नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज मैं आपके लिए विक्रांत भैरव जी के मंदिर रहस्य के साथ उनकी साधना लेकर उपस्थित हुआ हूं। सबसे पहले हम जानते हैं कि विक्रांत भैरव जी का यह प्रसिद्ध मंदिर कहां पर स्थित है और क्यों इस मंदिर को विशेष माना जाता है? यह प्रसिद्ध मंदिर उज्जैन में स्थित है।
यह विक्रांत भैरव जी उज्जैन नगर में लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्राचीन बस्ती भैरवगढ़ में काल भैरव मंदिर के सामने कुछ दूर चलने पर शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। यह एक तांत्रिक स्थल है जो हजारों वर्षों से तपस्थली रहा है तांत्रिकों की और यहां पर विभिन्न प्रकार की सिद्धियां प्राप्त की जा सकती है। विक्रांत महाभैरव मंदिर के बारे में जनश्रुति है कि यह मंदिर तीन चार शताब्दियों पूर्व यानी तीन चार सौ साल पहले एक विशाल भैरव मंदिर रहा होगा। प्राचीन मंदिर के भग्नावशेष और टूटे हुए शिखर स्तंभ पाषाण पर की गई नक्काशी इन सब सत्य को प्रमाणित करती है। तंत्र साधकों की यह विशेष तपस्थली रहा होगा। मंदिर के आसपास विद्यमान अति प्राचीन मूर्तियां स्वयं अपने को अपनी कहानी बताती हैं। इस मंदिर की खास विशेषता है कि यहां पर एक बाबा रहा करते थे जो मुख्य तांत्रिक थे। वह सिर्फ इसी स्थान पर नहीं बल्कि विश्वभर में प्रसिद्ध थे। उनका नाम था बाबा डबराल उन्होंने कई तांत्रिक क्रियाएं यहां की और उनका प्रभाव विदेशों तक गया। सभी लोग विक्रांत भैरव के उपासक के रूप में उनकी ख्याति को स्वीकार करते थे। उन्होंने बताया था कि श्री स्कंद पुराण में उल्लेख है कि एक बार मां पार्वती जी भगवान शिव से अवंती क्षेत्र के प्रमुख देवताओं और तीर्थों का वर्णन करने का निवेदन किया। तब महादेव जी ने कहा कि यहां शिप्रा सहित मेरी चार प्रिय नदियां है। यहां 84 लिंगों के रूप में जितने भी शिव निवास करते हैं और साथ 8 भैरव है। 11 रुद्र, गणेश और 24 देवियां। दंड पाणि विक्रांत महाभैरव इत्यादि के साथ में निवास करती हैं। आध्यात्मिक पत्रिका कल्याण के अनुसार 1957 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार उज्जैन में अष्ट भैरव की सूची दी गई है। दंड पानी में जो देवप्रयाग है वहां पर विक्रांत भैरव। ओखलेश्वर के पास महाभैरव! सिंह पूरी क्षेत्रपाल पर सिंह पूरी। बटुक भैरव, ब्रह्म पूल में आनंद, भैरव, मल्लिकार्जुन और गौरव भैरमगढ़ पर काल भैरव। और शिरीष विक्रांत भैरव जी की प्राचीनता इत्यादि वर्णित है। विक्रांत भैरव का जो अर्थ है इनके अंग की कांति इनका शरीर तपाये हुए स्वर्ण के समान एकदम पीला और चमकदार है। इनकी तेजस्विता और आलोक वर्णन है । यहां की सिंदूर चर्चित मूर्ति बहुत अधिक प्रसिद्ध है और यह स्वयं सिद्ध है। यहां का जो शमशान है वह पूरी तरह जागृत है और सती माता के पूज्य चरण यहां पर। अपना महिमामंडन करवाते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार भैरव तीर्थ में एक उत्तम स्वभाव वाली काली नाम की योगिनी रहा करती थी जिसने भैरव जी को अपने पुत्र की भांति पाला था। भैरव जी शिप्रा नदी के उत्तरी तट पर सदा रहते थे। इसी पुराण में आगे लिखा है। सुंदर, चंद्रमा और सूर्य जिनके नेत्र हैं जिन्होंने मस्तक पर मुकुट और गले में मोतियों की माला धारण कर रखी है तथा जो मनुष्य मात्र के कल्याण स्वरुप है उन विशाल भगवान भूतनाथ भैरव जी का भजन करना चाहिए। यह स्थान बाबा डबराल के कारण भी बहुत अधिक प्रसिद्ध हुआ था। बाबा डबराल यानी श्री गोविंद प्रसाद कुकरेती का जन्म 25 अगस्त 1932 को हुआ था। वे मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल क्षेत्र के ग्राम कठुड़ी के निवासी थे। उनके भक्तों ने बताया कि वर्ष 1960 में दिवाली की रात बाबा अपनी साइकिल से मंदिर पहुंचे क्योंकि अमावस्या की रात थी। खूब अंधेरे में कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। बाबा ने मंदिर पर पहुंचकर नियमानुसार पूजा अर्चना की और दीपक आलोकित किया। लौटते समय मन में विचार आया कि तेज हवा के कारण जो दीपक मैंने जलाया है, कहीं बुझ तो नहीं गया है? पर वापस जाकर जो उन्होंने देखा वह आश्चर्यचकित करने वाला था। विक्रांत भैरव बाबा के समक्ष अनेकों दीपक रोशनी कर रहे थे। और उन्हें वहां साक्षात बाबा विक्रांत भैरव बैठे हुए दिखाई दिए। उनके इस अद्भुत रूप को देखकर उन्होंने उन्हें प्रणाम किया और वह आशीर्वाद देकर वहीं से अंतर्ध्यान हुए। बाबा डबराल की मृत्यु 31 दिसंबर 2016 को हो गई थी। लेकिन बहुत ही प्रसिद्धि उनकी यहां पुजारी के रूप में सदैव ही विद्यमान रहेगी। कहते हैं स्कंद पुराण के अनुसार इस भैरव तीर्थ में एक उत्तम सभा वाली काली योगिनी जो महाकाल के 5 अवतार की शक्ति है। भैरवी गिरिजा कालिका पुराण में भैरव को शिव के पुत्र के रूप में। स्वीकार किया गया शिव अवतार माना जाता है। काली खंड के अनुसार आपद नाम के एक महाबली दैत्य पद हेतु भैरव की उत्पत्ति हुई थी जिसका उन्होंने आगे चलकर विनाश किया। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने योग बल से अपने दाहिने नेत्र से प्रज्वलित अग्नि शिखा। भैरव! को वहां पर उत्पन्न करवाया था। वामन पुराण में भगवान शंकर और राज अनगद के बीच हुए भीषण युद्ध में शंकर के सिर से वही रक्त धारा भैरव की उत्पत्ति का वर्णन दर्शाती है। वेदों में रुद्र ही तंत्र में भैरव कहे जाते हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार जब शिव भैरव रहते हैं तो गौरी भैरवी हो जाती है। शिव महापुराण में शंकर का पूर्ण स्वरूप माना जाता है। भैरव पूर्ण श्री परमात्मा शंकर स्वरूप से जुड़े हुए हैं। भगवान! भैरव के कवच का वर्णन भी मैं आपके लिए यहां पर कर रहा हूं। 5100 बार यानी 51 माला प्रतिदिन पढ़ना है। इसमें इनकी सिद्धि आपको 41 दिन में हो जाएगी। विक्रांत भैरव अपने स्वर्ण समान आभा के रूप में प्रकट हो जाएंगे। भैरव साधना में भयभीत नहीं होना चाहिए। हमेशा इस बात का ख्याल रखें। आप इस साधना में बैठेंगे तो आप पीले! रंग के आसन पर पीले ही रंग के चमकदार वस्त्र पहनकर। और अकेले ही पीले रंग के वस्त्र की सुनहरी! वस्त्र आभा से। पहले कपड़े को बिछाकर उस पर ही इनकी मूर्ति को स्थापित कर सामने बैठकर साधना करेंगे। आप इनके लिए हल्दी की माला का इस्तेमाल करें। अगर हल्दी की माला उपलब्ध ना हो तो फिर रुद्राक्ष की माला का इस्तेमाल करके आप इनकी साधना कर सकते हैं। साधना कुल 41 दिन तक चलेगी और इससे आपको निश्चित रूप से। इनकी सिद्धि प्राप्त होती है किंतु सावधान होकर ही इनकी साधना करनी चाहिए। पूर्णता ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए आपको 41 रातों में इनके रोज मंत्र का जाप करना होता है। इनके मंत्र जाप को करने से पहले तंत्रोक्त भैरव कवच अवश्य पढ़ लें ताकि बुरी शक्तियां आपकी साधना नष्ट ना कर पाए। तो यह था वर्णन! एक विशेष स्थान जो कि तंत्र की तपस्थली है। यहां पर कोई भी सिद्धि प्राप्त की जा सकती है क्योंकि यह एक जागृत स्थान है। अगर आप? विक्रम भैरव! यानी विक्रांत भैरव की साधना करते हैं तो अवश्य ही आपको भैरव जी की सिद्धि प्राप्त होती है। अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद। |
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विक्रांत भैरव मंदिर और साधना रहस्य
Dharam Rahasya
धर्म रहस्य -छुपे रहस्यों को उजागर करता है लेकिन इन्हें विज्ञान की कसौटी पर कसना भी जरूरी है हमारा देश विविध धर्मो की जन्म और कर्म स्थली है वैबसाइट का प्रयास होगा रहस्यों का उद्घाटन करना और उसमे सत्य के अंश को प्रगट करना l इसमें हम तंत्र ,विज्ञान, खोजें,मानव की क्षमता,गोपनीय शक्तियों इत्यादि का पता लगायेंगे l मै स्वयं भी प्राचीन इतिहास विषय में PH.D (J.R.F रिसर्च स्कॉलर) हूँ इसलिए प्राचीन रहस्यों का उद्घाटन करना मेरी हॉबी भी है l आप लोग भी अपने अनुभव जो दूसरी दुनिया से सम्बन्ध दिखाते हो भेजें और यहाँ पर साझा करें अपने अनुभवों को प्रकाशित करवाने के लिए धर्म रहस्य को संबोधित और कहीं भी अन्य इसे प्रकाशित नही करवाया गया है date के साथ अवश्य लिखकर ईमेल - [email protected] पर भेजे आशा है ये पोस्ट आपको पसंद आयेंगे l पसंद आने पर ,शेयर और सब्सक्राइब जरूर करें l धन्यवाद