राजवीर अब बड़े ही। घबराए हुए हृदय से चारों तरफ उस मुंड को और अन्य दो अप्सराओं को ढूंढता है। लेकिन वहां कोई अप्सरा उसे दिखाई नहीं देती। यहां तक कि देव अप्सरा भी नहीं। राजदीप बहुत ज्यादा परेशान हो जाता है। चारों ओर ढूंढने के बाद भी वहां पर कोई नहीं था। राजवीर कुछ देर। सोचता रहता है उसके बाद उसके मन में यह विचार आता है कि मुझे अपने उन्हीं तांत्रिक गुरु की शरण में जाना चाहिए। शायद वह मेरी मदद कर सके और मुझे इस मुसीबत से निकलने का रास्ता बता सकें।
राजवीर बिना कोई देर किए एक बार फिर से। अपने उन्हीं तांत्रिक गुरु की ओर जाने लगता है। कुछ देर बाद वह उनके आश्रम पर पहुंच जाता है। वहां पर जिस कुटी में वह निवास करते थे। उस जगह पर अब कोई गुरु नहीं थे। यह देखकर उसे और भी अधिक आश्चर्य हो जाता है। चारों तरफ ढूंढने पर भी वहां कोई नहीं मिलता। उसे समझ में नहीं आ रहा था यह सब क्या घटित हो रहा है? उसे ऐसा आभास होता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि सभी ने मिलकर उसे ठगा हो। और सब ने मुंड को प्राप्त करने के लिए ही यह सारी प्रपंच रच ही हो। अब राजवीर परेशान हुआ वहीं पर कुछ क्षण बैठ जाता है और विचार करता है कि आखिर इस पूरे प्रकरण में उसकी सहायता किसने सत्य प्रकार से की? और उसी सत्य को प्राप्त करना उसका मूल उद्देश्य होना चाहिए।…
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