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रतिप्रिया यक्षिणी और बगलामुखी मठ कथा भाग 3

रामदास के पास से रतिप्रिया गायब हो चुकी थी और साथ ही साथ उसका सारा धन भी गायब हो गया इसी वजह से  वह  राज महल में घूमता फिरता इधर-उधर भटकता देखता है तो उसे कहीं पर भी  यक्षिणी दिखाई नहीं पड़ती है, साथ ही साथ जो उसका भंडार था जहां पर उसने धन संचय करके रखा हुआ था वह जगह भी पूरी तरह से खाली हो चुकी थी वहां पर एक सोने का सिक्का भी नहीं था, क्योंकि हजारों उसके सेवक कर्मचारी और राज्य के अन्य विद्वान और बहुत सारी प्रजा सभी के सभी राजा पर निर्भर थे, राजा के धन पर निर्भर थे इसलिए रामदास को बड़ा ही अचरज हुआ और वह सोचने लगा कि जब धन ही नहीं रहा और पत्नी भी नहीं रही तो मैं कैसे इस राज्य को संभाल पाऊंगा सभी प्रजा मेरी ओर धन मांगने की दृष्टि से देखेंगे ऐसी अवस्था में मैं किसी भी प्रकार से राज्य को नहीं चला सकता इसलिए मेरा यहां से निकल जाना ही सही रहेगा और कोशिश करता हूं की किसी प्रकार से वह मिल जाए, यह सोचकर वह अपने राज्य से निकल गया और पूरे राज्य में हड़कंप मच गया की राजा रानी और धन तीनों ही चीजें गायब हो गई हैं l एक छोटे से राज्य में सन्नाटा सा छा गया रातो रात ऐसा क्या हुआ है, जनता इधर उधर भटकने लगी क्योंकि उनका संयमित जीवन भी राजा के धन पर ही आश्रित  था उस गांव के लोग फिर उसी प्रकार से हो गए जैसे पहले रहते थे और सब ने कोशिश की राजा रानी मिल जाए और इधर-उधर सब लोग उन्हें ढूंढने लगे, राजा ने अपना भेष बदल लिया ताकि उसे कोई पहचान ना पाए उसने अपनी बड़ी दाढ़ी करली और कपड़ों के स्वरूप को भी भिखारियों सा बना करके कंबल ओढ़ कर के इधर-उधर टहलने लगा, कोशिश करते करते उसके मन में एक  विचार आया की क्या पता मुझे रतिप्रिया वही मिल जाए जहां पर वह मुझे पहले मिली थी अर्थात जहाँ पहली बार मिली थी तो फिर से उसी पगडंडियों वाली रास्ते पर चलने लगा और चलते चलते रात्रि के समय एक बार फिर से उसी स्थान पर पहुंच गया और बाहर उसी खंडहरों के बीच जाकर के उसने फिर से कोशिश की उसका नाम पुकारने की लेकिन यहां उसकी कोई सुनने वाला नहीं था भारी दुख में पड़ जाने पर उसे कुछ समझ मे नहीं आ रहा था और जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो माता बगलामुखी की उसी मूर्ति के सामने जाकर के रोने लगा और कहा माता कोई मार्ग दिखाइए कोई तो मार्ग दिखाइए जिससे मैं वास्तव में फिर से अपनी पत्नी को प्राप्त कर सकू अपने धन को प्राप्त कर सकूं और अपने राज्य की सेवा कर सकूं सारी जनता मेरी तरफ ही देख रही है ऐसी अवस्था में मैं किस प्रकार से उनका भला कर पाऊंगा जबकि मेरे पास कुछ भी नहीं बचा सब कुछ मुझसे छिन् गया है तभी थोड़ी दूर पर एक भेड़िया जैसा जानवर उसे दिखाई दिया जो भूखा था वह उसी के तरफ दौड़ करके आ रहा है उसको देख कर रामदास को बहुत ही भय लगा और वह तीव्रता से मंदिर से भागने लगा भागते भागते गुफा के छोटे से कोने तक वह पहुंचा और  पीछे से वह भेड़िया आ गया उसकी छोटी सी दरार से होकर अंदर वह घुसने लगा और साथ ही साथ उसने एक लकड़ी का डंडा उठा लिया और पीछे सरकता चला गया जब वह पीछे सड़क रहा था भेड़िया आगे से आ रहा था क्योंकि छोटी सी दरार से व अंदर घुसा था उसी दरार से भेड़िया भी अंदर जाकर उसे मारने की कोशिश करने लगा था इसी समय उसने अपना डंडा उठाया और डंडे को आगे करके उसे डराने लगा क्योंकि भेड़िया  किसी और तरफ से हमला नहीं कर सकता था, क्योंकि छोटी सी दरार थी और उसी में से उसको अंदर जाना था इसलिए भेड़िया भी अब कुछ नहीं कर पा रहा था क्योंकि डंडे की वजह से वह उसके और रामदास के बीच में आवश्यक दूरी बनी हुई थी और डंडे से वह भेड़िया को रोक पा रहा था कुछ देर भेड़िया ने अंदर आने की कोशिश की लेकिन फिर वह वहां से वापस चला गया जिससे भेड़िया से रामदास की जान बच गई, अंदर अंधेरा था और छोटी  सी जगह पर उसका हाथ एक ऐसी चीज पर चला गया जिस पर हाथ पड़ने के कारण अचानक से वहां पर एक तीव्र रोशनी हुई और एक और दरवाजा खुल गया शायद किसी ने गोपनीय द्वार बनाया था वह चीजों को समझ नहीं पाया तभी अंदर जाकर के वह चलते हुए फिसल गया  अंदर की ओर गिरने लग गया गिरते गिरते हुए ऐसे स्थान पर पहुंच गया जहां पर एक खुला हुआ कक्ष था अंदर एक बड़ी सी गुफा का एक बड़ा सा  बरामदा था वहां पर उसने देखा की एक पिजड़े में एक पक्षी बंद है और वह उसे देख कर के बहुत ही जोर से आवाज करने लग गया वह चिड़िया कोशिश कर  के पंख फड़फड़ाने लगी और रामदास को देखकर के तीव्रता से स्वर करने लगी तभी वहां एक भयानक आवाज हुई एक दीवार के कोने पर रामदास छुप गया और सारी चीजों को समझने की कोशिश करने लगा, 12 फुट ऊंची एक भयंकर राक्षसी आई और पक्षी को पिंजरे से निकाल करके उसका गला दबाते हुए बोलने लगी- यक्षिणी तू क्यों चिल्ला रही है तुझे पक्षी बने हुए अभी कुछ ही समय  हुआ है और तेरे मुंह में जुबान आ गई इतना जोर से चिल्लाती है जिससे मेरी  निद्रा में अड़चन आ रही है मैं सो नहीं पा रही हूं और तू यहा ची ची ची ची कर रही है चाहू तो  तेरा अभी गला दबा करके इस योनि से भी  तुझे मुक्त कर दूं लेकिन कोई  नौकर मेरे पास नहीं है,  अच्छा तो तेरे लिए कुछ ना कुछ तो सोचना ही पड़ेगा इसके बाद उसने मंत्र जपा और उस पर पानी के छींटे मारे  छींटे मारने के साथ ही वह एक हिरण में बदल गई और उससे कहा ऐसा कर मेरे लिए तू भोजन की व्यवस्था कर हिरण के रूप में बेचारी आंसू बहा रही रतिप्रिया यक्षिणी ने दुख भरे स्वर में कहा की मैं भला तेरे लिए कैसे भोजन व्यवस्था कर पाऊंगी तू तो मांसाहारी है, तो उस महाशक्तिशाली राक्षसी ने कहा की सुन तू गांव की तरफ चली जा और मैं कुछ ऐसा प्रबंध करूंगी की तेरे पीछे लोग या कोई ना कोई मनुष्य अवश्य खींचा चला आएगा फिर तू उसे इस गोपनीय रास्ते से अंदर ले आना और उस मनुष्य को भी अंदर ले आना मैं उसे पकड़ लूंगी और फिर उसे खा जाऊंगी तू मेरे कहे अनुसार चल मैं तेरे सींगो को सोने का बना देती हूँ, उसने मंत्र पढ़कर उसके सींगो पर जब हाथ फेरा  तो वह सींग बड़े बड़े हो गए और चमकने लगे ऐसे जैसे सोना चमकता है,  लेकिन यक्षिणी अब अपने पिछले जन्म  को भूल चुकी थी अभी तक की सारी यादें उसके दिमाग से  राक्षसी ने मिटा दी थी लेकिन जब तक वह पक्षी थी उसे सब कुछ याद था जैसे जब उसने रामदास को देखा था तो वह जोर जोर से चिल्लाने लगी उसे अपना पुराना पति दिख गया था परन्तु जैसे वह हिरण  बनी तो अपना पुराना सब कुछ भूल गई और उसके  कहे अनुसार गांव की तरफ चलने लगी  रामदास को सारी बात ज्ञात हो गई और उसे पता लग गया की यह सब कुछ किया धरा इस राक्षसी का है क्योंकि पहले ही यक्षिणी ने मुझे बताया था की जिस वक्त उस शिष्य ने इसकी साधना की थी और उसके लिए त्रिआयामी द्वार बनाया था तब त्रिआयामी द्वार खुला रह गया था और जब यक्षिणी उसके द्वारा धरती पर आई थी तो उसी समय है टंगड़ी राक्षसी भी अंदर प्रवेश कर गई थी और वह इस क्षेत्र में रहने लगी थी शायद उसकी नजर मेरी यक्षिणी पर पड़ गई क्योंकि ऐसी शक्तियां अपनी तरह की शक्तियों को अवश्य ही पहचान लेती हैं और उसने रातों-रात यह सब कुछ कर दिया और यहां उसे अपना गुलाम बना लिया है l सारी बात रामदास को समझ में आ गई उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे की  किस प्रकार वह अपनी रतिप्रिया को प्राप्त कर सकेगा यह वह दौर था जिस जमाने में कोई वाहन नहीं हुआ करते थे छोटी-छोटी पगडंडियाँ हुआ करती थी और सब तरफ जंगल ही जंगल हुआ करते थे कोई भी कुछ दूर जाने के बाद आंखों से ओझल हो जाता था और उसे कोई देख नहीं पाता था रतिप्रिया हिरणी के रूप में दौड़ती दौड़ती जंगल जाने लगी और वह धीरे-धीरे करके गांव तक पहुंची और वहां  पर एक पुरुष ने जब इतनी सुंदर हिरनी को देखा उसके सिर पर लगे हुए सींगो को देख कर के उसे लगा की  क्या यह सोने के सींग है क्योंकि यह तो सोने के समान ही चमक रहे है तभी उसने अपने सींग को खूब जोर से झाड़ा इससे कुछ स्वर्ण जमीन में झड़ गया अब वह थोड़ी दूर उससे आगे बढ़ गई और उस पुरुष ने जाकर के पीछे से जब उस स्थान पर पहुंचा जहां पर उसने सींग झाड़ा था तो उसने देखा की स्वर्ण का कुछ चूरा जमीन पर गिरा हुआ है उसने उसको उठाया हल्का सा और फिर साफ किया  उसे पता लगा की यह वास्तव में सोना ही है अगर यह हिरणी पकड़ ली जाए तो यह सारे सींग मुझे मिल सकते हैं जिसके सींग को तोड़ कर या काट करके मैं तो बहुत ही धनवान बन जाऊंगा, यह सोचकर के वह व्यक्ति उसके पीछे पीछे चलने लगा अब हिरणी  बात को समझ चुकी थी क्योंकि वह पूरी तरह से राक्षसी के वशीभूत थी इसलिए वह दौड़ती जा रही थी और पुरुष  भी उसके पीछे दौड़ता चला जा रहा था फिर एक  स्थान पर गुफा आ गई और गुफा के अंदर वह प्रवेश कर गई और वह  पुरुष भी हिरनी के पीछे पीछे वहां चला आया अंदर जैसे ही वह घुसा तुरंत राक्षसी ने उसे अपने हाथ में पकड़ लिया और उसे उठा करके उसके बदन को चुमती हुई बोली आज का मेरा भोजन तो पक्का हो गया उसनेपुरुष को उल्टा लटका दिया और बीच  से उसे तोड़ करके आग में भून दिया फिर उसको कच्चा ही खा गई क्योंकि जो अंग उसे पसंद होता था उसको  खा जाती थी नीचे का पैरों वाला हिस्सा उसने फिर से पका करके और नोच  करके खाया इस प्रकार से उस पूरे पुरुष को समाप्त कर दिया इसी बीच फिर से थोड़ी देर के लिए रतिप्रिया को होश आया तो उसकी आंखों से हिरनी के रूप में आंसू निकलने लगे उसे समझ में नहीं आ रहा की आज वह हत्यारिन बन चुकी है और उसके पीछे मनुष्यों की बलि ली जा रही है उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था पुराना सब कुछ भूल चुकी थी और इस प्रकार हिरणी एक किनारे में जा करके बैठ गई और कुछ देर बाद राक्षसी भी सो गई तभी गुफा के कोने में बैठा हुआ रामदास चुपचाप धीरे धीरे बढ़ता हुआ उस हिरणी  के पास पहुंचा जहां पर  हिरणी आराम कर रही थी और हिरणी के पास जाकर के उसके बदन पर हाथ फेरने लगा और हाथ फेरने से हिरणी बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हो गई और अचानक ही उसे कुछ अपनी पुरानी बातें याद आ गई और उसके आंखों से आंसू गिरने लगे रामदास की गोद में सिर रखकर के हिरणी ने उससे कहना शुरु किया आप यहां आ गए देखिए मेरी क्या हालत हो गई है राक्षसी ने मुझे क्या से क्या बना दिया कहां में धन की देवी थी आज मैं वही धन से लोगों का वध कर रही हूं लोगों की जान ले रही हूं धन देने की शक्ति थी और वह शक्ति अब इसने अपने नियंत्रण में ले ली है और मुझे हिरनी बना करके मुझसे काम करवा रही है और मनुष्यों की बलि ले रही है क्या करूं इस प्रकार  रामदास ने कहा चिंता  मत करो हम दोनों यहां से भाग चलेंगे, उसने कहा नहीं मैं इसके वशीभूत हूं अगर मैं इसके क्षेत्र से बहुत दूर चली गई तो मेरी मृत्यु भी हो सकती है कारण राक्षसी का जादू हटने पर मेरी मौत हो जाएगी इसलिए मैं आपको एक मार्ग बताती हूं सुनिये जहां पर माता बगलामुखी की मूर्ति स्थापित है वह सिद्ध स्थान है आप वहां पर जाइए और माता बगलामुखी की आराधना कीजिए और एक बार फिर से उनके मंत्रों के साथ मेरे मंत्र का आवाहन करते हुए मेरी वही पूर्ण विधि विधान से पूजा कीजिए जैसे आपने पिछली बार की थी इससे मुझमे नवशक्ति का आगमन होगा और साथ ही साथ माता बगलामुखी की शक्तियां और सिद्धियां भी प्राप्त  होगी ताकि आपको राक्षसी से भी निपटने में और साथ ही साथ मुझे वापस आपको प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होगी आप कोशिश कीजिए और इस कार्य को संपन्न कीजिए यहां से चुपचाप निकल जाइए जब तक ये सो रही है  और जाकर के माता बगलामुखी की आराधना साधना कीजिये और यह लीजिए आपको मैं अपनी शक्ति से हिरण के समान बना देती हूँ और उसे एक हिरण के समान बना दिया और  कहा की कुछ ही देर तक यह जादू असर करेगा यह जादू केवल आपके इस गुफा से बाहर निकलने तक ही रहेगा उसके बाद आप इससे  मुक्त होकर फिर से मनुष्य बन जाएंगे यह शक्ति आपको देना इसलिए आवश्यक है ताकि आप पर राक्षसी की नजर ना पड़े और आप जीवित यहां से वापस निकल जाए इस प्रकार कहते हुए दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया और उसके शरीर पर हाथ फेरते हुए और उसके सिर को चूमते हुए रामदास वहां से निकल गया जैसे वह थोड़ी दूर पहुंचा था तभी उसका पैर फिसल गया और वह राक्षसी के पैर पर ही गिर गया राक्षसी के पैर पर गिरने की वजह से ही तुरंत राक्षसी ने उसे पकड़ लिया और कहा कहां जा रही है ऐसा कह करके उसने उसे अपने पास रख लिया और कहने लगी अभी कुछ देर पहले ही तो तूने मेरे लिए भोजन का प्रबंध किया था  अब कहां जा रही है (यह कहकर के उसने उसको संबोधित किया) इस बात को रामदास अच्छी तरह समझ गया की  राक्षसी अभी नहीं जान पाई है की मैं हिरणी  नहीं हिरण हूं और जल्दबाजी में यह मुझे उच्चारित करके बोल रही है शायद यह पूरी तरह से अभी नींद में भी है इसीलिए पूरी तरह से बात को समझ नहीं पा रही है इसने मुझे पकड़ कर अंदर रख लिया है और मुझे इसके हाथ से किसी तरह से बचना होगा l

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