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साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 123

साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 123

१. गुरु जी कोई भी मंत्र बिना किसी संकल्प या सिद्धि के यदि कोई व्यक्ति दैनिक रूप से जाप करता है तो क्या वह मंत्र सिद्ध होगा?

उत्तर:- अगर आप दैनिक रूप से किसी भी मंत्र का जाप कर रहे है तो वो निश्चित रूप से उसका प्रभाव होगा लेकिन सिद्धि के लक्षण अलग तरह के होते है | आप इसको एक तरीके से कृपा सिद्धि मान सकते है | जब आप बिना किसी विधान के या बिना संकल्प के साधना करते है क्युकी संकल्प का अपने आप में बहुत अधिक महत्त्व होता है इसलिए जब आप सही तरीके से उस मंत्र की साधना नहीं करते तो उसका जो प्रभाव होना चाहिए उतना नहीं हो पाता | आप इसको इस तरह से समझ सकते है की अगर कोई bulb है, वो जब ही जलेगा  जब आप उसको बिजली के साथ जोड़ेंगे और जब तक सही रूप से नहीं जोड़ेंगे तब तक आप कुछ भी कर ले आप उसको प्रज्वलित नहीं कर सकते है क्युकी उसका वही विधान है |  इसी प्रकार साधना में भी अगर कोई विशेष सिद्धि प्राप्त करने का लक्ष है तो आपको उसी तरीके से करना होगा जिस तरीके से वो चीज़ प्राप्त होती है, अगर आप उस तरीके से नहीं करते है तो आप सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकते है | अगर आप किसी भी मंत्र का निरन्तर जप करते है तो उस मंत्र की कृपा आपको प्राप्त होने लग जाती है लेकिन अगर आप चाहते है की आप उस मंत्र के माध्यम से अपने कार्य सिद्ध कर पाए तो वो अलग बात है, उसका एक पूरा विधि विधान होता है |

२. गुरु जी मैंने मां दुर्गा को ही अपना गुरु माना है और विधि विधान से उनका गुरु  पूजन करके उनके ही एक मंत्र को गुरु मंत्र के रूप में जाप कर रही हूं तो क्या मैं सांसारिक रूप से किसी और को गुरु बना सकती हूँ ?

उत्तर:-  जब आप किसी महाशक्ति को अपना गुरु बनाते है तो वो शक्तिया माया के माध्यम से ज्ञान देने की कोशिश करती है | लेकिन उस चीज़ को व्यक्ति समझ नहीं पाता है और ऐसा भी नहीं है की आप अगर किसी को गुरु मान लेते है तो वो आपका गुरु बन ही जाए | जब तक विधि विधान से दीक्षा प्राप्त नहीं हो जाती तब तक आपका और उनका सम्बंद कैसे स्थापित हो सकता है? आप गुरु से उसके द्वारा दिए गए मंत्र के माध्यम से जुड़े होते है | किसी देवता को गुरु रूप में देखना आपकी संतुष्टि हो सकता है लेकिन गुरु के रूप में उन्हें प्राप्त कर लेना बहुत अधिक कठिन है | अगर देवता को ही गुरु मान लिया जाता तो फिर ऋषियों को गुरु और शिष्य परंपरा बनाने की जरुरत नहीं थी, शास्त्र सीधा कहते की आप देवता को ही गुरु बना ले लेकिन ऐसा कही वर्णन नहीं है | देवता और आपका संबंद तब ही स्थापित हो पाता है जब आपके बीच में गुरु का स्थान हो, यह अलग बात है की अगर आप उससे सम्बंदित मंत्र का जप करते है और उस मंत्र की सही ढंग से साधना कर लेते है तो वो मंत्र आपकी सुरक्षा करता है लेकिन इसका गुरु प्राप्त होने से कोई सम्बंद नहीं है |

३. गुरु जी क्या किसी भी मंत्र का जाप पूरा करके उसका दशांश हवन करना जरूरी होता है? अगर किसी की कार्य क्षमता ना हो इतने लंबे समय तक बैठने की तो क्या हम लगातार मंत्र का जाप नहीं कर सकते?

उत्तर:- भारतीय संस्कृति का मूल आधार मंत्र है और  देवता मंत्रो के माध्यम से अग्नि कुंड में पूर्ण रूप से प्रत्यक्ष होते है | देवता और मनुष्य का संबंद अग्नि देवता के माध्यम से ही हो पाता है | जब आप यज्ञ में  कोई भी पदार्थ अग्नि  को समर्पित करते है तो वो सीधा उस देवता को प्राप्त होता है इसलिए मनुष्य और देवता का सम्बंद अग्नि के माध्यम से ही संभव है और विशेष मंत्र के माध्यम से देवता अग्नि कुंड में पूर्ण रूप से प्रत्यक्ष होते है | लेकिन हमारी आँख उस समय अपने आप में इतनी क्षमतावान नहीं होती की हम उस शुक्ष्म चिंतन को या उस तथ्य  को पकड़ पाए इसलिए उन चीज़ो को हम दिव्य नेत्रों के माध्यम से ही पकड़ और देख पाते है लेकिन साधारण रूप से उस शूक्ष्मता को हम अनुभव नहीं कर पाते इसलिए अगर देवता भी हमारे सामने प्रत्यक्ष हो जाए तो भी हम बिना दिव्य चक्षु के बिना नहीं देख पाते | हवन इसलिए किया जाता है की आप उस देवता तक अपनी सामग्री  अग्नि के माध्यम से पंहुचा सके और हवन का क्रम लगभग सभी साधनाओ में आवश्यक अंग है |

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