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योगिनीपुर की महायोगिनी मठ कथा भाग 3

योगिनीपुर की महायोगिनी मठ कथा भाग 3

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य में आपका एक बार फिर से स्वागत है । जैसा कि अभी आपने योगिनी मठ की कथा में जाना किस प्रकार से महायोगिनी को भान प्रसन्न करने की चेष्टा कर रहा है उसकी चेस्टाओ का प्रतिबंध था । कि पहली देवी लोभनी उसके शरीर में प्रकट हुई थी और अपनी परीक्षा लेकर के वह जा चुकी थी।  अगली रात को जब उसने अपनी मालाएं  प्रकट की और लगातार उन्हें जपता रहा जिस प्रकार से 101 माला पूरी कर लेने पर उसकी पीठ में एक अद्भुत जलन महसूस हो रही थी । लेकिन किसी भी प्रकार से क्योंकि साधना में उपासना में उसे अपने आपको पूरी तरह से समर्पित रखना था तो भयंकर दर्द को झेलते हुए अपने पीठ में उसने वह साधना पूरी कर ली । और वहीं पर गिर कर के सो गया जैसे ही वह सोया एक अद्भुत चमत्कृत दृश्य उसके सामने उपस्थित हुआ वह बैठा हुआ जहां सो रहा था । वह चारों तरफ वह जगह फूलों के बगीचों से भर गई उन फूलों के बगीचों के सुगंध उसकी नाक में घुस रही थी उसने देखा कि चारों तरफ एक बेहद सुंदर वातावरण मौजूद था ।

जहां चारों तरफ खूबसूरत झरने है जो भी कुछ सफेद रंग की दूधिया प्रकाश की तरह से दिख रहे थे फूलों के बड़े-बड़े बगीचे जहां भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल थे । और उनसे आती हुई दिव्य सुगंध है उसे दिखाएं पढ़ रही थी उसे लगा यह कैसा लोक हैं यह कैसी दुनिया है जो मेरी दुनिया से बिल्कुल ही अलग है वह इधर-उधर घूमता हुआ जा रहा तभी एक फूल को देख कर के उसके मन में बहुत ही तीव्र इच्छा हुई कि मैं इसे तोड़ लूं और वह जाकर कि उसने एक पीले रंग के फूल को उसने तोड़ लिया वह इतना अधिक मुलायम था । कि उसे वह अपने गालों पर रगड़ने लगा और उसका आनंद लेने लगा क्योंकि उस फूल की वजह से उसके अंदर बहुत ही तीव्रता के साथ मधुर मधुर विचार आ रहे थे । यही सोच सोच कर उसने सोचा कि इस फूल को वह अपने साथ रखेगा और एक फूल वह तोड़ता रहेगा ऐसा सोचकर कि उसने और भी फूल तोड़ने लगा तभी वहां पर एक विशालकाय कीड़ा प्रकट हुआ कीड़ा जिसके 8 पैर थे । वह मकड़ी की तरह से लग रहा था उसने उसे अपने जाल में फंसा लिया अब जाल में फंसा हुआ भान चिल्लाने लगा कोशिश करने लगा ।

हे महायोगिनी देवी मेरी रक्षा करो हे महायोगिनी देवी मेरी रक्षा करो बहुत ही कोशिश करने के बावजूद भी कुछ भी नहीं हो रहा था । और वह कीड़ा उसकी तरफ बढ़ता हुआ आ रहा था कीड़ा अब मनुष्य स्वर में बोलने लगा मैं तुझे खा जाऊंगा मैं तुझे खा जाऊंगा और जैसे वह पहुंचने ही वाला था तभी वहां पर एक अति सुंदर देवी प्रकट हुई । और उसके पैर के प्रहार से वह कीड़ा धराशाई होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा और साथ ही साथ उसका भुना हुआ एक बड़ा सा जाल ठीक उसी तरह जैसे एक मकड़ी बुनती है । उससे बाहर निकलते हुए उस भान ने उस देवी को प्रणाम किया देवी प्रकट होकर उसे कहने लगी कि । हे भान मैंने तेरी रक्षा की है मुझे अपने शरीर में प्रवेश दे बोल कहां से प्रवेश लेगा नाक से प्रवेश लू या मस्तक से प्रवेश लू या कान से प्रवेश लू  या मुंह से प्रवेश लूं । तो भान ने कहा आपने अत्यंत मधुर ही वाणी में शब्दों को कहा है इसलिए आप मेरे मुंह से प्रवेश कीजिए । इस प्रकार  करके वह देवी उसके मुंह से प्रवेश लेकर उसके शरीर में प्रवेश कर गई और इधर इसका स्वप्न टूट गया । उसने देखा अह कितना सुंदर वातावरण था वह देवी कौन थी उसकी सुंदरता चरम पर थी । और वह मेरे मुंह में प्रवेश कर गई और उठ करके और दैनिक कार्यों में व्यस्त हो गया तभी वहां कई सारे लोग आए जो उस आश्रम को चारों तरफ से घेर करके उसे लूटने की कोशिश करने लगी । गुस्से से भरे हुए भान ने कहा कि मैं तुम सबको मार डालूंगा अगर कोई मेरे नजदीक आया तो वह तुरंत ही मूर्छित हो जाएगा ऐसा उसका मुंह से कहना ही था ।

अचानक से जितने भी डाकुओं ने उस आश्रम को घेर रखा था वह सब के सब बेहोश हो गए ऐसा चमत्कार घटित हुआ कि उसके कहने मात्र से ऐसा कैसे संभव हो गया था । कैसे संभव हो गया था इस बात को समझ नहीं पा रहा था तभी उन डाकुओं का जो सरदार था उसने अपने साथ विभिन्न प्रकार के सात या आठ जंगली कुत्ते जो बहुत ही खतरनाक और विभात्र नजर आ रहे थे । इसको ऐसा करते थे उसने अपने कुत्ते भाम पर छोड़ देता कुत्ते बहुत से दौड़ते हुए भाम के ऊपर हमला करने लगे भाम से भागने लगा लेकिन भाम को तभी याद आया कि मैंने अभी थोड़ी देर पहले इतने लोगों को धराशाई कर दिया क्या मेरे अंदर कोई शक्ति है  मुझे कुछ करना चाहिए वह तालाब के किनारे तुरंत रुका और कहा अगर कुत्तों तुम नहीं रुके तो मैं तुम्हें काल का ग्रास बना दूंगा अभी यहां से एक मगरमच्छ प्रकट होगा । और तुम सब को खा जाएगा उसके ऐसा कहना ही था कि अचानक से पानी में हलचल विशालकाय मगरमच्छ बहुत तेजी दौड़ता हुआ उसने सभी कुत्तों को अपने मुंह में धर लिया वह विशालकाय मगरमच्छ जो एक नदी के समान लंबा-चौड़ा दिखाई दे रहा था । उन्हें मुंह में दबाकर करके पचक पचक करते हुए उनके शरीरों को खा गया और पानी में फिर से वापस लौट गया अब तो भान स्वयं को सोचने लगा मैं कितना अधिक शक्तिशाली हो गया हूं तभी वहां पर कुछ साधु सन्यासी आ रहे वह काफी थक चुके थे उन्हीं में से एक साधु सन्यासी पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने लगा और उसने अपने पैर फैला रखे थे तो वह रास्ते में आ रहे थे जिस रास्ते से भान को गुजरना था ।

भान उसके नजदीक पहुंच करके जोर से चिल्ला के कहने लगा हे साधु अपने पैरों को जल्दी से हटा ले वरना मेरे मुंह से कुछ ऐसा वैसा निकल गया तो तु बेकार में ही मारा जाएगा साधु ने विनम्र भाव में कहा । हे महाशय मैं भोजन कर रहा हूं और इतना अधिक थक चुका हूं कि पैर जल्दी ही सीधे नहीं कर पाऊंगा कुछ छण़ रुकिए तब मैं अपने पैरों को मोड़कर के आपकी इच्छा की पूर्ति कर दूंगा लेकिन भाम को बहुत से इस बात के लिए घमंड हुआ शरीर के अंदर धारण की हुई है । अहमनी शक्ति जो अहम की शक्ति है जिसने शरीर के अंदर प्रवेश कर लिया था और मुंह के माध्यम से वह बोल रही थी एक बार फिर से उसने जोर कहा हट जा नहीं तो तुझे मैं हवा में उड़ा दूंगा तभी साधु के गुरु वहां पर आ गए और उन्होंने कहा कि विपरवर आप शांत हो जाइए । यह बेचारा बहुत अधिक थका हुआ है कुछ क्षण रुकिए तब तक इसके पैरों को मैं ही सीधा कर देता हूं और उसके गुरु ने अपने ही शिष्य के पैरों को सीधा कर दिया । उसकी बातों को देखकर के बड़ा ही आश्चर्य भान को हुआ और भान को अपनी गलती का एहसास हुआ भान ने सोचा एक गुरु हो करके वह अपने शिष्य के पैरों पर गिरा और उसने उसके पैर मोड़ करके उसे भोजन करने दिया साथ ही साथ किसी भी प्रकार का घमंड नहीं रखा और एक मैं हूं जो मेरे अंदर इतनी अधिक शक्ति आ चुकी है ।

फिर भी मैं इतना बड़ा घमंड कर रहा हूं और उसे अब सामने वाले को मूर्ख समझ रहा हूं संसार में ऐसा करना तो बहुत ही बुरा होता है और उसने तुरंत ही भान ने उस व्यक्ति साधु से माफी मांगी जैसे साधु से उसने माफी मांगी और वह दृश्य तुरंत ही गायब हो गया उसने देखा वहां कुछ भी नहीं है ना वहां साधु मंडली है और ना ही हो वह साधु है ऐसी स्थिति को देखकर उसे कुछ समझ में नहीं आया और वह महायोगिनी के मंत्रों का उसने सात बार उच्चारण किया जैसे ही सात बार उच्चारण किया उसके मुंह से बाहर आकर देवी अहमनी प्रकट हो गई ।अहमनी देवी के प्रकट होते ही वह प्रसन्न होकर कहने लगी तुम अपनी दूसरी परीक्षा में भी सफल हो गए हो मैं तुम्हारी जबान पर वास कर रही थी तुम चाओ तो जो चाहते वह घटित हो जाता तुम जो मुंह से बोल देते  हो जाता तुम्हे सबको मूर्छित करने की शक्ति तुम्हें सबको प्राण दंड की शक्ति प्राप्त हो गई थी । लेकिन फिर भी अंततोगत्वा तुमने अपने आप को रोक लिया हो यह बहुत ही अद्भुत बात है इसलिए मैं तुम से प्रसन्न होती हूं और मैं अब गायब होती हूं अगली परीक्षा के लिए तुम तैयार रहना और अपनी साधना में जाकर के जुट जाओ इस प्रकार से अहमनी शक्ति ने उससे यह बात कही और यह भी साथी बताया मेरी शक्ति यानी अहम की शक्ति अर्थात घमंड की शक्ति से बचना प्राणियों के लिए बहुत ही कठिन होता है ।

जो इसे बचा ले जाता है अपने स्वरुप को वह बहुत ही शक्तिशाली हो जाता है संसार में जिसके अंदर अहम नहीं है वह निश्चित रूप से सर्व विजेता है क्योंकि पराजय तो केवल अहम की होती है । स्वयं तो कभी कोई पराजित होता ही नहीं है इस प्रकार से अहमनी उसे आशीर्वाद देकर वहां से गायब हो गई उसकी बातों को समझ करके एक बार फिर से भान ने अपने आश्रम की ओर का रुख किया वहां पहुंच कर के फिर से साधना में लीन होना चाहता था जल्दी से जल्दी । तभी वहा पर एक साधना के बीच में ही जब वो अपने मंत्रों का जाप कर रहा था एक देवी प्रकट हो गई । और उन्होंने कहा सुनो भान रुको रुको रुको तीन बार शब्द का उच्चारण किया क्षमा मांगते हुए भान ने कहा देवी मेरी साधना खंडित होगी उन्होंने कहा कि साधना खंडित नहीं होगी क्योंकि मैं स्वयं मां की आशीर्वाद से प्रकट हुई हूं । इसलिए कुछ क्षण रुको और अपने ध्यान को विराम दो अपने मंत्र जाप रोको और मैं तुम्हें यह मणी प्रदान करती हूं ।

यह नीलमणि है यह मणि तुम्हें हर प्रकार की शक्तियां खासतौर से किसी भी प्रकार का भोजन किसी भी प्रकार का वस्त्र किसी भी प्रकार का आभूषण देने की शक्ति रखेगी इस मणि को तुम अपने पास रखो बाद में मैं तुमसे से ले लूंगी । लेकिन फिलहाल इसे अपने पास रख लो और सदैव इसकी रक्षा करना साधना पूर्ण होने से पहले ही मैं तुम्हें यह प्रतिफल देने आई हूं इसे अपने सामने रख लो और साधना में जुट जाओ । उसकी बात को सुनकर के मंत्रों का जाप करते हुए है भान ने उस माला को जिसमें मढ़ी बंधी हुई थी अपने गले में धारण कर लिया और मंत्र का जाप करने लगे । वह दिन जिस रात को उसने मंत्र का जाप किया था बहुत ही अच्छे ढंग से कट गई और शहज रूप में उसे नींद आई उसे ऐसा महसूस हो रहा था जीवन उसका किसी भार से मुक्त हुआ है क्योंकि अहमनी शक्ति को उसने धारण करके विजय वह हुआ था लेकिन यह मणि के प्राप्त होने से अब उसके शरीर के अंदर एक अजीब सा तेज पैदा हो रहा था ।

उस तेज की शक्ति के कारण उसके मन में इच्छाएं बहुत सी जागृत हो रही थी और वह प्रसन्न चित्त हुआ वहीं पर सोने लगा सुबह जब वह उठा तो वहां पर गुरुदेव और बाकी आश्रम के काफी लोग इकट्ठा थे । सब ने कहा आश्रम का भोजन समाप्त हो चुका है भोजन लाने के लिए शहर जाना पड़ेगा और ऐसी अवस्था में क्योंकि बगल में ही जंगल है वहां आग लगी हुई है किस प्रकार से भोजन की व्यवस्था की जाएगी ऐसी अवस्था में हमारे लिए भोजन के संकट पैदा हो रहा है ऐसा बोल कर बोलना ही था । तभी अचानक स्वयं उसके मन में एक भाव आया भाव इस प्रकार से आया कि भान ने कहा ठीक है आपने भंडार गृह में जाइए और वहां से अनाजों से भरी हुई बोरियों को ले लीजिए साथ ही साथ वहां पर सभी प्रकार के पीले वस्त्रों को धारण कीजिए मैं अपनी मणि के माध्यम से उस स्थान को भर देता हूं ।

और मैं यह सत्य प्रतिज्ञा करता हूं कि आपके पूरे कमरे में अनाज और वस्त्र भर जाए इतना कहना ही था कि मणि से तीव्र प्रकाश निकला और जिस स्थान पर उनका स्टोर ग्रह बना हुआ था । जहां पर भोजन सामग्री रखी जाती थी वह पूरा का पूरा भर गया वहां अन्न दाले विभिन्न प्रकार की सब्जियां और अन्य प्रकार की शाक चीजें वहां पर उपलब्ध हो गई फलों की बड़ी-बड़ी टोकरिया इसी के साथ साथ वस्त्रों के अन्य प्रकार के विभिन्न वस्त्र जो भी साधु संत पहनते थे आश्रम के लिए वहां सब कुछ भर चुका था । सबकी आंखें फटी की फटी रह गई स्वयं गुरु भी आश्चर्यचकित थे कि प्रकार से अद्भुत शक्ति भान को कहां से मिली सब की आंखें फटी की फटी रह गई स्वयं गुरु भी उसके आश्रित की संत पहनते थे सब कुछ भाग चुका था ।सबकी आंखें फटी की फटी रह गई । स्वयं गुरु भी आश्चर्यचकित थे । यह अद्भुत शक्ति भान को कहां से मिली अब सभी शिष्य चुप चुप करके भान के पास आकर के अपनी अपनी बातें बताने लगे वह बातें क्या थी । जल्द ही जानेंगे अगले 4 भाग में । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

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