रतिप्रिया यक्षिणी और बगलामुखी मठ कथा भाग 1
कई सौ साल पहले मध्य प्रदेश में माता बगलामुखी का जो वर्तमान मंदिर है उस जगह पर एक मठ हुआ करता था जो बाद में धीरे-धीरे करके मंदिर बन गया इसमें तरह-तरह की तंत्र विद्या सिखाई जाती थी, लेकिन समय बीतने के साथ में वह मठ बर्बाद हो गया और केवल वहां पर खण्डहर रह गया l यह गुप्त काल की बात है उस समय बहुत ही दूर – दूर नगर और स्थान हुआ करते थे ऐसे में वहां पर वर्तमान में कोई भी व्यक्ति नहीं रह गया है, लेकिन पुराने समय में वहां पर बहुत सारी तांत्रिक क्रियाएं तंत्र मंत्र किए गए थे, ऐसे ही एक बार उस नगर के निकट ही गांव में रहने वाला युवक जिसका नाम रामदास था वह घूमने हेतु और नगर जाने हेतु एक मार्ग का चयन किया उस मार्ग पर चलते चलते कुछ दूर पहुंचने के बाद थोड़ा सा अपने लोटे से जल निकाला और उसे पी लिया उसके बाद अचानक से उसे नींद आने लगी और वह एक नीम के पेड़ के नीचे सोने लगा कुछ देर बाद उसे पता ही नहीं चला रात्रि हो गई रात्रि हो जाने के पश्चात में चूँकि उस जमाने में जंगल हुआ करते थे जोकि बड़े भारी जंगल होते थे उन जंगलों में जाने पर व्यक्ति अक्सर रास्ता भूल जाता था क्योंकि एक निश्चित मार्ग नहीं था उस जमाने में रास्ते नहीं हुआ करते थे छोटी-छोटी पगडंडी हुआ करती थी तो उसे कुछ समझ में नहीं आया और क्योंकि चांदनी रात थी इसलिए थोड़ा प्रकाश दिखाई पड़ रहा था उस प्रकाश के कारण एक पगडंडी को उसने पकड़ लिया उसने सोचा यहीं नगर की तरफ जाती होगी, चलते हुए आखिर वह सो गया था और इतनी गहरी नींद में सोया था कि उसे पता ही नहीं चला की रात हो गई है लेकिन अब उसका उस जगह पर रहना खतरनाक था क्योंकि जंगली जानवरों का खतरा था पगडंडी पकड़कर सोचा की इसी रास्ते पर मैं चलते जाता हूं, वो उस रास्ते पर चलने लगा काफी देर तक चलने के बाद उसने चारों तरफ खंडहरनुमा एक नगर देखा जहां चारों तरफ खंडहर ही खंडहर था उन खंडहरों को देखकर ऐसा लग रहा था की कभी किसी जमाने में यहां पर कोई मठ या मंदिर रहा होगा और यह वही स्थान था जहां पर आज बगलामुखी मंदिर शाजापुर में स्थित है l इन खंडहर और जंगलों को देख करके के वह इधर-उधर की बाते सोचने लगा अब मैं कहां जाऊं और अगर अत्यधिक रात हो जाने पर भी चलता रहा तो किसी जंगली जानवर के द्वारा मारे जाने का खतरा है रामदास ने इन सब बातों को सोचते हुए कहा की उसे इसी जगह रात बितानी चाहिए अगर रात यहां नहीं बिताई तो निश्चित रूप से उसकी जान को खतरा हो सकता है इसलिए उसने वही रात बिताने की सोच ली वही प्राचीन मठ और मंदिरों को देखता हुए चारों तरफ उन सब का मुआयना करने लगा इधर-उधर भटकते भटकते उसे एक जगह पर ऐसा लगा की यह स्थान उपयुक्त है मैं यहां पर ठहर सकता हूं l जैसे ही वो वहां पर गया तो वहां एक लाल रंग का फल रखा हुआ था उस सेव को देख करके उसने सोचा यहां पर तो कोई आता नहीं है फिर यहाँ ये फल पर क्यों रखा हुआ है उसे कुछ समझ में नहीं आया और क्योंकि वह भूखा था इसलिए उसने उसे उस ऊंची प्रतिमा से उठा करके खा लिया, खा लेने के बाद में उसे प्यास लगी प्यास लगने के कारण फिर वह चारों तरफ उसी खंडहर में भटकने लगा कही से उसे जल की प्राप्ति हो जाए क्योंकि जो लोटा लेकर आया था अपने साथ में उसमें भरा हुआ पानी समाप्त हो चुका था, भटकता हुआ देखने लगा तभी उसे नजर आया की सामने एक छोटा सा झरना है जहां से पानी धरती से निकल रहा है और पानी को पीने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा उसे छम छम पायलों की आवाज सुनाएं दी छम छम पायल की झंकार को सुनकर के वह हस्तप्रभ रह गया उसे समझ में नहीं आया आखिर वह कैसी आवाज है और उसने पानी पीने की कोशिश की तभी उसने देखा एक बहुत ही खूबसूरत 20 या 21 वर्ष की नव युवती उसके सामने खड़ी थी उसने उसे देखकर अत्यंत ही मुस्कुराते हुए पूछा आप कौन हैं और यहां पर बिना किसी की आज्ञा से पानी क्यों पी रहे हैं, रामदास ने कहा मैं भटक गया हूं इसीलिए मैं इस मठ में आ गया हूं और यह उजाड़ जगह जो भी है मैं इस जगह पर अपनी रात्रि बिताना चाहता हूं मैंने थोड़ी देर पहले एक फल को खाया है और अब मुझे प्यास लग रही है इसलिए अब मैं पानी पीना चाहता हूं , तो क्या यहां पर मैं पानी नहीं पी सकता हूं और आप कौन हैं ? आप इतनी अच्छी सुंदर रूपवान हैं जैसे की कोई अप्सरा हो आप क्या यहां रहती हैं आप कौन हैं इस संबंध में मुझे बताइए, मुस्कुराते हुए उस कन्या ने उससे कहा यह मेरा ही स्थान है बरसो से मैं यहां रहती हूं मेरी आज्ञा के बिना यहां कोई कार्य नहीं होता है l ठीक है अगर तुम्हें प्यास लगी है तो पानी पी सकते हो ऐसा कहने पर उनकी आज्ञा प्राप्त करके रामदास ने वहां पानी पीना शुरू कर दिया पानी पीने के साथ ही उसकी प्यास मिट गई और अद्भुत आनंद की प्राप्ति हुई उसके बाद वह कन्या एक प्रकाशमान व्यक्तित्व की तरह आगे आगे चलने लगी उसकी सुंदरता को देखकर के रामदास के मन में प्रेम भाव जागृत हो रहा था कारण की अकेले स्थान पर किसी अत्यधिक रूपवती कन्या को मिलने पर स्वाभाविक रूप से पुरुषों में ऐसा होता है उसे देख कर के उसके मन में विचार आ रहा था की काश ऐसी स्त्री मुझे पत्नी के रूप में प्राप्त हो जाती है तो अत्यंत ही भाग्यशाली होता अगर ऐसी कोई कन्या मुझे मिल जाती क्योंकि इसकी सुंदरता के आगे तो अप्सराओं की सुंदरता भी मात हो रही है अप्सराओं में भी अगर इसे कोई देख ले तो लज्जा करने लगे इतनी रूपवान युवती यहां पर कैसे हैं, और उसके पीछे पीछे चलते हुए उसने उससे प्रश्न किया हे देवी आप कौन हैं आप बताइए यहां पर आप कैसे और क्यों रह रही हैं इस संबंध में और आपका परिचय क्या है इस पर मुस्कुराते हुए पलट कर उस देवी ने उससे कहा मैंने तुम्हें बताया तो यह मेरा ही स्थान है और इन बातों की गोपनीयता को तुम नहीं समझ पाओगे लेकिन हां मैं तुमसे बस इतना कह सकती हूं की मेरा नाम रती है मुझे कामदेव के समान सुंदर होने का वरदान मिला हुआ है इसीलिए कोई भी मुझे जब देखता है तो वो मेरे रूप जाल में फंस जाता है जैसे की तुम भी फंसे जा रहे हो यह सुनकर के रामदास को बड़ा अचरज हुआ, रामदास ने कहा मेरे मन की बातें आपने इतनी सरलता से आपने कैसे जान ली और कहने लगा की क्या मैं आपका मित्र बन सकता हूं उसने कहा वो तो तुम बन ही चुके हो वरना मैं तुम्हें पानी कैसे पीने देती इस प्रकार से थोड़ी देर वर्तालाप करने के बाद उसने कहा की मैं उस वृक्ष के पीछे जा रही हूँ अगर कोई समस्या हो तो तुम वृक्ष के पास आकर के तुम किसी प्रकार का पत्ता इसके जड़ पर रख देना और मैं समझ जाऊंगी की तुम्हें मेरी आवश्यकता है फिलहाल तुम यहां से जाओ ऐसा कहने पर बिना कुछ सोचे समझे रामदास ने उसकी आज्ञा मान ली और चुपचाप वहां से पलट कर जाने लगा वह देवी बहुत ही दिव्य चमक के साथ पेड़ के पीछे जाते ही गायब हो गई पीछे पलट के थोड़ी दूर जाने के बाद रामदास ने देखा तो वहां पर कोई भी स्त्री नहीं थी उस खंडहर पर यह सब ऐसा क्या हुआजो उसकी समझ से परे था लेकिन वह चुपचाप जाकर के खंडहर में एक स्थान पर बिछौना बिछाकर सोने लगा सोने के बाद उसके मन में यह विचार बार-बार आ रहा था की ऐसी स्त्री काश मेरी पत्नी होती और इसी प्रकार लेट करके सुबह के समय उसने देखा कोई उसके सिर के बालों को सहला रहा था और अचानक से जब उसने उसी स्त्री को देखा तो उठ पड़ा और कहने लगा आप यहां पर आप मेरे सिर को क्यों सहला रही हैं तो उस देवी रति ने उसे कहा क्या करूं मन भी नहीं लग रहा था मैंने सोचा की तुम्हारे पास ही चली आती पर तुम इतनी गहरी निद्रा में इतने अच्छे ख्वाबों में खोए हुए थे तब मैंने सोचा तुम्हारे बाल ही सेहलाऊं कभी तो तुम उठोगे और देखो थोड़ी देर ही हुआ है और तुम उठ गए हो अब बताओ कैसी बीती रात तुम्हारी क्या तुम्हें अच्छे से नींद आई रामदास ने कहा देवी मुझे अच्छी नींद आई लेकिन मैं एक बात आपसे कहना चाहता हूं रतिप्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा हां हां कहो ! रामदास ने कहा पता नहीं क्यों आपकी याद मुझे बार-बार आ रही थी आपका सुंदर चेहरा मुझे रात में सपने में भी दिख रहा था आपके प्रति मेरे मन में अजीब सी भावनाएं पैदा हो रही है मन ही मन ऐसा लग रहा है जैसे बहुत ही ज्यादा मै आपको पसंद कर रहा हूं ऐसा क्यों हो रहा है, तो देवी ने कहा ये तो स्वाभाविक ही है मैने कहा न कि मुझ पर कामदेव की शक्ति काम करती है मेरे समान सुंदर नारी इस वक्त इस धरती पर कोई दूसरी नहीं है अब क्योंकि मैं भी यहां पर अकेली हूं तो मुझे भी कोई ना कोई तो साथी चाहिए था और तुम मिल चुके हो ऐसा करो कुछ दिन मेरी आतिथ्य ग्रहण करो मैं तुम्हें गोपनीय बातें भी बताऊंगी और तुम्हें हर प्रकार से खुश रखने की कोशिश करूंगी ताकि तुम मुझे कभी भूल ना पाओ यही मेरा स्वभाव है क्योंकि मेरा स्वभाव प्रेम देना है इसलिए मैं केवल प्रेम के लिए ही बनी हूं और केवल प्रेम ही देना पसंद करती हूं, ऐसी बात सुनकर रामदास के मन ही मन में लड्डू फूटने लगे रामदास को लग रहा था की लगता है अब बात बन जाएगी यह स्त्री किसी ना किसी तरह जरूर एक ना एक दिन मान जाएगी जब आज उसके मन में ऐसी भावनाएं हैं अवश्य ही मैं इस कार्य में सफल रहूँगा, फिर उन्होंने कहा ठीक है आप बताइए की मैं आपके लिए क्या करूं तो रतिप्रिया ने इशारा करते हुए कहा सामने देखो यह देवी की मूर्ति है तो रामदास ने पूछा यह देवी कौन है तो रतिप्रिया ने कहा यह देवी बगलामुखी नाम से जानी जाती है जो की 10 महाविद्याओं में से एक है ऐसा करो इन की प्रतिमा को शुद्ध जल से स्नान कराओ और उसके बाद फिर इनका पूजन सब प्रकार के फूलों से करो मैं यही कार्य सौंप सकती हूं और यह करके तुम मुझे भी प्रसन्न करोगे उसकी बात को सुनकर के बडे ही अच्छे विचार मन में आए और जहां पर पानी निकलता था वहां से एक मटके में पानी भरा और माता बगलामुखी की जल स्नान प्रक्रिया को संपन्न किया उसके बाद उन पर फूल चढ़ाया और अन्य प्रकार से उनकी पूजा किया जैसे ही पूजन संपन्न हुई, वहआंखें बंद किए हुए आगे बैठा ही था की तभी रति आई और उसने रामदास के होठों पर चुंबन कर दिया ओठो पर चुंबन होने पर अप्रत्याशित रूप से अजीब सा महसूस करने पर रामदास ने पूछा आपने ऐसा क्यों किया देवी रति ने कहा तुमने मेरे अनुकूल कार्य किया है तुमने देवी की उपासना की है तो भला मैं क्यों नहीं प्रसन्न होती इसलिए यह प्रेम पूर्वक एक छोटा सा उपहार मैंने आपके होठों पर दिया है और आप क्या इस उपहार से खुश नहीं है अगर खुश हुए हैं तो आप भी मुस्कुरा करके इसका प्रति उत्तर दीजिए डरते और घबराते हुए रामदास मुस्कुराया और उसने भी रति को पकड़कर उसके गालों पर चुंबन किया और हंसने लगा ।