाप्त करता हू
माता रानी की जय हो माता रानी सबका कल्याण करे