माता भुनेश्वरी एकाक्षरी यंत्र साधना
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम बात करेंगे माता की एक ऐसे स्वरूप की साधना के विषय में जिसकी साधना करने से न सिर्फ दरिद्रता और जीवन के दुख दूर होते हैं। अतुलनीय बल, समर्थ ज्ञान सब कुछ प्राप्त होता है। माता पराशक्ति की जो 10 महाविद्या स्वरूप हैं, उनमें माता भुवनेश्वरी की साधना जीवन में अतुलनीय लाभ दे सकती है। इसलिए इनकी साधना साधक को अवश्य ही करनी चाहिए। माता के 10 महाविद्या समूहों में हूं। सौम्य कोटि- उग्रकोटि और सौम्य उग्र कोटि की शक्तियां विद्यमान रहती हैं, जिसमें सौम्य में कोटि में माता त्रिपुर, सुंदरी, भुनेश्वरी, मातंगी और कमला मानी जाती हैं। उग्र स्वरूप में काली, छिन्नमस्ता, धूमावती और बगलामुखी माने जाते हैं और सौम्य उग्र मिश्रित कोटि में माता तारा और त्रिपुर भैरवी मानी जाती है। 10 महाविद्याओं में देवी मां का महाविद्या भुवनेश्वरी स्वरूप अपने आप में बहुत विचित्र है। और यंत्र स्वरूप में एकाक्षरी मंत्र द्वारा इनकी साधना करने से कई गुना लाभ प्राप्त होता है। माता की जयंती भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। यानी कि भादो के महीने की जो शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि होती है, उसी दिन इनकी जयंती मनाने का विधान है। इनकी पूजा के लिए ग्रहण काल, त्योहार, होली, दीपावली, महाशिवरात्रि कृष्ण पक्ष की अष्टमी, चतुर्दशी, नवरात्रि इत्यादि किसी भी समय इनकी साधना सभी प्रकार के सुख प्रदान करने वाली मानी जाती है। माता! भुनेश्वरी मूल प्रकृति कही जाती हैं। इन्हीं शताक्षी और शाकंभरी भी कहा जाता है। दुर्गामासुर का वध भी इन्होंने ही किया था। यह कहा जाता है कि काल की जन्म दात्री या माता इन्हें माना जाता है यानि काल को पैदा करने वाली देवी भी यही है। इनके जो हथियार है उनमें आप अंकुश और पास पाते हैं। किसी को भी अपने नियंत्रण में रखना और अपने माया जाल में फंसाने की शक्ति इनके अंदर मौजूद है। मां भुवनेश्वरी का सौम्य अंग कांति अरुण समान है। मां भुवनेश्वरी के 1 मुख् चार हाथ है और चारों हाथों में गदा शक्ति और राजदंड व्यवस्था का प्रतीक माना जाता है। माला नियमितता आशीर्वाद मुद्रा प्रजा पालन की भावना की प्रतीक माना जाता है और आसन सर्वोच्च सत्ता का प्रतीक यहां पर माना जाता है। पुत्र प्राप्ति हो, अभय और सिद्धियां प्राप्त करना हो। इनकी पूजा बहुत प्रभावशाली है। अच्छे राजनैतिक पद पर पहुंचना हो तो इनका आशीर्वाद अवश्य ही लेना चाहिए। इनके आशीर्वाद से। धन प्राप्ति और महाबली होने की शक्तियां प्राप्त होती है। माता! कि जो यंत्र के माध्यम से होने वाली पूजा है उसके संबंध में कहा जाता है कि भगवान राम भी जब पुनः राजतिलक के लिए बैठे तो वशिष्ठ ने उन्हें समझाते हुए एक बात कही थी। कहा था उन्होंने –इह लोके हि पनिना परोऽपि स्वजनायते। स्वजनोपि दरिद्राणां नराणां दुर्जनायते॥मतलब हे राम इस जगत में दरिद्र व्यक्ति के लिए अपने लोग भी पराए हो जाते हैं। परंतु जो उस संपन्न हैं, धनवान हैं। उनके तो पराए लोग भी अपने जैसा बर्ताव करते हैं। उन्होंने कहा, इसलिये हे राम, धनवान और वैभव युक्त बनो। इस कार्य हेतु महामाया भुवनेश्वरी की साधना सम्पन्न करो क्योंकि इसके अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है। अगर अटूट और कभी न खत्म होने वाली संपन्न का वैभव लक्ष्मी की प्राप्ति चाहते हैं तो यह ही एकमात्र रास्ता है। और यही रामराज्य बनाने में मुख्य कार्य करेगा। इसी प्रकार एक और कथा में कृष्ण भगवान जब मथुरा से प्रस्थान कर द्वारिका की ओर चले तो नगर बसाने के पूर्व उन्होंने माता भुवनेश्वरी का आशीर्वाद प्राप्त किया था। इसी के फल स्वरुप भगवान कृष्ण के सम्पूर्ण नगरी का निर्माण हो सका था। जो अपने आप में श्रेष्ठतम थी और अद्वितीय रही। यह साधना उच्च कोटि की मानी जाती है। भुनेश्वरी साधना सभी लोग करना चाहते हैं लेकिन? माता उसी प्रसन्न होती हैं जो वास्तविक अर्थ में उनका सच्चा भक्त होता है। ऐसा ही एक उदाहरण हमको देखने को तो मिलता है जब एक बार भगवान शिव और माता पार्वती पृथ्वीलोक का विचरण कर रहे थे। मार्ग में उन्हें एक अत्यंत ही सीधा साधा ग्रहस्थ ब्राह्मण मिला, जो दरिद्रता का जीवन व्यतीत कर रहा था, लेकिन वह भगवान शिव का बहुत बड़ा उपासक था और उनके प्रति उसके मन में अटूट श्रद्धा थी यह देखकर माता पार्वती का हृदय पिघल गया और उन्होंने भगवान शिव से कहा, हे नाथ, यह कैसी लीला है आपकी यह ब्राम्हण आपका उत्तम भक्त है। फिर भी इतना निर्धन और इतना गरीब कृपया करें इसे धनवान बना दीजिए भगवान शिव भोले की देवी! इस मनुष्य के भाग में धन वैभव तो है ही नहीं। तब माता ने कहा, यह सब कुछ मैं नहीं जानती हूं। आप चाहे तो इसे सब कुछ दे सकते हैं। आप कृपया इसे धनवान बना दीजिए। तब भगवान शिव ने कहा, जैसी आपकी इच्छा भगवान शिव ने लंबी सांस लेकर हीरे से भरी थैली उस व्यक्ति के आगे फेंक दी उसी समय अचानक से उसके मन में एक विचार आया कि अगर अंधे लोग जीवन में कैसे चलते होंगे। क्या मैं अंधा बन कर चलूं और उसने ऐसा सोचते ही अपनी दोनों आंखें बंद कर ली। एक अंधे की भांति चलने की वह कोशिश करने लगा और चलते चलते ही हीरो से भरी थैली के पास से गुजर कर उसे बिना देखे ही आगे निकल गया। ऐसा घटित होने पर भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा, मैंने तुमसे पहले ही कहा था जिसके भाग्य में धन है ही नहीं। जब तक भाग्य नहीं तो हाथ आई धनराशि हाथों से अवश्य ही निकल जाती है। तब माता ने कहा, क्या कोई और मार्ग नहीं है तब उन्होंने कहा था कि देवी भुनेश्वरी को ही प्रसन्न करके अपने भाग्य को बदला जा सकता है। महायोगी गोरखनाथ ने अपने ग्रंथ कपालभाती में इन्होंने साधना इसी के विषय में बताया था। इससे सभी प्रकार की सिद्धियां सम्मोहन, शत्रु नाश, ज्योतिष का ज्ञान, पारद विज्ञान, हस्तरेखा, विज्ञान, अकाल, मृत्यु से बचाव, पारिवारिक जीवन की अनुकूलता इत्यादि सब कुछ माता भुनेश्वरी इस साधना से सिद्ध हो जाता है। लेकिन माता भुवनेश्वरी सभी पर कृपा नहीं करती। केवल अपने सच्चे भक्तों पर ही उनकी कृपा बरसती है। लेकिन माता भुनेश्वरी की साधना करने वाला सब कुछ संसार में प्राप्त कर लेता है। इनकी साधना करने के लिए आप 21 दिन का संकल्प ले सकते हैं। इसमें आप भुवनेश्वरी यंत्र को और भुनेश्वरी माला को यानी शुद्ध स्फटिक की माला से मंत्र जाप करेंगे। यह साधना किसी भी महीने में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि अथवा नवरात्रि अथवा किसी भी शुभ अवसर या पर्व पर शुरू की जा सकती है। साधक शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण करें। बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर चावल से ह्री मंत्र लिखकर भुवनेश्वर यंत्र को वहां स्थापित करें। यंत्र का पूजन कुमकुम, अक्षत और पुष्प से करें। तेल का दीपक जलाएं और भुनेश्वरी माता का ध्यान करें। माता भुनेश्वरी के एकाक्षरी मंत्र की साधना और उसकी विनियोग इत्यादि को करें विनियोग इस प्रकार से करें-अस्य श्रीभुवनेश्वरीमन्त्रस्य शक्तिषिर्गायत्रीच्छन्दो हकारो बीजं ईकारः शक्तीरेफः कीलकं श्रीभुवनेश्वरी देवता चतुर्वर्गसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः। ऋष्यादि न्यास : शक्तिऋषये नमः शिरसि ।। गायत्रीच्छंदसे नमः मुखे २। भुवनेश्वर्यै देवतायै नमः हृदि ३। हं बीजाय नमः गुह्ये ४। ई शक्तये नमः पादयो ५। रं कीलकाय नमः नाभौ ६। विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ७। इति ऋष्यादिन्यासः। __ करन्यास : ॐ ही अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः २। ॐ ९ मध्यमाभ्यां नमः ३। ॐ हैं अनामिकाभ्यां नमः ४। ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ५। ॐ हः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ६। इति करन्यासः। ह्रदयादिषडङ्गन्यास : ॐ ह्रां हृदयाय नमः १। ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा २। ॐ हूं शिखायै वशट् ३। ॐ हैं कवचाय हुं ४। ॐ ह्रौ नेत्रत्रयाय वौषट् ५। ॐ ह: अस्त्राय फट् ६॥ इति हृदयादिषडगन्यासः। ध्यान: उद्यदिनद्युतिमिन्दु किरीटान्तुङ्गकुचात्रयनत्रययुक्ताम्। स्मेरमुखौं व्वरदाङ्कुशपाशा मीतिकराम्प्रमजे मुवनेशीम्। मंत्र : ह्रींऔर माता के ध्यान का मंत्र है। इस प्रकार से पढ़ा जाता है।ध्यान: उद्यदिनद्युतिमिन्दु किरीटान्तुङ्गकुचात्रयनत्रययुक्ताम्। स्मेरमुखौं व्वरदाङ्कुशपाशा मीतिकराम्प्रमजे भुवनेशीम्।इस प्रकार ध्यान करने पर उनके स्वरूप को देखना चाहिए। जैसा कि फोटो में आप लोग रूप और स्वरूप माता का देखते हैं। फिर उनके यंत्र के सामने बैठकर के रात्रि में 10:00 बजे से आप उनके एकाक्षरी मंत्र ह्रींका बार बार उच्चारण करना चाहिए। इसे रोजाना 101 माला मंत्र जाप करना चाहिए। इससे माता की विशेष कृपा होती है और भुवनेश्वरी माता सर्व सिद्धि दायक है। माता केवल भावना देखती हैं और इनकी कृपा होने पर समस्त सिद्धियां स्वता ही प्राप्त होने लगती है। यहां पर इस यंत्र को आप अपने पूजा स्थान या फिर व्यापारिक स्थान पर भी स्थापित कर सकते हैं। इससे आपका व्यापार बढ़ेगा। आपका कार्य बढ़ेगा। घर में स्थापित करते हैं तो सुख संपन्नता वैभव के साथ पारिवारिक सौहार्द का माहौल इत्यादि सभी चीजें आपको देखने को मिलेंगी। इसलिए इनकी साधना अवश्य ही करनी चाहिए। तो यह था माता भुनेश्वरी के एकाक्षरी मंत्र द्वारा यंत्र साधना अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद। |
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