Table of Contents

पाताल भैरवी कथा और साधना विधि PDF

एक बार राजा भर्तृहरि के दरबार राजा विक्रमादित्य का समय अत्यन्त सुख और समृद्धि का था। उस समय उनके राज्य में जयंत नाम का एक ब्राह्मण रहता था। घोर तपस्या के परिणाम स्वरूप उसे इन्द्र के यहाँ से एक फल की प्राप्ति हुई थी जिसकी विशेषता यह थी कि कोई भी व्यक्ति उसे खा लेने के उपरान्त अमर हो सकता था। फल को पाकर ब्राह्मण अपने घर चला आया तथा उसे राजा भर्तृहरि को देने का निश्चय किया और उन्हें दे दिया। इस फल को खाकर राजा या कोई भी व्यक्ति अमर को सकता था। राजा ने इस फल को अपनी प्रिय रानी अनंगसेना थी जिसको राजा बहुत प्यार करते थे। उसका राजा के घोड़े के चरवाहे चंद्रचूड़ से भी प्यार था और सेनापति से भी था। उस सेनापति का नगरवधू रूपलेखा के घर भी आना जाना था।राजा भी उस रूपलेखा के यहाँ चंद्रचूड़ कोचवान के साथ बग्घी में बैठकर जाते थे। इस तरह चंद्रचूड़ और सेनापति दोनों का ही रानी अनंगसेना और रूपलेखा से प्यार का सम्बन्ध था।यह बात योगी गोरखनाथ जी को पता चली तो उन्होंने ही जयंत ब्राह्मण के साथ अमरफल भेजा।

 राजा ने वो अमरफल रानी अनंगसेना को दिया।रानी ने वो अमरफल चंद्रचूड़ को दिया। चंद्रचूड़ जब उस अमरफल को लिया और जब वो राजा भर्तहरी को रूपलेखा के यहाँ ले गया। तब राजा जब मदहोश हो गया तब चंद्रचूड़ ने उसके साथ प्यार कर के वो अमरफल रूपलेखा को यह कहकर दे दिया की वो उसको खायेगी तो अमर हो जायेगी और उसका चिरकाल तक यौवन बना रहेगा।

 वही फल रूपलेखा ने राजा को दे दिया की वो उसको खाएंगे तो अमर हो जायेंगे।वो खुद के जीवन से घृणा करती थी। उस फल को देख राजा क्रोधित हो गए।पूछने पर रूपलेखा ने चंद्रचूड़ का नाम बताया की उसीने उसको अमरफल दिया था।जब चंद्रचूड़ ने को राजा तलवार निकाल कर सच पूछा तो उसने रानी अनंगसेना के साथ अपने सम्बन्ध कबूले और सेनापति का भी भेद बताया।

 उस दिन अमावस्या की रात थी।राजा आगबबूला होकर नंगी तलवार लिए शोर करता हुआ अनगसेना के आवास की तरफ बढ़ चला।अनगसेना ने राजा के क्रोध से डरकर सच मान लिया।लेकिन उसी अमावस्या की रात रानी ने आत्मदाह कर लिया। चंद्रचूड़ को देश निकाला दिया गया और सेनापति को मृत्युदंड दिया गया। अब राजा उदास रहते थे।पिंगला ने ही उनको आखेट के लिए भेजा था।फिर आखेट के समय एक सैनिक मारा गया तो उसकी पत्नी उसकी देह के साथ सती हो गई। राजा सोच में पड़ गया।एक नारी थी अनगसेना।एक नारी है रूपलेखा और एक नारी है उस सैनिक की पत्नी। क्या है नारी??इस घटना का राजा के ऊपर अत्यन्त गहरा प्रभाव पड़ा तथा उन्होंने संसार की नश्वरता को जानकर संन्यास लेने का निश्चय कर लिया और अपने छोटे भाई विक्रम को राज्य का उत्तराधिकारी बनाकर वन में तपस्या करने चले गये।

गुरु गोरखनाथ के निर्देश पर इन्होने माता पाताल भैरवी की साधना कर सभी प्रकार की सिद्धियाँ हासिल की थी इस स्थान के विषय में यह जानकारी इस प्रकार है –

उज्जैन नगरी अत्यंत पावन और संतो की कर्म भूमि रही है !और साथ ही तंत्र साधनाओ के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और सिध्ध स्थान रहा है ! यहाँ पर भगवान् महाकालेश्वर दक्षिन मुखी है !इस कारण ये स्थली तंत्र कार्यो में सर्वो परी रही है !साथ ही यहाँ अत्यंत चमत्कारी एवं सिद्ध श्मशान है !जहा पर भगवान शिव के गण भूत प्रेतादिक स्वछंद विचरते है यहाँ चक्रतीर्थ श्मशान विक्रांत भैरव श्मशान एवं उख्लेश्वर श्मशान बहुत सिध्ध स्थल है !जहा पर अनेक तांत्रिक एवं अघोरी सिध्धिया प्राप्त करते है

इसी के साथ यहाँ काल भैरव भी बाबा महाकाल के सेनापति के रूप में विद्यमान है जो निरंतर मदिरा पान करते है और उसी जगह नीचे गुफा में विराजमान है ! माँ पाताल भैरवी

 माँ पाताल भैरवी अनेक सिध्धियो को प्रदान करने वाली है प्राचीन काल में वहा राजा भर्तहरी ने कई सिध्धिया प्राप्त की जिस साधक पर माँ की कृपा हो जाती है वो कभी दुखी नहीं रहता और देवी ,योगिनी,यक्षिणी,चंडालिनी सिध्धिया यहाँ पर जल्दी सिध्ध होती है ! जब भी कभी आपका उज्जैन जाना हो इस दुर्लभ स्थान के दर्शन अवश्य कीजिये और कोई सिध्धि का कार्य हो तो वहा पर अधिकृत पुजारी से अनुमति लेकर पूर्ण कर सकते हैऔर विक्रांत भैरव पर भी सिध्धि के लिए उत्तम स्थान का निर्माण हुआ है जहा पर सुगम रूप से साधना की जा सकती है

साधक के भय की विशेष रूप से इस साधना में परीक्षा ली जाती है यह अत्यंत ही उच्च कोटि की तीव्र ऊर्जा देकर शक्तियों को अपने अधीन बनाने की साधना है भय काम की परीक्षा इसमें विशेष रूप से साधक की ली जाती है अगर इस साधना में साधक सफल हो जाता है तो फिर साधक को किसी और शक्ति को सिद्ध करने की आवश्यकता ही नहीं रह जाती है क्योंकि साधक में इतना अधिक सामर्थ्य और बल आ जाता है कि फिर कोई और साधना उसके लिए छोटी ही सिद्ध होती है साधक पाताल की समस्त शक्तियों को अपने अधीन करने की सामर्थ्य रखता है माता त्रिपुर भैरवी कि यह प्रथम शक्तिमान शक्ति है क्योंकि माता त्रिपुर भैरवी पाताल भैरवी, पृथ्वी भैरवी और स्वर्ग भैरवी इन तीनों शक्तियों के समन्वित मिलन से ही बनी हुई है इससे आप जान सकते हैं कि आपका पूरा नियंत्रण पाताल लोक पर हो जाता है और सभी यह बात जानते हैं कि पाताल लोक असुरों दानव नागो और इसी प्रकार की अन्य शक्तियों से भरा हुआ क्षेत्र है इसलिए साधक अतुलनीय शक्ति संपन्न बन जाता है

पाताल भैरवी कथा और साधना विधि PDF लिंक प्राप्त करने के लिये यहाँ क्लिक करे

पाताल भैरवी फिल्म नीचे link क्लिक कर देखे –

https://archive.org/details/pataal-bhairavi-1985-phantom.-da-xdesibbrg.com

 

 

error: Content is protected !!
Scroll to Top