नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। पिछली बार हम लोगों ने मंजूषा के भैरवी बनने के रास्ते में आने वाले उसके घर के विषय में जाना था और वह अब अपना घर छोड़ चुकी थी। लेकिन डाकुओं से घिर जाने पर अब उसकी इज्जत को खतरा बढ़ गया था। अब वह करती भी क्या उसके सामने एक बहुत बड़ी समस्या आ चुकी थी चारों ओर से डाकू उसे। उठाकर ले जाने की तैयारी कर रहे थे। 16 साल की एक कमसिन लड़की जिसने कभी दुनिया नहीं देखी। वह आज घर से बाहर अपनी रक्षा के लिए चिंतित हो रही थी। वहां पर उसकी रक्षा के लिए ना तो दूर-दूर तक कोई गांव का व्यक्ति था और ना ही कोई पशु या पक्षी आखिर वह किस से सहायता मागती घबराकर उसने माता को याद करना शुरू कर दिया और कहा कि हे देवी मां कहीं से भी मेरे लिए मदद भेजिए। मैं इस प्रकार इन की रखैल बनकर नहीं रह सकती हूं। इन डाकुओ ने अगर मुझे उठा लिया तो अपनी मनमर्जी से मेरे साथ पता नहीं कब तक क्या करेंगे। इधर डाकू लोगों ने उससे कहा कि चलो हमारे साथ वरना हम तुम्हें जान से मार डालेंगे। और हम सब की पत्नी बन कर खुशी खुशी रहो।
हमारे लिए भोजन पकाना, क्योंकि हम डकैती डालकर जब वापस आते हैं तो हमें खुद खाना बनाना पड़ता है। इसके अलावा हम सभी की पत्नी बनकर हमारे लिए बच्चे पैदा करना। यह सब सुनकर! मंजूषा अब और भी अधिक घबरा गई थी। क्योंकि उसके सामने ऐसी परिस्थिति अभी तक कभी भी उत्पन्न नहीं हुई थी। मरती क्या ना करती? तभी एक डाकू! उसकी और बढ़ा और उसे उठाकर ले जाने की कोशिश करने लगा। वह चिल्लाने लगी। कोई मदद करो, हे देवी मां मेरी मदद करो, लेकिन उसकी पुकार वहां पर सुनने वाला कोई भी नहीं था। लेकिन तभी अचानक से कहीं से मदद आ गई और वह मदद थी अघोरियों की एक टोली। अघोरी वहां पर रात बिताते चल रहे थे। उन्होंने डाकुओं को हमला करके यह जताने की कोशिश की कि जंगल में सिर्फ डाकुओं का राज नहीं चलता। अघोरियों का भी चलता है उन अघोरी साधुओ ने इस प्रकार से मंजूषा की रक्षा की, सारे डाकू अघोरियों के आगे बेबस सिद्ध हो रहे थे। क्योंकि उनके पास! विशेष प्रकार की विद्या थी वह कहीं भी आग लगा देते थे। उनकी इस प्रकार आग लगाने की क्षमता को देखकर डाकू ने सोचा। अब इस लड़की को यही छोड़ देना उपयुक्त होगा और इस प्रकार डाकू वहां से चले गए।
अघोरियों की मदद के लिए मंजूषा ने उन सभी को धन्यवाद कहा और कहा आप लोग अगर नहीं होते तो आज मैं मारी जाती। तब अघोरी! उन्हें अपने अघोरी गुरु के पास लेकर गए। अघोरी गुरु ने जब मंजूषा को देखा तो वह उस पर मोहित हो गया। उसने कहा कि यह तो बहुत ही अधिक सुंदर कन्या है। और यह मुझे कुंवारी भी दिखाई पड़ती है। इसलिए मैं अब इसे अपनी भैरवी बनाऊंगा। यह सुनकर मंजूषा ने पूछा, भैरवी क्या होती है? तब अघोरी ने कहा, तुम्हें मेरी सहायिका बनकर साधनाओ में मदद करनी होगी। लेकिन यह सारी वाममार्गी! साधना है इसलिए तुम्हें अजीब भी लगेगा किंतु मेरे साथियों ने तुम्हारी जान बचाई है। इसलिए तुम्हें कर तो उतारना ही पड़ेगा। मंजूषा के सामने कोई अन्य विकल्प नहीं था। उसने सोचा यह अघोरी जो कह रहा है, उसकी बात ही मान लेना चाहिए क्योंकि रात्रि के समय। मेरी जीवन की और मेरे शरीर की रक्षा भला कौन कर सकता है इस प्रकार मंजूषा ने अघोरी गुरु को हां कर दी इस प्रकार से अघोरी गुरु के साथ वह कुछ दिन रही । 1 दिन अघोरी गुरु ने कहा, चलो आज से तुम्हारी भैरवी विद्या शुरू होती है। इसके लिए सामने नदी में जा और सारे वस्त्र उतार कर वहां से नग्न चलती हुई मेरे पास आओ सामने जो यह चिता जल रही है। और एक घेरा बना रखा है। उस घर में बैठ जाना। यह सुनकर मंजूषा घबरा गई। क्या मुझे इस के सामने निर्वस्त्र होना पड़ेगा।
यह कैसी विडंबना है। क्या तंत्र में यह सब कुछ होता है। उसने तो सोचा था कि तंत्र मार्ग बड़ा ही उत्तम मार्ग है और इससे सिद्धियां प्राप्त होती हैं। किंतु यहां पर तो कुछ और ही उसके जीवन में घटित हो रहा था। मंजूषा कुछ देर खड़ी सोचती रही। तभी अघोरी गुरु गुस्से से बोला जाओ, तुरंत नदी में जाओ और नहा कर यहां पर जल्दी से वापस आओ। यह सुनकर मंजूषा घबरा गई। उसने अघोरी गुरु से प्रार्थना की। वह यह कार्य नहीं कर सकती है। अघोरी गुरु ने जब यह सुना तो कहा, तुम्हारे जीवन की रक्षा मैंने की थी। अगर तुमने यह कार्य नहीं किया तो मैं तुम्हें उन्हीं डाकुओं के पास छोड़ कर चला लूंगा। फिर वह तुम्हें जीवन भर नौकरानी बनाकर तुम्हारे साथ पता नहीं क्या-क्या करेंगे यह सुनकर मंजूषा घबरा गई। बहुत डरते और घबराते हुए उसने। गुरु की बात मानना ही उपयुक्त समझा क्योंकि यह उसके जीवन का प्रश्न था। वह नदी की ओर जाने लगी। वहां पहुंच कर उसने अपने शरीर के सारे वस्त्र उतार दिए और नदी में जाकर नहाने लगी। नहा धोकर स्वच्छ होकर वह वहां से वापस उस जलती हुई चिता के नजदीक आ गई। अघोरी गुरु उसे चिता की आग के उजाले में ऐसे घूर रहा था जैसे कोई भूखा भेड़िया।
उसने कहा। तुम बहुत अधिक सुंदर हो जाओ उस घेरे के अंदर बैठ जाओ। इस प्रकार! डरते डरते अपने गुप्त अंगों को छुपाती हुई। उस घेरे के अंदर बैठ गई। अब! अघोरी गुरु ने कहा, मैं मंत्र जाप शुरू करने वाला हूं। मैं कुछ देर मंत्र जाप करूंगा। उसके बाद मैं इस घेरे के अंदर आकर तुमसे आलिंगन करूंगा। तुम्हें डरना या घबराना नहीं है। आज तुम्हारा और मेरा यह मिलन इस घेरे के अंदर होगा और इससे हमें तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त होंगी। यह सुनकर मंजूषा के हाथ पांव कांपने लगे। उसने नहीं सोचा था कि ऐसा भी कुछ उसके साथ घटित होगा। डर के मारे उसके शरीर से पसीने , ऐसे निकलने लगे जैसे कि कोई बारिश हो रही हो। पर उसके सामने कोई अन्य विकल्प था ही नहीं, वह करती भी क्या घर से भाग कर जो आई थी। अब वह सोच रही थी। मैंने यह तंत्र विद्या सीखने का विचार। बहुत ही बुरे समय में किया, मुझे नहीं पता था। घर के बाहर की दुनिया इतनी खराब होगी। मेरे जीवन में ऐसी विडंबना आएगी। मैं अब क्या करूं कौन मेरी रक्षा करेगा? इस प्रकार वह वहां पर बैठ गई। अघोरी गुरु ने मंत्रों का जोर जोर से उच्चारण करना शुरू कर दिया। वह जलती चिता में कुछ फेंकता और चारों तरफ देखता। फिर मंत्र का उच्चारण करता इस प्रकार व लगभग आधे पहर तक। जॉप करता रहा और चिता की आग तेज और तेज होती चली गई।
इस प्रकार उसकी साधना आगे बढ़ने लगी। जैसे-जैसे साधना का समय बढ़ता जा रहा था, मंजूषा घबराती हुई यह सोच रही थी। पता नहीं कब मेरी इज्जत समाप्त होगी। और मैं पहली बार ऐसे भोग को भोगूगी। इस प्रकार से उसके जीवन में एक भयंकर तूफान आने वाला था। कुछ देर मंत्र जाप करने के बाद अचानक से अघोरी ने एक बकरे का सिर काट कर उसे उस हवन कुंड रूपी चिता में फेंक दिया। उसके गले का रक्त एक खप्पर में इकट्ठा किया। और उस खप्पर में भरे हुए जल को जो कि रक्त था इस प्रकार से पिया जैसे कि। साधु लोग शराब पीते हैं और रक्त पीने के बाद अब वह अघोरी गुरु मंजूषा की ओर बढ़ा। मंजूषा जो कि अब तक कुछ शांति थी, यह सब देखकर बहुत अधिक घबराने लगी। वह अघोरी गुरु मंजूषा के निकट आकर उसका आलिंगन करने लगा और उसने उसे भोग की सामग्री बना दिया था मंजूषा! बहुत! अधिक घबराने लगी थी। आखिर मंजूषा इस समस्या से कैसे निकली और आगे उसके जीवन में क्या हुआ जानेंगे। हम लोग अगले भाग में तो अगर आपको यह कहानी पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।