केतु ग्रह साधना और रहस्य
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। ग्रहों की पीड़ा से हर व्यक्ति आजकल परेशान है। ऐसे में कुछ ग्रहों की साधना करके हम अपने जीवन में कुछ परिवर्तन अवश्य ही ला सकते हैं। इसीलिए इन ग्रहों की साधना करके विशेष प्रकार के मंत्र जाप के द्वारा हम शक्तियों के साथ में ग्रहों से होने वाली पीड़ा को समाप्त कर सकते हैं। पिछली बार मैंने आप लोगों को राहु ग्रह के विषय में बताया था और आज मैं उसी का ही नीचे का हिस्सा जिसे हम केतु ग्रह कहते हैं। इससे होने वाली परेशानियों को हल करने के संबंध में जानेंगे। कैसे इसके मंत्र का जाप किया जाए और इससे हमें क्या प्राप्त हो सकता है। अगर इसकी साधना की जाती है। तो केतु ग्रह भारतीय ज्योतिष में। स्वर भानु नाम के दानव का जो धड़ है। उसे ही केतु नाम से कहा जाता है क्योंकि सिर् को राहु कहते हैं। भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के समय में जब स्वरभानु ने चुपके से अमृत पीने की कोशिश की थी। तब सुदर्शन चक्र चलाकर स्वरभानु के गले को काट दिया था जिससे जो सिर का ऊपरी भाग है, इसे राहु कहा गया और नीचे का हिस्सा केतू माना गया। यह एक छाया ग्रह माना जाता है और प्रत्येक मनुष्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता? केतु को प्रायः सिर पर कोई रत्न या तारा लिये हुए दिखाया जाता है जिससे रहस्यमई प्रकाश निकल रहा होता है। मनुष्य में ख्याति पाने के लिए इस ग्रह को बहुत अधिक सहायक माना जाता है। कहते हैं। राहु और केतु, सूर्य एवं चंद्र के परिक्रमा पथों के आपस में काटने के दो बिन्दुओं के द्योतक हैं जो पृथ्वी के सापेक्ष एक दुसरे के उलटी दिशा में (१८० डिग्री पर) स्थित रहते हैं। चुकी ये ग्रह कोई खगोलीय पिंड नहीं हैं, इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है। सूर्य और चंद्र के ब्रह्मांड में अपने-अपने पथ पर चलने के कारण ही राहु और केतु की स्थिति भी साथ-साथ बदलती रहती है। तभी, पूर्णिमा के समय यदि चाँद केतु (अथवा राहू) बिंदु पर भी रहे तो पृथ्वी की छाया परने से चंद्र ग्रहण लगता है, क्योंकि पूर्णिमा के समय चंद्रमा और सूर्य एक दुसरे के उलटी दिशा में होते हैं। । और इस? यह बात मानी जाती है कि “वक्र चंद्रमा ग्रसे ना राहू” यह माना जाता है ज्योतिष में की केतु, अच्छी और बुरी आध्यात्मिकता और प्रगति के प्रभावों का कार्मिक संग्रह का द्योतक है और केतु भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार से ही संबंधित माना जाता है। यह दुख और हानी भी देता है और लाभदायक भी होता है। विभिन्न प्रकार से इसका प्रभाव मानसिक गुणों के रूप में देखने को मिलता है। कहते हैं। केतु परिवार को समृद्धि दिलाता है। सर्पदंश और रोगों के प्रभाव में विश्व को नष्ट करने वाला माना जाता है। अपने भक्तों को अच्छा, स्वास्थ्य, धनसंपदा, पशु, संपदा इत्यादि प्रदान करता है और यह अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। केतु स्वभाव से मंगल की ही भांति एक क्रूर ग्रह माना जाता है। कुछ ज्योतिषी से नपुंसक ग्रह तो कुछ ऐसे नर ग्रह मानते हैं। 3 नक्षत्रों का स्वामी माना जाता है। अश्विनी, मघा और मूल नक्षत्र। यही केतु जन्म कुंडली में अगर राहु के साथ मिल जाता है और इनके बीच में सारे ग्रह स्थित होते हैं तो कालसर्प योग की अवस्था बना देता है। केतु का जातक जीवन में बड़ी ऊंचाइयों तक पहुंचता है। केतु की पत्नी सिंहिका और विप्रचित्ति में से एक के एक सौ एक पुत्र हुए जिनमें से राहू ज्येष्ठतम है एवं अन्य केतु ही कहलाते हैं। यह ग्रह दानव का प्रभाव दिखाता है। दानव स्वरभानू का धड़ गिद्ध पर सवार दिखाई देता है। निवास स्थान इनका के 2 लोक हैं और नक्षत्र लोक में यह छाया रूप में निवास करते हैं। इनका जो हथियार है यानी अस्त्र मूसल है। इनकी जो जीवनसंगिनी या जीवनसाथी हैं, उसे चित्रलेखा नाम से जाना जाता है और इनकी जो सवारी है वह गिद्ध है। अलग-अलग भागों में अलग-अलग प्रभाव इस ग्रह का देखने को मिलता है, लेकिन हम बात करेंगे। तंत्र विद्या की कहते हैं। अगर केतु मजबूत हो तो व्यक्ति तंत्र विद्या में पारंगत हो जाता है और विभिन्न प्रकार की शक्तियां और सिद्धियां उसे सहजता से प्राप्त होने लगती है। इसीलिए! अगर किसी की जन्मपत्री में राहु और केतु मजबूत हैं तो वहां अलौकिक शक्तियों का मालिक बन सकता है। हम बात करते हैं इसके मंत्र का जाप कैसे किया जाए, क्या विनियोग है और कितना मंत्र जाप करने से क्या-क्या लाभ और किस प्रकार से इसके दुष्प्रभाव को जन्मपत्री से समाप्त किया जा सकता है? तो विनियोग से प्रारंभ करते हैंजो इस प्रकार से होगा- विनियोगः ॐ अस्य श्री केतु मंत्रस्य, शुक्र ऋषि:, पंक्तिछंदः, केतु देवता, कें बीजं, छाया शक्तिः, श्री केतु प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः अनेक रुपवर्णश्र्व शतशोऽथ सहस्रशः । उत्पात रूपी घोरश्व पीड़ा दहतु मे शिखी ॥ केतु गायत्री मंत्र: || ॐ पद्मपुत्राय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो केतुः प्रचोदयात || केतु सात्विक मंत्र: ॥ ॐ कें केतवे नमः ॥ केतु तंत्रोक्त मंत्र: ॥ ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नमः ॥ केतुः काल: कलयिता धूम्रकेतुर्विवर्णकः । लोककेतुर्महाकेतुः सर्वकेतुर्भयप्रदः ॥1॥ रौद्रो रूद्रप्रियो रूद्रः क्रूरकर्मा सुगन्धृक् । फलाशधूमसंकाशचित्रयज्ञोपवीतधृक् ॥2॥ तारागणविमर्दो च जैमिनेयो ग्रहाधिपः । पञ्चविंशति नामानि केतुर्यः सततं पठेत् ॥3॥ तस्य नश्यंति बाधाश्च सर्वाः केतुप्रसादतः । धनधान्यपशुनां च भवेद वृद्धिर्न संशयः ॥4॥ इस प्रकार! इन स्त्रोतों और मंत्रों से आप केतु की पूजा कर सकते है। अब जानते हैं अगर केतु ग्रह की आपको पूजा विनियोग करने के बाद कितने मंत्र जाप इनका करना चाहिए जैसे कि मैंने एकाक्षरी बीज मंत्र के बारे में बताया कि ॥ ॐ कें केतवे नमः ॥ और तांत्रिक मंत्र॥ ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नमः ॥ इसका कुल जाप संख्या 17000 बताई जाती है। ऐसे में यह कहा जाता है क्योंकि कलयुग में 4 गुना जाप और दशांश हवन का विधान है तो इसका मतलब 68000 संख्या में आप जाप और 6800 का हवन करेंगे। इन दोनों मंत्रों में से किसी का भी तो केतू महाराज की कृपा अवश्य ही प्राप्त होगी। जब आप यह कार्य संपन्न कर ले तो आप दान सामग्री में काला वस्त्र काले, तिल, लहसुनिया, कंबल, सुगंधित तेल, उड़द, काली मिर्च, सप्तधान्य लोहा, छाता इत्यादि दान कर सकते हैं और रत्न के रूप में आप लहसुनिया को धारण कर सकते हैं। इन सभी सामग्री को वस्त्र में बांधकर उसकी पोटली बनाएं। तत्पश्चात उसे मंदिर में अर्पण करें अथवा बहते हुए जल में प्रवाहित कर देना चाहिए। दान का समय जो है, वह रात्रि का होना चाहिए। हवन की समिधा है, उसमें आप कुशा का प्रयोग करेंगे और औषधि स्नान आप रक्त चंदन मिश्रित जल से करेंगे। इन सभी चीजों को करने से केतु ग्रह का प्रभाव पूरी तरह से कम पड़ता है। इसके अलावा काले या चितकबरे कुत्ते को दूध और रोटी आप खिलाएंगे। पक्षियों को सात प्रकार के अनाज चुगने के लिए डालेंगे। बुधवार को प्याज और लहसुन बहते हुए जल में प्रवाहित करेंगे के अलावा पांच कील, चूने के पांच पत्थर, सफेद और काले रंग भी शुद्ध वस्त्र में बांधकर अपने ऊपर से उतार कर बहते हुए जल में प्रवाहित करेंगे। भिखारियों को कंबल का दान देंगे और बकरा या बकरी का दान करेंगे। केतु यंत्र को अष्टधातु के पत्र पर उत्कीर्ण करवा कर उसकी नित्य पूजा करेंगे और लहसुनिया नाम का रत्न पहनेंगे तो आप केतू के प्रभाव से सदैव मुक्त रहेंगे। निश्चित रूप से सफलता मिलेगी लेकिन कभी-कभी रत्न पहनने से पहले ज्योतिष से अवश्य मिले क्यूंकी उसका गलत प्रभाव भी यहां पर पड़ सकता है। किसी ज्योतिषाचार्य से ही पूछ करके रत्न पहनना चाहिए। इस प्रकार से आज मैंने आपको बताया है केतू ग्रह के विषय में। इसकी साधना करने से अलौकिक लाभ प्राप्त होते हैं और संपूर्ण सिद्धि में गोपनीय प्रकार की सिद्धियां भी प्राप्त हो सकती है। यह था राहु ग्रह का नीचे का भाग जिसे हम केतू कहते हैं। यह उतना ही शक्तिशाली है जितना कि राहु अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद। |
|