Table of Contents

तारापीठ श्मशान भैरवी की साधना भाग 5

तारापीठ श्मशान भैरवी की साधना भाग 5

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आपका एक बार फिर से स्वागत है । जैसा की अभी तक की कहानी में आपने चार भागों में जाना किस प्रकार तारापीठ की श्मशान भैरवी साधना में । महोदय बाबू और गुरु श्याम पंडित अपनी तरफ से पूरी कोशिश किए जा रहे थे । लेकिन फिर भी वो श्मशान भैरवी को रोक पाने में असमर्थ थे । श्मशान भैरवी जिसने अभी-अभी दो तांत्रिकों की हत्या की थी और गुरु श्याम पंडित की ओर भी वह बढ़ी चली जा रही थी । उसकी कोशिश यही थी कि गुरु श्याम पंडित को भी उसके और उसके साथ साधक के मार्ग से हटा दिया जाए । गुरु श्याम  पंडित अपने गुरु मंत्र का जाप करने लगे और इसी वजह से उनके प्राण बचे थे । उनकी ओर से पलट कर अब एक बार फिर से भीषण वेग करती हुई महोदर बाबू के पास जाने लगी । और महोदर बाबू जोकि साधना में लीन थे सब कुछ अपनी बंद आंखों से उन्हें बिल्कुल उसी तरह दिखाई पड़ा था जैसे खुली आंखों से सब कुछ दिखाई पड़ता है । उनको अब समझ में आ रहा था कि एक बार फिर से भैरवी उनकी तरफ आती चली जा रही है ।

भैरवी अपने भयानक रूप में विकराल बालों वाली और एक हाथ में अंडा और दूसरे हाथ में मदिरा लेकर पीते हुए आगे बढ़ने वाली साथ में खप्पर धारण करने वाली कई बुझाओ वाली हो करके और अपनी लंबी लंबी जीवा दिखाते हुए इधर-उधर और अपनी जीवा को सांप की जीवा के समान इधर-उधर लप-लपाती हुई उनकी तरफ आने लग जा रही थी । उसको आता देख कर के उसके भयंकर रूप को देखकर महोदर बाबू एक बार फिर से भयभीत होने लगे । उसके सिर के खुले बाल आंखों से लगातार रक्त बह रहा था लहंगा पहने हुए थी काल की निशानी लग रही थी । और अत्यंत ही भीषण काले रंग वाली वह स्त्री जो बहुत ही दिखने में भयंकर थी उनकी तरफ बढ़ती चली आ रही थी । महोदर बाबू एक बार फिर से उसके वेग को सहने के लिए तैयार थे अपनी साधना में वो किसी भी  प्रकार से सफल होना चाहते थे । क्योंकि अबतक यह युद्ध काफी आगे बढ़ चुका था और अब साधक और साध्य के बीच में ही सारी की सारी कहानी लिखी जानी थी । महोदर बाबू ने अपने आपको एक निष्ठ किया और साधना करते रहें मंत्रों का जाप तेजी से करते रहें ।

जैसे ही भैरवी उनके नजदीक आई उसने इनके सिर को पकड़ा और उस पर प्रहार किया । दर्द से तिलमिला उठे महोदर बाबू और उन्होंने इस चीज को ऐसे ही जाने दिया जैसे छोटे बच्चे जब कभी अपने मां बाप को मार देते हैं । तो मां-बाप उनको पूरी तरह से इस बात के लिए माफी दे देते हैं कि यह तो सिर्फ मजाक में किया गया है । ऐसे ही उनके मन में भाव थे क्योंकि साधना जिसकी वह कर रहे थे उसके वारो और प्रहारों को सहना उनके लिए आवश्यक हो जाता था । वरना साधना में सफलता कहां से मिलेगी । यही सोचते हुए वह लगातार साधना करते जा रहे थे भैरवी भी अब देख उन्हें एक टक देख रही थी कि आखिर इतने सारे दंड देने के बावजूद भी महोदर बाबू शांत स्वरूप में साधना करते चले जा रहे हैं । और इस प्रकार उनके आगे आकर बैठ गई और उन्हें देखने लगी । वह उन्हीं के आगे उस रात बैठी रही ।  भैरवी भी अब देख रही थी इतने सारे दंड देने के बावजूद भी महोदर बाबू शांत स्वरूप में साधना करते चले जा रहे हैं । और उन्हें देखने लगी उस रात बैठी रही और महोदय बाबू उसी प्रकार साधना करते रहे ।

इस प्रकार वह रात संपन्न हुई और वह साधना कर चुके थे । इस प्रकार अब तक 15 रातें भी बीत चुकी थी । रोज रोज अलग-अलग तरह की घटनाएं घटती चली आ रही थी । लेकिन सुबह के समय जब गुरु श्याम पंडित उनके पास आए कहने लगे रात को यहां पर दो लाशें बिछ गई और वह लाशों को अब यहीं पर छोड़ देना ही उचित होगा । उनके साथ भैरवी क्या करेगी हमें नहीं पता । लेकिन मुझे अब आपके लिए भय हो रहा है स्वयं मैंने इस चीज को सहजता से ले लिया था । कि साधना सरल हो जाएगी और साधनाओ में सफलता मिल ही जाती है लेकिन आज लगता है कि मैंने आपको इस प्रपंच में डाल कर गलती की है । अब मैं जाकर के नगर में किसी ऐसे व्यक्ति को ढूंढता हूं । जो इस महान शमशान भैरवी का सामना कर सके । और आपकी रक्षा भी करता रहे।  महोदर बाबू ने कहा कुछ भी हो जाए गुरु श्याम पंडित जी मैं अब यह साधना नहीं छोड़ने वाला कारण कि आप इतना आगे बढ़ चुका हूं कि अब पीछे जाने का मन नहीं करता । और ध्यान और साधना में इतना अधिक आनंद आने लगा है कि अब इस साधना को छोड़ने का मन नहीं कर रहा । मैं चाहता हूं कि मुझे इस शक्ति की प्राप्ति हो । अब यह चाहे जैसी भी हो इसे मुझे प्राप्त करना ही मेरे जीवन का उद्देश्य बन गया है ।

भैरवी को मैं प्राप्त करके ही रहूंगा चाहे शमशान भैरवी मेरी जान ही लेने के पीछे क्यों ना पड़ जाए । गुरु श्याम पंडित ने कहा आप सोच भी सही रहे आपने संकल्प ले लिया है और एक बार अगर तामसिक साधना का संकल्प आप ने ले लिया उस साधना को पूर्ण किए बिना बीच में नहीं छोड़ना चाहिए । देवता आप को दंड दे सकता है और दंड वह निर्धारित करता है और इसके लिए उसे कोई दोष नहीं लगता । महोदर बाबू ने कहा हा मैं जानता हूं मुझे किसी प्रकार से इस साधना को संपूर्ण करना है । आप मेरी सहायता जिस प्रकार से भी कर सकते हो कीजिए । गुरु श्याम पंडित ने कहा अब्दुल्ला के गुरु हैं उन तक मुझे वह बात पहुंचानी होगी । शायद वह आपकी मदद करने के लिए कुछ ना कुछ कर सके । वह तंत्र के अच्छे खासे जानकार हैं मुझे उनके पास जाना होगा । इस प्रकार महोदर बाबू वहां से चले गए और गुरु श्याम पंडित भी अपने मार्ग पर चले गए । महोदर बाबू अपने घर पर जाकर के सोने लगे जैसा कि उनकी रात की तपस्या के बाद थक जाते हैं । इसके बाद इधर गुरु श्याम पंडित उस नगर में गए जहां पर अब्दुल्ला रहा करता था । अब्दुल्ला के गुरु के पास जा करके उन्होंने सारी बात बताई । गुरु को उनके बहुत क्रोध है उन्हें  बहुत ही गुस्सा आया लेकिन उन्होंने कहा आपको सोचना चाहिए था ।

श्मशान भैरवी साधना आसान नहीं है यह साधना करना और उसको संभालना बहुत ही कठिन है और फिर तो तारापीठ में हो रही है । मुझे लगता है संसार में सबसे अधिक शक्तिशाली श्मशान भैरवी इस वक्त इस तारापीठ में रह रही है । और जहां तक मैं देख पा रहा हूं यह 1000 साल पुरानी शक्ति है इसलिए इसको रोकना और संभालना बहुत ही टेढ़ी खीर होगी । मैंने बहुत सी परियों को सिद्ध कर रखा है मैं परियों की सहायता इस में लूंगा और निश्चित रूप से कोशिश यही करूंगा कि महोदर बाबू को कुछ ना होने पाए । गुरु श्याम पंडित जी ने उनसे आश्वासन प्राप्त करके उनके मन में काफी प्रसन्नता थी । एक बार फिर से उनके गुरु अर्थात अब्दुल्ला के गुरु वहां के लिए निकल पड़े और उन्होंने एक सुरक्षा चक्र घेरा बनाया । जिसे परी मंत्र से अभीमंत्र कर दिया ताकि कोई भी शक्ति उनका कुछ बिगाड़ पाए । साथ ही साथ उन्होंने अपनी रूहानी परियों की शक्तियों का आवाहन किया । परिया आ गई वह सात परिया थी । सातों परियों ने कहा कि हम श्मशान भैरवी को रोकने की पूरी कोशिश करें । और हमारी माया अलग ही तरह की है यह श्मशान माया की तरह नहीं होती है । इसलिए हो सकता है श्मशान भैरवी भ्रमित हो जाए हम आश्वासन तो नहीं दे सकते हैं ।

लेकिन हम अपनी पूरी कोशिश करेंगे कि आपको साथ ही साथ गुरु शाम पंडित को और महोदर बाबू को कुछ भी ना होने पाए । अपनों से मंत्रो अभीकृत कर लेने के बाद वहां पर वह परीया जिन्हें अब सराय भी कहा भी जा सकता है अपने सुंदर योगन रूप के साथ में महोदर बाबू के पास पहुंची । और उन्होंने उनके सिर पर हाथ रखा उनके बदन को छुआ । उसके बाद उन्होंने एक अजीब  तरह का एक चक्र निर्मित किया जिसमें वह गोल गोल करके घूमने लगी । वह सातो परिया इस तरह से चारों ओर घूम रही थी जैसे कि एक चक्र गिननी घूमती है । इधर भैरवी की पूजा शुरू होने पर महोदर बाबू एक बार फिर से समझ गए कि आज भी शमशान भैरवी कहीं ना कहीं से प्रकट अवश्य हो जाएगी । तभी जलती हुई चिता के बीच से उसे निकलते हुए उन्होंने देखा यह दृश्य सिर्फ महोदय बाबू देख सकते थे बाकी किसी को भी नहीं दिखाई दी लेकिन महोदर बाबू ने हल्के से चिमटा बजा करके इस बात का इशारा गुरुश्याम पंडित को कर दिया और साथ ही साथ अब्दुल्ला के गुरु को भी की वो आ रही है । मस्त मस्त चाल में चलती हुई वो उनकी तरफ आगे आगे बढ़ने लगी तभी उसको ऐसी शक्ति ने झटका दिया जो वह दिखाई नहीं पड़ी श्मशान भैरवी ने सोचा कि ऐसी क्या है ताकत जो मुझे दिखाई नहीं दे रही है ।

एक बार फिर से झटका दिया गया इससे शमशान भैरवी का क्रोध जाग गया उसने अपना खडग उठा लिया और उसका प्रहार किया अदृश्य शक्ति को जाकर वह खड़क लगा और चिल्लाते हुए वह अप्सरा जिसने सबसे पहले शमशान भैरवी को रोकने की कोशिश की थी वह रोते हुए वहां से भाग गई श्मशान भैरवी को क्रोध आ रहा था । शमशान भैरवी ने जमीन पर अपना खड़क तेजी से पटका मारा जिसकी वजह से भीषण उधर कंपन पैदा हुआ और उसे सारी की सारी अप्सराएं दिखने लगी । अप्सराओं की माया इस तरह की थी कि उन्होंने अत्यंत ही तेज खुशबू फैला दी अफसराए उस सुगंध का प्रयोग वशीकरण के लिए करती थी । उन परियों की वशीकरण की वजह से चारों तरफ एक अजीब सी खुशबू फैल गई । जो शमशान की बदबू से बिल्कुल अलग थी और वह सब को हटाती चली जा रही थी । सारी शक्तियां शमशान भैरवी का आदेश मानने से इनकार करके मदमस्त होकर के नृत्य करने लगी । शमशान भैरवी के पैर भी थिरकने लगे  लेकिन शमशान भैरवी ने स्वयं को संभाला और गुस्से से हुंकार भरते हुए तेजी से अग्नि ज्वाला मुंह से निकाली उसकी अग्नि ज्वाला से परिया भयभीत हुई । लेकिन उन्होंने अपना कार्य करना जारी रखा । तारापीठ में बैठे हुए महोदर बाबू गुरु श्याम पंडित और अब्दुल्ला के गुरु तीनों ही अदृश्य हो गए थे ।

उस सुगंध की वजह से शमशान भैरवी इधर से उधर इधर से उधर सब तरफ देख रही थी उसे महोदर बाबू के शब्द सुनाई पड़ रहे थे जो मंत्र जाप मैं किए जाते हैं । गुरु श्याम पंडित और उनके गुरु की सुगंध भी आ रही थी जो शरीर से आती है लेकिन मैं उन्हें देख नहीं पा रही थी ।यह सारी माया परियों की थी परी शक्तियों का अच्छा इस्तेमाल अब्दुल्ला के गुरु ने किया था । इस प्रकार वह अफसर आए इधर से उधर उधर से इधर घूमती हुई शमशान भैरवी को भ्रमित करती रही । शमशान भैरवी को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था अप्सराओं की मधुरता और उनकी उस सुगंध से शमशान भैरवी का क्रोध भी शांत हो जा रहा था । इस प्रकार वह रात्रि बीत गई और महोदर बाबू के साथ गुरु श्याम पंडित और उनके अब्दुल्ला के गुरु जो चाल थी वह कामयाब रही थी । आप सबको यही लग रहा था कि निश्चित रूप से अब यह कार्य हम संपन्न कर ले जाएंगे कोई नहीं रोक पाएगा । अगली रात जैसे ही हुई शमशान भैरवी ने तुरंत ही जितनी चिताए जल रही थी उन पर फूकना शुरू कर दिया । उनसे तीव्र बदबू चारों तरफ बढ़ गई बढ़ गई अप्सराओं यानी की परियों की सुगंध एक बार फिर से उनके खिलाफ लड़ने के लिए तैयार हुई । लेकिन जलते हुए शरीरों की बदबू के आगे वह एक बार फिर से दब गई ।

अपनी त्रिविता से किए हुए हमले से अबकी बार अप्सरा हो यानी कि परियों को कोई मौका ही नहीं मिला और श्मशान भैरवी ने उन सब को पकड़ लिया । उन सब की चोटी एक साथ बांध दी और ऐसा पटका सब के सब मूर्छित हो गई । इसी के साथ गुरु श्याम पंडित और अब्दुल्ला के गुरु दिखाई पड़ने लगे और महोदर बाबू भी लेकिन गुरु श्याम पंडित और उनके गुरु के पास ना जा करके भैरवी तुरंत महोदर बाबू की तरफ लपकी । और महोदर बाबू के पास जाकर के कहां तुम मेरी साधना कर रहे हो और तुम मुझे अपनी पत्नी या प्रेमिका बनाना चाहते हो लेकिन यह तभी संभव है जब तुम मेरे साथ शारीरिक संबंध बनाओ । लेकिन याद रखो अगर तुमने इस प्रक्रिया को बीच में रोका या इस कार्य के लिए मना किया तो मैं तुम्हारी जान अभी ले लूंगी । महोदर बाबू ने सोचा इस क्रिया में कौन सी कट रही है मैं निश्चित रूप से यह कार्य संपन्न कर सकता हूं । और उन्होंने हां कह दी उनका हाथ कहना ही था उनके जीवन के लिए सबसे बड़ा संकट आ चुका था । कारण कि उसके बाद तुरंत शमशान भैरवी अत्यंत ही भयानक रूप में बदल गई उसका शरीर पूरा का पूरा सड़ा हुआ जिस पर बहुत से कीड़े लगे हुए थे जहां पर होठ होते हैं वहां पर कीड़े उसके होठों को खा रहे थे ।

उसी तरह जैसे कि लाशे सड़ जाती है उनमें कीड़े लग जाते हैं उसके पूरे शरीर में कीड़े ही कीड़े थे । जो सड़े हुए मास को खा रहे थे । इतना भयानक और घृणित रूप स्वरूप शमशान भैरवी ने बनाया जिसको एक बार मनुष्य देख ले तो वहां से अपना मुंह छुपाए भागता भागता नजर आए । अगर कोई उसका रूप स्वरूप देख ले तो उल्टी कर बैठे । और इस प्रकार व महोदय को बाबू के नजदीक गई और उसने कहा कि चुंबन से शुरुआत कीजिए  । जब उसके होंठ को उन्होंने देखा वहां पर कीड़े लगे हुए थे और दांतों के बीच में भी बड़े-बड़े सफेद से कीड़े उसके दांतो और होठों को खा रहे थे । इतना अधिक घृणित रूप आज तक महोदर बाबू ने नहीं देखा था । और श्मशान भैरवी ने साथ ही साथ मुस्कुराते हुए कहा अगर तुमने मेरी इच्छा को पूरा नहीं किया तो मैं तुम्हारा वध कर दूंगी । यह तुम पहले ही संकल्प ले चुके हो । इस प्रकार महोदर बाबू पूरी तरह फस चुके थे ना गुरु श्याम पंडित कुछ कर सकते थे ना उनके गुरु अब कुछ कर सकते थे । अब जो कुछ करना था वह भैरवी को करना था या महोदर बाबू को करना था । आगे क्या हुआ यह जानेंगे हम अगले भाग में । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

error: Content is protected !!
Scroll to Top