नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम लोग बात करेंगे। तगर नाम की एक विशेष पौधे के बारे में, यह एक विशेष पौधा इसलिए है क्योंकि भारत में इसके माध्यम से बहुत सारे तंत्र मंत्र और साधना पूजा-पाठ वगैरह में इसका इस्तेमाल किया जाता है। अगर आप अगर तगर के बारे में जानते हैं तो तंत्रसार के अनुसार अगर, तगर, कुष्ठ, शैलज, शर्करा, नागरमाथा, चंदन, इलाइची, तज, नखनखी, मुशीर, जटामांसी, कर्पूर, ताली, सदलन और गुग्गुल ये सोलह प्रकार के धूप माने गए हैं। इसे षोडशांग धूप कहते हैं। तगर को विभिन्न भाषाओं में नाम अलग-अलग हैं।
हिंदी – तगर
अंग्रेजी – इंडियन वेलेरियन
संस्कृत – तगर, नत, वक्र, कुटिल, नहुष, शठ, दीपन
गुजराती – तगर, गंठोड़ा
मराठी – तगर मूल
पंजाबी – सुगन्धबाला
अरबी – सारून
फ़ारसी – आसारुन
बंगाली – तगर पादुका
तैलगू – गंधि तरग
सबसे पहले हम लोग। इसके विभिन्न औषधीय प्रयोगों के बारे में जान लेते हैं। फिर इसके तांत्रिक और मान्त्रिक प्रयोगों को जानेंगे। घरेलू दवाओं के उपयोग में इसका आने वाला जो भाग होता है उसमें। टगर की जड़,पत्ती।तगर का तना, फूल, फल,तगर का तेल आदि घरेलू दवाओं का उपयोग किया जाता है। नेत्र रोग में तगर का इस्तेमाल फायदेमंद होता है। तगर के पत्तों को पीसकर आंखों के बाहरी भागों में लेप करने से आंख के रोग ठीक हो जाते हैं। हृदय रोग में थोड़ी मात्रा में तगर देने से। रक्ताभिसरण क्रिया को उत्तेजना मिलती है। तगर का पाठ बनाकर नियमित प्रयोग करने से हृदय को शक्ति नाडी की शक्ति में वृद्धि होती है। लेकिन अधिक मात्रा में यह हानिकारक भी है। हृदय की शक्ति में तगर का काढ़ा बनाकर नियमित रूप से सुबह-शाम अगर सेवन किया जाए तो हृदय की शक्ति में वृद्धि हो जाती है। मधुमेह रोग में मस्तिष्क और मज्जा तंतुओं की खराबी से पैदा हुए मधुमेह बहुमूत्र! इत्यादि मे तगर को थोड़ी मात्रा में लगभग 4 ग्राम से 1 ग्राम तक ताजे फल को दिन में दो से तीन बार खिलाने पर मधुमेह के रोग में लाभ होता है।
यह मस्तिष्क रोग उन्माद अपस्मार विश्व विकारों में लाभप्रद है। दिमाग के जो भी रोग हैं उनमें यह फायदेमंद रहता है। पागलपन में भी अगर को अगर थोड़ी मात्रा में लगभग 1 ग्राम सेवन करने से या ताजे फलों को दिन में दो तीन बार लगातार दो माह तक सेवन करने से पागलपन का रोग भी ठीक हो जाता है। मिर्गी रोग में मरीज को 2 ग्राम तक और फलों को नियमित रूप से सुबह शाम दोपहर एक माह तक देने से मिर्गी रोग भी ठीक हो जाता है। मासिक धर्म में सुगंध बाला का 1 से 3 ग्राम चूर्ण या फिर। 50 से 100 मिलीलीटर तक काढ़ा मासिक धर्म को नियमित कर देता है। यह निद्रा कारक है। स्नायु रोग में तगर की स्थिति है, वह सेवन से फायदेमंद होती है। तगर की मूल को कूटकर 4 भाग जल में बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर धीमी आंच पर पका कर। छानकर फिर रखें और नियमित प्रयोग करें तो स्नायु शूल और नसों की कमजोरी में यह लाभप्रद माना जाता है।
तगर को यशद की भस्म के साथ प्रयोग में लाने से गठिया रोग पक्षाघात जिसे लकवा मारना कहते हैं इत्यादि रोगों में फायदा होता है। सन्धिवात रोग में तगर को यशद भस्म के साथ प्रयोग में लाने से गठिया रोग, पक्षाघात आदि रोग दूर हो जाते है। वंक्षण संधि की पीड़ा में तगर की हरी जड़ की छाल 3 ग्राम को छाछ में पीसकर पिलाने से संधि की पीड़ा शांत होती है।पुराने घाव में और फ़ोड़ो पर तगर का लेप करना चाहिए। इससे घाव जल्दी ठीक हो जाता है। दूषित घाव में भी तगर के पत्तों का गाढ़ा गाढ़ा लेप करने से दूषित घाव से बदबू नहीं आती और घाव जो है वह शीघ्र भर जाता है।
तगर कश्मीर से लेकर भूटान तक हिमालय क्षेत्र में 10000 फुट तक की ऊंचाई और खासिया की पहाड़ियों पर 4 से 6000 तक की फुट की ऊंचाई पर मिलता है।
तगर के सुखाए हुए टेढ़ी-मेढ़ी गांठ दार मूल स्तंभ जो है, वह बाजारों में सुगंध बाला के नाम से बिकते हैं।यह जो है बहू वर्षीय शाकीय रोम युक्त पैदा होता है जिसका मूल उत्तम भूमि में अनुप्रस्थ दिशा में फैल कर आगे बढ़ता है इसपर 6 से 18 इंच तक ऊंचे और गुच्छे होते हैं।
सामान्य परिचय तंत्र में
तंत्र के और पूजा के मामले में कहा जाए तो वह इस प्रकार से होगा कि तगर एक अत्यंत उपयोगी पूजा पाठ में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं को बनाने में इसका विशेष रूप से इस्तेमाल किया जाता है। हमारे! पूजा के जितने भी कार्यक्रम होते हैं उसमें अगर का इस्तेमाल अत्यधिक मात्रा में किया जाता है। तगर के बिना। सभी प्रकार की पूजा सफल नहीं होती है। तगर का जो स्वरूप होता है उसमें यह एक छोटा सा पौधा है। इसकी जो जड़ होती है वह अष्टगंध बनाने में और विभिन्न प्रकार की औषधियों के प्रयोग में इस्तेमाल किया जाता है। इसका रंग भूरा होता है। अष्टगंध के माध्यम से भिन्न प्रकार के यंत्रों को बनाने में तगर का इस्तेमाल किया जाता है इसलिए! तंत्र को जानने वाला व्यक्ति तगर को अवश्य ही जानता है।
यंत्र निर्माण में इसका विशेष रूप से अत्यधिक इस्तेमाल किया जाता है। अगर आप इसे प्राप्त करना चाहते हैं तो बहुत ही आसानी के साथ ही बाजार में पंसारी और परचून की दुकान पर मिल जाता है। वहां पर जाकर आप इसे खरीद सकते हैं और अपने विभिन्न प्रकार के पूजा पाठ के कार्यक्रमों में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। तांत्रिक प्रयोगों में अगर आप इसका इस्तेमाल भूत प्रेत को भगाने के लिए करें तो बहुत ही उत्तम माना जाता है। तगर को ताबीज में डालकर। उसको अभिमंत्रित कर पहनने से भूत प्रेत दूर हो जाते हैं। किसी भी व्यक्ति को अगर भूत प्रेत का उस पर असर है तो इसके इस्तेमाल से वह भूत प्रेत को भगा सकता है।
मक्खियों को भगाने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है तगर और हड़ताल! इन दोनों को पीसकर! इस मिश्रण को किसी कटोरी आदि में भरकर घर में रखेंगे तो इसकी गंध से सारी मक्खियां भाग जाएंगी। इस प्रकार से यह विविध प्रयोगों में इस्तेमाल किया जाता है। तगर का? अगर गोपनीय तरीके से तांत्रिक इस्तेमाल किया जाए तो यह विभिन्न प्रकार के फायदे देता है।तगर के प्रति यानी पौधे के पास बैठ कर के अगर आप रात्रि के 12:00 बजे गोपनीय। सिद्ध मंत्रों का उच्चारण करते हैं तो विभिन्न देवताओं का प्रत्यक्षीकरण होता है। यह एक गोपनीय प्रयोग है। इसके नीचे बैठकर माता लक्ष्मी को भी ध्यान करने से आपके घर में धन की वृद्धि होने लगती है। महालक्ष्मी की कृपा से आपके रुके हुए सारे काम बनते हैं इस प्रयोग को प्रत्येक शुक्रवार को करना चाहिए और ऐसा लगातार हर शुक्रवार की रात्रि को करना चाहिए। तो इस प्रकार यह था आयुर्वेदिक तांत्रिक औषधीय प्रयोग। अगर आपको आज का पोस्ट पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।