देवाल मंदिर विषकन्या कथा भाग 1
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आपका एक बार फिर से स्वागत है । आप लोगों के लिए मै अद्भुत और प्राचीन किंव दंतियों के रूप में जो कथाएं वर्णित है वो लेकर के आता रहता हूं । उसी श्रृंखला में आज मैं आपके लिए देवाल मंदिर की विषकन्या कथा लेकर आया हूं । और इसमें आप जानेंगे कि किस प्रकार से विश कन्याएं और ही बहुत अपनी शक्ति से संबंधित है । और वो अद्भुत शक्ति के बारे में अपनी जानकारी देती रहती हैं । विषकन्या कौन होती है विषकन्या क्या है और उनकी कहानियां क्या है ।हमारे देश में इसका बहुत वर्णन मिलता है । कौटिल्य यानी की चाणक्य यानी कि विष्णु इनके अलग-अलग नाम है । मौर्य शासन में जिन्होंने अर्थशास्त्र उस समय विष कन्याओं का वर्णनपहली बार मिलता है । विषकन्या ऐसी शक्तियां होती थी जो बचपन से जहर देकर ऐसा बना दिया जाता था कि वह बहुत ही खतरनाक हथियार हो जाती थी । ऐसा हथियार जिसकी कोई काट नहीं होती थी । उनसे कोई भी कार्य करवाए जा सकता था और उनकी शक्तियां भी अद्भुत होती थी । शुरुआत में उन्हें तंत्र के माध्यम से उन्हें जहरीला बनाया जाता था लेकिन धीरे-धीरे करके मंत्रिक शक्तियां भी उनके साथ जुड़ गई । और वह विशेष रूप से प्रभावशाली विषकन्या रूप में जानी जाने लगी ।
यह कहानी उसी की है यह कहानी आपके उत्तराखंड में चमोली जिले के देवाल नाम के स्थान पर एक मंदिर है । वहां पर आज भी जो पूजा करने के लिए लोग जाते है आंख नाक मुंह पर पट्टी बांधकर जाया करते हैं । नागराज का यहां मंदिर है और यह यहां के स्थानीय लाटू देवता का है । माना जाता है वह अपनी दिव्यमणि के साथ यहां विराजमान है मणि रोशनी बहुत तेजी से चमकती है और उससे कोई अंधा ना हो जाए इस वजह से माना जाता है कि इसे काफी कम ही खोला जाता है । यह मंदिर बिल्कुल उसी तरह है जैसे उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर है । तो इस प्रकार से हम सबसे पहले जानेंगे कि कहां से कहानी शुरू होती है । यह कहानी है माधवी नाम की एक विषकन्या की जो कृपा देव जी ने अपने एक शिष्य को सुनाई थी । वह इसी मंदिर में रहा करते थे और जब यह मंदिर नहीं था इस जगह पर यह सिद्ध स्थान था । और इस स्थान पर बहुत पहले कृपा देव अपने तंत्र मंत्र के ज्ञान से अपने शिष्य को उन्होंने विषकन्या के बारे में जानकारी दी थी । तो उन्होंने उनको बताया था कि माधवी नाम की एक कन्या हुई थी । यहां पर कई सौ साल पहले और उसकी कहानी अब छुप चुकी है लेकिन उन्होंने अपने शिष्य को बताई थी । कि इस तरह की शक्तियों को तंत्र मंत्र के माध्यम से पैदा किया जा सकता था । और साथ ही साथ कन्याओं को बचपन से ही जहर देकर इतना विषैला और जहरीला बना दिया जाता था कि उनको रोकने सामर्थ किसी के पास नहीं होती थी । तो वह कहानी अपने शिष्य को सुनाने लगते हैं और कहते हैं ।
ऐसी विषकन्या को बनाना आज भी संभव है और उसका तंत्र मंत्र और गोपनीय मार्ग से आप कोई भी ऐसी शक्ति को बना सकते हैं । तो चामोली जिले के देवाल नामक स्थान पर को मंदिर स्थित है वहां पर कृपा देव ने अपने शिष्य यह कहानी सुनाई थी । और वही कहानी मैं आप लोगों को बता रहा हूं विष कन्याओं को लेकर के बहुत सारी बातें आती है । कोई कहता है कि वह आधी लड़की होती है और आधी नागिन होती है । और उनके गले में सांपो जैसी ग्रंथियां भी होती है वैदिक साहित्य में जो हमारा उस विषकन्या जासूसी कार्य को करने वाली बताया जाता है । वैदिक ग्रंथों में वर्णन आता है कि विषकन्या का प्रयोग राजा अपने शत्रुओं को छल पूर्वक मारने के लिए किया करते थे । और यह बहुत ही रूपवती होती थी बचपन से ही इनको जहर दे देकर और विषैले वृक्षों का जहर पिलाकर विषैले प्राणियों का जहर से उनके होठों को कटवा करके जीभ को कटवा करके उनको बहुत ही ज्यादा जहरीला बना दिया जाता था । उन्हें नृत्य गायन और संगीत की शिक्षा भी दी जाती थी । विषकन्या की जो सांस थी विश्ववय हो जाती थी । और वह फुकती थी तो उससे जहर पैदा हो जाता था । जब से साथ मंत्र शक्ति का प्रयोग साक्षात नागिन की शक्ति के स्वरूप माने जाने लगी कथा सशृत सागर नामक एक किताब है उसमें विषकन्या के अस्तित्व के प्रमाण का मिलता है । इसी प्रकार सातवी सदी में मुद्राराक्ष एक नाटक था उसमें भी विषकन्या का वर्णन किया गया है । और संस्कृत ग्रंथ राजकन्या का कामसुंदरी में भी विषकन्या की बारे में वर्णन किया गया है ।
इसी प्रकार सोलवीं सदी में गुजरात का जो राजा महमूद शाह था । वह भी बचपन से ही जहर खाता इस वजह से वह बहुत ज्यादा खाना खा जाता था टनो खाना खाने की क्षमता रखता था । कोई भी स्त्री अगर किसी पुरुष के साथ ऐसी विषकन्या शारीरिक संबंध अगर बना ले तो पुरुष की मृत्यु 100% निश्चित होती थी । इसी प्रकार अगर वह किसी को चूम भी ले तो भी उस पुरुष की मृत्यु हो जाया करती थी । तो इस प्रकार के वर्णन बहुत सारे कहानियों में मिलते हैं और इनके दातों में इनके नाखूनों में बहुत ही ज्यादा जहर भर कर के इन्हें बहुत ही शक्तिशाली बना दिया जाता था ।मंत्रों की शक्ति से यह फूकने मात्र से किसी को भी जहर से अपने मार सकती थी । आज भी कहा जाता है कि अगर किसी लड़की या लड़के की जन्म कुंडली में विषकन्या या विष पुरुष योग हो तो उसको जो है शादी से पहले जान लेना चाहिए । वरना दांपत्य जीवन में निश्चित रूप से हानि होती है । और ज्योतिषी इस बात को जान लेते हैं तो यह एक प्रकार का योग होता है इस योग की वजह से भी बहुत ही खतरा होता है । जैसे कि यह संयुक्तम माना जाता है जैसे सप्तमी तिथि हो मंगलवार का दिन हो अश्लेषा या विशाखा नक्षत्र हो तब विषकन्या योग बनता है । द्वादशी तिथि को शनिवार का दिन हो कृतिका नक्षत्र हो उस समय भी जन्म लेने वाली कन्या कुंडली में विषकन्या योग होता है ।
इसी प्रकार सब शपशिता नक्षत्र हो मंगलवार का दिन हो और द्वादशी तिथि हो तो इस योग में भी जन्म लेने वाली कन्या विषकन्या होती है । विषकन्या का जो खंडन होता है वह जन्म चक्र में सत्तम भाग होगा शुभ ग्रह देख रहा हो तो इससे विषकन्या प्रभाव नष्ट हो जाता है । तो यह साधारण सी जानकारी विषकन्या के बारे में मैं आपको बता रहा था ।क्योंकि यह वास्तविकता है पूरी तरह से सच्चाई है और आज भी बहुत सारी विषकन्या धरती पर मौजूद है । जो अजरता अमृता को प्राप्त कर गई है । तो इसलिए उनकी कहानियों के लिए मैं आज आपको कृपा देव द्वारा अपने शिष्य को सुनाई गई कथा को मैं आपको सुना रहा हूं । तो कृपा देव जी यहां पर इसी मंदिर में रहा करते थे । यह मंदिर उस समय नहीं बना था । एक ऐसा स्थान था जहां पर साधना और पूजा उस समय की जाती थी । बहुत से ऐसे स्थान है भारत में जहां पर पूजा है और साधना बहुत ही त्रिविता से की जाती रही है । तो यहां पर कृपा देव जी अपनी साधना किया करते थे और चूकि बाद में यहां एक विशालकाय मंदिर बना और आज भी वह मंदिर है और देवाल नाम से यह मंदिर जाना जाता है । तो यहां पर आज भी आंखें नाक कान मुंह बंद करके उस पर पट्टी बांधकर लोग यहां पूजा वगैरह करने के लिए आते हैं । तो यहां पर गुरुओं के माध्यम से शिष्यों की परंपरा जो चलती थी उसमें गुरु अपनी सारी विद्या शक्तियां वगैरह सब दिया किया करते थे । एक बार की बात है कृपा देव जी बैठे हुए थे तभी उनके सामने एक नाग आ गया और उन पर फूकारने लगा ।
उनका शिष्य यह देख रहा था तो उसने एक डन्डि लेकर के उसे दौड़ाने की कोशिश की । लेकिन वह सर्प को वहां से नहीं हटा और वह बहुत तेजी से फूकार रहा था । कृपा देव अपनी समाधि में बैठे हुए थे । कृपा देव ने जब अपनी आंखें खोली तो सामने एक नाग को यानी कि सर्प को सामने से देखा । सर्प को देख कर के उसकी आंखों में उन्होंने अपने ध्यान किरणों को केंद्रित किया इसकी वजह से वह सर्प वहां से नीचे की और चला गया । और थोड़ी ही दूर जाने के बाद उसका रूप स्वरूप एकदम से प्रवर्तित हो गया । जब वह नदी के किनारे पहुंचा जहां पहाड़ी नदियां होती है । तो वहां पर उसने एक कन्या का रूप धारण कर लिया । और पानी के अंदर प्रवेश कर गया यह देख करके उनका जो शिष्य था अचरज में पड़ गया । उसने कृपा देव से कहा गुरुदेव आपको यकीन नहीं होगा कि एक जो नागीन थी । जो मैने अभी देखी मुझे पता चला वह नागिन स्त्री रूप में बदल गई । क्या नागिन स्त्री हो सकती है या स्त्री या नागिन हो सकती है । इस बारे में मुझे आप कुछ बताइए । तब कृपा देव ने कहा यह तो अलग ही तथ्य है कि कन्या और नागिन लोक यह सब सत्य है । लेकिन मैं विषकन्या को भी जानता हूं । तो इस पर उनके शिष्य ने पूछा कि विषकन्या यह क्या चीज होती है । उन्होंने कहा पुराने समय में जहर देकर के विष कन्याओं का निर्माण किया जाता है । लेकिन उनको बाद में तंत्र मंत्र की शक्तियों से भी संपन्न किया जाने लगा ।तंत्र मंत्र की शक्तियों को पाकर के बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली हो जाती थी ।
इनमें से धरती पर आज भी बहुत सारी विषकन्या घूम रही हैं जो अमर हो गई अजर हो गई वह ना बूढ़ी हो रही हैं और ना ही कभी मरने वाली है । यह जो अभी तुमने जो देखी यह नागिन नहीं विषकन्या ही थी इसको यह शक्ति प्राप्त है कि यह मनुष्य का रूप भी ले सकती हैं और नागिन का भी रूप ले सकती है । मेरी पूजा और साधना को देख कर के मेरे पास ही आ गई थी और मेरी ऊर्जा को ग्रहण करना चाह रही थी । अपने मंत्र तंत्र के माध्यम से इस पर उनके शिष्य ने पूछा गुरुदेव विष कन्याओं के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है । कृपया आप इसके बारे में मुझे बताइए । तब कृपा देव जी ने उनसे कहा ठीक है मैं तुम्हें मौर्य काल के बाद में एक घटना जो घटी थी । इसी क्षेत्र में उसके बारे में मैं तुम्हें बताता हूं । यह कहानी मैंने अपने योग बल के माध्यम से जानी तुम जानो और विष कन्याओं के बारे में समझो । यहां पर एक बार एक राजकुमार मगध क्षेत्र से भ्रमण करते हुए अपने गुरुओं से मिलने के लिए आया था । क्योंकी यह पूरा क्षेत्र गुरु परंपरा के लिए विख्यात रहा है । यहां पर बड़े-बड़े सिद्ध मुनि ऋषि मुनि संत हुए । जब सन्यास आश्रम आता था सभी लोग ऐसे ही पर्वतीय क्षेत्रों में आकर के मृत्यु पर्यंत तक यानी कि जब तक उनकी मृत्यु ना हो जाए तब तक साधना और उपासना करने के लिए सन्यास अपनाकर यहां पर आ जाया करते थे । तो उनके ही खानदान के कोई बहुत ही प्रसिद्ध व्यक्ति यहां पर आए थे । जो पहले राजा रहे थे ।उस राजकुमार ने यहां पर आकर के एक ऋषि की पत्नी से उत्पन्न एक लड़की को देखकर उस पर बहुत ही ज्यादा मोहित हो गया ।
वह लड़की इधर जो 16 वर्षीय कन्या इधर-उधर घुमा करती थी उसको देख कर के बहुत ही ज्यादा प्रसन्नता हो रही थी । और इस प्रकार उनसे मिलने पर उन्होंने अपने दिल की बात उन्हें बताई । और प्रेम पूर्वक कहा कि आपको देखकर मैं बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हूं । आप जैसी खूबसूरत कन्या मैंने नहीं देखी है । कृपया मेरे साथ विवाह कीजिए । और इस प्रकार वह राजकुमार और उस कन्या के बीच विवाह संपन्न हो गया । लेकिन राजकुमार अपने विशेष कार्य के कारण उस पर ध्यान ना दे करके । उसके बाद उसे वहीं छोड़ कर के चला गया । इस बात से कन्या बहुत खीन्ना हो गई । और उसने एक कन्या को जन्म दिया वह कन्या बहुत ही छोटी थी । लेकिन समाज के भय से उसने उस कन्या को एक झाड़ी के नीचे रख दिया । और वहां से चली गई । क्योंकि वह यह जानती थी कि समाज यह स्वीकार नहीं करेगा कि किस प्रकार से उसे यह कन्या उत्पन्न हो गई । और वहां से वह प्रस्थान कर गई इस प्रकार से उस कन्या का कोई अस्तित्व नहीं था । वह कन्या जो झाड़ी में पड़ी हुई थी एक विषकन्या द्वारा उठा ली गईव । विषकन्या ने उसे उठाया और धीरे-धीरे करके उसे अपनी शक्तियों विद्याओं में पारंगत करने लगी । उसे बचपन से ही जहर दे देकर के भोजन कराया जाता था ।
हर प्रकार का जहर औषधियों का जहर वनस्पतियों का जहर जीवो का जहर जिसमें सर्प और बिच्छू इत्यादि जैसे बहुत से जीव शामिल थे । उन सब का जहर उस कन्या को धीरे-धीरे करके दिए जाने लगा । इस प्रकार वह कन्या धीरे-धीरे जवान होने लगी । क्योंकि राजकुमार और अत्यंत ही सुंदर स्त्री के सहयोग से वह कन्या उत्पन्न हुई थी । इसलिए उसका रूप स्वरूप और सौंदर्य अद्भुत था । वह बहुत ही ज्यादा दिखने में खूबसूरत थी । धीरे-धीरे करके वह कन्या 16 या 17 साल की हो गई । और अपनी मां विषकन्या से उसने समस्त प्रकार की तंत्र शक्तियों को भी जान लिया । धीरे-धीरे करके उसने वह गोपनीय मंत्र भी जान लिए । जिनके माध्यम से वह अपनी विश फूकार को भी फेंक सकती थी । लगभग 30 फुट की दूरी तक किसी भी जीव जंतु मनुष्य यहां तक कि देवताओं को भी बेहोश करने की क्षमता उसके अंदर आ गई थी ।क्योंकि वह इतनी अधिक जहरीली थी कि अपनी सोच मात्र से वह किसी को भी अपने विष के वश में कर सकती थी ।इस प्रकार वह उस जंगल में रहती चली आ रही थी ।विषकन्या बहुत ही बड़ी तांत्रिक थी और वह अपनी साधनाएं किया करती थी । उन तांत्रिक साधनाओ को वह धीरे-धीरे करके अपनी इस विषकन्या को देती चली जा रही थी । इसी प्रकार एक दिन वही राजकुमार जो अब राजा ध्रुव के नाम से कृति के रूप में प्रसिद्ध हो चुका था । एक बार फिर से अपने ही वंश से मिलने के लिए उस क्षेत्र में आया ।उसने विषकन्या को देखा जो विषकन्या माधवी की मां थी ।विषकन्या ने एक घोड़े को काट लिया था ।
यह देख कर के दूर से राजा को बहुत क्रोध आया और उसने धनुष बाण लेकर के विषकन्या के ऊपर उस शक्ति का प्रयोग किया ।बाण सीधे जाकर के विषकन्या के हृदय में लगा और विषकन्या उसी समय समाप्त हो गई । उसी के साथ में वह घोड़ा भी गायब हो गया । वह एक चमत्कारी घोड़ा था जिसको काटने के बाद उसमें शक्तियों का प्रवेश हो जाना था । लेकिन वह कोई साधना थी जो वह कर रही थी । जिसको गलती से राजा कृति ने कुछ और समझ कर के उस पर बाण चला करके उसे मार दिया था । अब राज कृति को बड़ा ही दुख हो रहा था । वह जाकर के उसी स्थान पर विषकन्या के शरीर को रख दिया और वहां से प्रस्थान कर गया । इधर विषकन्या की पुत्री अर्थात माधवी जो स्वयं राजा ध्रुव कीर्ति की बेटी भी थी । विषकन्या के पास जाकर उसने देखा कि उसके हृदय में बाढ़ लगा हुआ है । और विषकन्या समाप्त हो चुकी है । विष कन्या रूपी अपनी मां को मरा हुआ देखकर । उनके नेत्रों के माध्यम से सारे रहस्य को जान लिया और पता लग गया कि । किसी राजा ने इन का वध किया है । वह गुस्से से पागल हो गई और राजा को मारने का प्रतिज्ञा ली । अब आगे क्या हुआ यह हम जानेंगे देवल मंदिर की विषकन्या कथा भाग 2 में । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।