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कई दर्शकों की मांग थी कि दीपावली पर माता लक्ष्मी की कोई सरल साधना बताई जाए। साधना ऐसी है जो दीपावली पर तो की ही जा सकती है किंतु किसी भी शुक्रवार से शुरू की जा सकती है और वर्ष भर यह साधना की जा सकती है।
इससे माता लक्ष्मी की कृपा निश्चित रूप से प्राप्त होती हैं। मां! प्रसन्न होकर के अपने पुत्रों को आशीर्वाद देती हैं। धन धान्य संपदा सब कुछ प्राप्त करवाती हैं तो चलिए जानते हैं इस साधना के बारे में और दीपावली पर कैसे करनी है उसके बारे में भी।
सबसे पहले माता लक्ष्मी का सामान्य परिचय-
हिंदू धर्म में भगवान विष्णु की पत्नी और माता पार्वती और माता सरस्वती के साथ त्रिदेवियां में जो शामिल हैं उनका नाम लक्ष्मी है। कहते हैं संसार में जिनको लक्ष्य बनाकर साधने की कोशिश की जाती है इसीलिए इनको लक्ष्मी नाम से जाना जाता है।
धन संपदा सुख समृद्धि प्राप्त करने के लिए। जिनकी पूजा की जाती है उन्हें हम लक्ष्मी के नाम से जानते हैं। विशेष रूप से दीपावली के त्यौहार पर इनकी पूजा की जाती है और ऋग्वेद के श्री सूक्त में जिनका वर्णन भी मिलता है।
जिस पर इनका अनुग्रह हो वह दरिद्र दुर्बल कृपाण असंतुष्ट पिछड़ेपन से ग्रसित कभी नहीं रहता। स्वच्छता और सुव्यवस्था की प्रतीक श्री स्वरुप यह मानी जाती हैं। यह दद्दा कुरूपता विभिन्न प्रकार के जो असंतोष है उन सब का नाश करने वाली माता लक्ष्मी कहलाती हैं।
किसी भी अप्रयोगी वस्तु को उपयोगी कैसे बनाएं। यह विद्या केवल माता लक्ष्मी ही सिखाती है।
इनकी कृपा से ही व्यक्ति श्री हो पाता है। उसके आगे श्री लग पाता है।
श्री शब्द का प्रभाव ऐसा है कि? व्यक्ति को सामर्थ्य वान बना देता है।
व्यक्ति धनवान हो जाता है। जीवन में सभी सुख संपदा, संपन्नता और सभी प्रकार के भौतिक सुख उसको प्राप्त होने लगते हैं। माता पृथ्वी स्वरूपा भी हैं और श्रीदेवी अवतार स्वरूपा भी हैं।
जैन धर्म में भी लक्ष्मी को महत्वपूर्ण देवता के रूप में माना गया है और मंदिरों में भी साथ ही में भाग्य की देवी से इनका संबंध जोड़ा जाता है। इनकी पूजन का जो शुभ दिन है वह शुक्रवार माना जाता है। इनको चालीसा बहुत ही अधिक प्रिय है और सभी भक्तों में सभी चर्चित है ।
समर्थ पुरुषों में इनकी महिमा का वर्णन सदैव ही व्याप्त रहता है। सुनार लोग विशेष रूप से इनके पूजन से संबंधित रहते हैं क्योंकि सोने में देवी का स्थान माना जाता है। चलिए बात करते हैं माता की साधना के बारे में।
माता की साधना के लिए आपको इनकी चालीसा की साधना! सिद्ध मंत्र के संपुट के साथ करनी चाहिए जिससे चालीसा का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। मनुष्य के सौभाग्य में वृद्धि होती है और जो भी इसका रोज 11 से लेकर 108 बार जाप करता है। वर्ष भर के अंदर ही उसको लक्ष्मी की प्राप्ति अवश्य होती है। इसमें कतई संदेह का कोई स्थान नहीं है। साधना ऐसी है जो छोटे से छोटा बच्चा से लेकर बुजुर्ग व्यक्ति तक कर सकता है। बस माता लक्ष्मी की साधना में शुचिता, पवित्रता और शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। आप कमल गट्टे की माला से इनके नामावली का बार बार जाप कर सकते हैं। दोहे सोरठे और चालीसा का पाठ अगर पुरश्चरण के द्वारा करना चाहते हैं तो कमलगट्टे की माला का ही इस्तेमाल करें।
इसके अलावा अगर दशांश हवन करते हैं तो मंत्र के आगे केवल स्वाहा शब्द लगाकर। शुद्ध घी से आप हवन कर सकते हैं।
या फिर अगर आपके पास विशेष प्रकार के अनुष्ठान के लिए समय है तो कमल? के पुष्पों को चढ़ाते हुए अगर साधना करते हैं तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि आपको माता की कृपा ना प्राप्त हो। निश्चित रूप से 1 वर्ष के भीतर ही व्यक्ति धनवान हो जाता है। तो चलिए शुरू करते हैं इनके इस अद्भुत दोहे सोरठे और चालीसा के बारे में और उसके जाप को कैसे करना है?
मनुष्य पवित्र होकर स्नान ध्यान करके स्थापित माता की मूर्ति के आगे बैठ करके इनके चालीसा का जाप करें और अपने सौभाग्य की वृद्धि करें। दोहे से शुरू करते हैं।-
॥ दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस॥
॥ सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही॥
श्री लक्ष्मी चालीसा
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
जय जय जगत जननि जगदम्बा । सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥1॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥2॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥3॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥4॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥5॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥6॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥7॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥8॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥9॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥10॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥11॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥12॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥13॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥14॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥15॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥16॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥17॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥18॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥19॥
ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः
॥ दोहा॥
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास। जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
सूरज प्रताप धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर। मातु लक्ष्मी पुत्र पर, करहु दया की कोर॥
इस प्रकार से आप माता लक्ष्मी का रूप चालीसा दोहा पाठ कर सकते हैं और इसमें जो मंत्र लगा हुआ है उसकी वजह से इसकी जो फल देने की क्षमता है, कई गुना बढ़ जाती है। इसे रोज पढ़ने पर माता लक्ष्मी की कृपा अवश्य प्राप्त होती हैं और कहते हैं अगर 1 वर्ष तक जाप किया जाए तो निश्चित रूप से माता लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती हैं और धन संपत्ति प्रदान करती हैं। दीपावली के विशेष दिन पर इसका अगर आप एक माला जाप कर लेते हैं और दशांश हवन करते हैं। दीपावली के दिन में तो माता लक्ष्मी की कृपा वर्ष भर तक आप पर बनी रहती है। आपके दुख दरिद्रता का नाश होता है और अचानक से धन की प्राप्ति भी माता करवाती है। मां की कृपा से निश्चित रूप से आपको धन, संपदा और समृद्धि की प्राप्ति होती है और गुप्त सिद्धियों को भी माता प्रदान करती हैं। मां भक्तों के मन में भावना के अनुसार ही उसको फल को प्रदान करती हैं तो इसलिए इस साधना को दीपावली पर अवश्य करें और मां की कृपा को प्राप्त करें।
आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद!